Monday, July 28, 2025

तावान, तवान और उनकी रिश्तेदारियाँ

शब्द_कौतुक

दण्ड भी सन्तोष देता है  

रोज़मर्रा की बातचीत में हम अनगिनत शब्दों का इस्तेमाल करते हैंलेकिन कभी-कभी कुछ शब्द अपनी ध्वनि और अर्थ से हमारा ध्यान खींच लेते हैं। 'तावानऔर 'तवानऐसे ही दो शब्द हैं। एक का अर्थ है जुर्माना या हर्जानातो दूसरे का मतलब है शक्ति या बल। इन शब्दों की कहानी किसी पड़ोसी के बारे में जानने जैसी हैजहाँ हम उसके स्वभाव के साथ-साथ उसके पूरे परिवार और पुरखों से भी परिचित होते हैं। आइएपहले उस शब्द से बात शुरू करते हैं जिससे हम ज़्यादा परिचित हैं वह है- तावान। इस का अर्थ फ़ारसी प्रशासनिक और कानूनी संदर्भों में ‘जुर्माना’ या ‘हर्जाना’ था। यह दंड किसी उल्लंघन या क्षति की भरपाई करके समाज या राज्य को ‘संतुष्ट’ करने का साधन था

मुआवज़ा और हर्जाना  'तावानशब्द का अर्थ है किसी गलतीअपराध या नुकसान की भरपाई के लिए चुकाई जाने वाली रक़मयानी हर्जाना या जुर्माना। सोचिएकिसी गाँव में किसी ने नहर से पानी चोरी कर अपने खेत सींच लिएजिससे दूसरे किसान की फ़सल सूख गई। अब पंचायत के फ़ैसले के अनुसारदोषी व्यक्ति को पीड़ित पक्ष को हुए नुकसान की भरपाई करनी होगी। यह भरपाई ही 'तावानहै। इसी तरहकिसी दुर्घटना या अनैतिक कृत्य के बदले में जब पीड़ित पक्ष को क्षतिपूर्ति दी जाती हैतो उसे तावान भरना कहते हैं । यह शब्द हमें फ़ारसी भाषा से मिला हैलेकिन इसकी कहानी सिर्फ़ जुर्माने तक सीमित नहीं है। इसका रिश्ता एक बहुत ही गहरी और ताक़तवर अवधारणा से जुड़ा हैजो हमें इसके एक भूला-बिसरा भाई 'तवानतक ले जाती है।

शक्ति से जन्मा दायित्व  यह जानना काफ़ी रोचक है कि 'तावान' (हर्जाना) शब्द जिस प्राचीन जड़ से पैदा हुआ हैउसका असल मतलब 'शक्तिशाली होनाया 'समर्थ होनाथा । तो फिर सवाल उठता है कि शक्ति और सामर्थ्य का रिश्ता हर्जाने से कैसे जुड़ गयाइसका विकासक्रम बड़ा स्वाभाविक है। प्राचीन ईरानी समाज में 'क्षतिपूर्ति करने की क्षमताया 'बदला चुकाने की सामर्थ्यको भी एक प्रकार की शक्ति ही माना जाता था  धीरे-धीरेयह विशिष्ट सामर्थ्य यानी 'हर्जाना चुकाने की ताक़तही ख़ुद 'हर्जानाकहलाने लगी । इस तरहवह शब्द जो कभी 'क्षमताका प्रतीक थाएक विशेष सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी ('क्षतिपूर्ति') का नाम बन गया। यह ऐसा ही है जैसे 'शक्तिकी अवधारणा ने एक ख़ास काम के लिए एक नया रूप ले लिया हो।

 साहित्य में तावान  ‘तावान’ के बहुआयामी अर्थ दिखते हैं। प्रेमचंद के ‘गोदान’ में होरी पर पंचायत द्वारा तावान लगाया जाता हैक्योंकि उसने सामाजिक नियमों का उल्लंघन किया। इसी तरह प्रेमचंद की कहानी तावान’ में जुर्माना लगाए जाने पर छकौड़ी का यह कहना – “तावान तो मैं न दे सकता हूँन दूँगा” – व्यक्ति और सामूहिक कर्तव्य के बीच टकराव को रेखांकित करता है। यशपाल के उपन्यास देशद्रोही में तावान का एक और रूप सामने आता है। वहाँ पठानों द्वारा अपहरण कर ‘तावान’ (फिरौती) लेने की घटना का ज़िक्र है – “वज़ीरिस्तान और मसूद इलाकों के पठान पिशावरकोहाट और बन्नू से इस प्रकार लोगों को बाँध ले जाते हैं। उनकी रिहाई के लिए तावान पाकर वे उन्हें छोड़ देते हैं।” यहाँ फ़िरौती भी तावान है। 

