Tuesday, August 3, 2010

मै इधर जाऊं या उधर जाऊं!!!

dilemma
मतौर पर मीडिया में आसान हिन्दी के नाम पर हिन्दी की तत्सम शब्दावली से पीछा छुड़ाने की प्रक्रिया इन दिनों जोरों पर है। यातायात के स्थान पर अब ट्रैफिक शब्द के इस्तमाल का आग्रह ज़्यादा है। कठिनाई, दुविधा अथवा निर्णय न ले पाने की स्थिति के लिए हिन्दी में असमंजस एक बहुत लोकप्रिय शब्द के तौर पर डटा हुआ है। कठिन शब्द से तात्पर्य आमतौर पर ऐसे शब्द से होता है जो भाषा में कम इस्तेमाल होता हो और जिसका अर्थ जानने के लिए शब्दकोश की मदद लेनी पड़े। निश्चित ही असमंजस शब्द का शुमार इस समूह के शब्दों में नहीं है। मगर अब असमंजस को भी कठिन कहा जाने लगा है। दरअसल यह इसी वजह से होता है क्योंकि हमारे भीतर शब्दों की व्युत्पत्ति जानने की जिज्ञासा नहीं है। उद्गम को जानने के बाद ही किसी चीज़ की अर्थवत्ता के विभिन्न आयामों का खुलासा होता है। असमंजस के स्थान पर दुविधा शब्द भी चिरपरिचित है मगर यह जानकर ताज्जुब हुआ कि गूगल पर असमंजस शब्द की 109000 प्रविष्टियां है जबकि दुविधा शब्द की प्रविष्टियां उससे बीस हजार कम यानी 107000 निकलीं। मज़े की बात यह भी कि असमंजस की तुलना में दुविधा को आसान माननेवालों से जब दुविधा का व्युत्पत्तिमूलक अर्थ पूछा गया तब यह भी असमंजस जितना ही कठिन साबित हुआ।

