Saturday, May 3, 2008

अफ़लातून की अब तक अनकही [बकलमखुद-26]

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं।
शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि और शिवकुमार मिश्र को पढ़ चुके हैं। इस बार मिलते हैं अफ़लातून से । अफ़लातूनजी जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं, अध्येता हैं। वे महात्मा गांधी के निजी सचिव रहे महादेवभाई देसाई के पौत्र है। यह तथ्य सिर्फ उनके परिवेश और संस्कारों की जानकारी के लिए है। बनारस में रचे बसे हैं मगर विरासत में अपने पूरे कुनबे में समूचा हिन्दुस्तान समेट रखा है। ब्लाग दुनिया की वे नामचीन हस्ती हैं और एक साथ चार ब्लाग Anti MNC Forum शैशव समाजवादी जनपरिषद और यही है वो जगह भी चलाते हैं। आइये जानते हैं उनके बारे में कुछ अनकही बातें जो उन्होनें हम सबके लिए लिख भेजी हैं बकलमखुद के इस सातवें पड़ाव के लिए ।

कृष्ण कन्हैया बनने में जोखिम !

मैंएक शहर के नर्सिंग होम में पैदा हुआ था । वडोदरा शहर , जहाँ मेरे पिताजी भूदान - आन्दोलन के गुजराती पाक्षिक 'भूमिपुत्र' का सम्पादन करते थे । नर्सिंग होम में पैदा होना शायद मेरी एक शुरुआती असुरक्षा की वजह थी । भाई - बहन चिढ़ाते थे , ' अस्पताल और नर्सिंग होम में पैदा बच्चे बदल भी जाया करते हैं । ' इन दोनों ने किसी हिन्दी फिल्म में देखा रहा होगा । बहरहाल , यह सुन कर रोना शुरु कर देना भी याद है । फिर मेरी बा प्यार से , हँसते हुए समझाती थी , ' उस दिन पैदा हुए सात आठ बच्चों में बाकी सभी लड़कियाँ थीं और उनके बीच एक ही कृष्ण - कन्हैया था ।'
शुरुआती असुरक्षा और उसे दूर करने के लिए बा द्वारा दी गयी शुरुआती सूचना दोनों जोखिम भरे थे !

जब हनुमान की तरह सीना चीरना चाहा !

काशी में दुर्गा कुण्ड के निकट मानस-मन्दिर है । सम्पूर्ण रामचरितमानस उसकी दीवारों पर अंकित है , मय चित्र । सावन में दुर्गा कुण्ड में मेला लगता है । मानस- मन्दिर में ,सावन में कई खिलौने लगाए जाते थे । मन्दिर में प्रवेश करते वक्त द्वारपाल की तरह तैनात हनुमानजी ! लाल-निगोटा पहने दोनों हाथों से सीना चीर कर भीतर छोटे-से सिंहासन पर विरजमान राम और सीता की नुमाइश कराते हुए । सीना चीरते वक्त कहते , 'हे राम' ।
बा कहती थी कि यह लाल निगोटा तो उत्तर प्रदेश का झण्डा बन सकता है । इस सुझाव की वजह गंगा-स्नान से लाल -अंगोछा पहने वे मर्द थे जो लाल निगोटे के ऊपरी दो छोरों को दोनों हाथों में थामे और दुमछल्ला हवा में पताका की भाँति लहराते हुए । मजे की बात यह थी कि मानस मन्दिर में सीना चीरने वाले दो बन्दर द्वारपाल की तरह खड़े रहते थे । दो हनुमान ? यह गले नहीं उतरता ! सोचता कि एक शायद सुग्रीव हों । बहुत दिनों बाद वह किस्सा सुना जिसमें एक बड़े संग्रहालय के पहले तल्ले पर गाइड 'सिकन्दर की खोपड़ी' दिखाने के बाद जब गाइड तीसरे तल्ले पर पुन: 'सिकन्दर की खोपड़ी दिखाता है । लोगों के चकराने पर राज की बात बताता है , ' वह तो बचपन की खोपड़ी थी !' खैर , मानस मन्दिर के इस खिलौने और हनुमानजी के किस्से से प्रभावित हो कर मैंने सोचा कि हमारे सीनी में क्या है , यह पता किया जाए । दोनों हाथों से नाखून छाती में गड़ाए । काफ़ी मशक्कत के बाद दो लाल बिन्दु उभरे । दोस्त मेरे घर दौड़े गए । फिर कमर मुड़ी पीस कर लगायी गयी । ओड़िसा में इसे विशल्यकरणी कहते हैं ।

