Friday, December 10, 2010

कुलचे की कुलाँचें

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रो टियों की जितनी भी क़िस्में हैं उनमें कुलचा का अपना अलग रुतबा है। सामान्य चपाती, नान या तंदूरी रोटी की बनिस्बत इसका आकार थोड़ा छोटा होता है मगर ज़ायका लाजवाब। कुलचा मैदे को थोड़े दही और पानी के साथ गूंधे हुए आटे से बनी एक क़िस्म की ख़मीरी रोटी है जिसका स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें कुचले हुए उबले आलू भी भर लिए जाते हैं। कुलचा मूलतः ईरान की देन है। कई लोग मानते हैं कि इस्लामी दौर में भारतीय खान-पान के तौर-तरीकों में भी बदलाव आया मगर कुलचा जैसी खान पान की और भी कई चीज़े हैं जो भारत में इस्लाम के आगमन से पहले से प्रचलित थीं क्योंकि भारत और ईरान के बीच धार्मिक-सांस्कृतिक-सामाजिक रिश्तेदारी की जड़ें बहुत गहरी हैं पंजाब में कुलचा खूब खाया जाता है वजह है किसी ज़माने में वृहत्तर भारत के इस हिस्से से फ़ारस की सीमा शुरू हो जाती थी। पश्चिमोत्तर भारत से लेकर ठेठ अरब तक तंदूरी खाने का चलन रहा है।
जिसे भारतीय भाषाओं में कुलचा कहा जाता है दरअसल फ़ारसी ज़बान में वह कुलीचः या कुलीचा है। मूल आहार के रूप में वृहत्तर भारत में जो भी पदार्थ खाए जाते हैं उनका संबंध गोलाई से रहा है चाहे वह रोटी हो या बाटी। कुलचा भी इसी श्रेणी में आता है। संस्कृत-हिन्दी के वृत्त, रोटी और अंग्रेजी के रोटेशन, राऊंड या रोटरी जैसे शब्दो पर गौर करें तो इनमें दिलचस्प रिश्तेदारी सामने आती है। न सिर्फ ये सभी शब्द गोलाई का भाव लिए हुए हैं बल्कि ये सभी इंडो-यूरोपीय आधार से निकले हैं। गौरतलब है कि घूमने-फिरने, चक्कर लगाने या गोलाकार आदि भावों के लिए संस्कृत में वृत् धातु है जिससे वृत्त बना। इसका रिश्ता से है जिसमें चक्रगति का भाव है। ऋतुओं के क्रमविन्यास में यह चक्र पूरी तरह समझ में आता है। का रिश्ता ही वृ से है जिससे वृत्त बनता है। रित् का एक रूप रट्ट् भी रहा होगा जिसमें भी गोलाई का भाव होगा। इसका ही विकास संस्कृत के रोटिका में हुआ जिसका अर्थ आटे से बनी गोल आकार की टिकिया है। रोटिका यानी अनाज के आटे से तवे पर सेंकी गई गोल गोल पतली, चपटी टिकिया।
वृत्-वर्त-रथ के ही क्रम में ही थोड़े ध्वनि परिवर्तन के साथ वल्, वल, वलनम वेल्लन, वेल्लनम् जिनमें मुड़ना, घूमना, सरकना, लुढ़कना आदि भाव आते हैं। इन्हीं में कहीं हम बेलन को सहजता से पहचान सकते हैं जिसमें गोल घूमने का भाव है और इसी घूमाव से रोटी गोल होती है। जब इसे चपटा बनाया जाने लगा तो इसे चर्पटी कहा गया जिसका रूपान्तर है चपाती जिसे परखने में स्वाद का जितना महत्व है उससे कहीं कमतर नहीं है उसकी गोलाई का परीक्षण। यही बात फुलका में है। जैसा कि नाम से जाहिर है यह कि तवे या सीधीं आंच पर सिंकने की वजह से गर्म भाप भर जाने से रोटी फूल जाती है इसी वजह से इसे फुलका भी कहते हैं। जाहिर है जबतक इसमें भाप है तब तक ही यह फुलका है, बाद में यह सामान्य चपाती या रोटी ही कहलाएगी। गर्मागर्म खाने में ही फुलके का आनंद है। फुलका शब्द का जन्म हुआ है संस्कृत की फु धातु से जिसका मतलब है फुलाना, फूंक मारना आदि। सीधी सी बात है फूलने की क्रिया चारों तरफ़ होती है जिसका रिश्ता गोलाई से ही है।
संस्कृत के गोलः का अर्थ होता है पिंड, गेंद, खंड आदि। प्राचीनकाल से ही मनुष्य प्रकृति चिंतन करता था। पृथ्वी, आकाश, अंतरिक्ष आदि के बारे में मौलिक विचार वह रखता था। इसीलिए गोलः शब्द में अंतरिक्ष, आकाश अथवा भूगोल जैसे अर्थ भी समाहित हैं। गोलः शब्द बना है गुडः से जिसका मतलब भी होता है पिंड या पिंड बनाना, गोल आकार देना। गुड का एक अन्य अर्थ गुड़ भी होता है जो अपनी निर्माण प्रक्रिया के दौरान गोल पिण्ड के रूप में सामने आता है। इस गोल की व्याप्ति ईरानी परिवार में भी हुई। फारसी में संस्कृत की तरह ही गोलः विद्यमान है। इसे चाहें तो गोलह् या गोला कह सकते हैं जिसका अर्थ है गोल, घुमावदार वस्तु जिसमें तोप में भरा जाने वाली बारूदी सामग्री भी शामिल है। । फारसी-ईरानी की
paneer-kulcha-recipe33फ़ारसी के कुलीचः की व्याप्ति हिन्दी-पंजाबी के अलावा कई अन्य भाषाओं में भी हुई है जिसमें पूर्वी यूरोप की कुछ भाषाएं भी हैं। चंगेज़ख़ान ने एशिया की सरहदें लांघते हुए पूर्वी यूरोप तक अपना साम्राज्य फैलाया था।
विभिन्न शैलियों में बरास्ता अवेस्ता के गुडे से बने कुछ रूप देखिये-गुलूले, गुल्ले, गोरूक, गुल्लू, गुला आदि। इंडो-ईरानी और इंडो-यूरोपीय भाषा परिवारों में और वर्ण आपस में बदलते हैं। फ़ारसी में ग वर्ण से जुड़े गोल के विभिन्न रूपों के साथ ऐसे शब्द भी हैं जिनमें वर्ण है और उनमें गोलाई का भाव है जैसे कुलालः या कुलीचः। इस कुलीचः के कुल में मूलतः गोलः को झाँकते साफ़ पहचाना जा सकता है। हिन्दी शब्द सागर में कुलीचः का एक अन्य अर्थ भी बताया गया है- तंबू या खेमे के डंडे के ऊपर का गोल लट्टू। यहाँ भी गोलाई वाला भाव या गुण ध्यान देने लायक है।
फ़ारसी के कुलीचः की व्याप्ति हिन्दी-पंजाबी के अलावा कई अन्य भाषाओं में भी हुई है जिसमें पूर्वी यूरोप की कुछ भाषाएं भी हैं। चंगेज़ख़ान ने एशिया की सरहदें लांघते हुए पूर्वी यूरोप तक अपना साम्राज्य फैलाया था और उसी के साथ कुलाँचे भरता कुलचा भी वहाँ तक जा पहुँचा था।  आज के हंगरी तक उसका कब्ज़ा था। हंगारी भाषा में डबलरोटी जैसी एक चीज़ का नाम है कुलाश जिसमें कुलचा को साफ़ पहचाना जा सकता है। सर्बियाई, क्रोशियाई और लात्वियाई में यह कोलाच्श है जिसका अर्थ है सफ़ेद ब्रेड। इसी तरह पर्शियन में इसका रूप गुलीचा या गुलज भी मिलता है जिसका अर्थ है शहद, तिल के तेल और अण्डे के साथ मिलाकर बनाई गई ख़मीरी रोटी। इसी तरह विश्व मानचित्र में साइबेरिया के धुर पूर्वी छोर पर उत्तर ध्रुवीय सागर के कामचट्का क्षेत्र जहाँ साल भर बर्फ़ रहती है और तापमान शून्य से तीस डिग्री तक नीचे होता है वहाँ की चुक्ची भाषा में भी भाषा वैज्ञानिकों ने किज़लात शब्द की पहचान की है जिसका अर्थ है गुंधा हुआ आटा। इसकी रिश्तेदारी कुलीचः से जोड़ी गई है। पर्शियन में कुलीचा ए सिम का अर्थ है पूर्णचंद्र यानी पूनम का चांद। इसी तरह कुलीचापाज का मतलब है कुलचे बनाने वाला रसोइया।

