बात दरअसल यह है कि कोयल वाले कोकिलः और कोयले वाले कोकिलः में ध्वनिसाम्य तो है मगर इनमें व्युत्पत्तिक रिश्तेदारी नहीं है । शब्दकोश इस पेच का खुलासा नहीं करते । कोयल वाले कोकिलः में कुक् क्रिया में इलच् प्रत्यय लगता है । जबकि कोयला वाले कोकिलः का एक रूप है कुकीलः जो बना है कौ + कीलः से । कीलः शब्द का अर्थ है खूँटा, शहतीर, नुकीली लकड़ी, भाला, कोहनी जैसे भाव हैं, वहीं इसका अर्थ ज्वाला, मशाल भी है । कोकिलः का अर्थ भी जलती हुई लकड़ी है । गौलतलब है कि विकासक्रम के दौरान मनुष्य ने तरह तरह के हथियारों की आज़माइश की थी । पत्थरों के हथियाओं से लेकर लकड़ी के हथियारों तक का उसने बेहद सूझ-बूझ से इस्तेमाल किया था । आग से वह बेहद प्राचीनकाल से परिचित था । लकड़े के शहतीरों कों भाले की तरह फेंकना भी उसने सीख लिया था । कोयला पर विचार करते हुए दरअसल कोकिलः या कुकीलः में निहित कील शब्द पर ध्यान देना चाहिए । कीलः अर्थात नोकदार लकड़ी, जो आदिकाल से मानव का हथियार रही है ।
अमरकोश सहित मोनियर विलियम्स और आप्टे आदि के कोशो में मुझे कीलः में अग्निदण्ड का भाव भी नज़र आया । मेरे विचार में कील का मूलार्थ तो नोकदार लकड़ी ही है, मगर मनुष्य ने जब जंगलों में लगी आग देखी तब जलती हुई शलाकाओं का प्रयोग हथियार के रूप में करने की तरकीब भी उसके दिमाग़ में आई । इसीलिए कीलः के तमाम अर्थों के साथ जलती हुई लकड़ी का भाव भी आता है । यह मूलतः हथियार था। । यूँ देखा जाए तो कीलः में हथियार की नहीं बल्कि उपकरण की अर्थवत्ता है । हथियार भी उपकरण ही होता है । कीलः का एक अर्थ चाबी भी होता है जिसे किल्ली कहते हैं । किल्ली शब्द बना है संस्कृत के कील् से जिसमें नत्थी करना, बांधना, जोड़ना जैसे भाव है। इससे बना है कीलकः जिसका अर्थ खूंटी, खम्भा आदि होता है। कीलिका शब्द में पतला सरिया, पेंच, शलाका अथवा चाबी का भाव है। हिन्दी के कील, कीला, जैसे शब्द इससे ही बने हैं। कीलित शब्द में बांधना, जकड़ना, स्थिर करना, जड़ना जैसे भाव हैं जो ताले के उद्धेश्य से जुड़ते हैं। कीलिका से ही बना है किल्ली शब्द।
फिलहाल इतना तो स्पष्ट है कि कोयल वाला कोकिलः अलग है और कोयला वाला कोकिलः अलग है । अलबत्ता दोनों शब्द चूँकि एक ही वर्तनीआधारित शब्द से बने हैं इसलिए दोनों का विकासक्रम भी लगभग समान ही रहा जैसे - कोकिलः > कोइलअ > कोएल > कोयल या कोकिलः > कोइलअ > कोइला > कोयला इत्यादि । कीलः का एक अर्थ पर्वत भी है । गौर करें पर्वत ही प्राचीन मनुष्य की शरणगाह थे । पहाड़ों के जंगलों से मनुष्य के मतलब की सभी वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती थीं । पर्वत की दुर्गमता के चलते ही पहाड़ को दुर्गम और फिर दुर्ग नाम मिला । बाद में पहाड़ी आश्रय भी दुर्ग कहलाने लगे । पहाड़ों की ऊँचाई से निचले इलाकों में जलते शहतीरों को फेंकने की तरकीब काफी कारगर थी । कीलाः में निहित कल ध्वनि पर गौर करें तो कुछ और बातें पता चलती हैं । क में निहित ऊँचाई का भाव प्रकाश, चमक और कांति से भी जुड़ता है।
... कीलः से बने कोकिलः में मूलतः हथियार का भाव था । कालान्तर में जलती हुई लकड़ी समेत लकड़ी के अवशेष यानी कोयले को भी कुकीलः या कोकिलः कहा जाता रहा । बाद में सभ्यता बदली, संस्कार बदले । मनुष्य सभ्य हुआ और अग्निदण्ड जैसे हथियारों का प्रयोग अतीत की बात हो गई तब तक कोकिलः में निहित अग्निदण्ड या जलती लकड़ी के अवशेष यानी बुझे अंगारे वाला भाव भी गायब हो चुका था...