गुजरात से काशी आ बसना

मेरा परिवार जब गुजरात से काशी आ बसा तब मैं दस माह का था । उस परिसर में विभिन्न प्रान्तों से युवक -युवतियाँ प्रशिक्षण के लिए आते थे । ये लोग मुझसे अपने - अपने सूबे की जुबान बोलवाने की फिराक में रहते थे । बा को भय था कि इस चक्कर में कहीं भाषा सीखने में विलम्ब न हो । बहरहाल , सुना है कि जो अलफ़ाज़ मैं पहले पहल बोलना सीखा उनमें 'गंगा' भी था । नानी बंगाली और नाना ओडिया थे । तब बनारस से उड़ीसा के लिए सीधी गाड़ी नहीं थी । हावड़ा में गाड़ी बदलनी पड़ती थी । कोलकाता में कुछ मामा-मौसी लोग भी थे और दादूजान ( माँ के मामूजान) । कभी कदाच इनके घर भी जाना होता । ऐसे ही एक बार उड़ीसा जाते वक्त हावड़ा के पुल से भागीरथी को देख कर जब मैं बोला , " गंगा " तब माताजी पुत्र की काबीलियत पर गदगद हो गयीं ।फिर जब पहुँचे कटक शहर के थोरिया साही मोहल्ले स्थित भूदान-ऑफ़िस । इस कार्यालय के सामने से एक बदबूदार नाला बहता है । उस नाले को भी देख कर मैं बोला , " गंगा " ।

कोलकाता की मीठी यादें

कोलकाता के प्रति बचपन से ही बहुत आकर्षण था । बा के बड़े मामा कोलकाता के अलीपुर स्थित चिड़ियाघर के निदेशक रह चुके थे ।
उनके साथ चिड़ियाखाना जाना विशेष अनुभव होता था । चिड़ियाखाने के कर्मचारी तो उनका सम्मान करते ही थे , कई परिन्दों से भी उनका विशेष नाता था । रोज दिखने वाली मैना , जब दादू जान से बात करने लगती तो विशिष्ट हो जाती । भेड़ के मेमनों को दूध पिलाना भी याद है । उनके दूध पीने के वक्त पहुँचे बच्चे बोतल से दूध पिला सकते थे । दादू जान विश्वविख्यात पक्षी विशेषज्ञ सलीम अली के मित्र थे । Birds of Burma नामक किताब उन्होंने सलीम अली के सह लेखक के रूप में लिखी थी । बचपन में कोलकाता का एक आकर्षण 'अबन महल' था - अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के नाम पर बना ' चिल्ड्रेन्स लिटिल थियेटर '। इस थियेटर में देखे दो कार्यक्रम याद हैं । सत्यजीत राय द्वारा निर्देशित कठपुतली नाटक 'अलादीन का चिराग' और रवीन्द्रनाथ ठाकुर का प्रसिद्ध बाल-गीति-नाट्य 'ताशेर देश'। १९७७ में कोलकाता स्थित भारतीय सांख्यिकी संस्थान में दाखिला मिला तब साल भर कोलकाता रहा । आई.एस.आई के कर्मचारी संगठन द्वारा दिखायी जाने वाली फिल्मों के साथ उन पर परिचर्चा भी होती थी । परिचर्चा में मृणाल सेन और उत्पल दत्त जैसी हस्तियाँ मौजूद रहतीं । [चित्र- पिता की गोद में]

और ज़माना समझ आने लगा कुछ कुछ

ड़ी बहन संघमित्रा ने कोलकाता के नीलरतन सरकार मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की तब भी इस शहर में आना होता था । उस कॉलेज की दीवालों पर उन दिनों विशिष्ट कैप लगाए माओ-त्से-तुंग के स्टेन्सिल से बने चित्र रहते और " चीनेर चैरमैन - आमादेर चैरमैन " तथा " तोमार बाड़ी - आमार बाड़ी,नक्सलबाड़ी नक्सलबाड़ी' जैसे नारे लिखे होते थे । इन्हीं दिनों दादूजान के जादबपुर स्थित घर की खिड़की से बमबाजी देखी थी और उसके बाद वहाँ पड़ी किसी तरुण की लाश । ( पता नहीं वह वर्ग शत्रु था या नहीं ) कोलकाता पढ़ने गया तब वहाँ बोन हुगली मोहल्ले की एक गली दिखायी गयी थी जिसमें माकपा द्वारा सैंकड़ों मा.ले. कार्यकर्ताओं की हत्या कराई गयी थी। औपचारिक स्कूल की शुरुआत हुई उससे पहले ही बा ने अखबार पढ़वाना शुरु करवा दिया था । परिवार में गुजराती , ओड़िया और बांग्ला बोली जाती - जिस तरफ़ के रिश्तेदार मौजूद होते उस हिसाब से । पूरा हिन्दी वाला सिर्फ़ मैं था ।

