Saturday, September 22, 2007

फॉंसी का फंदा और पशुपतिनाथ

संस्कृत-हिन्दी का बेहद आम शब्द है पशु जिसके मायने हैं जानवर, चार पैर और पूंछ वाला
जन्तु, चौपाया ,बलि योग्य जीव । मूर्ख व बुद्धिहीन मनुश्य को भी पशु कहा जाता है। पशु शब्द की उत्पत्ति भी दिलचस्प है। आदिमकाल से ही मनुश्य पशुओं पर काबू करने की जुगत करता रहा। अपनी बुद्धि से उसने डोरी-जाल आदि बनाए और हिंसक जीवों को भी काबू कर लिया। संस्कृत में एक शब्द है पाश: जिसका अर्थ है फंदा ,डोरी , श्रृंखला, बेड़ी वगैरह। जाहिर है जिन पर पाश से काबू पाया जा सकता था वे ही पशु कहलाए। पाश: शब्द से ही हिन्दी का पाश शब्द बना जिससे बाहूपाश, मोहपाश जैसे लफ्ज बने। प्राचीनकाल में पाश एक अस्त्र को भी कहा जाता था।
पाश: शब्द के जाल और फंदे जैसे अर्थों को और विस्तार तब मिला जब बोलचाल की भाषा में इससे फांस या फांसी , फंसा,फंसना-फंसाना जैसे शब्द भी बने। पशुपति
भारतीय संस्कृति में पाश से बने पशु शब्द के दार्शनिक अर्थ भी हैं इसीलिए शिव का एक नाम है काठमांडू के जगप्रसिद्ध पशुपतिनाथ का मंदिर में शिव के इसी रूप की आराधना होती है । यहां पशु का अर्थ है समूची पृथ्वी और उसके प्राणि जिन्हें स्वयं उत्पन्न किया है इसीलिए पशुपति। इसी तरह पाशुपत दर्शन भी है। पुराणों के मुताबिक इस दर्शन के संस्थापक नकुलीश यानी स्वयं शिव थे। यहां पाशु का अर्थ वे सांसारिक बंधन हैं जिनसे जीव (पशु) जकड़ा हुआ है।

2 कमेंट्स:

eSwami said...

बहुत अच्छी प्रविष्ठी. धन्यवाद!

mamta said...

ज्ञानवर्धक जानकारी।

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