क वर्ण का जलतत्व से रिश्ता है और जल की मेघ अथवा पर्वत से रिश्तेदारी में प्रकारांतर से ऊँचाई ही प्रकट होती है। विभिन्न स्रोतों को टटोलने पर पता चलता है कि अलग अलग भाषा परिवारों से जुड़े कई प्राचीन समाजों मसलन सेमेटिक, द्रविड़ या भारोपीय परिवारों की भाषाओं में कल् धातु मौजूद रही जिसमें ऊँचाई, चमक, सौन्दर्य अथवा जलतत्व का भाव था। बरो और एमेनो के द्रविड़ व्युत्पत्ति कोश के आधार पर डॉ रामविलास शर्मा संस्कृत की कल् धातु के प्रतिरूप विभिन्न भाषाओं में देखते हैं । कल् धातु का अर्थ पर्वत भी होता है जिसमें ऊँचाई का भाव निहित है। इससे बने कलिंग का मतलब हुआ पर्वतीय प्रदेश। तमिल में कल का अर्थ पत्थर होता है। लिथुआनी में भी कल्नस् का अर्थ पहाड़ है। गौरतलब है कि लिथुआनी का संस्कृत से साम्य है। लैटिन के कल्कुलुस् का अर्थ छोटा पत्थर होता है। कल्लिस यानी पथरीली राह और कल्लओ यानी संगदिल होना है। संस्कृत में कलिन्द यानी एक विशेष पर्वत होता है। ब्राहुई में ख़ल यानी पत्थर। जाहिर है इन सभी शब्दों में पहाड़ से रिश्तेदारी के तत्व मौजूद हैं और पहाड़ का सीधा सम्बन्ध ऊँचाई से है।
तमिल में कल का अर्थ पत्थर होता है और संस्कृत में यह नुकीला तीर भी है । भाव हथियार का है । यह संयोग यूँ ही नहीं है । और एक मिसाल देखिए । रूसी में संस्कृत में कुल्या नहर है तो लिथुआनी में झरना है । गौरतलब है कि नहर और झरनों की रिश्तेतारी ऊँचाई से है । झरने पहाड़ों से ही फूटते हैं और नहरों में उच्च जलाशयों में संग्रहीत पानी बहता है । रूसी भाषा में कोल नुकीले डण्डे को कहते हैं और रामचरित मानस में तुलसीदास ने कोल का प्रयोग सूअर जैसे एक जन्तु के लिए किया है । डॉ रामविलास शर्मा कहते हैं कि यह महज़ संयोग नहीं है कि प्राचीन काल में सुअर को लकड़ी के पैने डण्डे से बींधकर मारने की परम्परा के कारण सूअर और पैने डण्डे के लिए एक ही शब्द प्रचलित हुआ हो । गौर करें कि कोयला शब्द के साथ मुख्यतः काले रंग के बुझे हुए कोयले की अर्थवत्ता जुड़ी है न कि तप्त अंगारे की । अंगार के सन्दर्भ में हमेशा जलता हुआ कोयला ही कहा जाता है । सामान्य तौर पर बुझे हुए कोयले को कोयला ही कहा जाता है । एक उत्पाद या उपभोक्ता वस्तु होने के नाते कोयले का संग्रहण कभी तप्त या ज्वलनशील अवस्था में नहीं होता । हमेशा बुझे कोयले का भण्डारण ही होता है ।
