Sunday, December 14, 2008

उत्तराखंड से समरकंद तक [आश्रय-5]


श्रय के लिए तोड़ने-जोड़ने का क्रम
कंदरा-कोटर-कुटीर निर्माण से शुरू होकर किला-कोट बनाने तक अनवरत जारी रहा
हिन्दी का खंड शब्द आया है संस्कृत के खण्डः से जिसका अर्थ है दरार, खाई, भाग, अंश, हिस्सा, अध्याय, समुच्चय, समूह आदि। इस खण्ड में ही आज भारत समेत दुनिया के कई इलाकों के आवासीय क्षेत्रों, प्रदेशों और नगरों के नाम छुपे हुए हैं। संस्कृत में एक धातु है खडः जिसका अर्थ होता है तोड़ना, आघात करना आदि। खण्ड् का भी यही अर्थ है। ये सभी क्रियाएं आश्रय निर्माण से जुड़ी हैं। पाषाण, प्रस्तर , काष्ठ आदि सामग्री को तोड़-तोड़ कर इस्तेमाल के लायक बनाने का श्रम मानव ने किया। पाषाण के खण्ड-खण्ड जोड़ कर विशाल आवासीय प्रखण्ड बनाए। मूलतः इसी तरह बस्तियां बसती चली गईं और खण्ड शब्द का प्रयोग आवास के दायरे से बाहर निकलने लगा। गौरतलब है कि आश्रय निर्माण की प्रक्रिया में वर्ण की विशिष्टता यहां भी कायम है क्यों कि इसी वर्णक्रम की अगली कड़ी भी है। प्रभाग या अंश के लिए खण्ड शब्द का भौगोलिक क्षेत्रों के नामकरण में भी प्रयोग शुरू हुआ और देश, प्रदेश व क्षेत्र के लिए भी खण्ड शब्द चल पड़ा। उत्तराखण्ड, बघेलखण्ड, झारखण्ड, रुहेलखण्ड जैसे भौगोलिक नाम वहां रहनेवालों की पहचान और दिशा के आधार पर ही पड़े हैं।

प्राचीन ईरानी और अवेस्ता में भी इस खडः, खड या खण्ड की व्याप्ति आवासीय भू-भाग के तौर पर हुई। खान या खाना शब्द में भी आश्रय का बोध होता है क्योंकि इन शब्दों का निर्माण खन् धातु से हुआ है जिसका अर्थ है खोदना, तोड़ना, छेद बनाना आदि। खन् शब्द के मूल में खण्ड् ही है जो ध्वनिसाम्य से स्पष्ट हो रहा है। उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आदि इलाकों में कई शहरों के नामों के साथ कंद शब्द लगा मिलता है जैसे ताशकंद, समरकंद, यारकंद , पंजकंद आदि। ये सभी मूलतः खण्ड ही हैं। इनमें से ज्यादातर शहर प्राचीन ईरानी सभ्यता के दौर में बसे हैं इसीलिए बस्ती के रूप में खण्ड शब्द कंद, खान, खाना आदि कई रूपों में यहां उपस्थित है।

... दुर्ग का निर्माण वहीं होता है जहां चट्टान और पहाड़ की उपलब्धता हो...
ताशकंद में ताश दरअसल तुर्की भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है पत्थर। कंद नाम से जुड़ी जितनी भी बस्तियां थीं वे सभी दुर्ग नगर ही थीं। जाहिर है कि दुर्ग का निर्माण वहीं होता है जहां चट्टान और पहाड़ की उपलब्धता हो। समरकंद के साथ जुड़ा समर शब्द प्राचीन ईरानी के अस्मर से बना है जिसका अर्थ होता है प्रस्तर, चट्टान आदि। दिलचस्प यह कि संस्कृत में अश्म शब्द का प्रयोग भी पत्थर के लिए होता है। अस्मर और अश्म की समानता गौरतलब है। इस अश्म की मौजूदगी फॉसिल के हिन्दी अनुवाद जीवाश्म में देखी जा सकती है जो जीव+अश्म से बना है। इसमें निष्प्राण देह के प्रस्तरीभूत होने का ही भाव है। कुल मिलाकर प्राचीन ईरानी में कंद, कुड, कड, कथ आदि तमाम शब्द किला, कोट में रहनेवाली आबादी यानी दुर्गनगर की अर्थवत्ता ही रखते हैं।

