Tuesday, April 29, 2008

और शिवजी ने बनाई कम्पनी.. .[बकलमखुद-23]

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है।
ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश और मीनाक्षी धन्वन्तरि को पढ़ चुके हैं। इस बार मिलते हैं कोलकाता के शिवकुमार मिश्र से । शिवजी अपने निराले ब्लाग पर जो कुछ लिखते हैं वो अक्सर ब्लागजगत की सुर्खियों में आ जाता है। आइये मिलते हैं बकलमखुद के इस छठे पड़ाव और तेइसवें सोपान पर मिसिरजी से।

नौकरी से उचाट, खुद काम शुरु

शादी के बाद मैंने एक ही नौकरी की. नौकरी के दौरान शुरू के तीन-चार साल अपने काम के प्रति उत्साह रहा. स्वाभाविक बात है, 'नया धोबी साबुन जरा ज्यादा लगाता है.' लेकिन बाद में उत्साह कम होता गया. दिन भर में सारी चिंता केवल आफिस के बारे में रहती. काम का प्रेशर इतना रहता कि अपने बारे में सोचने का मौका मिलता ही नहीं था.ऊपर से मेरे कंधे पर मेरे डायरेक्टर साहब बैठ चुके थे. ठीक वैसे ही जैसे सिंदबाद जहाजी के कंधे पर एक बूढा बैठ गया था.साल २००१ में मैंने और मेरे मित्र सुदर्शन ने साथ में काम करने का प्लान बनाया. लेकिन आफिस की जिम्मेदारियां इतनी बढ़ गईं थीं कि वहाँ से निकलने का मौका ही नहीं मिलता था. करीब आठ साल नौकरी करने के बाद साल २००४ के अंत में नौकरी से तौबा कर ली. नवम्बर महीने के शुरू में मैंने नौकरी छोड़ दी. आफिस जाना पहले बंद किया और इस्तीफा बाद में दिया. जनवरी २००५ से कुछ मित्रों के साथ मिलकर एक कम्पनी बनाई.

सुदर्शन, विक्रम और रोशन

चूंकि साथ काम करने वाले मित्रों के विचार मिलते हैं, लिहाजा जीवन ठीक-ठाक चल रहा है. इन सालों में मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया मेरे बिजनेस पार्टनर विक्रम ने. विक्रम एस राजन ने. मुझसे करीब दस साल छोटा है विक्रम लेकिन उसका ज्ञान और किसी भी बात को अनलाईज करने की उसकी क्षमता गजब की है. सीए बनने के बाद वो हमारे साथ ही काम करता है. अभी तक बहुत कुछ सीखा विक्रम से. आगे भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. विक्रम आज की तारीख में मेरा साबसे बड़ा प्रेरणास्रोत है. मेरा दूसरा बिजनेस पार्टनर सुदर्शन है. हमदोनो ने एक ही सीए फर्म से अर्टिकिलशिप की थी. पूरे पन्द्रह सालों का साथ है हमारा. सुदर्शन सीए के विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ाता है. बहुत नाम है उसका अपने क्षेत्र में. सुदर्शन के लिए उसके स्टूडेंट्स ने ऑरकुट पर करीब पन्द्रह कम्यूनिटी बना रखी हैं. गजब का व्यक्तित्व है सुदर्शन का. जीवन में हर चीज के लिए एक मध्यमान तय कर लेना सुदर्शन को बहुत अच्छी तरह से आता है.हमारा तीसरा पार्टनर है रोशन. जब भी रोशन साथ रहता है तो जीवन में बड़ा चैन रहता है. उससे मिलकर मैं हमेशा खुश हो जाता हूँ. वैसे रोशन समझता है कि मैं मजाक कर रहा हूँ, लेकिन मैं जब भी रोशन को देखता हूँ, मेरे मुंह से बरबस ही निकल आता है; "आ गए राम." और ये बात मैं दिल से कहता हूँ. रोशन ऐसा है ही. विक्रम और रोशन एक साथ पढ़ते थे और सुदर्शन के स्टूडेंट्स थे. जब कभी मैं और सुदर्शन एक साथ होते हैं तो इस बात की चर्चा जरूर करते हैं कि हमलोग कभी विक्रम और रोशन के जैसे बन सकेंगे? शाम को आफिस से हमलोग अक्सर साथ ही घर जाते हैं. किसी भी बात पर चर्चा शुरू होती है तो उसमें हास्य की मिलावट का काम अपने आप शुरू हो जाता है. चूंकि हमलोग स्टॉक मार्केट ऑपरेशन्स से जुड़े हैं तो हर बात में स्टॉक मार्केट का उदाहरण अपने आप आ जाता है. हमलोग साथ रहते हैं तो जीवन से तनाव एकदम दूर रहता है.