बात यह है कि कीलः से बने कोकिलः में मूलतः हथियार का भाव था इसीलिए मोनियर विलियम्स और आप्टे इसका अर्थ जलती हुई लकड़ी बताते हैं । कालान्तर में जलती हुई लकड़ी समेत लकड़ी के अवशेष यानी कोयले को भी कुकीलः या कोकिलः कहा जाता रहा । बाद में सभ्यता बदली, संस्कार बदले । मनुष्य सभ्य हुआ और अग्निदण्ड जैसे हथियारों का प्रयोग अतीत की बात हो गई तब तक कोकिलः में निहित अग्निदण्ड या जलती लकड़ी के अवशेष यानी बुझे अंगारे वाला भाव भी गायब हो चुका था और कोकिलः अब कोइलअ होते हुए कोयला बन चुका था ।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
7 कमेंट्स:
मित्र, बहुत अच्छा प्रयास है. दुःख यह है कि आजकल लोगों में पढ़ने की प्रवृति कम हो चुकी है.पहले भी लोग बहुत कम ही पढ़ते थे. हिंदी साहित्य में ऐसे आलेख आते रहने चाहिए. हिंदी साहित्य में (पुरस्कार की चाह रखने वाले) मूर्ख आत्मप्रचारक और छपास के रोगी कथाकार व उपन्यासकार बहुत मिल जायेंगे लेकिन शोधपरक आलेखों के सर्जक विरले ही मिलेंगे.जहाँ तक प्रकाशक का सवाल है तो वह छापने में दिलचस्पी रखता है, पढ़ने में नहीं.जैसे समुद्र का प्यासा तैराक उसका पानी नहीं पी सकता, वैसे ही प्रकाशक किताबों के ढेर के बीच रहकर भी कुछ पढ़ नहीं पाता है. इस ख़ाली पणी को बस व्यापार करते रहने दो और तुम लगातार लिखते रहो.कभी न कभी तो कोई पढ़ेगा ही. मुझ जैसों में तो ऐसे ज्ञान की भूख निरंतर बनी ही रहती है. .
आदरणीय भाई सा.
सादर नमस्कार
हार बार की तरह फिर कहुगा की अंग्रेजी भाषा का टीचर हूँ गलती को माफ करे
आपकी हिंदी की मार्फोलोजी बहुत अच्छी लगी आपका क अक्षर को लेकर दिया गया ज्ञान बिकुल सटीक है --अंग्रजी भाषा में भी क अक्षर जो रोमन वर्तनी के सी 'c' अक्षर से बनता है उसमे भी यही बात लागु होती है ---जैसे cock ,cuckoo coal आदि .
अभी मैंने आपका कोयल और कोयला वाला लेख पढ़ा
उसमे आप ने लिखा है
लैटिन के कल्कुलुस् का अर्थ छोटा पत्थर होता है।
यह पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा
इसी कल्कुलुस् से calculus की भी उत्पती हुई है.
वाह कहाँ से कहाँ.
नैसर्गिकता का ककहरा है भाषाओं में, कंठ से निकले स्वरों के बाद निकटस्थ ध्वनियाँ..
धर्म 'कोयल' का है मीठी वाणी अगर,
'कोयले' का है जलना-जलाना धरम.
साम्य शब्दों का है 'रंग' में 'नाम' में ,
कर्म इक का सुहाना है इक का गरम.
----------------------------------------------
'कील' उभरे जो चेहरे पे लाए बहार* *[जवानी की]
दिल की धड़कन बढ़े, मन में जागे है प्यार,
उभरी धरती पे तो बन गयी है पहाड़,
जिससे उतरे सरिता की 'कलकल' सी धार.
http://aatm-manthan.com
अच्छा हुआ कि कोयल वाला कोकिलः और कोयले वाला कोकिलः अलग निकला । चकल्लस में क्या कलकल ध्वनि या शोर निहीत है ।
अच्छा हुआ कि कोयल वाला कोकिलः और कोयले वाला कोकिलः अलग निकला । चकल्लस में क्या कलकल ध्वनि या शोर निहीत है ।
Post a Comment