मानसर के संदर्भ में मेरे मन में दो विचार आते हैं । यह जो ‘सर’ है वह सरोवर से आ रहा है या ‘सायर’ से क्योंकि मानसरोवर का उल्लेख कई संदर्भों में मान-सायर भी हुआ है । ‘सायर’ दरअसल सागर का प्राकृत रूप है । लोकबोलियों में सागर का रूप ‘सायर’ ही मिलता है । मानसरोवर की कल्पना इतनी ख्यात है कि जिस तरह से गंगा नाम वाले कई जलस्रोत देशभर में हैं उसी तरह ‘मानसर’ भी कई हैं । सवाल है कि यह ‘मानसर’ दरअसल ‘मान-सायर’ तो नहीं ? ध्यान रहे, ‘सागर’ यूँ तो समुद्र को कहते हैं मगर जलभंडार के रूप में सामान्यतः झील, जलाशय के लिए भी हिन्दी में ‘सागर’ शब्द का प्रयोग होने लगा । जलस्रोतों के किनारे जनसमूहों के बसने से ही बस्तियों ने आकार लिया । मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक शहर सागर का नाम दरअसल एक झील की वजह से पड़ा जिसके इर्दगिर्द इसकी बसाहट है ।
ध्यान रहे ‘मानसर’ या ‘मानसरोवर’ के नाम की दो प्रमुख झीलें प्रसिद्ध हैं । मानसर जम्मू के पास है जबकि मानसरोवर तिब्बत में है । ‘सर’ की गुत्थी सुलझाने से पहले यह जानें की ‘मानसर’ या ‘मानसरोवर’ दोनों में जो ‘मान’ है, वह कहाँ से आ रहा है । ‘मानसरोवर’ के पौराणिक महत्व ने इस शब्द को अर्थविस्तार दिया । मानसरोवर परमउपलब्धि, परमलक्ष्य का प्रतीक बना । भौतिक रूप में मानसरोवर की दैहिक यात्रा आज भी बेहद श्रमसाध्य है । प्राचीनकाल में तो और भी कष्टकर रही होगी । तीर्थयात्राएँ हमारे लिए दुखों से त्राण पाने का ज़रिया थीं । माना जाता था कि तीर्थयात्रा से कोई लौट कर नहीं आता । दूसरी ओर दैहिक यात्रा के सूक्ष्म रूप की कल्पना कर ‘मानसरोवर’ की परम उपलब्धि में मानस की कल्पना की गई । ‘मानस’ यानी मन की विवेक-बुद्धि और उससे उपजा अध्यात्म । हमारे जीवन का उद्धेश्य ही मन में विवेक को जागृत करना है । जिसे विवेकबोध हो गया, उसका जीवन सफल । इस तरह मानसरोवर को मानस + सरोवर के रूप में लिया जाने लगा ।
जो भी हो, मानसरोवर का आध्यात्मिक भाव भी मानसरोवर भौतिक यात्रा से ही उपजा है और एक झील के तौर पर इसके साथ मानस शब्द का कोई तर्क नहीं मिलता है । यूँ देखें तो जम्मू वाला ‘मानसर’ और तिब्बत वाला ‘मानसरोवर’ दोनो ही बर्फीले क्षेत्र हैं । बौद्ध साहित्य में मानसरोवर को पृथ्वी का स्वर्ग कहा गया है । भाषा वैज्ञानिक नज़रिए से हमें ‘मानसरोवर’ और ‘मानसर’ के साथ जुड़े ‘मान’ का तार्किक जवाब मिलता है । हिन्दी की तत्सम शब्दावली में बर्फ़ के लिए ‘हिम’ शब्द है । संस्कृत के ‘हिम’ में पाला, तुषार, बर्फ़ आदि भाव हैं । मूल भाव सर्दी का है । ध्यान रहे सर्दी के मौसम को ‘हेमन्त’ कहा जाता है । ‘हिम’ की कड़ी में ही हेमन् है । ‘मोनियर विलियम्स कोश के मुताबिक इसका अर्थ होता है आवेग, बुधग्रह, कांति, कनक और पानी । इसी मूल के ‘हेम’ में इन्ही तमाम भावों के साथ एक अर्थ नदी अथवा जलधारा का भी जुड़ता है । ‘हेमन्’ की कतार में ही हेमन्त भी खड़ा है जिसका अर्थ है शीतऋतु । रॉल्फ लिली टर्नर की कम्पैरिटिव डिक्शनरी ऑफ इंडियन लैंग्वेजेज़ के मुताबिक दार्द परिवार की ही कई भाषाओं में इसके प्रतिरूप प्रमुखता से मौजूद हैं जैसे तिराही भाषा में इसका रूप ऐमन तो इसी परिवार षुमास्ती में येमन है, निंगारामी में यह ईमन्द है तो गावार-बाती और सावी में यह हेमान्द है । दार्द परिवार की प्रमुख भाषा खोवार में इसका रूप योमून है तो बाश्करीक में हामन, गौरो में यह हेवान्द है तो पंजाबी कांगड़ी में हियुन्द, हियुन्धा है और पश्चिमी पहाड़ी में इसकी अनुनासिकता गायब हो जाती है और इसकी ध्वनि सिर्फ़ ह्यूत रह जाती है ।
