| "..संस्कृत में बृह् धातु है जिसमें उगना, बढ़ना, फैलना जैसे भाव हैं.." |
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प्रस्तुतकर्ता
अजित वडनेरकर
पर
3:03 AM
लेबल:
space astronomy
बहुत शोधपरक, उपयोगी और महत्वपूर्ण जानकारियां। हिंदी में इतनी संलग्नता के साथ ऐसा परिश्रम करने वाले विरले ही होंगे।
'शब्दों का सफर' मुझे व्यक्तिगत रूप से हिन्दी का सबसे समृद्ध और श्रमसाध्य ब्लॉग लगता रहा है।
आप के समर्पण और लगन के लिए मेरे पास ढेर सारी प्रशंसा है और काफ़ी सारी ईर्ष्या भी।
सच कहूँ ,ब्लॉग-जगत का सूर और ससी ही है शब्दों का सफ़र . बधाई.... अंतर्मन से
लिखते रहें. यह मेरे इष्ट चिट्ठों मे से एक है क्योंकि आप काफी उपयोगी जानकारी दे रहे हैं.
थोड़े में कितना कुछ कह जाते हैं आप. आपके ब्लाँग का नियमित पारायण कर रहा हूं और शब्दों की दुनिया से नया राब्ता बन रहा है.
आपकी मेहनत कमाल की है। आपका ये ब्लॉग प्रकाशित होने वाली सामग्री से अटा पड़ा है - आप इसे छपाइये !
बेहतरीन उपलब्धि है आपका ब्लाग! मैं आपकी इस बात की तारीफ़ करता हूं और जबरदस्त जलन भी रखता हूं कि आप अपनी पोस्ट इतने अच्छे से मय समुचित फोटो ,कैसे लिख लेते हैं.
सोमाद्रि
इस सफर में आकर सब कुछ सरल और सहज लगने लगता है। बस, ऐसे ही बनाये रखिये. आपको शायद अंदाजा न हो कि आप कितने कितने साधुवाद के पात्र हैं.
शब्दों का सफर मेरी सर्वोच्च बुकमार्क पसंद है -मैं इसे नियमित पढ़ता हूँ और आनंद विभोर होता हूँ !आपकी ये पहल हिन्दी चिट्ठाजगत मे सदैव याद रखी जायेगी.
भाषिक विकास के साथ-साथ आप शब्दों के सामाजिक योगदान और समाज में उनके स्थान का वर्णन भी बडी सुन्दरता से कर रहे हैं।आपको पढना सुखद लगता है।
आपकी मेहनत को कैसे सराहूं। बस, लोगों के बीच आपके ब्लाग की चर्चा करता रहता हूं। आपका ढिंढोरची बन गया हूं। व्यक्तिगत रूप से तो मैं रोजाना ऋणी होता ही हूं.
आपकी पोस्ट पढ़ने में थोड़ा धैर्य दिखाना पड़ता है. पर पढ़ने पर जो ज्ञानवर्धन होताहै,वह बहुत आनन्ददायक होता है.
किसी हिन्दी चिट्ठे को मैं ब्लागजगत में अगर हमेशा जिन्दा देखना चाहूंगा, तो वो यही होगा-शब्दों का सफर.
निश्चित ही हिन्दी ब्लागिंग में आपका ब्लाग महत्वपूर्ण है. जहां भाषा विज्ञान पर मह्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध रह्ती है. 
good,innovative explanation of well known words look easy but it is an experts job.My heartly best wishes.