दफ्तर से घर के बीच क्रिकेट

मारे लिए हर जगह हास्य पैदा कर लेने का काम बड़ा सरल हो गया है. कई बार ऐसा होता है कि हम सब आफिस से जल्दी निकल गए और घर जाते समय जैसे ही विक्टोरिया मेमोरियल के सामने वाले मैदान के पास पहुँचते हैं तो कार रोककर कार की डिक्की से बैट, बाल और स्टंप निकालकर एक-डेढ़ घंटा क्रिकेट खेल लेते हैं. सर्दियों में लगभग हर रविवार को क्रिकेट खेलते हैं. कार की डिक्की में बैट, बाल, स्टंप, पैड वगैरह का रहना आवश्यक है. क्रिकेट खेलते समय हम एक-दूसरे के ख़िलाफ़ 'स्लेजिंग' भी करते हैं. अगर सुदर्शन बालिंग कर रहा हो और मैं उसका कोई बाल नहीं खेल सकूं तो मेरे सामने तक आकर कहता है; "घर जाइये, टीवी पर क्रिकेट देखिये. देखने में ठीक लगता है, खेलने में नहीं." मेरे साथ सुदर्शन का बड़ा झमेला चलता रहता है. हमलोग अक्सर बहस करते हैं कि सचिन तेंदुलकर के बाद भारत का सबसे अच्छा बैट्समैन कौन है? मामला दो नामों पर जाकर रुकता है. शिव कुमार मिश्र और सुदर्शन अग्रवाल. फिर इस बात पर समझौता हो जाता है कि एक दिन इस समस्या के समाधान के लिए सचिन के पास जायेंगे. मैंने अभी तक सचिन के इतने बड़े-बड़े फैन देखे हैं लेकिन सुदर्शन से बड़ा नहीं देखा. अगर किसी मैच में सचिन सेंचुरी बना दें तो उस दिन सुदर्शन बाकायदा अपने स्टूडेंट्स को पार्टी देता है. उसकी ये 'फैनगीरी' वाली बात उसके स्टूडेंट्स को भी मालूम है. लिहाजा वे पार्टी की डिमांड कर डालते हैं.

हंसी मजाक और नई नई खुराफातें

जीवन में हास्य और व्यंग खोजने की जरूरत ही नहीं पड़ती. हास्य का 'उत्पादन' कैसे किया जाता है, ये बात हमारे आफिस या घर में आकर कोई भी देख सकता है. कल की ही बात लीजिये. घर में बैठे-बैठे टीवी पर समाचार देख रहे थे. न्यूज़ एंकर ने कहा; "हरभजन सिंह और श्रीसंत के इस झगड़े के बारे में आपको और जानकारी देंगे, एक छोटे से ब्रेक के बाद. आप कहीं मत जाईयेगा." मुंह से बरबस ही निकल आया; "कहाँ जायेंगे? बाहर बहुत गरमी है. आप निश्चिंत होकर जाइये, हम यहीं मिलेंगे." मेरी बात सुनकर पमिला हंसने लगी. हमलोग सबसे ज्यादा नक़ल करते हैं अमिताभ बच्चन साहब की. खासकर उनकी हर बात में वे जिस तरह से हिन्दी बोलते हैं और उनके बाबूजी का जिक्र आता है; "पूज्यनीय बाबूजी कहा करते थे", उसका खूब उपयोग होता है. जैसे अगर हम स्टॉक मार्केट के गिरने को लेकर बात कर रहे होते हैं तो अमिताभ बच्चन साहब की स्टाइल और आवाज में शुरू हो जाते हैं; "देखिये, प्रतिभूति में निवेश के बारे में हमें कोई ख़ास अनुभव तो है नहीं. वैसे भी पूज्यनीय बाबूजी कहा करते थे कि जिस बात की समझ नहीं हो, उसके बारे में किसी से सलाह ले लेनी चाहिए. अब हमें आजतक कोई सलाहकार तो मिला नहीं इसलिए हम अमर सिंह जी और अनिल अम्बानी जी से ही सलाह लेते रहते हैं." इस तरह की खुराफात लगातार होती रहती है.