इसी तरह संस्कृत में ‘हैम’ शब्द भी है जिसका अर्थ शीत सम्बन्धी, हिमाच्छादित है । इसका एक रूप ‘हैमन’ भी है । ‘हिम’ अर्थात बर्फ़ भी इसी शृंखला का शब्द है । विश्व की सबसे बड़ी पर्वत शृंखला का नाम हिमालय इसीलिए है क्योंकि वह बर्फ़ का ठिकाना है । यह ‘हेम’ भी ‘हिम्’ से ही आ रहा है। हेमन्त से ‘त’ का लोप होकर पहाड़ी बोलियों में हिमन्, हेमन्, हिम्ना, हिमान्, एमन, खिमान् जैसे रूप भी बनते हैं। सर्दी का, बर्फ़ीला या शीत सम्बन्धी अर्थों में इन शब्दों का प्रयोग होता है। कश्मीरी में हिमभण्डार के लिए मॉन / मोनू शब्द भी है। जाहिर है यहाँ ‘ह’ का भी लोप हो गया है । उत्तर पूर्वांचल में मॉन, मुनमुन जैसे कोमल शब्द खूब सुनाई पड़ते हैं । इनमें और हिमाचल, उत्तराखण्ड, कश्मीर क्षेत्रों में हिमन्, हेमन् का मन, मोन, मॉन नज़र आ रहा है । हिमालय, हिमाल से ही शिमला रूप है, ऐसी सम्भावना रामविलास शर्मा जता चुके हैं । मराठी में हिंवाँळ और गुजराती में हिमालु का अर्थ भी बर्फ सम्बन्धी, शीत सम्बन्धी होता है । बर्फीले क्षेत्रों में पाया जाना वाला एक रंगबिरंगा पक्षी है जिसका नाम ‘मोनाल’ है । उत्तर-पूर्वांचल में भी एक चिड़िया का नाम ‘मुनमुन’ है । यहाँ ‘मोनाल’ पक्षी का अर्थ बर्फीला या हिम क्षेत्र का सार्थक हो रहा है । ‘मोनाल’ का आल् प्रत्यय आलय यानी आश्रय, निवास का द्योतक है । हिमालय से हिमाल या हिमाला में भी आलय ही है । आलय से बना ‘आल्’ प्रत्यय निश्चित ही पहाड़ी बोलियों में भी प्रचलित है । ‘हेमन’ से ‘ह’ का लोप और मन से ‘आल्’ जुड़ कर पहाड़ी और बर्फीले क्षेत्र के तीतर, मुर्गेनुमा पक्षी के लिए मोनाल नाम सार्थक है ।
बहुत सम्भव है कि ‘मानसरोवर’ और ‘मानसर’ दोनो के ही साथ जो मान है वह इसी मोन से आ रहा हो । जहाँ तक सागर > सायर का प्रश्न है, ध्यान रहे कि हिमालय क्षेत्र की सारी नदियाँ बर्फीले ग्लेशियरों से निकलती हैं । ग्लेशियर यानी हिमवाह या हिमप्रवाह । गंगा का उद्गम गंगोत्री मूलतः ग्लेशियर ही है । इसमें निहित प्रवाही भाव सृ से बने सर मे निहित है । हालाँकि ‘सर’ अब ‘सरोवर’ का पर्याय हो गया है किन्तु सरोवर भी किसी न किसी जलस्रोत से बहते पानी से ही बनते हैं । अलबत्ता जलाशय के अर्थ में ‘सर’ और ‘सायर’ का प्रयोग स्थानीय प्रभाव है । जम्मू के पास की झील को कुछ लोग ‘मानसर’ कहते हैं कुछ ‘मान-सायर’ । कुल मिला कर मान में शीत या बर्फ़ का आशय है । इसका प्रमाण कुमाऊँ अंचल के प्रसिद्ध पर्यटनस्थल मुन्स्यारी में मिलता है । इसमें भी मान/मोन और सायर साफ़ नज़र आ रहा है । गौरतलब है कि इस क्षेत्र में हिमवाह भी हैं । मोन यानी हिम और सर में निहित प्रवाही भाव से यह भी स्पष्ट होता है कि इसमें हिमवाह का आशय भी रहा होगा ।
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