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8 कमेंट्स:

naresh singh said...

पोस्ट में कुलचे जैसा ही मजा आया है| धन्यवाद |

प्रवीण पाण्डेय said...

अब कल जाकर यही खायेंगे, पूरा अर्थ तो तब ही समझ में आयेगा।

Baljit Basi said...

कुलचे खाने का तो अब मज़ा आयेगा, लगता है अब समोसे बन रहे हैं. बहुत बढ़िया जानकारी.

डॉ टी एस दराल said...

बहुत रोचक जानकारी प्राप्त हुई । आभार ।

Kunwar Kusumesh said...

खाने की विशेष जानकारी मिली.good & thank u.

Shubham Shubhra said...

रोचक, बेहद रोचक..बहुत बढ़िया लगा..

Abhiram said...

पंजाब गुजरात महाराष्ट्र और दक्षिण भारत की अपनी यात्राओं के दौरान कुलचे को भी अपने साथ सफ़र पर पाया. मनपसंद संगी (दाल या तरकारी) न होनेपर भी कुलचा अकेले ही पूर्ण भोजन का आनंद देता है. कुलचे पर दी गयी यह जानकारी बेहद दिलचस्प है दादा.

Mansoor ali Hashmi said...

शब्दों की 'कुलांचे' अब पहुंची है रसोई तक,
गोलईयां 'बेलन' से पहुंची है ऊंचाई तक,
'आटे' में 'खमीर' उठना इतना ही ज़रूरी है,
पाएगा तभी 'कुलचा' मेअदे* की रसाई तक. *stomach

-mansoor ali hashmi
http://aatm-manthan.com

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