संस्कृत-हिन्दी एक शब्द है मोह यानी किसी पर मुग्ध होना, जड़ होना, घबरा जाना या गलती करना आदि । इसके अलावा अज्ञान, भ्रान्ति, अविद्या , भूल होना जैसे अर्थ भी हैं । गौरतलब है कि मोह और मुग्ध ये दोनों शब्द ही संस्कृत की मुह् धातु से बने हैं जिसमें ऊपर लिखे तमाम अर्थ निहित हैं और इससे स्पष्ट है कि विवेक , बुद्धि और ज्ञान के विपरीत अर्थ वाले भाव इनमें समाहित हैं । दिलचस्प बात यह कि उपरोक्त सभी भाव मूर्ख शब्द में समा गए हैं क्योंकि यह लफ्ज़ भी इसी धातु से निकला है जिसका अर्थ हुआ नासमझ, अज्ञानी और बेवकूफ । मुह् धातु में मूलत: चेतना पर किसी के प्रभाव में आकर ज्ञान अथवा बुद्धि पर परदा पड़ जाने अथवा ठगे से रह जाने, जड़ हो जाने, मूढ़ बन जाने का भाव है। यही बात मोह अथवा मुग्ध में हैं । नकारात्मक छाप के साथ मूर्ख शब्द भी यही कहता नज़र आता है । मूर्ख वह जो कुछ न समझे, जड़ हो । इसीलिए मूर्ख के साथ कई बार जड़बुद्धि , जड़मूर्ख या वज्रमूर्ख शब्द का भी प्रयोग किया जाता है । अपनी सुंदरता के लिए पुराणों में मशहूर कामदेव का एक नाम है मुहिर पर मजे़दार बात यह भी कि इसका एक अन्य अर्थ बुद्धू और मूर्ख भी है। श्रीकृष्ण का मोहन नाम भी इसी से निकला है जाहिर है उनकी मोहिनी के आगे सब ठगे से रह जाते थे । इसके अलावा मुग्धा, मोहिनी,मोहित,मोहितजैसे नाम इसी से चले हैं।
बुध् धातु से बने बोध, बुद्धिमान, बुद्ध, संबोधन, संबोधि, सम्बुद्ध और समझ जैसे शब्दों के बारे मे सफर के पिछले पड़ाव में पहले बताया जा चुका है और यह भी कि
इन तमाम शब्दों में जानकारी व ज्ञान का भाव है मगर मूर्ख के अर्थ में बुद्धू भी इस धातु से निकला है। वजह वही है मूर्खता में जड़ता, स्थिरता जैसे भाव का समा जाना । बुद्ध की बोधिमुद्रा ने उन्हे बुद्ध बनाया । कालांतर में जड़ व्यक्तियों के लिए कहा जाने लगा -क्या बुद्ध की तरह बैठे हो। बाद में यह उक्ति मूर्ख व्यक्ति के लिए रूढ़ हो
गई । मूर्ख के लिए हिन्दी में आमतौर पर बेवकूफ शब्द का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। यह शब्द मूलत: उर्दू का है जहां यह अरबी से आया । अपने शुद्ध रूप में अरबी-उर्दू में यह लफ्ज़ बेवुकूफ है मगर हिन्दी में बेवकूफ के तौर प्रचलित है। अरबी का एक लफ्ज़ है वुकूफ यानी ज्ञान, जानकारी, परिचय । इसी से बना है वाकिफ यानी जानकार, परिचित। यह भी हिन्दी में खूब इस्तेमाल होता है। वुकूफ में बे उपसर्ग लगने से बना बेवुकूफ यानी अज्ञानी-मूर्ख । फारसी में एक लफ्ज है कूफ जिसका मतलब है मूर्ख , उल्लू। कई लोग बेवकूफ को बेकूफ कहने के आदी हैं । कूफ के आगे बे लगाने से तो मतलब बनता है जो मूर्ख न हो । अब इस बे का इस्तेमाल करने वालों को क्या कहा जाए ? [पुनर्प्रस्तुति]
Wednesday, April 2, 2008
मुग्ध हुआ मूर्ख !
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:53 PM
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11 कमेंट्स:
मजेदार, यदि कोई मुझे बेवकूफ कहे तो उसे पूछ लेना बेहतर है कि बेवकूफ या बेकूफ कहा, मजेदार
वास्तव में मूर्खता में एक सम्मोहन तो होता ही है!
क्या इस जानकारी पर मुग्ध होकर कोई बेवकूफ तो नहीं बन रहा या फिर बेकूफ हो रहा है।
लेकिन एक प्रश्न है हमारे हिन्दी के टीचर मूढ़ का इस्तेमाल भी करते थे मूर्ख के स्थान पर उसका अर्थ क्या है
बड़िया जानकारी
कल हम किसी वुकूफ के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते थे यानी रहना चाहते थे बेवुकूफ। मगर कल रात तक भी नई नई बातों का वुकूफ करना पड़ा। लगता है अभी दो-एक दिन और ऐसा ही चलता रहेगा।
मूर्ख दिवस के ठीक दूसरे दिन
मूर्ख-मुग्धता की डटकर खबर ली आपने !
ऊपर नीलिमा जी ने मूढ़ शब्द की चर्चा की है .
प्रसंगवश बताना चाहूँगा कि अथर्ववेद में
मोह को मूढ़ भाव ही माना गया है.
वह आसक्ति भी कहलाता है.
उपनिषदों में मोह को शत्रु और
महाभारत में धर्म-मूढ़ता को मोह कहा गया है.
अजित जी, इस पोस्ट पर ज़्यादा
मुग्ध होना भी रिस्क-फ्री नही है !!!
इसलिए ........ बस इतना ही.
मुह् धातु को पढ़कर याद आ गया कि थोड़ी बहुत अरबी भाषा जो बोल पाते थे..उसमें एक जुमला था... 'माफी मुख' शायद मुह रहा हो... मतलब कि मूर्ख. बहुत रोचक पोस्ट.
बहुत अच्छा है, इसी वुकूफ़ से वाकिफ़ और वाक्फ़ियत जैसे शब्द भी बने हैं.
वाह, हम भी कितने बड़े बेकूफ़ हैं। अब पता चला। :)
बरसों पहले एक मास्टर जी बात बात में बेवुकूफ बोलते थे तो हम बेवकूफों की तरह यह सोच कर मन ही मन हंसते थे कि बेवकूफ भी सही नहीं बोलते हैं .... अब समझ में आ गया कि वो सही बोलते थे हम ही बेवुकूफ थे. आपने बता दिया इतने सालों बाद.
अब यह भी बताएं कि वुकूफ माने जानकारी है तो बावुकूफ भी कोई शब्द नहीं होता क्या? बस यूं ही मन में एक बेवुकूफाना सा ख्याल आया तो पूछने की बेवकूफी कर रहे हैं. :)
बेकूफ की बातों पर एक बेवकूफ ने ए'तबार कर लिया और उसके जैसा बनने का मंसूबा पाल लिया.
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