एक जड़दो शाखाएँ  अब हम 'तावानके उस भाई से मिलते हैं जिसका ज़िक्र हमने पहले किया था - 'तवान' 'तवान' (توانका सीधा-सादा अर्थ है - शक्तिबलसामर्थ्य और ऊर्जा  सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि 'तावान' (हर्जाना) और 'तवान' (शक्ति)दोनों एक ही प्राचीनतम भाषाई जड़ से जन्मे सगे भाई हैं  'तवान' विशुद्ध रूप से फ़ारसी भाषा का शब्द हैजिसका अर्थ शक्तिसामर्थ्यक्षमता और बल है । फ़ारसी में 'सकनाया 'समर्थ होनाके लिए क्रिया 'توانستن' (tavānestan) है । रोचक तथ्य यह है कि यह क्रिया संज्ञा 'तवान' (शक्ति) से बनी हैन कि संज्ञा क्रिया से । आज की फ़ारसी का 'तवानमध्यकालीन फ़ारसी (पहलवी) के 'तुवानसे विकसित हुआ है । भाषा वैज्ञानिकों ने इसे प्रोटो-इंडो-यूरोपियन (PIE) धातु *tewhसे व्युत्पन्न माना हैजिसका अर्थ था- "फूलनासूजनाबढ़नाशक्तिशाली होना"।

एक पुरखा, दो वारिस  यह शक्ति की उस जैविक अवधारणा से जुड़ा है जहाँ किसी मांसपेशी का फूलना या किसी जीव का बढ़ना ही शक्ति का प्रतीक था। हज़ारों साल पहलेजब ईरानी और भारतीय भाषाएँ एक थींतब इस एक ही जड़ ने दो अलग-अलग रास्तों पर चलना शुरू किया। एक रास्ता शक्ति के विशिष्ट अर्थ 'हर्जाना चुकाने की क्षमताकी ओर मुड़ गया और 'तावानबन गयाजबकि दूसरा रास्ता शक्ति के मूल और सीधे अर्थ पर चलता रहा और 'तवानकहलाया। ये एक ही पुरखे के दो वंशज हैंजिनके अर्थ समय के साथ अलग-अलग हो गए।

 'तवानशक्ति का  वारिस  'तवानने शक्ति के मूल अर्थ को पूरी तरह सहेज कर रखा  फ़ारसी भाषा में यह शब्द इतना मौलिक है कि वहाँ 'समर्थ होनाक्रिया ('तवानीस्तन') इसी 'तवान' (शक्ति) संज्ञा से बनी है । यह विचार बड़ा गहरा है कि 'शक्तिएक स्थायी अवस्था है और कुछ कर 'सकनाउसी शक्ति का प्रदर्शन मात्र है। फ़ारसी की प्रसिद्ध कहावत  ख़ास्तन तवानीस्तन अस्तयानी "चाहना ही कर सकना हैअर्थात "जहाँ चाहवहाँ राह" यहाँ कर सकता या सक्षम होने की भावना का महत्व है 

भारत की प्राचीन प्रतिध्वनि 'तवस्'तवानकी कहानी और भी रोमांचक हो जाती है जब हम जानते हैं कि इसका एक सगा भाई संस्कृत में भी मौजूद है। जिस प्राचीन सिलसिले से फ़ारसी 'तवाननिकलाउसी से संस्कृत का 'तवस्भी जन्मा हैजिसका अर्थ भी बलशक्ति और साहस है । यह खोज बताती है कि 'तवानहमारी भाषा के लिए कोई विदेशी शब्द नहींबल्कि एक तरह से अपने घर लौटा एक पुराना रिश्तेदार है। यह ईरान और भारत की उस साझी प्रागैतिहासिक विरासत का प्रतीक हैजो भाषाओं के अलग होने से भी पहले मौजूद थी  वेदों में 'तवस्और इससे बने कई शब्दों का प्रयोग देवताओं और राजाओं के साहस और शक्ति का वर्णन करने के लिए किया गया है  जैसे तवागातवागोतविष्यसतविष्य, तवस्वत, तवस्व, तविषी आदि