चयन करते हैं, जिनके अर्थ को लेकर लोकमानस में जिज्ञासा हो सकती हो। फिर वे उस शब्द की धातु, उस धातु के अर्थ और अर्थ की विविध भंगिमाओं तक पहुँचते हैं। फिर वे समानार्थी शब्दों की तलाश करते हुए विविध कोनों से उनका परीक्षण करते हैं. फिर उनकी तलाश शब्द के तद्भव रूपों तक पहुंचती है और उन तद्बवों की अर्थ-छायाओं में परिभ्रमण करती है। फिर अजित अपने भाषा-परिवार से बाहर निकलकर इतर भाषाओँ और भाषा-परिवारों में जा पहुँचते हैं। वहां उन देशों की सांस्कृतिक पृष्टभूमि में सम्बंधित शब्द का परीक्षणकर, पुनः समष्टिमूलक वैश्विक परिदृश्य का निर्माण कर देते हैं। यह सब रचनाकार की प्रतिभा और उसके अध्यवसाय के मणिकांचन योग से ही संभव हो सका है। व्युत्पत्तिविज्ञान की एक नयी और अनूठी समग्र शैली सामने आई है।
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
शब्दों के प्रति लापरवाही से भरे इस दौर में हर शब्द को अर्थविहीन बनाने का चलन आम हो गया है। इस्तेमाल किए जाने भर के लिए ही शब्दों का वाक्यों के बाच में आना जाना हो रहा है, खासकर पत्रारिता ने सरल शब्दों के चुनाव क क्रम में कई सारे शब्दों को हमेशा के लिए स्मृति से बाहर कर दिया। जो बोला जाता है वही तो लिखा जाएगा। तभी तो सर्वजन से संवाद होगा। लेकिन क्या जो बोला जा रहा है, वही अर्थसहित समझ लिया जा रहा है ? उर्दू का एक शब्द है खुलासा । इसका असली अर्थ और इस्तेमाल के संदर्भ की दूरी को कोई नहीं पाट सका। इसीलिए बीस साल से पत्रकारिता में लगा एक शख्स शब्दों का साथी बन गया है। वो शब्दों के साथ सफर पर निकला है। अजित वडनेरकर। ब्लॉग का पता है http://shabdavali.blogspot.com दो साल से चल रहे इस ब्लॉग पर जाते ही तमाम तरह के शब्द अपने पूरे खानदान और अड़ोसी-पड़ोसी के साथ मौजूद होते हैं। मसलन संस्कृत से आया ऊन अकेला नहीं है। वह ऊर्ण से तो बना है, लेकिन उसके खानदान में उरा (भेड़), उरन (भेड़) ऊर्णायु (भेड़), ऊर्णु (छिपाना)आदि भी हैं । इन तमाम शब्दों का अर्थ है ढांकना या छिपाना। एक भेड़ जिस तरह से अपने बालों से छिपी रहती है, उसी तरह अपने शरीर को छुपाना या ढांकना। और जिन बालों को आप दिन भर संवारते हैं वह तो संस्कृत-हिंदी का नहीं बल्कि हिब्रू से आया है। जिनके बाल नहीं होते, उन्हें समझना चाहिए कि बाल मेसोपोटामिया की सभ्यता के धूलकणों में लौट गया है। गंजे लोगों को गर्व करना चाहिए। इससे पहले कि आप इस जानकारी पर हैरान हों अजित वडनेरकर बताते हैं कि जिस नी धातु से नैन शब्द शब्द का उद्गम हुआ है, उसी से न्याय का भी हुआ है। संस्कृत में अरबी जबां और वहां से हिंदी-उर्दू में आए रकम शब्द का मतलब सिर्फ नगद नहीं बल्कि लोहा भी है। रुक्कम से बना रकम जसका मतलब होता है सोना या लोहा । कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का नाम भी इस रुक्म से बना है जिससे आप रकम का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे तमाम शब्दों का यह संग्रहालय कमाल का लगता है। इस ब्लॉग के पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी अजब -गजब हैं। रवि रतलामी लिखते हैं कि किसी हिंदी चिट्ठे को हमेशा के लिए जिंदा देखना चाहेंगे तो वह है शब्दों का सफर । अजित वडनेरकर अपने बारे में बताते हुए लिखते हैं कि शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नज़रिया अलग अलग होता है। मैं भाषाविज्ञानी नहीं हूं, लेकिन जज्बा उत्पति की तलाश में निकलें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नजर आता है। अजित की विनम्रता जायज़ भी है और ज़रूरी भी है क्योंकि शब्दों को बटोरने का काम