Saturday, February 2, 2008

सदियां कुर्बान हैं...

दैनिक भास्कर के जयपुर संस्करण में शनिवार ( 2फरवरी ) के अंक में मुख्यपृष्ठ पर प्रकाशित इस तस्वीर और चित्र परिचय ने दफ्तर में ही हमसे तय करा लिया था कि इसे ब्लाग पर चढ़ाएंगे। यह ब्लाग शब्द, भाषा और पुस्तकों को ही समर्पित है। भास्कर जयपुर के स्थानीय संपादक नवनीत गुर्जर और उनके सहयोगियों को बधाई।


पुस्तकों का अपना अलग इतिहास होता है। कई बार एक पुस्तक पर सदियां न्योछावर हो जाती हैं और कई दफा एक देश के लोग दूसरे देश जाकर पुस्तकों का विषय बन जाते हैं। जैसे भारत में आक्रान्ता के रूप में आए सिकंदर और उसकी चंदन की कुर्सी पर मेसीडोनिया में लोकगीत गाए जाते हैं। इसी तरह समरकंद के एक अमीर सौदागर के बेटे इज्जत बेग ने जब भारत आकर एक गरीब कुम्हारन से प्रेम किया तो भारतीय कवियों ने कई गीत लिखे। दिल्ली में 2 फरवरी से शुरू हो रहे वर्ल्ड बुक फेयर की तैयारियों के दौरान सिर पर किताबें उठाए जा रहे इस मजदूर की अपनी कहानी हैं। ये किताबें इसके लिए भले ही बोझ हो लेकिन वह नहीं जानता कि किताबों के रूप में जाने कितनी सदियां उसके सिर पर कुर्बान हैं।
(तस्वीर एएफपी की है )

6 कमेंट्स:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सही विश्लेषण किया है आपने
जब भी आततायी, अत्याचारी लुटेरे सामँती दस्यु आक्रमण किया करते थे तब पुस्तकोँ की होली जलाई जाती थी --
सँस्कृति का नाश इसी तरह किया जाता था परँतु, किताबेँ तब भी, धैर्य से लिखीँ गयीँ सदीयोँ तक --और फिर फिर सहेजी गयीँ
हाँ, किताबोँ मेँ क्या लिखा था,

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

उनका क्या असर हुआ,
ये अलग बातेँ हैँ --

Gyan Dutt Pandey said...

लेखन में तो जबरदस्त विस्फोट हुआ है और पढ़ने का बैक लॉग बढ़ता ही जा रहा है।

Sanjay Karere said...
This comment has been removed by the author.
दिनेशराय द्विवेदी said...

अजित जी। मैं इस चित्र को शीर्षक देना चाहूंगा।

'ज्ञान-वाहक'

Unknown said...

हर बार की तरह एक अच्छी पोस्ट और स्ाथ ही शीर्षक भी उत्तम है "ज्ञान वाहक"...

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