Wednesday, September 3, 2008

सबका भाग्यविधाता कौन...[भगवान-2]

 dn13970-1_600 ब्रह्मांड के निर्माण की एक थ्योरी बिगबैंग यानी महाविस्फोट की भी है। विस्फोट के बाद वह पिंड अनंत पिंडों में विभक्त हुआ। भग यदि योनि है तो भी गर्भाशय में जीवन के निर्माण की प्रक्रिया कोशिकाओं के विभक्त होने से जुड़ी हैं। सृष्टि में लगाता विस्तार हो रहा है। सूक्ष्म एक कोशिकीय जीव लगातार विभाजन से अस्तित्व की समृद्धि पाते हैं। विभाजन ही जीवन-सृजन का आधार है। सृजन की इस शक्ति के भग नाम में परम सार्थकता है।
फर की पिछली कड़ी में वक्त, बख्त और बख्श की चर्चा की गई। इंडो-ईरानी भाषा परिवार के इन शब्दों का दूसरे से गहरा संबंध है। वक्त यानी हिस्सों में बंटा समय । सेकेंड, मिनट, घंटा,पहर, दिन, महिना, साल...गिनते जाइये। ये सब समय के हिस्से हैं, अंश है। मनुष्य के हिस्से में प्रभु की तरफ से जो समय आया है, जो अंश मिला है, ऐश्वर्य रूपी जो आयु कलश मिला है , वही उसका भाग्य है यानी बख्त है । इसीलिए कहते हैं जान है , तो जहान है। बख़्श का अर्थ भी अंश ,खंड, भाग्य , हिस्सा, देनेवाला होता है। वैसे वक्त की व्युत्पत्ति संदिग्ध है। संकेत यही कहते हैं कि यह इंडो-ईरानी परिवार का है।  शब्दकोशों में इसे अरबी मूल का भी बताया जाता है। इसके बावजूद सेमेटिक भाषा परिवार से इसकी व्युत्पत्ति अभी तक सिद्ध नहीं हो पाई है।
भक्तिभाव का भात
न तीनों ही शब्दों का रिश्ता जुड़ता है संस्कृत धातु भज् से जिसका अर्थ है हिस्से करना, अंश करना, वितरित करना, बांटना , लाभ प्राप्ति, पूजा-आराधना आदि। भज् से बने हैं भक्त , भगत, भगतिन जैसे शब्द । भक्त यानी जो ईश्वर से विभक्त है।  ( विभक्त की वक्त से तुलना कर लें ) । संस्कृत में भक्त का एक अर्थ होता है उबाला हुआ चावल अर्थात आहार अंश । गौरतलब है कि पके हुए चावल के लिए भात शब्द भक्त का ही रूप है। वैदिक काल में चावल का बड़ा महत्व था और विभिन्न अनुष्ठानों में इसका प्रयोग होता था। आज भी जन्म से मृत्यु तक के सभी संस्कारों में भात का प्रयोग अनिवार्य रूप से होता है। वैदिक देवता को इस भक्त की आहूति दी जाती थी। बाद मे यह उबला हुआ चावल भोजन का पर्याय भी हो गया। उपासक, सेवक, पुजारी, दास आदि के अर्थ में भक्त की व्याख्या यही है कि जो अपने प्रभु से, आराध्य से विभक्त है और भज् यानी आराधना के जरिये उसमें लीन होने का अभिलाषी है।ज् से ही निकला है भजन अर्थात भक्तिगान। पुरानी फारसी में यह बाज या बाजी हुआ जिसका मतलब होत था कर, टैक्स। गौर करें यहां अंश का भाव आ रहा है।
भक्त भी भगवान
ज् धातु से बना है संस्कृत का भगः शब्द जिससे बना है ईश्वर, सर्वशक्तिमान, दाता, प्रभु , सबको सबका हिस्सा देने वाला, सबका हिस्सा यानी भाग, अंश, आयु और प्रकारांतर से सबका भाग्यविधाता आदि के अर्थों वाला शब्द भगवान । भग शब्द के कई अर्थ हैं जिनमें एक वैदिक देवता, सूर्य, चंद्र और शिव भी हैं। भग का अर्थ होता है ऐश्वर्य, सम्पन्नता , सम्पत्ति, भाग्य आदि। ऐश्वर्य सौन्दर्य और लावण्य का भी हो सकता है। इसी तरह भग का अर्थ विभूतियों से भी है - 1 सम्यक ऐश्वर्य 2 सम्यक ज्ञान 3 सम्यक वीर्य 4 सम्यक यश 5 सम्यक श्रव। भग की एक व्याख्या है प्रदान करनेवाला अर्थात वह अपने उपासक को इन छह विभूतियों से विभूषित करता है अर्थात उन्हें भगवान बनाता है। चूंकि ईश्वर के पास तो ये विभूतियां हैं ही इसलिए वह स्वयं भगवान हुआ। यही भाग्य है। भज् धातु में निहित अंश, हिस्से करना, बांटना आदि अर्थ भगवान में समाहित हैं। गौरतलब है कि ये सभी गुण सूर्य में ही थे अतः वैदिक काल में भगः का अभिप्राय सूर्य से ही है जो पृथ्वी पर जीवन-समृद्धि के लिए उत्तरदायी है। सूर्य ही वह वैदिक देवता है जिसे भग कहा गया है।
विज्ञानसम्मत भी , दार्शनिक भी 