सशक्त और अशक्त  जब कोई शब्द किसी भाषा में बस जाता हैतो वह अपना परिवार भी बढ़ाता है। 'तवानके साथ भी ऐसा ही हुआ। 'तवानसे विशेषण बना 'तवाना', जिसका अर्थ है - शक्तिशालीबलवान या स्वस्थ  वहींजब इसमें फ़ारसी का नकारात्मक उपसर्ग 'ना-लगातो शब्द बना 'नातवाँ', यानी कमज़ोरनिर्बल या शक्तिहीन । हम 'ना-उपसर्ग से अच्छी तरह परिचित हैंजैसे 'नासमझ', 'नापसंदया 'नामुमकिनजैसे शब्दों में। 'नातवाँशब्द का प्रयोग अक्सर शायरी और साहित्य में किसी की बेबसी या कमज़ोरी को दर्शाने के लिए बड़े ही कलात्मक ढंग से किया जाता है। ये दोनों शब्द दिखाते हैं कि 'तवानकी अवधारणा भाषा में किस हद तक पैबस्त है।

शब्दों का पारिवारिक मिलन  कथा का सार यह कि  'तावान' (हर्जाना) और 'तवान' (शक्ति) अजनबी नहींबल्कि सहस्राब्दियों पुराने एक ही पुरखे के वंशज हैं । इनकी इससे साबित होता है कि मानव जत्थों का एक जगह से दूसरी जगह तक आप्रवासन ही भाषाओं के बदलाव और विभिन्न शब्दों के बोली-बरताव और उनके भीतर नए नए अर्थों को  को अलग-अलग दिशाओं में विकसित करता है। 'तवानने जहाँ शक्ति के सीधे-सरल और शक्तिशाली रूप को बनाए रखावहीं 'तावानने उसी शक्ति को एक सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी का रूप दे दिया। एक तरफ़ बल और सामर्थ्य हैतो दूसरी तरफ़ उस बल से जन्मा दायित्व। इन शब्दों को जानना ईरान से लेकर भारत तक हमारी साझी सांस्कृतिक जड़ों को मज़बूत करता है।

 

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Sunday, May 18, 2025

आलपिन का सफरनामा #शब्दकौतुक


चुभाने-जोड़ने की चीज़ें

हिंदी में गाँव से शहर तक और बच्चों से बूढ़ों तक समान भाव से बोला जाने वाला शब्द है 'आलपिन' जो यूरोप के सुदूर दक्षिणी पश्चिमी छोर पर जन्मा और अलग-अलग भाषाओं और संस्कृतियों से होता हुआ हिंदी में पहुँचा। बीती छह सदियों से ड्राइंग पिन के तौर पर बरता-समझा जाता है। सामान्यतः विशेषज्ञों का मानना है कि यह शब्द पुर्तगालियों के साथ पन्द्रहवी सदी के बाद के सालों में कभी कोंकणी ज़बान में आया होगा। हालाँकि इसकी जड़ें और भी गहरी है जो भूमध्य सागर में इबेरियन प्रायद्वीप (अंडलूसिया) होते हुए बरास्ता अरब, स्पेन होते हुए पुर्तगाल पहुँचती हैं। इस बार आलपिन के निशानात को देखते-परखते हुए उसके सफ़र को समझने की कोशिश की है।

अरब से अंडलूसिया तक
आलपिन की इस लम्बी यात्रा को समझने के लिए सात समन्दर पार तक पसरी जड़ों को सुलझाना समेटना महत्वपूर्ण है। ऐसा प्रतीत होता है कि आलपिन की पैदाइश में अरबी की दो त्रिवर्णी क्रियाएँ ख़िलाल और जिलाल की संयुक्त भूमिका है। अरब से अंडलूसिया तक आते आते इनमें अर्थ सम्बन्ध बदलाव भी सम्भव हैं। मुख्यतः इनका आशय किसी चीज़ में छेद करने, डालने या बीच से गुजरने का विचार है। ख़िलाल का सीधा संबंध 'पिन' या 'खूँटी' से है। दूसरी ओर, जिलाल का अर्थ ("वह जो बीच में घुसता है") भी पिन के कार्य से स्पष्ट रूप से मेल खाता है।

