Friday, May 28, 2010

ज़र्रा ए नाचीज़ का ‘कुछ तो भी’ बयान...

ant_bully1230833134

किं चित, थोड़ा या अत्यल्प के अर्थ में हिन्दी में ‘जरा’ शब्द सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। जरा सी बात, जरा सी चीज या जरा सा काम जैसे वाक्यांशों से साफ है कि बोलचाल में इस जरा का बहुत ज्यादा महत्व है। हिन्दी में किंचित, क्वचित की तुलना में सर्वाधिक लोकप्रिय शब्द कुछ है जिसके देशज रूप कछु और किछु भी प्रचलित हैं। संस्कृत के किंचित का देशी रूप है कुछ जो किंचित > किच्चित > कच्चित > किछु > कछु > कुछ के क्रम में विकसित हुआ। किंचित बना है किम्+चित् से। बहुत कम, अत्यल्प जैसे भावों को व्यक्त करने में कुछ बहुत ज्यादा समर्थ है। कम-ज्यादा या थोड़ा-बहुत के अर्थ में बहुत कुछ का प्रयोग भी होता है। बेकार, महत्वहीन या अर्थहीन जैसे भावों को व्यक्त करने में भी कुछ तो भी जैसे वाक्यांशों में मुहारवरे की अर्थवत्ता विकसित हो गई। जब अर्थ का अनर्थ हो रहा होता है तब भी यह ‘कुछ’ काम आता है और कुछ का कुछ इसे जनसामान्य की अभिव्यक्ति बना देता है। सम्पूर्ण, समग्र या समस्त को जताने के लिए सामान्य बोलचाल में शब्दों के ये दो जोड़े हर कुछ या सब कुछ कहना पर्याप्त होता है।
‘जरा’ लफ्ज सेमिटिक मूल का है और हिन्दी में बरास्ता फारसी दाखिल हुआ है। इसकी व्युत्पत्ति दिलचस्प है। अरबी भाषा में dh यानी ‘ध’ का उच्चारण अक्सर z यानी ‘ज़’ की तरह किया जाता है। अरबी में अत्यंत सूक्ष्म, लघु, छोटा आदि भाव के  लिए dh-r-r धातु है। इससे बना है dharrah जिसका अर्थ है सृष्टि की अत्यंत सूक्ष्म रचना। अरबी में इस शब्द का प्रयोग अणु (atom ) के लिए भी होता है। हालांकि यह उसका अर्थ विस्तार है। अपने मूल रूप में धर्रा का मतलब है चींटी क्योंकि अपने आसपास की दुनिया से परिचित होते हुए, प्रकृति की रचनाओं को भाषा में अभिव्यक्त करना सीखते हुए मनुष्य के सामने चींटी ही ईश्वर रचित सर्वाधिक छोटी रचना थी। आज भी क्षुद्रता, लघुता को अभिव्यक्त करनेवाली कहावतों में चींटी डटी हुई है जैसे चींटी की चाल,
ज़र्रा शब्द में तुच्छता का जो भाव है उसका एक अर्थ दीन, गरीब, कम हैसियतवाला आदि भी होता है। इसलिए ईश्वर को ज़र्रानवाज़ यानी दीनानाथ या दीनबंधु की उपमा दी जाती है
चींटी की तरह मसलना आदि। अरबी में धर्रा का प्रचलित रूप ज़रः या ‘ज़र्रा’ हुआ, ठीक उसी तरह जैसे हिन्दी उर्दू में प्रचलित जिक्र zikr शब्द का शुद्ध अरबी रूप धिक्र dhikr 
है। ‘जर्रा’ यानी धूल, अणु, धूलिकण खासतौर पर यहां प्रकाश रेखा में नजर आते अत्यंत सूक्ष्म धूलिकणों से तात्पर्य है।
रबी के ज़र्रः में भी बहुत छोटा, सूक्ष्म, तुच्छ, हकीर, लघु या चींटी का ही भाव है। अरबी में सौत के लिए भी धर्रा या ज़र्रा शब्द ही हैं। एक विवाहिता के होते जब दूसरी स्त्री को ब्याह कर लाया जाता है तो उसे धर्रा या ज़र्रा कहा जाता है। जाहिर है सौत की उपस्थिति में पहली बीवी की स्थिति तुच्छ हो जाती है। इस रूप में तो ज़र्रा उसका विशेषण होना चाहिए। एक ही पुरुष से विवाहिता दो स्त्रियों को अरबी में ज़र्रतान कहते हैं। ज़र्रा शब्द में तुच्छता का जो भाव है उसका एक अर्थ दीन, गरीब, कम हैसियतवाला आदि भी होता है। इसलिए ईश्वर को ज़र्रानवाज़ यानी ‘दीनानाथ’ या ‘दीनबंधु’ की उपमा दी जाती है यानी जो छोटों पर कृपा करता है। अत्यधिक शिष्टाचार में विनम्रतावश अपने व्यक्तित्व को कमतर आंकते हुए चतुर सुजान सार्वजनिक रूप में खुद को ज़र्रा ए नाचीज़ बेहद तुच्छ साबित करते हैं। स्पष्ट है कि यह ज़र्रा ही बोलचाल में किंचित, थोड़ा या कुछ के अर्थ में ज़रा में बदला और फिर फारसी की राह चलकर ‘जरा’ के रूप में हिन्दी और दूसरी बोलियों में समा गया।