ग का एक अर्थ स्त्री की योनि भी होता है। इसकी दार्शनिक व्याख्या भी अद्भुत है। योनि अर्थात जन्मस्थान । गौर करें विश्व की सभी सभ्यताओं में सृष्टि का जन्म एक विशाल पिंड से माना जाता रहा है। जिस योनि अर्थात भग से समूची सृष्टि का निर्माण हुआ है उसे धारण करनेवाला परमब्रह्म ही भगवान है। एक अन्य व्याख्या यह भी हो सकती है, जो अध्यात्म दर्शन के साथ विज्ञान सम्मत भी है। भज् धातु में बांटने, विभक्त करने का भाव है। ब्रह्मांड के निर्माण की एक थ्योरी बिगबैंग यानी महाविस्फोट की भी है। विस्फोट के बाद वह पिंड अनंत पिंडों में विभक्त हुआ। भग यदि योनि है तो भी गर्भाशय में जीवन के निर्माण की प्रक्रिया कोशिकाओं के विभक्त होने से जुड़ी हैं। सृष्टि में लगाता विस्तार हो रहा है। सूक्ष्म एक कोशिकीय जीव लगातार विभाजन से अस्तित्व की समृद्धि पाते हैं। विभाजन ही जीवन-सृजन का आधार है। सृजन की इस शक्ति के भग नाम में परम सार्थकता है। पौराणिक काल के एक राजा का नाम भगदत्त था जिसका अर्थ हुआ  [भग] देवता से प्राप्त। कोई भी माता पिता अपने पुत्र के नाम की व्यंजना 'योनि से उत्पन्न' के रूप में नहीं करना चाहेंगे। जाहिर है भग का  स्त्री अंग के रूप में वह अर्थ नहीं है जैसा अज्ञानी समझते हैं। भगदत्त नाम भी अल्लाबख्श या रामबख्श जैसा ही है।
भगवान, उज्बेकिस्तान !
पुरानी फारसी, ईरानी और अवेस्ता में यह भग लफ्ज़ बग या बेग [BAG] के रूप में मौजूद है। अर्थ वही है-ईश्वर , सर्वशक्तिमान । गौर करें कि भग में निहित देने वाला, बांटनेवाला, अन्नदाता वाला अर्थ ही यहां भी प्रभावी हो रहा है।  बाद के दौर में राजाओं के लिए यह शब्द प्रचलित हुआ।  शक्तिशाली और ताकतवर के लिए भी इसका प्रयोग होने लगा। । बग या बेग बाद में रसूखदार लोगों की उपाधि भी हो गई। मध्यएशिया के शक्तिशाली कबीलों की जातीय पहचान यह बेग़ शब्द बना जिसका एक रूप बेक भी हुआ । मध्य एशिया के एक देश का नाम उज़बेकिस्तान इसी जाति की प्रधानता की वजह से पड़ा। यही लोग भारत में उज़बक कहलाए। कुछ विद्वान इस BAG में उद्यान के अर्थ वाला बाग़ भी देखते हैं जिसकी व्याख्या समृद्ध भूमि, ऐश्वर्य भूमि के रूप में है। बगीचा इसका ही रूप है। बगराम , बगदाद , बागेवान जैसे शहरों के नामों के पीछे शायद यही अर्थ छुपा है।
आपकी चिट्ठियां
अभय भाई,
आपकी प्रतिक्रिया हमेशा की तरह उर्वर थी। मेरा प्रयास रहता है कि जो कुछ भी मन में विचार आते हैं उन्हें यथासंभव पुस्तकों और इंटरनेट से प्राप्त प्रामाणिक स्रोतों से गुज़ार कर ही उसके आधार पर पोस्ट बनाऊं। मैं एक साथ कई पुस्तकें पढ़ता हूं और एक साथ कई शब्दों पर लिखता हूं। अलग अलग शब्दों से संबंधित सामग्री चुन-चुन कर डायरी में लिखता हूं या पुस्तकों में बुकमार्क लगा देता हूं। आपका कहना है कि मैं संदर्भों का उल्लेख नहीं करता। ऐसा नहीं है। अक्सर मैं संदर्भों का उल्लेख करता हूं। मगर इस पूरी प्रक्रिया में मुझे काफी समय लग जाता है, जिसकी कमी है सो कई बार छूट जाते हैं तो परवाह नहीं करता। क्योंकि नेट सामग्री के स्रोत का पता मेरे दिये संदर्भों के कीवर्ड डाल कर कोई भी सर्फिंग करके लगा सकता है। मुश्किल नहीं है। दूसरे , मैं ये संदर्भ फेवरिट में नहीं रखता अतः कापी में नोट कर के आगे बढ़ लेता हूं। बहरहाल आपके लिए इस बार लिंक दे रहा हूं। अक्सर ऐसा कर पाऊंगा, इसका वादा नहीं कर सकता। मैं अपनी धुन में हूं। अलबत्ता स्रोत का पता पूछते ज़रूर रहें । जिज्ञासाओं के जवाब यहां दिये गए दोनों लिंक्स में मिल जाएंगे। जहां तक बख्त का त , बख्श में श बनने पर हैरत की बात है तो भाषाविज्ञानयों के मुताबिक यह प्रवृत्ति फारसी , पश्तो में कभी कभी दिखती है। पख्तून और पश्तून में यह बात है। फारस नाम में ही यह उजागर हो रही है। पार्थ , पार्थिया और पर्शिया, पार्स, फारस आदि में इसे देख सकते हैं। संस्कृत-अवेस्ता का पुत्र पुरानी फारसी में पुस्स है। संस्कृत के पितु या पितृ का रूप पुरानी फारसी में पिस्स या पिसर मिलता है। इन उदाहरणों में त थ आदि स श में बदलते साफ दिख रहे हैं। मैं फारसी का विद्वान नहीं हूं , पर खोजने बैठूं तो और भी निकाले जा सकते हैं। टिप्पणी और फोन करने के लिए आभार....