अलख़िलाल-अलजिलाल नामक पुरखे
'आलपिन' शब्द की यात्रा अरबी भाषा से शुरू होती है। ऐसा माना जाता है कि इसके मूल में दो अरबी शब्द हैं: 'ख़िलाल' या 'जिलाल'। 'ख़िलाल' का मतलब होता है 'पिन' या 'खूँटी', जबकि 'जिलाल' का अर्थ है 'वह जो बीच में घुसता है'। ये दोनों अर्थ आलपिन के काम से मिलते जुलते हैं। अरबी में एक शब्द है 'अल' जिसका मतलब होता है 'द'। यह शब्द अरबी से दूसरी भाषाओं में गया और वहीं जम गया। इसलिए, 'अल' शब्द स्पेनिश के 'अल्फिलेर' और पुर्तगाली के 'अल्फिनेट' में भी है। प्रस्तावित व्युत्पत्ति शृङ्खला इस प्रकार है: अरबी (अलख़िलाल / अलजिलाल) > स्पेनिश (अलफिलेर) > पुर्तगाली (अलफिनेट) > हिंदी (आलपिन) ।

‘अल-’ बोले तो क्या?
ख़िलाल और जिलाल के आरंभ में लगा 'अल-' शब्द अरबी भाषा का निश्चित सर्ग यानी डेफिनिट आर्टिकल जैसे 'the' है। स्पेनिश और पुर्तगाली जैसी भाषाओं में अनेक आगत अरबी संज्ञा शब्दों के साथ ‘अल’ स्थायी रूप से जुड़ गया जैसे अल अंडलूस, स्पेनिश अल्गोडोन (कपास) जो अरबी अल-क़ुतुन से आया और अंग्रेजी में कॉटन बना), अज़ुकार (चीनी, अरबी अस-सुक्कर) आदि। यही कारण है कि स्पेनिश अलफिलेर और पुर्तगाली अलफिनेट दोनों में आरंभिक 'al-' मौजूद है।

स्पेन और पुर्तगाल में बदलाव
इबेरियन प्रायद्वीप दक्षिण-पश्चिमी यूरोप में स्थित एक प्रायद्वीप है जिसमें आधुनिक स्पेन और पुर्तगाल के अधिकांश भाग शामिल हैं। इसका नाम प्राचीन निवासियों, आइबेरियन के नाम पर रखा गया। इबेरियन प्रायद्वीप में इस्लाम का एक लंबा और महत्वपूर्ण इतिहास रहा है। 8वीं शताब्दी की शुरुआत में, मुस्लिम सेनाओं ने स्पेन पर आक्रमण कर दिया। प्रायद्वीप के इस हिस्से को "अल-अंडालस" नाम दिया। कॉर्डोबा (कुर्तुबा), इसकी राजधानी थी। यह यूरोप के सबसे बड़े और सबसे समृद्ध शहरों में से एक थी। यहाँ मस्जिदें, महल, पुस्तकालय और विश्वविद्यालय थे।

योरप की धरती, अरबी असर
यहाँ के मुस्लिम विद्वानों ने यूरोपीयों की ज्ञान परम्परा से बहुत कुछ सीखा और गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, दर्शन और कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पन्द्रहवीं सदी के अन्त में ईसाइयों ने लम्बे संघर्ष के बाद स्पेन को इस्लामी प्रभाव से मुक्त करा लिया। इसके बावजूद, इस्लामी संस्कृति और प्रभाव ने स्पेन और पुर्तगाल पर एक स्थायी छाप छोड़ी है, जो वास्तुकला, भाषा, कला और कृषि में आज भी स्पष्ट है। ऐसे ही प्रभाव की निशानियाँ वे अनेक अरबी शब्द हैं जो स्थानीय स्पैनिश, पुर्तगाली में आज भी विद्यमान हैं। स्पैन, पुर्तगाल के समुद्री अभियानों के ज़रिए ये शब्द सात समन्दर पार तक भी पहुँचे। ऐसा ही शब्द है आलपिन जो अरबी "अल-ख़िलाल" (अरबी में पिन या छोटी सुई) के ज़रिए स्पेनिश और पुर्तगाली में अलग-अलग ढंग से ढल गया।