द्वापर काल में कुरु प्रदेश का प्रसिद्ध खांडव वन जो बाद में खांडवप्रस्थ या इंद्रप्रस्थ प्रसिद्ध हुआ, एक भू-क्षेत्र के तौर पर ही जाना जाता रहा। खंड से ही बना है खांडव अथवा खांड अर्थात गुड़ का एक रूप। इसे यह नाम मिला है गन्ने की वजह से क्योंकि संस्कृत में गन्ने को भी खण्डः ही कहा जाता है। गौरतलब है कि गन्ना प्राकृतिक रूप से कई भागों में, हिस्सों में बंटा रहता है। खण्डः में निहित अंश को ही पिंड के रूप में भी देखा जा सकता है। इसीलिए जड़ – मूल वनस्पति के लिए फारसी में भी और संस्कृत में भी कंद शब्द मिलता है क्योंकि ये पिंड ही होते हैं जैसे शकरकंद, जिमीकंद। और हां, मिठाई के नामों में भी यही खंड , कंद के रूप में मौजूद है जैसे कलाकंद...।

कैसा लगा ये सफर? आओ,साथ चलें...

13 कमेंट्स:

Arvind Mishra said...

खण्ड शब्द की अखंड व्याख्या !

ab inconvenienti said...

क्या कन्दहार और खन्डहर में भी कोई समानता है?

Dr. Chandra Kumar Jain said...

यह खंड भी अनोखा है.
==================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

दिनेशराय द्विवेदी said...

खांड का सम्बन्ध गन्ने के खंडों से होगा कभी सोचा भी नहीं था।

Smart Indian said...

मज़ा आ गया. कभी समरकंद से शकरकंद और फ़िर शकरकंद से कलाकंद तक की कथा भी सुनाएँ तो लेख और भी लजीज हो जायेगा! धन्यवाद!

विवेक सिंह said...

फिर तो गहरा ,गड्ढा ,खड्ड , ग्रहण , ग्रास सभी लपेटे में आगए होंगे :)

ताऊ रामपुरिया said...

खण्ड शब्द की लाजवाब यात्रा करवाने के लिये आपको अनन्त धन्यवाद ! वाकई बडी अदभुत जानकारियां मिल रही हैं

राम राम !

Asha Joglekar said...

खड: शब्द से ही शायद खड्ग बना होगा जिसका अर्थ भी तोडने वाला (शस्त्र)
के रूप में है । गन्ने के लिये खण्ड , शायद इसीलिये अन रिफाइन्ड शक्कर को खाण्डसारी कहते हैं । संस्क़त में (मराठी में भी ) लडाई या विवाद को खडाष्टक कहते हैं शायद यह भी इसी की उपज हो । हमेशा की तरह रोचक ।

Gyan Dutt Pandey said...

कहाँ ताश (पत्थर) और कहाँ ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर ढ़ह जाने की बात। शब्दों में बहुत पेयर ऑफ अपोजिट्स चलता है। नहीं?

अजित वडनेरकर said...

@दिनेशराय द्विवेदी
@चुस्त भारतीय
@आशा जोगलेकर
बहुत-बहुत शुक्रिया। सफर में बने रहें। मिठास के दीवाने तो सभी होते हैं। सफर में खंड की मिठास का स्वाद आप पहले भी ले चुके हैं। ज़रा याद करें... नहीं याद आ रहा...अच्छा यहां क्लिक करें-
मिठास के कई रूप...और मिठास का कानून

अजित वडनेरकर said...

@ab inconvenienti
कन्दहार का खंडहर से तो नहीं बल्कि गांधार से रिश्ता है। भारतवर्ष का यह प्रान्त अफ़गानिस्तान में ही आता था।

शिरीष कुमार मौर्य said...

अजित भाई आपकी मेहनत कमाल की है।
इतना रचनात्मक काम आप कर रहे हैं कि देखकर हैरानी होती है। आपका ये ब्लॉग प्रकाशित होने वाली सामग्री से अटा पड़ा है - आप इसे छपाइये !

Abhishek Ojha said...

अरे ये तो सिंहगढ़ की तस्वीर है !

खंड-खंड मिल के प्रखंड !

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