16 कमेंट्स:

Abhishek Ojha said...

ये कमाल की पोस्ट आराम से पढ़नी पड़ेगी. प्रिंटआउट निकाल के !

अभय तिवारी said...

अजित भाई,
आप ने त के श में बदलने के प्रति मेरी जिज्ञासा को शांत किया,शुक्रिया।
मगर आप ने जो ग़लती की न तो उसे स्वीकार किया और इस पोस्ट में भी वही ग़लती फिर से दोहराई है। वक़्त अरबी शब्द है फ़ारसी नहीं। आप ने पिछली पोस्ट में भी उसे फ़ारसी बताया इस पोस्ट में भी उसे इंडो-ईरानी भाषा परिवार का ही बता रहे हैं। आप ने जिस लिंक का हवाला दिया है, उसके अनुसार-
The question whether the Arabs borrowed their word waqt “time” from baḵt or an East Iranian form thereof remains uncertain. Waqt (pronounced vaḵt, voḵet, or the like) is not of Semitic origin, and the concepts of time and fate are not far apart (cf. Arabic dahr which means both).
यानी वे कह रहे हैं कि अरबी शब्द 'वक़्त' का स्रोत ईरानी है या नहीं यह अनिश्चित है, मगर यह शामी मूल का नहीं है। किस मूल का है ये पता नहीं।
इसके विपरीत आप १) इसे फ़ारसी शब्द बता रहे हैं २)बख़्त और बख़्श को इसी का बिगड़ा रूप बता रहे हैं।
आप के ही स्रोत के अनुसार यदि अरबों ने वक़्त को ईरानियों से उधार लिया है तो सम्भव यह कि 'वक़्त', 'बख्त' का बिगड़ा रूप है। मगर आप ने इस बात को सम्भावना के रूप में न दर्ज कर के उलटी बात को सत्य के रूप में स्थापित कर दिया। ऐसी ही भूलों के चलते तमाम खामख्यालियाँ सत्य के रूप में स्थापित हो जाती हैं जैसे सिन्धु घाटी सभ्यता आर्यों के आक्रमण के कारण नष्ट हुई-जो एक प्रकल्पना है मगर आज बच्चा-बच्चा इसे स्कूल में सत्य के रूप में पढ़ रहा है।
अजित भाई, आप एक अनोखा काम कर रहे हैं, शब्दों के मूल की विवेचना न सिर्फ़ नेट पर बल्कि हिन्दी में कोई और नहीं कर रहा। मैं आप से इस ज़िम्मेदारी की अपेक्षा करता हूँ। बाक़ी हम जैसे अल्पज्ञानी आप की साधना में विघ्न डालते ही रहेंगे.. उस के लिए आप की क्षमा की भी अपेक्षा है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप का आभार। आप ने भगवान को और अधिक स्पष्ट किया। लोग ईश्वर के बारे में भी जानना चाह रहे हैं।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