बदलाव के मंच- स्पैनिश, पुर्तगाली और हिन्दी
पहला परिवर्तन स्पैनिश में हुआ। अरबी भाषा में मूल (ख़) ध्वनि थी (अल ख़िलेल), लेकिन स्पेनिश में इसका उच्चारण अलफिलेर हो गया। आज इसका मतलब है सिलाई पिन, लेकिन यह ब्रोच या टाई पिन के लिए भी इस्तेमाल होता है। दूसरा बदलाव पुर्तगाली में हुआ जहाँ यह स्पेन के रास्ते पहुँचा। ठीक वैसे जैसे अधिकांश अरबी भारत में फ़ारसी के रास्ते पहुँचे। पुर्तगाली में स्पेनिश का अलफिलेर, अलफिनेट हो गया। ग़ौरतलब है, स्पैनिश के अलफिलेर का ‘ल’, पुर्तगाली में ‘न’ में बदल कर अलफिनेट हो गया और अन्त में एट प्रत्यय लग गया। ‘ल’ के ‘न’ में परिवर्तित होने की मिसाल वैसी ही है जैसे संस्कृत ‘लवण’ का ‘लूण’ होते हुए ‘नून’ में बदल जाता है।

हिंदी में 'आलपिन'
पुर्तगालियों ने भारत में व्यापार करना शुरू किया, तो यह शब्द वहाँ भी पहुँचा। पुर्तगाली शब्द 'अल्फिनेट' से हिंदी में 'आलपिन' बना। हिंदी में आते-आते इस शब्द में कुछ बदलाव हुए। पुर्तगाली शब्द का आखिरी स्वर गायब हो गया और 'फ' की ध्वनि 'प' में बदल गई। इस तरह आलपिन जैसा शब्द हिन्दी की लोकप्रिय शब्दावली का हिस्सा बन गया। 'आलपिन' शब्द सिर्फ हिंदी में ही नहीं, बल्कि उर्दू, कोंकणी, गुजराती, लादीनो, जावानीस और मलय/इंडोनेशियाई जैसी कई और भाषाओं में भी इस्तेमाल होता है। इससे पता चलता है कि यह शब्द पूरी दुनिया में फैला है।

‘पिन’ के जन्म चिह्न अलग अलग
सवाल उठना स्वाभाविक है कि आलपिन का पिन क्या अंग्रेजी वाला पिन है या उससे हटकर भाषायी प्रक्रिया से प्राप्त अलग शब्द है ? जवाब है दोनो ‘पिन’ अलग अलग हैं। अंग्रेजी शब्द "pin" का मूल जर्मेनिक भाषाओं में है। यह पुरानी अंग्रेजी के शब्द "pinn" या "pen" से आया है, जिसका अर्थ होता था "कील", "बोल्ट" या कोई नुकीली चीज़। इसका संबंध प्रोटो-जर्मेनिक भाषा के शब्द pennaz से बताया जाता है। आलपिन और अंग्रेजी "pin" के बीच जो समानता दिखती है वह संयोग है, न कि एक ही मूल से सीधा विकास।

और चलते चलते…
यह भी जान लेते हैं कि स्पैनिश और पुर्तगाली में आलपिन के पूर्वज अलफिलेर और अलफिनेट शब्द दरअसल मूल अरब भूमि से नहीं आए। वे तो सातसौ बरसों से स्पेन व पुर्तगाल पर कब्ज़े के दौरान इन भाषाओं में बसे हुए थे। दूसरी दिलचस्प बात यह कि आज अरबों की मुख्य भूमि यानी सऊदी अरब, यूएई, यमन, इराक आदि में पिन के लिए अल-ख़िलाल लापता है। इसके स्थान पर पिन, कील आदि के अर्थ में दब्बूस, मिसमार, मिलक़त या वत्द जैसे शब्द बरते जाते हैं।

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शब्द_कौतुक शब्दसन्धान शब्दोंकास़फ़र पिन आलपिन इबेरिया अलअण्डलूस अण्डलूसिया अभी और बाकी है। दिलचस्प विवरण पढ़ें आगे...


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