आप दंभ के साथ तो नहीं कर सकते। इसीलिए वे इनके साथ घूमते-फिरते हैं। घूमना-फिरना भी तो यही है कि जो आपका नहीं है, आप उसे देखने- जानने की कोशिश करते हैं। वरना कम लोगों को याद होगा कि मुहावरा अरबी शब्द हौर से आया है, जिसका अर्थ होता है परस्पर वार्तालाप, संवाद । शब्दों को लेकर जब बहस होती है तो यह ब्लॉग और दिलचस्प होने लगता है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के नोएडा का एक लोकप्रिय लैंडमार्क है- अट्टा बाजार। इसके बारे में एक ब्लॉगर साथी अजित वडनेरकर को बताता है कि इसका नाम अट्टापीर के कारण अट्टा बाजार है, लेकिन अजित बताते हैं कि अट्ट से ही बना अड्डा । अट्ट में ऊंचाई, जमना, अटना जैसे भाव हैं, लेकिन अट्टा का मतलब तो बाजार होता है। अट्टा बाजार । तो पहले से बाजार है उसके पीछे एक और बाजार । बाजार के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द हाट भी अट्टा से ही आया है। इसलिए हो सकता है कि अट्टापीर का नामकरण भी अट्ट या अड्डे से हुआ हो। बात कहां से कहा पहुंच जाती है। बल्कि शब्दों के पीछे-पीछे अजित पहुंचने लगते हैं। वो शब्दों को भारी-भरकम बताकर उन्हें ओबेसिटी के मरीज की तरह खारिज नहीं करते। उनका वज़न कम कर दिमाग में घुसने लायक बना देते हैं। हिंदी ब्लॉगिंग की विविधता से नेटयुग में कमाल की बौद्धिक संपदा बनती जा रही है। टीवी पत्रकारिता में इन दिनों अनुप्रास और युग्म शब्दों की भरमार है। जो सुनने में ठीक लगे और दिखने में आक्रामक। रही बात अर्थ की तो इस दौर में सभी अर्थ ही तो ढूंढ़ रहे हैं। इस पत्रकारिता का अर्थ क्या है? अजित ने अपनी गाड़ी सबसे पहले स्टार्ट कर दी और अर्थ ढूंढ़ने निकल पड़े हैं। --रवीशकुमार [लेखक का ब्लाग है http://naisadak.blogspot.com/ ]
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
19 कमेंट्स:
आपके अध्यवसाय एवं श्रम का प्रशंसक हूँ। प्रतीत होता है अब ग्रहों पर ज्ञानवर्धक सूचनाएँ मिलेगी। प्रतीक्षारत रहूँगा। Jupiter के लिए द्यौपितर शब्द वैदिक है ठीक ही उल्लेख किया है। बृहस्पति को जीव भी कहा जाता है। औषधियों का भी कारक है। अब पता नहीं किन्तु २० बरस पहले तक ऎलोपैथिक ड़ाक्टर अपनें पैड पर बृहस्पति का ज्योतिषीय चिन्ह छपवाते थे। बॄहस्पति वायव्यी ग्रह है, यह ज्योतिष ग्रन्थों एवं खगोलज्ञों को तो ज्ञात ही था किन्तु ‘शूमेकर लेवी’ नामक कामेट (केतु ) के टकरानें वाली घटना से पुनः पुष्टि हुई थी। सुदूर आकाशगंगा में कर्क राशि के अन्तर्गत पुनर्वसु एवं पुष्य नक्षत्र के मध्य अपनें सूर्य से अतिदीर्घ (अपनें एक लाख सूर्य उसमें समा जाएँ) एक ‘लुब्धक बन्धु’ नाम का तारा पुंज है जिसके प्रमुख तारे को वेद में ‘ब्रह्मणस्पति’ कहा गया है। ऎसी मान्यता है कि पृथ्वी पर जीवनीय तत्व वहीं से आता है। बृहतसंहिता में लगभग १०० केतुऒं (कामेट्स ) का वर्णन है। उनमें से कोई-कोई अपनें भ्रमण पथ पर १२०० वर्षों तक में आवृत्ति करते हैं, कहते हैं कि वही जीवनीय तत्व लाते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस दिशा में शोध कर रहा है। अपनी पृथ्वी सूर्य का चक्कर १ वर्ष में लगाती है जो सूर्य से १४ करोड़ कि०मी० दूर है तो १२०० वर्षों मे सूर्य का फेरा लगानें वाला केतु कितनी दूर जाता होगा? आकाशगंगा की विशालता पर सोंचता ही रह जाना पड़्ता है।
आपके आलेख के साथ सुमन्त जी की टिप्पणी से भी कृतार्थ हुआ । आभार ।
गुरुत्वीय- ग्रैविटी और इन जैसे तमाम शब्द जो संस्कृत या हिंदी से और लोगो ने मय उच्चारण के उठा लिए गए लगते है . अपनी यह बौधिक संपदा के सम्मान के लिए ऐसे शब्दों की श्रंखला शुरू करे .