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8 कमेंट्स:

Baljit Basi said...

पंजाबी में कुछ के लिए कुछ तो है ही, कुश, कुस, और कुझ भी है. लेकिन यह 'कुछ' और संकुचत होकर केवल 'कु' भी रह गया है आम तौर पर बोला जाता है 'ज़रा कु' अर्थात थोडा सा यह हिंदी 'सा' या 'सी' का अर्थ देता है. 'सा' या 'सी' का भी बताना कैसे बने होंगे.

Udan Tashtari said...

जरा सी टिप्पणी कर देता हूँ...:)

वाणी गीत said...

जरा ...रोग भी कहलाता है ...!!(??)

Mansoor ali Hashmi said...

ज़रा पर दो शेर हाज़िर है, ज़र्रे की तलाश जारी है:-

# इक ज़रा ज़ौके तजस्सुस में बढ़ाया था क़दम,
निकहते गुल* को फिर आगोशे गुलिस्ताँ न मिला.
[*फूल की खूशबू]

-रविश सिद्दीकी.

# ज़रा सी देर में वो जाने क्या से क्या कर दे ,
किसे चिराग़ बना दे किसे हवा कर दे .

-तारा बानो लखनवी.

उम्मतें said...

@अजित भाई
सुन्दर प्रविष्टि ...ये तो ज़र्रा ही है जो अपनी दम पे , विनम्रता / लघुता और ईश्वरत्व ( ... अरबी पुरुषों के अहंकार को भी ) को अभिव्यक्त करने की ताब रखता है ! ज़र्रे के बिना अखिल ब्रम्हाण्ड की कल्पना भी दूभर है :)
अजित भाई ना जाने क्यों जरासंघ को जोड्नें वाली राक्षसी का ख्याल आ रहा है हालांकि ज़र्रा और जरा ( अरबिक मूल के शब्द और महाभारत कालीन शब्द / नाम ) का अंतर स्पष्ट है फिर भी एक तो ध्वनि साम्य और दूसरा राक्षस कुलीन स्त्री को हीन / तुच्छ मानकर किया गया नामकरण क्या अरबी पुरुष की द्विभार्या सम्बोधन / मानसिकता से समानता का संकेत नही करता ? क्या जर्जर / जर्जरा शब्द भी इससे कोई सम्बन्ध रखता है ?

@ मंसूर अली साहब
आपकी ज़रा ज़रा सी दोनों टिप्पणियां पसन्द आई !

अजित वडनेरकर said...

@अली, वाणीगीत
बहुत शुक्रिया। आप जिस 'जरा' का उल्लेख कर रहे हैं वह संस्कृत का है। इस पर अलग से पोस्ट लिखी जा चुकी है। कृपया देखें- गधे पंजीरी खा रहे हैं...

उम्मतें said...

अजित भाई
आपकी वो पोस्ट मैने देखी मुझे हैरत भी यही है कि 'अरबिक ज़र्रा' स्त्री को तुच्छ कहता है और 'संस्कृत जरा' भी निर्बल / अशक्त के लिये प्रयुक्त है उसपर तुर्रा ये कि रक्ष कुल की स्त्री के लिये ! कहने का आशय ये कि भाषायें / काल / स्थान ( और उच्चारण भी किंचित ) भले ही भिन्न हों पर दोनों शब्द स्त्रियों के प्रति एक ही भाव रखते हैं :)

Baljit Basi said...

गुरबानी में 'किंचित' और 'किछु' दोनों रूप सुरक्षत हैं:
खिनु किंचित क्रिपा करी जगदीसरि तब हरि हरि हरि जसु धिआइओ.-राम दास

जब लगु दुनीआ रहीऐ नानक किछु सुणीऐ किछु कहीऐ - नानक
(जब तक इस दुनिया में रहना है हमें दूसरों से संवाद रखना चाहिए )
गुरु नानक की यह बात आज के ज़माने में कितनी उपयुक्त है.



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