Tuesday, April 29, 2008

पतनशील होना लाज़िमी है...


देवनागरी के वर्ण में निहित वायु के अर्थ में मूलतः गति का भाव ही प्रमुख है। इसीलिए इससे पवन शब्द बना। से बने पतः या पत् में एक तरफ जहां उड़ना, जाना , उंचाई पर पहुंचना जैसे अर्थ हैं वहीं दूसरी तरफ गिरना, नीचे आना, उतरना, निकट आना जैसे भाव भी इसमें निहित हैं। गौर करें कि उड़ान भरना और फिर नीचे उतरना दोनों ही गतिवाचक क्रियाएं हैं इसलिए में मूल रूप से गति या प्रवाह का भाव ही महत्वपूर्ण नज़र आता है।
आमतौर पर चारित्रिक अधोगति के अर्थ में हिन्दी में पतन, पतनशील, पतित, पतिता जैसे शब्द खूब इस्तेमाल होते हैं। ये सब शब्द पत् में समाए नीचे उतरने , गिरने आदि भावों के आधार पर बने हैं। पत् से ही बना पत्र यानी पत्ता भी हवा में गति करता है फिर गिरता है। यानी पत्ते में उड़ने, उठने,गति करने और गिरने की सब क्रियाएं शामिल हैं। जाहिर सी बात है कि हिन्दी में प्रचलित हवा में उड़ना, ऊंचे उड़ना जैसे मुहावरे कहीं न कहीं चेतावनी या व्यंग्य के रूप में ही इस्तेमाल किए जाते हैं जिनमें शायद यह भाव भी छुपा है कि ऊंचे उड़ने के बाद गिरने की भी आशंका होती है अर्थात पतन हो सकता है।
पत् से बने पत्र में जहां फूल की पत्ती , वृक्ष की पत्ती का अर्थ है वहीं इसमें चिट्ठी अथवा खत वाले पत्र का भाव भी शामिल हो गया । पत्र या यानी दस्तावेज, पांडुलिपि आदि। आमतौर पर कह दिया जाता है कि पुराने ज़माने में लिखने का काम काग़ज़ की जगह पत्तों पर किया जाता था । मगर शायद ही कहीं ऐसा किया जाता हो । अलबत्ता प्राचीनकाल में वृक्षों की बहुत पतली छाल पर ज़रूर लिखा जाता था और उसे ही पत्र कहा जाता था जैसे ताड़पत्र , भोजपत्र आदि। यह नामकरण इसलिए नहीं हुआ क्योंकि वे पत्ते थे बल्कि उनमें पत्तों जैसा गुण था अर्थात सचमुच सामान्य वृक्षों की छाल जैसी रुक्षता और मोटापन उनमें नहीं था। जो पत्ते की तरह से पतले थे। अब पतला शब्द की व्युत्पत्ति के पीछे भी इस पत्र को तलाशा जा सकता है। धातु की पतली चादर के लिए भी पतरा शब्द इसी मूल का है।
विवाह आदि में सहभोज के दौरान हिन्दुस्तान में आज भी दोना-पत्तल पर खाने का रिवाज़ है । थालीनुमा आकृति की पत्तल के लिए यह शब्द पत्र से ही बना है क्योंकि दोना और पत्तल दोनो हीं पत्तों से बनाए जाते हैं। इनका शुद्ध रूप हुआ पत्र+अवलि=पत्रावलि । इससे ही बना पत्तल। दोना बना है संस्कृत के द्रोणिः शब्द से जिसका मतलब होता है पानी का डोल, चिलमची, कुप्पी आदि। दो पहाड़ों के बीच की भूमि जहां पानी एकत्रित हो जाता है द्रोणिका ही कहलाती है। इससे जाहिर होता है कि किसी ज़माने में द्रोण यानी दोने में दाल या सब्जी नहीं बल्कि पानी भर कर दिया जाता था।

10 कमेंट्स:

Pankaj Oudhia said...

'आमतौर पर कह दिया जाता है कि पुराने ज़माने में लिखने का काम काग़ज़ की जगह पत्तों पर किया जाता था । मगर शायद ही कहीं ऐसा किया जाता हो ।'

इन पक्तियो से असहमति है। इस कडी पर जाये तो आपको पाम की पत्तियो पर लिखने के विषय मे पता चलेगा।
http://www.sarasvatimahallibrary.tn.nic.in/library/Art_collection/Interesting_Manuscripts/interesting_manuscripts.html

पत्रो पर लेखन के ढेरो सन्दर्भ मिलते है।

द्रोण से मुझे द्रोणपुष्पी नामक वनस्पति याद आ रही है जिसकी साग के बारे मे यह मान्यता है कि इसे खाने से शरीर मे से एक गन्ध आने लगती है जिससे सर्प दूर रहते है।

sanjay patel said...