राजनीतिक जीवन की शुरूआत

किसी समय उत्तर प्रदेश में साइकिल चलाने पर टिक्स देना पड़ता था । नगर पालिका इस काम के लिए ठेका देती थी । ठेकेदार बिना टीन का निर्द्घारित टोकन दिए एक कच्ची रसीद टिका देता था जिसे शहर भर के नम्बर जाँचने वाले मान्य करते थे । मैं दरजा छ: में था जब इस भ्रष्टाचार का शिकार बना । बा ने समझाया कि यह काम कैसे चोरी है । इस प्रकरण पर मैंने 'जनवार्ता' नामक दैनिक के अखबार के सम्पादक के नाम पत्र लिखा । वह पत्र सम्पादकीय टिप्पणी के साथ छपा । श्यामा प्रसाद 'प्रदीप' अखबार के सम्पादक थे । प्रदीपजी आपात्काल पर्यन्त जेल रहे । १९७७ में विधान परिषद के सदस्य चुने गये ।
१९७४ के युवा आन्दोलन से राजनैतिक जीवन की शुरुआत हुई । पोस्टर लगाना , आन्दोलन का साहित्य बेचना , नारे लगाना शुरु हुआ । मैं जिस स्कूल में पढ़ता था उसकी फीस ३० रुपये मासिक थी और मेरे पिताजी को प्रतिमाह तीन सौ रुपये मिलते थे । अच्युत पटवर्धन की पहल; पर हमें साल में मात्र चार माह की फीस देनी पड़ती । शहर के प्राइमरी स्कूल के बच्चों के साथ मेरे स्कूल पर भी प्रदर्शन हुआ - ' राष्ट्रपति का लड़का हो या चपरासी की हो संतान , सबकी शिक्षा एक समान ' इस नारे के साथ । प्रदर्शनकारियों में मोहन प्रकाश , राधेश्याम सिंह के अलावा मेरे बड़े भाई नचिकेता भी थे । नचिकेता ने उस प्रदर्शन में कहा था , ' यह शिक्षा व्यवस्था १०० मीटर की दौड़ की तरह है जिसमें सिर्फ़ प्रथम तीन स्थान पाने वालों को जीने का हक है , बाकी की गर्दन काट दी जाती है । ' [जारी]

आपकी चिट्ठियां

सफर की बीती सात कड़ियो-पतंग की परिंदों से होड़,शिवजी की ससुराल तो ऊटी में,पतनशील होना तो लाज़मी है,शिवजी ने बनाई कम्पनी, शिवजी उतर आए ब्लागगीरी पर, शिवकुमार मिश्र की ब्लाग यायावरी, अपने नरक का बंदोबस्त पर कई साथियों की टिप्पणियां मिलीं। नेटवर्क खराब रहने से हम उनका उल्लेख जल्दी नहीं कर पाए । इस इस बार एक साथ कर रहे हैं। नामों में गलती संभव है। सर्वश्री अनूप शुक्ल , काकेश , हर्षवर्धन, विजयशंकर चतुर्वेदी, ज्ञानदत्त पांडे, दिनेशराय द्विवेदी, प्रमोदसिंह, जेपी नारायण, प्रणव प्रियदर्शी, यूनुस, डॉ चंन्द्रकुमार जैन, अरूण, बोधिसत्व , संजीत त्रिपाठी, संजय बैंगाणी, पंकज अवधिया, अनिताकुमार ,आभा, घोस्ट बस्टर, कीर्तीश भट्ट, विमल वर्मा,इरफान, नीरज बधवार, दीपा पाठक , मीनाक्षी, संजय पटेल, ममता, लावण्या शाह, अरविंद मिश्र, नीरज रोहिल्ला और अभिषेक ओझासंजय, ज्ञानदत्त पांडेय, डॉ अमर कुमार, संजीत त्रिपाठी, मीनाक्षी, ममता , घोस्टबस्टर, अरविंद मिश्रा, आशा जोगलेकर , काकेश , समीर लाल, कंचनसिंह चौहान, मनीष , डॉ भावना, माला तैलंग, जोशिम, यूनुस, अफलातून ,विजयशंकर, विमल वर्मा, उन्मुक्त, पारुल और पंकज अवधिया,संजय पटेल, नीलिमा सुखीजा, और सुजाता । आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया । शब्दों के सफर में लगातार रौनक बनाए रखने में आप सबका योगदान है। आभार।

31 कमेंट्स:

मैथिली गुप्त said...