खैर, बात करते हैं असमंजस के जन्मसूत्रों पर। असमंजस की व्युत्पत्ति अगर पूछी जाए तो यह अ + समञ्जस से निकलती है। संस्कृत में समञ्जस का अर्थ है सही, उचित, भली प्रकार से, सुसंगत, ठीक, न्यायोचित, तार्किक आदि। इसके  अलावा अभ्यस्त, यथार्थ, स्वस्थ आदि भी इसकी अर्थवत्ता में शामिल हैं। आप्टे कोश के मुताबिक असमञ्जस शब्द बना है सम्यक् अञ्ज औचित्यं यत्र यानी सब दूर से भली प्रकार से उद्घाटित या दृष्यमान। जाहिर है जो बोधगम्य है, उचित है, वही समञ्जस है। समञ्जस में उपसर्ग लगने से इसमे निहित भावों का विलोम होता है इस तरह संस्कृत के असमञ्जस शब्द का अर्थ है जो समझ न आए, अस्पष्ट, अनुपयुक्त, असंगत, बेतुका, निरर्थक आदि। समञ्जस में शामिल संस्कृत धातु अञ्ज को Sleeper'sDilemmaसमझने से असमंजस का अर्थ और स्पष्ट होता है। अञ्ज् धातु का अर्थ है प्रस्तुत करना, स्पष्ट करना, चमकना, प्रकाशित होना, चित्रण करना आदि। जाहिर है अञ्ज् में स उपसर्ग लगने से बना है समञ्जस। ध्यान रहे संस्कृत के स उपसर्ग में सहित या गुणवृद्धि का भाव है। अञ्ज् से ही बना है अञ्जन या अंजन जिसमें लीपने, पोतने, मिलाने, मलने, प्रकट करने का भाव है। आंखों में सुरमा लगाने को आंजना भी कहते हैं। सुरमा या काजल को संस्कृत में अञ्जन कहा जाता है। दोनों हथेलियों को मिलाकर बने कमलवत आकार को भारतीय संस्कृति में मांगलिक माना जाता है। इसे अञ्जलि कहते हैं। हिन्दी में इसे ही अंजुरी कहा जाता है। किसी पदार्थ को ग्रहण करने अथवा किसी को दान देने के लिए हथेलियों की यही मुद्रा मान्य है। जाहिर है वह वस्तु जिसे अंजुरी में रखा जाता है भली भांति नुमायां होती है, स्पष्ट होती है अतएव प्रस्तुत होती है इसीलिए यह मुद्रा अंजुरी है। सुसंगतता, संतुलन या तादात्म्य के अर्थ में सामंजस्य शब्द भी हिन्दी में खूब इस्तेमाल होता है जो इसी कड़ी से जुड़ा है। अंञ्ज् के स्पष्ट होते ही समञ्जस् के अर्थ खुलते हैं और फिर असमंजस के साथ कोई असमंजस नहीं रह जाता।
ब बात दुविधा की। दुविधा का अर्थ भी पसोपेश में पड़ना होता है। अनिर्णय की स्थिति को दुविधा कहते हैं। किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए जब एकाधिक संभाव्य विकल्प मौजूद हो तो असमंजस की स्थिति बनती है, यही दुविधा है। दुविधा शब्द का दुबधा रूप भी लोकशैली में प्रचलित है। दुविधा बना है द्वि + विधा से। द्वि अर्थात दो और विधा यानी राह, रास्ता, रीति या विकल्प। संस्कृत का विधा शब्द बना है विध् धातु से जिसमें चुभोना, काटना, सम्मानित करना, पूजा करना, राज्य करना जैसे भाव हैं। विध् का ही एक रूप वेध भी है जिसमें छेद करना, प्रवेश करना, चुभोना का भाव है। बींधना या बेधना जैसे शब्द इसी मूल से उपजे हैं। मोटे तौर पर विध् में राह, परिपाटी या रीति का भाव है। प्राचीन मानव ने पत्थरों पर उत्कीर्णन के जरिये ही खुद को विविध रूपों में अभिव्यक्त किया था। लकीरें खींचने, कुरेदने में पहले नुकीले पत्थर माध्यम बने, फिर तीरों के सिरे और फिर तराशने के महीन औजारों से यह काम हुआ। लकीर ही राह या रास्ते का पर्याय बनी। बाद में विकल्प, समाधान, रीति और तरीका के रूप में भी राह, रीति जैसे शब्द को नई अभिव्यक्त मिली। द्विविधा में किसी बात के दो समाधान या दो रूपों का ही भाव है। जाहिर है सत्य तो एक ही है। चुनाव अगर एक का करना है तब द्विविधा स्वाभाविक है। यही दुविधा है। प्रणाली, अनुष्ठान, रीति या तरीका के अर्थ में विधि का अर्थ भी यही है। विधि-विधान शब्द भी यहीं से आ रहा है। किसी बिध मिलना होय…में मिलने की राह तलाशने की जो उत्कंठा व्यंजित हो रही है उसका सूत्र इसी विध् से जुड़ता है। नियम, रीति, कानून के अर्थ मे विधान शब्द का मूल भी यही विध् है। आप्टे कोश इसका मूल वि+ धा बताता है किन्तु यह सिर्फ व्याकरिणक आधार है। दरअसल विधान के मूल में भी विध् धातु ही है। स्वाभाविक है कि नियम संहिता के अर्थ मे संविधान जैसा शब्द, जिसकी आत्मा में रीति-नीति बसती है, के जन्मसूत्र भी यहीं मिलते हैं।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

16 कमेंट्स:

Baljit Basi said...

यह बताइए कि 'अंजन' अंग्रेजी 'unguent'या 'ointment' का सुजाति है? अंग्रेजी कोशों से मुझे ऐसे लगता है. ऐसे में इसका मूल संस्कृत 'अनक्ति' है.
देखिये Online Etymology Dictionary:

ointment," mid-15c., from L. unguentem "ointment," from stem of unguere "to anoint or smear with ointment," from PIE base *ongw- "to salve, anoint" (cf. Skt. anakti "anoints, smears," Armenian aucanem "I anoint," O.Pruss. anctan "butter," O.H.G. ancho, Ger. anke "butter," O.Ir. imb, Welsh ymenyn "butter").

