Friday, October 30, 2009

मंडी, महिमामंडन और महामंडलेश्वर [आश्रय-17]

पिछली कड़ी-गंज-नामा और गंजहे [आश्रय-16]sri_yantra_color

चां आवासीय क्षेत्रों की पहचान आमतौर पर बाजार या कारोबारी इलाके के रूप में भी होती रही है। इनमें मंडी या मण्डी भी बहुप्रचलित नाम है। कुरावर मंडी, मंडीबामोरा, मंडी हसोद जैसे नाम तो हैं ही इसके अलावा हिमाचल प्रदेश का मण्डी शहर भी इसी कड़ी में आता है। मंडी का अर्थ आज विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के क्रय-विक्रय के विशिष्ट केंद्र के अर्थ में रूढ़ हो गया है जैसे सब्जी मंडी, धान मंडी, गल्ला मंडी, अनाज मंडी, दाल मंडी आदि। गौर करें ये सभी मंडियां इनके पहले जुड़े वस्तुनाम के बाजार के रूप में जानी जाती रही हैं, मगर साथ ही इनकी पहचान आवासीय क्षेत्र के रूप में भी रही है क्योंकि व्यापारिक केंद्रों के बस्तियों में बदलने का क्रम बहुत पुराना है और जारी है। इस कड़ी में जिस्म की मण्डी जैसे शब्द प्रयोग का उल्लेख भी होना चाहिए।
प्राचीन काल से ही आश्रय के रूप में सबसे पहले मनुष्य को छत की ज़रूरत महसूस हुई। प्राकृतिक आवास यानी वृक्षों की कोटर और पर्वतीय कंदराओं में निवास करनेवाला मनुष्य जब विकास क्रम में आगे बढ़ा तब कृषि संस्कृति की शुरुआत हुई। जाहिर था, मनुष्य को अब खुले मैदानों में अपना ठिकाना बनाना था। खुले मैदानों में आश्रय का निर्माण 3_flatiron_favorites3 अधिक कठिन था। इसमें चाहरदीवारी के साथ साथ छत की व्यवस्था भी खुद ही करनी थी। छप्पर तानने के लिए किसी आधार की जरुरत होती है। टहनियों को मोड़कर सबसे पहले मनुष्य ने छप्पर बनाने की आसान तरकीब ईजाद की। आज की तिरछी छतों का प्राचीन रूप था यह। सड़क किनारे बंजारों की झोपड़ियां इसी तकनीक से बनती हैं। कुट् धातु में टेढ़ेपन या वक्रता का भाव है। कुटिया, कुटीर इसी धातु से बने हैं। इसका अगला रूप हुआ मण्डप। एक ऐसा आच्छादन जो चार पायों पर स्थिर रहता है। मण्डप बना है मण्ड् धातु से जिसकी व्यापक अर्थवत्ता है। घेरा, वलय, दायरा से लेकर आच्छादन जैसे आश्रय के विभिन्व भाव इस धातु में निहित हैं। मूलतः मण्ड् धातु में आधार, ऊपर उठना जैसे भाव निहित हैं।
मंडी शब्द के मूल में भी यह मण्ड् धातु झांक रही है। आज जो मंडी समूहवाची शब्द है वही किसी वक्त इकाई थी। संस्कृत के मण्डपिका शब्द का अपभ्रंश है मंडी जिसका मतलब है छोटा चंदोवा, छप्पर, छाजन आदि। हिन्दी शब्दसागर के मुताबिक प्राचीनकाल में व्यापारियों पर लगनेवाले बिक्रीकर को भी मण्डपिका कहा जाता था। समझा जा सकता है कि सार्वजनिक स्थान पर कारोबार करने की एवज में शासन यह शुल्क लेता होगा। मण्डप, मंडपी या मण्डपिका में सामान्य तौर पर दुकान का भाव उभर रहा है। मुगलकाल में इसे तहबाजारी कहा जाता था। स्थानीय शासन आज भी छोटे दुकानदारों या फुटपाथ पर सामान बेचनेवालों से तहबाजारी शुल्क वसूलता है। धीरे धीरे। मण्डी शब्द बड़े और संगठित बिक्री केंद्र के लिए प्रयुक्त होने लगा। संस्कृत के मण्डप शब्द का सांस्कृतिक महत्व है। लोक-संस्कृति में मण्डप शब्द का मतलब एक छायादार स्थान होता है जहां बहुत से लोग बैठ सकें। मण्डप शब्द में उत्सवधर्मिता है जो समूह से जुड़ी है। लग्नमण्डप, यज्ञमण्डप जैसे शब्दों से यह स्पष्ट है। मंदिरों के गुम्बद को भी मण्डप कहा जाता है। मण्डप भरना एक मुहावरा है जिसका मतलब किसी आयोजन की शोभा बढ़ने या उसमें लोगों की शिरकत से है। बाजार या दुकान के अर्थ में मंडी शब्द को मण्डप या मण्डपिकाकी छाया में समझा जाना चाहिए। एक समुचा घिरा हुआ, आच्छादित क्षेत्र जहां क्रय-विक्रय की गतिविधियां संचालित होती हों, उसे मंडी कहा जाएगा। मंडी का मौजूदा स्वरूप भी यही होता है। कतार में बने हुए मण्डप या शेड ही इसे मंडी का रूप देते हैं जिसके नीचे दुकानदार सामान बेचते हैं। झोपड़ी या कुटिया के लिए हिन्दी की बोलियों में मढ़ई, मडवई, मढ़ी आदि शब्द हैं। इसका उद्भव भी मण्डप या मण्डपिका; मण्डइआ,मढ़इया,मढ़ई के क्रम में हुआ है। राजस्थानी और मालवी में बहुमंजिला प्रासाद या अट्टालिका के लिए मेड़ी शब्द प्रचलित है। मेड़ी तानना का अर्थ होता है ऊंचे भवन का निर्माण करना यानी भाव खुशहाली के दौर से है।
ण्ड् धातु में घेरा, वलय या गोलाकार का भाव है जिसमें एक सीमांकित क्षेत्र का अभिप्राय है। मण्डल शब्द इससे ही बना है जिसमें राज्य, क्षेत्र, घेरा, वृत्त, गेंद, प्रदेश, राज्य जैसे भाव हैं। प्रशासनिक व्यवस्था के तहत हिन्दी में अंग्रेजी के डिविजन के लिए कई इलाकों में

