साधु-सन्यासियों को आश्रयस्थली के रूप मे पर्वत-उपत्यकाएं प्रिय रही हैं। प्राचीनकाल से ही परिपाटी भी रही कि सन्यस्त व्यक्ति घर-बार छोड़कर या तो सघन वन प्रान्तरों में जाता या नदी तटों पर आश्रमवासी हो जाता। इससे भी बढ़कर जब वैराग्य अधिक प्रबल होता तो तपस्या के निमित्त परिव्राजक पहाड़ों की ओर कूच करता था जहां की स्वर्गिक शांति विश्वात्मा की खोज में सहायक होती।
नागा साधुओं की एक व्युत्पत्ति उपरोक्त व्याख्या के तहत संस्कृत शब्द नगः से भी बताई जाती है जिसका अर्थ होता है पर्वत, पहाड़ आदि। नागा यानी जो पर्वतों पर रहते हैं । मगर नागाओं के स्वरूप पर गौर करें तो नगः शब्द की तुलना में नग्न शब्द कहीं अधिक मेल खाता है। तो फिर पहाड़ के रूप में नगः के क्या मायने हैं ? पृथ्वी पर उद्भूत प्रकृति की सभी रचनाओं पर गौर करें तो पहाड़ हमें स्थिर – गंभीर नज़र आते हैं। वे जड़ हैं अर्थात चलते नहीं हैं इसीलिए पर्वत का एक नाम है अचल। जो स्थिर है।
( इस पड़ाव का भरपूर मज़ा लेने के लिए कृपया पाठक पर्वत से पोर-पोर में समाया दर्द वाले पड़ाव पर ज़रूर जाएं। )
संस्कृत के मूल अक्षर ‘ग` में चलने , जाने अथवा गति संबंधी भाव छुपे हैं। और ‘न` वर्ण में नकार का भाव छुपा है । इस तरह देखें तो नगः का अर्थ भी वही हुआ जो अचल का है यानी जो स्थिर है, जो कहीं न जाए वह है नगः अर्थात पहाड़। सोचिये, अगर पहाड़ चलते तो क्या होता ? निश्चित ही महाकवि कालिदास मेघ को तो अपना दूत तब न बनाते। कालिदास ने कुमारसम्भव में हिमालय पर्वत को नगाधिराज कहा है-
अस्त्युत्तरस्या दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज:।
नगः से ही बने हैं नगेन्द्र , नगपति अर्थात पर्वतश्रेष्ठ हिमालय। नगपति और नगेन्द्र की दूसरी व्याख्या भी है। दरअसल अचल वाले अर्थ में नगः का अर्थ चट्टान, वनस्पति, वृक्ष, पौधे आदि भी आते हैं। संस्कृत में इन्हें भी नगः ही कहा गया है। इस तरह नगेन्द्र का मतलब हुआ वृक्ष, वनस्पतियों से समृद्ध, स्वामी यानी हिमालय। आज इस तथ्य को वैज्ञानिक भी मानते हैं कि दुनिया की सबसे समृद्ध और विविध वनस्पति शृंखला हिमालय श्रेणी में ही मिलती है। अचल से बने हिमाचल और अरुणाचल दोनो पर्वतीय प्रदेशों के नाम हैं । यहां कई लोग अचल को अंचल समझने की भूल कर देते हैं।
नगः से ही बना है नगालैंड अर्थात नागालैंड। यानी पर्वतीय भूमि। भारत के उत्तर पूर्वांचल का यह छोटा सा राज्य नगालैंड बीते कई दशकों से भारत का अशांत क्षेत्र है। 1963 मे इसे राज्य का दर्जा मिला था ।
चलते-चलते –
हिन्दुओं में एक सरनेम होता है नगाइच । यह बना है नागादित्य से । क्रम कुछ यूं रहा - नागादित्य > नागादिच्च > नागाइच्च > नगाइच।
यह कड़ी कैसी लगी , ज़रूर लिखें।
Sunday, February 17, 2008
काश ! चलते पहाड़...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:23 AM
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11 कमेंट्स:
हिमालय वास्तव में औषधियों का खजाना है।
उत्तम जानकारी-नगाइच सरनेम के विषय में जानना रोचक रहा क्योंकि मेरे एक दोस्त का सरनेम नगाइच है. :)
पर्वत भी शायद उच्च शिखरों पर नग्न होते हैं।
बाकी नग और नाग में जीनेटिक अंतर लगता है!
अच्छा है। कल नागा वाली पोस्ट भी जानकारी पूर्ण लगी। आपका ब्लाग सच में बहुत अच्छा है।
अजित जी आप बढिया जानकारी दे रहे हैं --
ऐसे ही लिखते रहिये -
दिलचस्प है। शुक्रिया...
अनिता कुमार
Manish Joshi to me
अजीत भाई - वाह - क्या thought synchronisation निकला - नग की पोस्ट भी नगीना है - और देखा कि आपने "अस्ति" का दृष्टांत दे दिया - एक सुझाव है "कश्चित्" और "वाग्विशेष" क लिए रास्ता है - इस पोस्ट में - क्या कहते हैं ? - सस्नेह - मनीष
पुनश्च - दिल्ली में भाग दौड़ काफी रही - मोबाइल सेव कर रखा है - दफ्तरी चोंचलों को इस हफ्ते सुलझा क बात करता हूँ
जोशिम
हमेशा की तरह जानकारी से भरपूर पोस्ट।नगाइच सरनेम तो पहली बार सुना।
आपका ब्लॉग हिंदी ब्लॉगजगत में खुद एक नगीना है!!
अजित जी ! किसी समय पर्वत चलते थे "वाल्मीकि रामायण" पढ़े ! (रावण और वेदवती वाला प्रसंग )
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