आभार. वृहस्पति के साथ वैदिक और यूनानी देवों के बारे में भी जाने को मिला.सुमंत जी का भी आभार.
बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी ,धन्यवाद .
आपके अध्यवसाय एवं श्रम का प्रशंसक मैं भी हूँ...मगर उत्ता लम्बा न लिख पाऊँगा, बिना लिखे अहसास लो मेरी भावना..सेम टू सेम!!!
बृहस्पति के बारे में तो इतने दिनों से अध्ययन जारी है .. पर आज बिल्कुल नई बातें जानने को मिली .. शब्दों के सफर से रूबरू कराने वाला आपका प्रयास सराहनीय है।
@सुमंत मिश्र
सही कहा कात्यायनजी, अंतरिक्ष की विशालता स्तब्ध कर देने वाली है। सौरमंडल के अपने ग्रहों के तुलनात्मक आकार के आंकड़े जानकर की चकित रह जाना पड़ता है। प्राचीन मानव निश्चित ही प्रकृति के विभिन्न रूपों को लगातार निरखता था। आज तो नज़र भर आसमान भी साल में एक बार देखने को मिल जाए तो काफी है। वातानुकूलित कक्षों से बाहर की दुनिया नकली लगती है:)
"सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह का नाम गुरु है। इसे बृहस्पति भी कहते हैं जिसका अंग्रेजी नाम है जुपिटर। सप्ताह के सात दिनों में एक गुरु का होता है इसीलिए उसे गुरुवार कहते हैं।"
गहनता के साथ बृहस्पति की व्याख्या प्रस्तुत की है।
बधाई।
अन्तर्राष्ट्रीय खगोल वर्ष के उपलक्ष्य में आपकी यह विवेचना शानदार है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बृहतों का भी पति, बृहस्पति। अनूठा ग्रह जो सौरमंडल का वैक्यूम क्लीनर है। सब को अपने अंदर समेट लेता है और अन्दरूनी कक्षाओं के ग्रहों की रक्षा भी करता है। वह सेनापति भी है।
आपकी पोस्ट बढ़िया लगी और सुमन्त मिश्र जी की टिप्पणी भी ज्ञानवर्धक थी।
धन्यवाद।
ज्ञानसागर!!!
बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट और टिपणीयां भी बडी ज्ञानवर्धक रही.
रामराम.
गुरुत्व और ग्रैविटी ! बृहस् से बिरजिस... वाह !
मेरे पापा जी
हमेँ बचपन मेँ
गुरु बृहस्पति के दर्शन करवाते थे
और "लुब्धक " के बारे मेँ भी
बतलाया था जो आज लगभग ५० बरसोँ के बाद,
सुमन्त जी की टीप्पणी मेँ वही नाम "लुब्धक "
पढकर स्तम्भित हूँ !
और खुश भी ! :)
पापा जी ये भी कहते थे कि,
" लुब्धक " के उदय के साथ
अक्सर इजिप्त मेँ बहती नाइल नदी मेँ
बाढ भी आती है -
विज्ञान और भारतीय पुरातन ज्ञान
कई खज़ाने समेटे हुए है -
आपकी शोध व लेख के लिये आभार अजित भाई
स स्नेह,
- लावण्या
bahut rochk jankari ka bhandar hai ye safar.agli post ka intjar hardum hi rahta hai.
birjia shabd se Jodhpuri shikar ki poshak yad aa rahi hai. Raje Maharaje shikar ke samay ek khas tarah ka adho vastra pahante the.
hum to hamari bat rakhte rahenge.shabdo ki uljhan puchate rahenge.
धन्यवाद गुरु-ज्ञान के लिए.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
हमें आपके शब्दों के सफर के तीसरे अंक की प्रतीक्षा है।
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