चलते चलते - हिन्दी में चावल के स्टार्च को माण्ड कहा जाता है। गौर करें यह एक किस्म का फेन होता है जो चावल को उबाले जाने पर ऊपर की ओर उठता है। यहां उभरने के गुण की वजह से ही चावल से निसृत चिपचिपे पदार्थ को मण्डः कहा गया है जिससे हिन्दी में माण्ड या माड़ बना है।

मण्डल शब्द का इस्तेमाल होता है जैसे रेल मण्डल, मण्डल अधीक्षक आदि। अलग अलग विभाग भी अपने प्रशासनिक क्षेत्रों के लिए मण्डल शब्द का प्रयोग करते हैं। परगना, सूबा, जिला, उपनिवेश आदि भी इसी दायरे में आते हैं। मण्ड धातु की रिश्तेदारी इंडो-यूरोपीय धातु men ले भी है जिससे ऊंचाई, उभार, सजाना, आधार प्रदान करना जैसे भाव हैं। गौरतलब है कि अंग्रेजी का mount, mountain जैसे शब्द इसी मूल से बने हैं जिसमें आधार, उभार और ऊंचाई साफ झलक रही है। पर्वत शुरु से ही मनुष्य के आश्रय-आधार रहे हैं। मण्ड धातु में घेरा, घेरना जैसा भाव भी माऊंट में उजागर है। पर्वत एक विशाल क्षेत्र को घेरते हुए सीमांकन का काम करते हैं। हिन्दी में किसी खुले क्षेत्र की उठी हुई सीमारेखा या चहारदीवारी के लिए मेड़ शब्द प्रचलित है जो मण्ड् धातु से ही निकला है। इस धातु से ही बने हैं मण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वर, मण्डलाधीश, मण्डलाधिपति जैसे शब्द जिनमें राजा, सम्राट, शासक अथवा धर्मगुरु का भाव है। आजकल मण्डलाधिकारी शब्द चलता है जो आमतौर पर डिस्ट्रक्ट मजिस्ट्रेट यानी कलेक्टर होता है।
ण्ड शब्द में सजावट, शृगार, आभूषित करना जैसे भाव भी हैं। गौर करें सज्जा में ही उभार ही प्रमुख होता है। किसी भी वस्तु, स्थल या देह पर शृंगार का उद्धेश्य उसे दर्शनीय बनाना या उभारना होता है। महिमा-मण्डन में यह स्पष्ट भी हो रहा है जिसका अर्थ है किसी के बारे में बढ़-चढ़ कर बताना। खण्डन-मण्डन में भी यह स्पष्ट है। भूमि पर चित्रांकन की कला को माण्डणा कहते हैं, जो इसी मूल से आ रहा है। माण्डणा भूमि सज्जा की प्रख्यात कला है और लोक-संस्कृति में यह रची बसी है। इसमें विभिन्न बिंदुओं और रेखाओं के माध्यम से एक क्षेत्र को घेरा जाता है फिर सुंदर आकृतियां उभारी जाती हैं। माण्डणा शब्द में मण्ड् धातु में निहित घेराव, उभार और सज्जा के भाव स्पष्ट हैं। किसी वस्तु को चारों ओर से घेरने, कसने या फ्रेम में बांधने के लिए मढ़ना शब्द का प्रयोग होता है जो इसी मूल से आ रहा है। अंग्रेजी के mound शब्द में भी यह भाव स्पष्ट हो रहा है। मण्डन का एक अर्थ वस्त्रधारण करना भी होता है। दोषारोपण के संदर्भ में आरोप मढ़ना मुहावरा भी प्रचलित है। इसमें आरोपों से विभूषित करने या आरोपों के दायरे में कसने जैसे भाव एकदम स्पष्ट हैं।

11 कमेंट्स:

शरद कोकास said...

