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प्रस्तुतकर्ता
अजित वडनेरकर
पर
8:29 PM
लेबल:
god and saints
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
13 कमेंट्स:
लेख श्लील या श्रीर रहा…वैसे अश्लील का पहला प्रयोग कब हुआ?
चंदन भाई,
कब हुआ का महत्व नहीं है। र को ल बोलने वाले समाज ने इसका लकार के साथ उच्चार किया और यही रूढ़ हो गया।
लखनऊ कब नखलऊ हुआ जैसे इसका महत्व नहीं है, वही बात यहाँ है। ये दोनों शब्द साथ साथ चलते हैं। भाषायी बर्ताव का मामला है ये।
पुनः साधुवाद । अश्लील शब्द पर व्याप्त भ्रांतियों नें इसे अभद्रता की पराकाष्ठा का पर्याय बना दिया था । रूढियों के चलते इतना सफर अस्वाभाविक भी नहीं । जैसा कि आपके आलेख से ध्वनित होता है, देशज शैली में बोली जाने पर परिष्कृत भाषा भी अश्लील ही कही जायेगी । बिहार प्रांत यूँ तो हिन्दी को पल्लवित करने के लिये प्रख्यात रहा है परंतु न जाने क्यों भाषाई शुद्धता का आग्रह अब यहाँ कहीं दृष्टिगोचर नही होता । आचलिक दुराग्रह के कारण, भाषा ही नहीं क्षेत्र भी श्रीहीन प्रतीत होता है ।
अश्लील यानी श्रीहीन। अश्लील हरकत यानी श्रीहीन हरकत। बिल्कुल सही।
@चंदन कुमार मिश्र
समझ लीजिए कि ये दोनों ही समकालीन हैं। पौराणिक ग्रन्थों में इनका प्रयोग हुआ है।
मोनियर विलियम्स कोश के मुताबिक इन दोनों शब्दों का प्रयोग ब्राह्मण साहित्य अर्थात ऐतरेय ब्राह्मण, शाङ्खायन-ब्राह्मण आदि में मिलता है।
बिहार में तो मैंने पढ़ा है कि हिन्दी को लेकर लोगों में कोई अच्छी भावना ही नहीं थी। बंगाल के कुछ लोगों की मेहनत से बिहार में हिन्दी के प्रति राष्ट्रभाषा का माहौल बना और भाषायी चेतना बढ़ी।
'श्री' ही तो 'श्लील' है; हसीन है, जमील है,
है दुष्टता से पाक; सत्यता की ये दलील है.
अनुशास्मकता शील है, धरम का संगे मील है,
श्री ज़मीं भी स्वर्ग और 'मुक्ति की सबील'* है.
है दौर ये तो कलयुगी; 'श्री' न धूंद अब "श्री",
श्लील आचरण के लोग मिलते अब क़लील* है.
* मुक्ति की सबील = नजाती का रास्ता
* क़लील = थोड़े
परिभाषाएँ !
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न पकड़े जाए जब तलक गुनाह भी 'श्लील' है,
तुतलाते आदमी से 'रन' बुलवाना, अश्लील है!
http://aatm-manthan.com
अश्रीर टाइप कर रहे थे तो कीबोर्ड भी अश्लील का सुझाव दे रहा था, समाज में भी यही हुआ होगा।
श्री और अश्रीर की सुंदर व्याख्या !
आभार!
अश्रीर से अश्लील यानि जो श्री से विहीन हो ऐसी भाषा या कार्य । जानकारी पूर्ण लेख का आभार ।
यह तो रोचक ही नहीं, जोरदार भी है - 'अश्लील में भी श्री है।'
पोस्ट पढकर याद आ रहा है कि 'अश्रीर' कहीं पढा था किन्तु कब और कहॉं - यह याद नहीं आ रहा।
इसे भी श्री लगा दो, कुछ शर्म आ जावेगी
शरारत वाले शरीर से भी इस का कोई संबंध है या नहीं? पर नजदीकी जरूर नजर आते हैं।
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