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Tuesday, June 27, 2017
‘मिट्टी’ से ‘मिट्टी’ तक ज़िंदगी का सफ़र
मौ त जैसी अनिवार्य सचाई के लिए विश्व की अनेक भाषाओं में एक जैसे शब्द हैं। इनका विकासक्रम भी एक जैसा है और अर्थछायाओं में भी ग़ज़ब की समानता है।
मिटने-मिटाने की बात दुनियाभर की अनेक भाषाओं में ‘मिट्टी’ का रिश्ता जीवन से जोड़ा जाता है मसलन- “किस मिट्टी से बने हो” जैसे वाक्यांश से यह जानकारी मिलती है कि इनसान का शरीर मिट्टी से बनता है। स्पष्ट है कि मिट्टी में जननिभाव है। मिट्टी की पूजा होती है। मिट्टी को माँ कहा जाता है। धरतीपुत्र दरअसल मिट्टी का बेटा है। दूसरी ओर मृत्यु का रिश्ता भी मिट्टी से ही है। ज़िंदा जिस्म को मिट्टी कहा जाता है तो मृत देह को भी मिट्टी कहा जाता है। “मिट्टी में मिलाना” मुहावरे में नष्ट करने, अस्तित्व समाप्त कर देने का भाव है। ‘मिट्टी उठाना’ का भाव अर्थी निकालना है। मिटना, मिटाना, मटियामेट जैसे शब्दों के मूल में मिट्टी ही है।
मर्दन से अमृत तक प्राकृत के मिट्टिआ से मिट्टी रूप विकसित हुआ है। मिट्टिआ का संस्कृत रूप ‘मृत्तिका’ है। मृत्तिका और मातृका की समरूपता, जो वर्ण और स्वर दोनों में नज़र आती है, पर ज़रा विचार करें। इस पर विस्तार से आगे बात होगी। संस्कृत में मृद् क्रिया है। इससे ही बनता है मर्दन जैसे मानमर्दन करना। मृद् में दबाना, दलना, रगड़ना, खँरोचना, मिटाना, पीसना, चूरना, तोड़ना, रौंदना जैसे भाव हैं। ध्यान रहे, मिट्टी मूलतः चूरा है, कण है जो उक्त क्रियाओं का नतीजा है। इसके अलावा मृद् का अर्थ भूमि, क्षेत्र, काया अथवा शव भी है। मृद् से मृदु, मृदुता, मृदुल आदि भी बनते हैं जिनमें नर्म, ढीला, हल्का, मंद, नाज़ुक, कोमल या कमज़ोर जैसा भाव है। पीसना, रोंदना दरअसल मृदु या नर्म बनाने की क्रियाएँ ही हैं। मृद् का ही एक अन्य रूप मृत है जिसका अर्थ है शव। अमृत का अर्थ हुआ अनश्वर, अविनाशी।
सेमिटिक से भारोपीय तक सामी (सेमिटिक) भाषाओं में भी यह शृंखला पहुँचती दिख रही है। संसार की प्राचीनतम और अप्रचलित अक्कादी भाषा जो अब सिर्फ़ कीलाक्षर शिलालेखों में जीवित है, में मिद्रु मिदिर्तु जैसे शब्द हैं जो मूलतः भूमि से जुड़ते हैं। मिद्रु का अर्थ है ज़मीन, इलाक़ा, धरा, क्षेत्र या पृथ्वी। इसी तरह मिदिर्तु में बाग़ीचा अथवा उद्यान-भूमि का आशय है। हिब्रू के मेदेर में कीचड़, पृथ्वी, सीरियक के मेद्रा में मिट्टी, शव, लोंदा जैसे अर्थ हैं। अरबी में एक शब्द है मदार (वृत्त वाला नहीं जिससे मदरसा बना है) जिसका अर्थ है धरती। गीज़ के मीद्र में मैदान, पृथ्वी, क्षेत्र, देश जैसे आशय प्रकट होते हैं।
मृत्तिका से मातृका तक स्वाभाविक है कि पृथ्वी का जो आदिम रूप हमारे सामने है, पृथ्वी का जो पहला अनुवभव हमें है वह उसका मिट्टी रूप ही है इसीलिए पृथ्वी की तमाम संरचनाएँ भी मिट्टी से निर्मित हैं। पृथ्वी का समूचा विस्तार जिसे हम देश या क्षेत्र कहते हैं, मिट्टी निर्मित ही है। मृद् से बनता है मृदा जिसका अर्थ है मिट्टी, धरती, पृथ्वी, देश, भूभाग, काया, मृदा, शव, बालू आदि। टीला, पहाड़, सपाट सब कुछ माटी निर्मित है। मिट्टी के सम्पर्क में आकर सब कुछ मिट्टी हो जाता है। मिट्टी ही देश है, मिट्टी ही जन्मदात्री है, मिट्टी मृत्तिका से है, मिट्टिका और मृत्तिका समरूप हैं। मृत्तिका का एक रूप मातृका भी हो सकता है। मातृ में भी पृथ्वी का भाव है और ‘माँ’ तो ज़ाहिर है। मातृका भी मिट्टी यानी माँ है। मूल ध्वनि या पद में अनेक सर्गों-प्रत्ययों और स्वर जोड़ कर अर्थ-विस्तार होता है।
