Sunday, August 3, 2025

श्रोत बनाम स्रोत

शब्दकौतुक / लापरवाही या उलझन ?

बुनियादी भ्रम

हिन्दी में प्रचलित एक आम चूक है श्रोत और स्रोत शब्दों का आपस में गड्ड-मड्ड किया जाना। आम बोलचाल में, जब कोई व्यक्ति कहता है – "इस जानकारी का क्या श्रोत है?" – तो वह दरअसल स्रोत अर्थात मूल, बीज, साधन, उद्गम या सोर्स कहना चाहता है। यह समस्या केवल आम बोलचाल तक सीमित नहीं, बल्कि अक्सर पत्रकारिता, मीडिया, संवाद मंच और शिक्षण कक्षो मे, आचार्यों-उपाध्यायों के प्रवचनो में भी पढ़ी-सुनी जाती है। लेकिन क्या यह मात्र एक ध्वन्यात्मक भ्रान्ति है या 'श्रोत' सचमुच 'स्रोत' का मान्य रूपभेद है?

स्रोत- बहाव का उद्गम

स्रोतशब्द संस्कृत मूल का है, जिसकी व्युत्पत्ति स्रु क्रिया से मानी जाती है जिसमें बहाव का भाव है। इससे विकसितस्रोतस्’ (srotas) बना, जिसका अर्थ हैबहने की जगह, धारा, प्रवाह का मार्ग या उद्गम। यही शब्द कालांतर में हिन्दी में स्रोत के रूप में आया, जिसका अर्थ हैमूल, ज़रिया, origin या अंग्रेजी का source सोर्स मिसाल के तौर पर गंगा का स्रोत गोमुख है। इस तथ्य का क्या स्रोत है? यह शब्द स्रवनम् (प्रवाह) से जुड़ता है, जिसमें तरल या अमूर्त किसी चीज़ का बहाव निहित होता है। 

श्रोत- जो सुनता है

श्रोतशब्द का सम्बन्ध बिल्कुल भिन्न क्रिया श्रु से है जिसका अर्थ सुनना है। संस्कृत में इससे बने अनेक शब्द हैं जैसे श्रवण, श्रोता, श्रोत्र, श्रोतृ, श्रोत्रिय आदि। श्रोतृ वह होता है जो सुनता है - listener, hearer श्रोत्रिय वह होता है जो वैदिक श्रुति परम्परा से जुड़ा हो, जिसने शास्त्रों को श्रवण के माध्यम से ग्रहण किया हो जैसे श्रोताओं से अनुरोध है कि वे शांति बनाए रखें या वह एक विद्वान श्रोत्रिय ब्राह्मण था। ध्यान दें कि श्रोत शब्द हिन्दी में स्वतन्त्र रूप में एक बहुत ही सीमित और विशिष्ट प्रसङ्गों में ही आता है, और प्रायःश्रोतायाश्रोत्रियजैसे रूपों में प्रयुक्त होता है।

संस्कृत में श्रोत = स्रोत?

संस्कृत व्याकरण की दृष्टि सेस्रोतशब्द का प्रकृत रूपस्रोतस्है। जब यह विभक्ति और सन्धि से गुजरता है, तब उसके कुछ रूपश्रोतके रूप में प्रकट हो सकते हैं। जैसे, यस्य श्रोतः परिपूर्णं स्यात् - यहश्रोतःरूप सप्तमी विभक्ति एकवचन मेंस्रोतस्का रूप है, लेकिन यहाँनहीं बल्किही है। कुछ भाषाविदों और कोशों (जैसे कि आपटे अथवा Monier-Williams) में यह उल्लेख ज़रूर मिलता है कि कुछ पाठों में स्रोत का उच्चारण श्रोत रूप में भी पाया गया है, विशेषतः वैदिक धारा में जहाँ उच्चारण के क्षेत्रीय भेद या श्रुति परम्परा के चलते कई शब्दों में // का अदल-बदल हुआ है। किंतु यह अपवाद हैं, और हिन्दी में न तो यह चलन है और न ही इसे लेकर कोई भ्रम है।

क्याश्रोतहिन्दी में स्रोत का विकल्प है?

आधुनिक हिन्दी में 'श्रोत' को स्रोत का वैकल्पिक या पर्याय रूप स्वीकार नहीं किया गया है। किसी भी मान्य हिन्दी कोश- जैसे भारतीय राजभाषा परिषद कोश, शब्दसागर, प्लैट्स, हरदेव बाहरी आदि - मेंश्रोतकोस्रोतका रूप नहीं माना गया है। श्रोतयदि आया भी है तो वह श्रोता, श्रवण, श्रोत्रिय आदि से जुड़ा अर्थ ही रखता है, अर्थातसुनने वाला, ‘श्रवणकर्ता, याश्रवण से प्राप्त ज्ञान यह अन्तर संस्कृत कोशों में भी स्पष्ट है, किन्तु आधुनिक हिन्दी में ध्वन्यात्मक भ्रम के कारण यह गड्डमड्ड होने लगा है। अखबार, साहित्यिक रचना आचार्य के ज्ञान व सम्पादक के चलताऊ ज्ञान प्रदर्शन आदि तमाम स्थितियों मेंश्रोतशब्द कोस्रोतके अर्थ में प्रयोग करना अज्ञान की निशानी है

भाषिक अनुशासन और व्याकरण

यह मामला केवल व्याकरण का नहीं, अर्थ-संप्रेषण की शुद्धता का भी है। स्रोत जानकारी का उद्गम है, जबकि श्रोत वह हो सकता है जो कान से सुनता है। एक ही वाक्य में इन दोनों के प्रयोग से हास्यास्पद स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं: जैसे इस समाचार का स्रोत अज्ञात है। अब अगर इसी वाक्य में श्रोत लिखें तो वाक्य होगा- इस समाचार का श्रोत अज्ञात है। दूसरे वाक्य में यह भ्रम होता है किइस समाचार को सुनने वाला कौन है, यह पता नहीं!” - जो आशय ही बदल देता है।

आख़िरी बात

श्रोतऔरस्रोतशब्दों के बीच का अंतर संस्कृत की धातु-व्युत्पत्ति पर आधारित है- श्रु (सुनना) और स्रु (बहना) आधुनिक हिन्दी में स्रोत का प्रयोग ही मान्य है जब हम बात कर रहे हों किसी उद्गम, धारा, या सूचना के मूल स्रोत की। श्रोत शब्द यदि कहीं आता है तो वह श्रोता या श्रोत्रिय जैसे सन्दर्भों में, ‘सुननेके अर्थ में ही आता है। इसलिए, *‘श्रोतकोस्रोतका पर्याय मानना केवल अनुचित है, बल्कि यह अर्थ का स्पष्ट अनर्थ भी कर सकता है। हिन्दी में इस विषय में सावधानी अपेक्षित है।  
🙏


0 कमेंट्स:

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

Post a Comment


Blog Widget by LinkWithin