पंजाबी 'वांगना' का अर्थ होता है तेल देना, खास तौर पर पहिये को. इसका मतलब मुर्गे द्वारा मुर्गी का मैथुन करना भी है. इसका अशिष्ट प्रयोग मर्द द्वारा स्त्री का भोग करना भी है. यह शब्द इसी से बना है.

राम त्यागी said...

बहुत ही उम्दा ब्लॉग ...हिंदी के बारे में बहुत कुछ सीखा जा सकता है आपकी शब्दावली विश्लेषण से !!

दिनेशराय द्विवेदी said...

ये दुविधा ही है जिस के कारण हम वकीलों का व्यवसाय चलता रहता है।

Ek ziddi dhun said...

वैसे यह दिलचस्प मसला है. पब्लिक स्कूलों के युवा जो आम दुनिया और आम लोगों की ज़िंदगी से कटे हैं वे उन शब्दों को आसान मानकर लिखते हैं जिन्हें वे समझते हैं पर पब्लिक नहीं. नवभारत टाइम्स आम लोगों की जबान को डाउनमार्केट शब्द बताता है।भास्कर जिलों में भी आम हिंदुस्तानी कीजगह हास्यापद अंग्रेजी को बढ़ावा देता है।

Mansoor ali Hashmi said...

'असमंजसो' से शब्दों के हमको बचाय है,
'भोपाली-भाई'* अर्थ का सुरमा लगाय के. [*अजित जी]
============================
'दुविधा' दूर कर 'असमंजस' से निकले ही थे; रस्ते में,
मिले 'बलजीत जी' हाथों में कुप्पी तैल की लेकर,
कहा "मैं 'वांगता' हूँ जाम पहियों को इसी से", तब,
बड़ी ज़ौरों से "कुकड़ू-कूँ" सुनी थी हमने रस्ते में .
=================================

सुशीला पुरी said...

जानकारी का आभार .....

Dr. Zakir Ali Rajnish said...


जिधर जाना होगा, आप जाएँगे उधर ही। क्या मेरे कहने से रास्ता बदल देंगे?
आप इसी तरह लिखते रहें, वैसे जाएँ जिधर भी, अपुन की सेहत पे कोई फर्क नहीं पड़ता।

…………..
स्टोनहेंज के रहस्य… ।
चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..

प्रवीण पाण्डेय said...

ये दोनों अलग शब्द है, अब पूरी तरह समझ आ गया।

रंजना said...

ज्ञानवर्धन हुआ....
बहुत बहुत आभार...

समयचक्र said...

शब्दों का बहुत ही सुन्दर सारगार्वित विश्लेषण ....बढ़िया प्रस्तुति....आभार

रावेंद्रकुमार रवि said...

यहाँ आकर कुछ न कुछ तो बढ़िया मिल ही जाता है!

shyam gupta said...

सारगर्भित आलेख व विश्लेषण, बधाई; पर बहुत से तो’ "हम नहीं सुधरेंगे" पर ही...खैर ।
--बलजीत जी आपने बिल्कुल सही समझा है--अन्ग्रेज़ी( या मूल लेटिन) के शब्दों की मूलतः संस्क्रित से ही व्युत्पत्ति है।

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

RDS said...

जहाँ मुखौटे हैं वहीं दुविधा है । मन्दिर जाये तो राजनेता कैसा आचरण करे कि वह धार्मिक लगे । सरकारी अफसर कलावंत है वह जानता है कि कहाँ तो उसको नितांत आदर्शवादी का आवरण औढना है और कहाँ सामंजस्य का । मन्दिर मे सब चल जाता है क्योंकि अधिकतर पुजारी मुखौटों में माहिर हैं ।

मनुष्य दुविधा आखिर कितनी सहे । यदि मुखौटे न हों पागल ही हो जाये । इसीलिये दुविधा से उबरने का एक ही सरलतम मार्ग चुना, पाखंड ! हमारा देश इस कला में सिद्धहस्त है ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

असमंजस की दुविधा दूर हुई

शरद कोकास said...

साहित्य के अंतर्गत हम विधा शब्द का प्रयोग करते हैं उसकी उत्पत्ति भी क्या इसी से सम्बन्धित है ?

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

Post a Comment


Blog Widget by LinkWithin