मृत्- मृद्- मृन्- मृण्- गाँव दरअसल एक क्षेत्र है। देहात में गाँव के बाहर छोटी छोटी पिण्डियों में मातृकाएँ स्थापित की जाती हैं जो ग्रामदेवी का रुतबा रखती हैं। अर्थात वे गाँव की जन्मदात्री, रक्षक और पालनहार हैं। मृत्तिका में जो मृत्त है उसका रूपान्तर मृद् है जिसका अर्थ ऊपर स्पष्ट किया है। मृद् का ही एक अन्य रूप है मृण जिसमें रगड़ने, तोड़ने, दलने का भाव है और प्रकारान्तर से कण या मिट्टी का बोध होता है। मृण्मय का अर्थ होता है माटी निर्मित्त। इसका मृन्मय रूप भी है। मृत् में भी वही सारी अर्थछायाएँ हैं जो मृद् में हैं। इस तरह मृत्- मृद्- मृन्- मृण्- जैसे शब्दशृंखला प्राप्त होती है जिसमें रूपान्तर के साथ अर्थान्तर नहीं के बराबर है। मृण का अर्थ तन्तु भी है। मूल भाव सूक्ष्म, तनु, छोटा, बारीक आदि सुरक्षित है। भाषाशास्त्र के विद्वान क्या सोचते हैं, ये अलग बात है। हमने अपना मत रखा है।
मर्द और मुरदा फ़ारसी मुर्दा दरअसल मुर्दह् है। इसका संस्कृत समरूप मृत भी है और मुर्त भी। मुर्दा’/ मुरदा दरअसल मुर्दह् में जुड़े अनुस्वार की वजह से होता है। ‘ह’ वर्ण का लोप होकर ‘आ’ स्वर शेष रहता है। इस तरह देखें तो संस्कृत ‘मुर्त’ और फ़ारसी ‘मुर्द’ समरूप हैं। मृदा अगर मिट्टी यानी लाश है तो मुर्दा भी। अर्थ दोनों का ही शव है। मुर्द का ही एक अन्य रूप मर्द है। प्लैट्स इसका रिश्ता मर्त्य से जोड़ते हैं। पर संस्कृत में मर्त अलग से है। मर्द का अर्थ है आदमी, पुरुष, पति, भर्तार, बहादुर अथवा दुष्ट, नायक अथवा खलनायक, एक सभ्य व्यक्ति। दरअसल यहाँ भी बात मिट्टी से जुड़ रही है। मर्त्य यानी नाशवान। जिसे नष्ट हो जाना है। ये अलग बात है कि इसका पुरुषवाची अर्थ रूढ़ हुआ पर आशय मनुष्य (मरणशील) से ही रहा होगा, इसमें शक नहीं। मर्द से बना मर्दानगी शब्द पुरुषत्व का प्रतीक है। नामर्द का अर्थ कापुरुष होता है। मर्दुमशुमारी भी हिन्दी में जनसंख्या के अर्थ में प्रचलित है। ‘मर्दों वाली बात’ मुहावरा भी खूब प्रचलित है। आशय पुरुषोचित लक्षणों से है।
मौत के रूप मौत जैसी अनिवार्य सचाई के लिए विश्व की अनेक भाषाओं में एक जैसे शब्द हैं। इनका विकासक्रम भी एक जैसा है और अर्थछायाओं में भी ग़ज़ब की समानता है। मृद का मृत रूप ‘मृत्यु को प्राप्त’ का अर्थ प्रकट करता है। मृत्यु का अर्थ है मरण। मृतक का अर्थ शव है। फ़ारसी में मृतक को मुर्दा कहते हैं। जिस तरह मिट्टी यानी धूल, गर्द, मुरम है उसी तरह मिट्टी यानी जीवित या मृत काया भी है। मृण्मय के मृण् का अर्थ यद्यपि पीसना, दबाना, चूरा करना है साथ ही इसका एक अर्थ नाश अथवा मार डालना भी है। मृण से मरण को सहजता से जोड़ सकते हैं जिसमें मृत्यु का भाव है। हम व्याकरण की ओर नहीं देख रहे हैं।
शह, मात और मातम शतरंज का मशहूर शब्द है शह और मात। इसमें जो शह है वह दरअसल फ़ारसी शब्द है और बरास्ता पहलवी उसका मूल वैदिकयुगीन क्षय् अथवा क्षत्र है जिसमें उपनिवेश, स्वामित्व, आधिपत्य, राज्य, इलाक़ा जैसे भाव हैं। बाद में राजा के अर्थ में शाह शब्द इससे ही स्थापित हुआ। शतरंज के शह में मूलतः बढ़ने का भाव है। मगर हमारा अभीष्ठ ‘मात’ से जुड़ा है। यह जो मात है, दरअसल मौत से आ रहा है। सेमिटिक मूल क्रिया م و ت अर्थात मीम-वाओ-ता से अनेक सामी भाषाओं में बने रूपान्तरों में ‘मात’ मौजूद है जिसका अर्थ है मरण। मसलन हिब्रू, उगेरिटिक और फोनेशियन में यह मोत है। हिब्रू में ही इसका एक रूप मवेत भी है। असीरियाई में यह मुतु (मृत्यु से तुलनीय) है तो अक्कादी में मित्तुतु है। सीरियक में यह माव्ता है तो इजिप्शियन में mwt है। मृत्यु का शोक होता है सो मौत से ही अरबी में बना मातम जो हिन्दी में भी प्रचलित है।
इस विवेचना के बाद अंग्रेजी के मॉर्टल, मर्डर, मोर्ट, इम्मॉर्टल (अमर्त्य), पोस्टमार्टम अथवा मॉर्च्युअरी जैसे शब्दों को इस शृंखला से बड़ी आसानी से जोड़ कर देख सकते हैं।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 9:27 PM
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22 कमेंट्स:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (29-06-2017) को
"अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - पी. वी. नरसिंह राव और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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