कवि सम्मेलन, मुशायरा बजरिये वीडियो सीडी

नोरंजन का एक और साधन है कविता, और उर्दू के शेर. कुछ नीरज भइया की वजह से और कुछ हमारी अपनी 'करतूतों' की वजह से, हमलोगों के पास कवि सम्मेलनों और मुशायरों के ढेर सारी वीडियो सीडी है. इनमें से बहुत सारी हमारे लैपटॉप और कम्प्यूटर्स में है. जब कभी भी समय मिलता है तो मैं और सुदर्शन कवि सम्मेलनों और मुशायरों की सीडी देखते हैं. बहुत आनंद आता है. आनंद शायद इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि हमदोनों साथ रहते हैं.

13 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अरे, ये सीए वाली नौकरी और खुद की कंपनी का काम बीच में किरकट और कविसम्मेलन की सीडी देखना। ये लिखना शुरू करने का जिक्र तो कहीं है ही नहीं। पोस्ट वाकई कोई घोस्टराइटर तो नहीं लिखता।

PD said...

एक अंक और.. सोचता हूं आपका ये किस्सा कभी खत्म ही ना हो..

Pankaj Oudhia said...

बन्दूक से 14 साल की उम्र मे आम तोडने वाला किसी की नौकरी कैसे कर सकता है? अच्छा हुआ जो आपने इससे तौबा कर ली। पर अब उस डायरेक्टर महोदय को इस लेख की एक प्रति अवश्य भेज दीजियेगा। :)

Abhishek Ojha said...

जिंदगी जीयें तो ऐसी :-) काम के बीच में भी इतना वक्त निकाल लेना... कोई आपसे सीखे. आपकी हंसती खेलती जिंदगी यूं ही चलती रहे...

आपकी कहानी से कई बार अपने को जुडा हुआ पाया, इसलिए शायद कुछ ज्यादा अच्छी लगी... पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर शहर पढने जाना, दोस्तों के नामों में परिवर्तन... और हाँ दोनाली भी :-)

Gyan Dutt Pandey said...

विक्रम सुन्दरराजन के बारे में शिव ने एक बार तुलना में कहा था कि वह जवान नारायण मूर्ति सा बनेगा। तब से मुझे विक्रम के प्रति बहुत जिज्ञासा है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ये प्रविष्टी भी शानदार रही - शिव भाई साहब की जीवन यात्रा का सफरनामा सही गति से आगे बढता रहे
शुभकामना सहीत
- लावण्या

Dr. Chandra Kumar Jain said...

मिसिर जी,
जिसे विक्रम का पराक्रम
सुदर्शन का सुदर्शन व्यक्तित्व
और इत्मीनान का रोशन अहसास
एक साथ मिल जाए
उसे सहज जीवन शिव-पथ
मिल ही जाता है !
=====================
आप उस पर चल पड़े
और देखिए किस तरह रच गई
हँसी-खुशी की ज़िंदगी.

आपको पढ़ना आनंदकारी है.
शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन

Udan Tashtari said...

एक कड़ी बकाया सी लगती है...लिखिये.

Singhai Raj Kumar Jain said...

ये क्रिकेट के बारे मे अपनी राय बदल डालिये, हम अभि केवल इसलिये नही खेलते ये खेल की कही सचिन दो नंबर पर ना आ जाये, जिस दिन वो सन्यास लेगा, आप हमे एक नंबर पर ही पायेगे.:)

VIMAL VERMA said...

उम्र में अपने से छोटे से प्रेरणा लेने की बात बहुत अच्छी लगी...सबसे अच्छी बात की आपके आस पास ऐसे लोग हो,जिनसे आप सीखते भी हैं ....सुखद है...अच्छा लगा आपके बारे में जानना....

नीरज गोस्वामी said...

जैसे जैसे शिव की कथा पढ़ रहा हूँ वैसे वैसे इश्वर से प्रार्थना करता जाता हूँ की वो सबके जीवन में शिव सा बचपन, साथी और काम लाये. ऐसे अच्छे व्यक्ति का शेष जीवन भी इसी तरह हर्षो उल्लास में गुज़रे ये ही कामना है.
ठहाके लगा कर भईया बोलने वाला इंसान जैसा मुझे मिला है, हर किसी को नहीं मिलता.
नीरज

Arun Arora said...

अरे आपने बताया ही नही की आपको शेरो का शौक है लीजीये अभी झेलिये
यहा से वहा तक
वहा से यहा तक
खुदा ही खुदा है
जहा नही खुदा है
वहा खुदाई चल रही है :)

अनूप शुक्ल said...

बेहतरीन पोस्ट! अब अफ़सोस हो रहा है कि कलकत्ता में भेटाये काहे नहीं। दोस्ती बनी रहे, इतवारी क्रिकेट चलता रहे। सचिन के शतक पर पार्टियां होती हैं और ये किस्से भी चलते रहें। :)

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