मराठी में मण्डप के लिये माण्डव शब्द का प्रयोग होता है । इसका उद्भव भी यहीं दिखाई देता है सम्भवत: प्रसिद्ध माण्डवगढ़ या मांडू भी इससे सम्बन्धित है ।छत्तीसगढ़ मे ग्रामीण क्षेत्र में बाज़ार के लिये मड़ई शब्द का प्रयोग होता है ।मराठी में माण्डणे का अर्थ रखना होता है लेकिन चेन्नई में एक स्थान है मांडिवली इसका भी ज़रा पता लगायें क्या यह इससे सम्बन्धित हो सकता है । ज़िस्म की मंडी से याद आया बेनेगल की चर्चित फिल्म "मंडी " का नाम । चन्दोवा को इधर चान्दनी भी कहते हैं । सर पर छत की ज़रूरत को लेकर आज एक कविता भी दी है ब्लॉग पर देखियेगा ।

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन ज्ञान...आभार.

Barthwal said...

हर शब्द की भांति आपने "मंडी" शब्द की चीर फाड कर मंडी और उसके आस पास के शब्दो से रुबरु करवाया - धन्यवाद अजीत जी.

दिनेशराय द्विवेदी said...

मंडी शब्द तो व्यापार, विनिमय के क्षेत्र को इंगित करता है। लेकिन इस के आसपास अनेक शब्द हैं। मांडणा तो ठीक है मांडना लिखने की क्रिया को भी कहते हैं।

अजित वडनेरकर said...

@शरद कोकास
ठीक कह रहे हैं शरद भाई, मांडू, माण्डवगढ़, माण्डल, मँडुआ जैसे कई संदर्भ देना चाहता था, पर रह गए। ये सब एक ही मूल के हैं। छत, छप्पर, आच्छादन, परिधि, चक्र वाले भाव ही इनमें हैं। मांडिवली में अवलि अर्थात पंक्ति तो साफ नज़र आ रही है। अगर प्राचीनकाल में यहां भी यज्ञादि धार्मिक उत्सव होते होंगे तब मण्डपावलि से इसका रूपांतर मांडिवली बना होगा, ऐसा लगता है। यूं भी दक्षिण में देवालयों को मण्डपम् कहने की परम्परा रही है। संभव है उत्तर के बाज़ार की तरह ही यहां भी मण्डपावलि से बाजार या सरणि का अभिप्राय रहा हो। जो भी है, अभी तो अनुमान ही लगाया जा सकता है। पर बात इनमें से ही एक निकलेगी।

अजित वडनेरकर said...

@दिनेशराय द्विवेदी
मण्ड् से ही हिन्दी में मांडना क्रिया भी बनी है। मण्डन शब्द में सज्जा और भूषित करने का भाव है इसलिए मूलतः माण्डणा, मांडना में रेखांकन, चित्रांकन प्रमुख है। लिखने के अर्थ में भी मांडना का प्रयोग होता है पर यह सिर्फ लोक संस्कृति में है। देहात के अनपढ़ समाज के लिए लिखावट एक किस्म का रेखांकन ही था, सो इसके लिए भी मांडना शब्द चल पड़ा।

kshama said...

मंडी इस शब्द के उगम का तो अंदाजा लगा लिया था..लेकिन 'कुटीर' से कुटिल जुडा होगा ये नही पता था..'मड़प भरना' ये मुहावरा भी नही पता था..शरद जी की टिप्पणी भी अच्छी जानकारी दे गयी...

किरण राजपुरोहित नितिला said...

बहुत दिनों बाद खमम घणी ।
यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी।

मंडीं शब्द इतना विस्तृत अर्थ रखता है पता ही नही था। मंडोर, मांडल । इसी से निकले हुये शब्द लगते है।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

एक मण्डइआ मेने भी डाल रखी है अपने फार्म पर . और मंडप तो हमारे यहाँ शादी के समय छाया जाता है उसके नीचे ही फेरे और अन्य रस्मे होती है .

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

हाजिरी देने आया हूँ। भाऊ लगा लेना।

Mansoor ali Hashmi said...

मंद-मंद मुस्काई गौरी 'मण्ड' शबद जब ज्ञात हुआ,
देह निहारी, फिर शरमाई, कैसा ये अज्ञात हुआ?

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