च्छा ख़ासा द्रोण था, घिस-घिस कर दोना रह गया। गुरु कितना ही गुरुतर रहा हो, भाषा के अखाड़े में ऐसी रगड़-घिसाई हुई कि जब हिनहिनाकर खड़ा हुआ तो गुड़ हो चुका था। यह भी कौरवी का ही चमत्कार था जिसके दाँव-पेच से चुस्त होकर खरी-बोली भी एकदम से खड़ी हो गई और देशभर में आज तक हिन्दी का झण्डा खड़ा किया हुआ है।
तो ये भाषा के मामले हैं, सियासी चश्मे से समझ नहीं आएँगे। बाकी तो इण्डिया को भारत या जम्बूद्वीप करने के प्रयास भी शुरू हो गए हैं। हम अपने देश भारत का नाम दुष्यन्त-शकुन्तला के बेटे भरत की सन्तति से हट कर अगर ‘भरत’ समूह से जोड़ कर देखेंगे तो शायद ज्यादा बेहतर होगा।
कुछ दिनों पहले क्राइम रिपोर्टर को खबर मिली थी कि मणिकर्णिका घाट पर विदेशियों ने ‘द्रोण’ कैमरे से तस्वीरें उतारी हैं। यह अष्टाङ्गुल ‘द्रोण’ कैमरा इसी रूप में उनकी कलम से भी उतरता रहा। श्रीमानजी बोलते अब भी ‘द्रोण’ ही हैं 😀
बहरहाल, गुड़गाँव के गुरुग्राम हो जाने पर ज्यादा व्याकुल होने की ज़रूरत नहीं है। स्टालिनग्राद और लेनिनग्राद को याद कर लें। आज वोल्गोग्राद और पीटर्सबर्ग नाम ही आबाद हैं। गुड़गाँव का गुरुग्राम तो ख़ैर व्यक्तिपूजा का मामला भी नहीं है, उच्चार का ही प्रबन्ध है।
मराठी वालों का क्या कर लेंगे जो हर नाम बदल देते हैं। 'गोहत्ती' नाम का शहर पहचान पाएं तो जानें। यह असम की राजधानी का नाम है। यही नहीं, लखनऊ को लखनौ लिखा जाता है। यूपी, असम वालों को ऐतराज हो तो हो उनकी बला से !
कुछ लोग तो गुरुग्राम के पीछे कुरुग्राम भी देख सकते हैं। भई कुरुजनपद के सारे ग्राम कुरुग्राम हो सकते हैं। भोलानाथ तिवारी ने कूड़ेभार कस्बे का सही नाम खोज निकाला था। कूड़ेभार को उसके मूल नाम ‘कूचा-ऐ-बहार’ से पुकारे जाने पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है !
इसी तरह पूर्वी उत्तरप्रदेश का जीयनपुर किसी ज़माने में ज्ञानानन्दपुर था और अंग्रेजों ने उसे G.N.PUR कर दिया जो घिस कर जीयनपुर हो गया। अब इसमें ज्ञानानन्दपुर के आनन्दी नागरिकों की क्या गलती जो उन्हें एक सुन्दर नाम से वंचित कर दिया जाए! वे अगर जीयनपुर से खुश हैं तो उसमें भी क्या बुराई !
पश्चिमोत्तर की अनेक बस्तियों को अंग्रेजों ने डीआई खान, डीजी खान जैसे नाम दे दिये थे जो मूलतः डेरा इस्माइल खान या डेरा ग़ाज़ीखान थे। क्या कर लेंगे आप! जयपुर की मिर्ज़ा इस्माइल रोड, एमआई रोड हो जाती है तो क्या लोगों की ज़बान काट लेंगे!
पूरब में मछलीशहर है तो दक्षिण में मछलीपट्टनम है। बात एक ही है। अब क्या दोनों को मत्स्यपुर कर दिया जाए! कुछ सौ साल बाद घिस-घिसा कर मच्छपुर > मछउर > मछौर हो जाएँगे। थोड़ा आगे मैसूर और इधर मछौर! अब एक शायर को तो अपने शहर से क़दर प्यार था कि नाम ही 'सलाम मछलीशहरी' रख लिया।
तो नाम में क्या रखा है। भाषा की टकसाल में छपे नाम सीधे दिलो-दिमाग़ पर दर्ज़ होते हैं। गुड़गाँव हो या गुरुग्राम, जिसे जो बोलना है, ज़बान से वही निकलेगा। अब हमें तो गुड़गाँव के अंग्रेजी हिज्जे Gurgaon के पहले पद में Gurga नज़र आ रहा है। गौरतलब है फ़ारसी के गुर्ग से ही हिन्दी का गुर्गा आया है जिसका अर्थ भेड़िया है। प्रचलित अर्थ में गुर्गा अब भाड़े के बदमाशों के लिए इस्तेमाल होता है।
इससे क्या? बाल की खाल निकालने वाले यह सब करते रहेंगे। गुरुग्राम को द्रोणाचार्य का गाँव माने या गुरु-ग्राम यानी किसी ज़माने का संकुलकेन्द्र मानते हुए उसका गुरुत्व स्वीकारें। गुरु तो गुरु ही रहेगा। चाहे गुड़ हो, शकर। अब पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो गुरु को ‘छिच्छक’ कहते हैं और शिक्षा को सिच्छा। अब बोलिये?
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2 कमेंट्स:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-12-2016) को "काँप रहा मन और तन" (चर्चा अंक-2551) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thanks for sharing such a wonderful post
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