हे पवन देव ...आपने तो जाले हेड़ दिये.
(मालवा में इस्तेमाल की जाने वाली लोकोक्ति..मानी:मुग़ालता दूर कर दिया) हम बहुत कुछ जानते हैं शब्दों के बारे में...हमारे लेखन उस्ताद अजातशत्रुजी कहते हैं कि सारे शब्दों की खोज दर-असल अपनी खोज है ..जहाँ हमें अंतत: शून्य बन जाना है ...अजित भाई शब्द तो शायद बनें रहें ...हम न रहेंगे....क्योंकि हम सब ने बतियाना छोड़ दिया है...कहाँ गई वह ओटलों (ओटला मालवी में घर के आगे वाला खुला दालान...इसे भी तलाशिये न !)को गप्पा-गोष्ठी..कहाँ गए वे लोग जो इंसानी तक़ाज़ों की पावती देते थे.

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर जानकारी। संजय पटेल जी की बात पढ़कर लगा कि सही में हम लोग गप्प-गोष्ठी से कितने दूर हो गये हैं।

सुजाता said...

बेहतरीन जानकारियाँ !आपके ब्लॉग पर आके कभी खाली हाथ नही लौटते ।
धन्यवाद !

अजित वडनेरकर said...

@पंकज अवधिया-पंकज भाई , शुक्रिया जानकारी के लिए । मैं सचमुच आभारी हूं।

@संजय पटेल, अनूपशुक्ल-आप दोनों सही कह रहे हैं। अब वो ओटलों की गप्पा-गोष्ठी,देर रात तक तारों को निहारते हुए उन्हें चीह्नने की कोशिशें, आसपास के पेड़-पौधों, फूल पत्तियों के नाम जानने की जिज्ञासा- सबकुछ खत्म हो गया। शब्दकोश तक देखना छोड़ दिया । हम लोग एक खेल खेलते थे-नाम, वस्तु, शहर और सिनेमा । इसमें एक ही वर्ण से जुडे इन तमाम बिंदुओं के नाम लिखते थे। बहुत कुछ नई जानकारियां साझा होती थीं इस खेल से ।

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

ये सब शब्द पत् में समाए नीचे उतरने , गिरने आदि भावों के आधार पर बने हैं।

पति ये शब्द भी क्या इसी कैटेगरी में आता है।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

पतनशील होना यानी गिरना लाज़िमी है !
==========================
अजीत जी,
बेहद अर्थपूर्ण लगी ये बात.

देखिए न -
गिरना ही तो उठना साथी !
देख,क़लम से स्याही गिरती
सधे हुए अक्षर उठ जाते
बादल से पानी गिरता रे
धरती पर पौधे उग जाते
गिरने ऑर ही जाग ने सीखा
गिर -गिर कर फिर उठना साथी
गिरना ही तो उठना साथी !
====================
आभार
डा.चंद्रकुमार जैन

Dr. Chandra Kumar Jain said...

पतनशील होना यानी गिरना लाज़िमी है !
==========================
अजीत जी,
बेहद अर्थपूर्ण लगी ये बात.

देखिए न -
गिरना ही तो उठना साथी !
देख,क़लम से स्याही गिरती
सधे हुए अक्षर उठ जाते
बादल से पानी गिरता रे
धरती पर पौधे उग जाते
गिरने ही से जग ने सीखा
गिर -गिर कर फिर उठना साथी
गिरना ही तो उठना साथी !
(संशोधित)
====================
आभार
डा.चंद्रकुमार जैन

Asha Joglekar said...

अजित जी बहुत ही रोचक जानकारी । पत सो गिरने का बोध तो होता है पर ऊपर उठने या उडने वाले शब्द नही दिये आपने । पत्ते पर पत्र लिखने की बात से याद आय़ा शकुंतला का दुश्यन्त को कमल पत्र पर नाखूम से प्रेम पत्र लिखना । डॉ. चंद्र कुमार जी की कविता बहुत सुंदर लगी ।

Baljit Basi said...

'पत्' से बना अंग्रेजी 'फैदर'(feather) भी इस का सुजाति शब्द है. पत्ता का मूल अर्थ उड़ने का माध्यम अर्थात पक्षी का पंख है. पंजाबी 'खंब' (पंख) इस का सुजाति शब्द है. खम्ब के अर्थ का पत्ते के अर्थ में पलटना काव्यमई अर्थ विकास की उदाहरन है . आकार और संरचना के पक्ष से दरख़्त का पत्ता और खम्ब सामान हैं. 'पंखडी' के रूप में इसका और आगे विकास है.

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