है अद्भुत यह शब्द-भक्ति अप्रतिम है यह आख्यान
भाग्य-रूप मिल गए सफ़र में देखो ये भगवान !
==================================
आभार.....गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएँ.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

रंजू भाटिया said...

बहुत बहुत शुक्रिया इस विषय पर इतने विस्तार और रोचक ढंग से बताने के लिए .

अजित वडनेरकर said...

अभय भाई ,
मेरे साथ चुनावी चक्कर शुरू हो चुका है, सो वक्त है नहीं।
इसी वक्त का जिक्र कर आपने फिर टेंशन बढ़ा दिया। आप जो कह रहे हैं वह एक पंक्ति मुझे पोस्ट में डालनी थी। तय था , मगर सुबह चार बज गए लिखते लिखते। छोटी मोटी दूसरी गलतियां ठीक करते। कुछ तब भी रह गईं, और यह भी।
बहरहाल, अब यह संकेत कर दूंगा कि वक्त के अरबी मूल का होने के ठोस प्रमाण नहीं हैं। विद्वान इसे ईरानी मूल से सेमेटिक भाषा परिवार में शामिल हुआ शब्द मानते हैं।
आप मानेंगे कि यह तथ्य मेरे पास था और इसका हवाला देते हुए पोस्ट में भी इसका उल्लेख करना तय था।
पर रह गया , सो रह गया। वैसे भाषा के क्षेत्र में आर्यों के आक्रमण वाली थ्योरी को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता ।

डॉ .अनुराग said...

मेहनत से तैयार की गई पोस्ट है .....बेहद मेहनत से.....

अजित वडनेरकर said...

क्षमा करें, वक्त को फिर ईरानी मूल का (सो फीसद) लिख दिया ।

अजित वडनेरकर said...

एक बात और स्पष्ट कर दूं। जब हम सेमेटिक, या शामी भाषा परिवार की बात करते हैं तो उससे हमारा तात्पर्य अरबी और हिब्रू जैसी भाषाओं से होता है। ईरानी, फारसी, पश्तो, हिन्दी , उर्दू आदि भाषाएं इंडो-यूरोपीय या इंडो-ईरानी भाषा परिवार में आती हैं ।
उक्त उद्धरण से यह साफ है कि वक्त शब्द सेमिटिक भाषा परिवार का नहीं है अर्थात अरबी भाषा में यह बाहर से आया है।
कहां से आया हो सकता है इसके पर्याप्त संकेत भाषाशास्त्रियों को मिले हैं । इन्ही आधारों पर ये दोनों पोस्ट बनाई गई हैं।

महेन said...

बहुत सारी जानकारी है। एक बार आत्मसात करना मुश्किल सा लग रहा है।

Arvind Mishra said...

अच्छा विश्लेषण !

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आपके हुनर, परीश्रम, और चिरन्तन जिज्ञासु जज़्बे को सलाम!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ये तो कमाल हुआ -
ऐश्वर्य, लावण्य और भग तीनोँ समानर्थी हँ !
तब, भृगु और भगिनी कैसे बने ?
स स्नेह,

- लावण्या

Sanjay Karere said...

ज्‍यादा जानकारी तो नहीं है लेकिन वक्‍त के बारे में अभय तिवारी जो कह रहे हैं उसे लगभग इसी रूप में कहीं पहले भी पढ़ रखा है. बख्त वाला तथ्‍य एकदम सही है. पर एक जिज्ञासा मन में आई कि भगवान और भगदत्त के समान भागवान (या भाग्‍यवान) और भागदत्त भी हैं... इन पर भी प्रकाश डालते तो और अच्‍छा होता. कुल मिला कर उम्‍दा जानकारी है.

Unknown said...

बढिया पोस्ट.भक्त और भात का सम्बन्ध बहुत निराला था.

Anonymous said...

दादाश्री भात की भक्ति भगवान के करीब लाती है मेरे इस मत को शब्दों के इस सफ़र के जरिये पुख्ता करने हेतु आभार. बेहद रोचक जानकारी थी. आनंद आ गया.

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