अफलातून जी के बारे में अधिक जानकर और भी अधिक अच्छा लग रहा है

आलोक said...

वास्तव में आँखें खोल देने वाली जानकारी।

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप सभी ब्लॉगर साथियों को जानने का शानदार मौका दे रहे हैं।

अनूप शुक्ल said...

पढ़ रहे हैं। याद कर रहे हैं कि आप कन्याऒं के बीच सबसे ज्यादा वोट पाते थे शायद! कन्हैया पैदा हुये थे न!

Udan Tashtari said...

पैदाईश पर बदल दिये जाते तो आज चोखेर बाली और नारी पर हल्ला मचाते नज़र आते..अच्छा ही हुआ कि नहीं बदले गये और जैसे हो, अच्छे हो के सिद्धांत पर आपको इस बकलमखुद पर अपने बारे में खुल कर कहने के लिये बधाई-आगे इन्तजार है.

एक बार पुनः अजीत भाई की नई तस्वीर के बावजूद एक सधुवादी जयकारा-जय हो जय हो!!!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अफलातून जी का शैशव विविधता का सागर सँगम सा लगा - ग़ँगा भी है, बाँग्ला , उडिया और गुजराती हिन्दी भी हैँ ! :)
बहुत रोचक ..आगे पढने का इँतज़ार रहेगा -
अजित भाई की जितनी सराहना की जाये ..कम है !

- लावण्या

Arun Arora said...

याद कर रहे हैं कि आप कन्याऒं के बीच सबसे ज्यादा वोट पाते थे शायद! कन्हैया पैदा हुये थे न!
लगते तो है नही हो तो पता नही ? लगता है भाभी जी का बकलम खुद पढना पदेगा उसी से इस बात पर रोशनी डल पायेगी :)

संजय बेंगाणी said...

जानकारी बढ़ी. एक अच्छा कार्य किया.

काकेश said...

मंत्र मुग्ध होकर सुन रहे है ..कन्हैया के कारनामे... जारी रहे.

Sanjeet Tripathi said...

वाह अफलातून जी हैं इस बार यहां,
खुशी हुई पढ़कर।

पढ़ रहा हूं।

अभी कुछ देर पहले ही अपने स्वर्गीय पिताजी की एक रिकार्डिंग सुन रहा था। उसमें सन 45 में गांधीजी के आश्रम का उल्लेख है,जब पिताजी आश्रम में थे और महादेव देसाई जी के पुत्र नारायण देसाई जी भी उनके साथ ही थे।खादी विद्यार्थी परिषद बनाए जाने का भी उल्लेख!

जल्द ही यह रिकार्डिंग डालता हूं अपने ब्लॉग पर!!

नीरज गोस्वामी said...

रोचक जानकारी..अगली कड़ी का इंतज़ार है.
नीरज

ghughutibasuti said...

बहुत रोचक जानकारी दी है । 'राष्ट्रपति का लड़का हो या चपरासी की हो संतान , सबकी शिक्षा एक समान ' नारे से व नचिकेता जी के कथन से सहमत हूँ । यदि स्कूली शिक्षा पर यह लागू हो जाता तो न जाने कितनी समस्याएँ हल हो जातीं ।
अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी ।
घुघूती बासूती

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

किस्तों में धीरे-धीरे पोल खुल रही है. अच्छा है. अजित जी चौकन्ना हो जाइए! अपन ने भी आज अपनी आत्मकथा का ५४०६वां पृष्ठ पूरा किया है. गिन-गिन के बदला लूंगा. हाहाहा!

चंद्रभूषण said...

क्या बात है! गंगा-प्रकरण सबसे मजेदार लगा। अभी तो दूसरी वाली ही ज्यादा बहती नजर आती है।

Anonymous said...

Suresh: Yisko Aatmashlagha seires ka naam do to achha rahega. Lekin yeh mere leye nayi baat anhin hai. Jab logon ke pas jyada arthapurna karne liye nahin hota hai to aisi sthiti men yahi niyatihoti hai yeh vyakti ke star se hokar, jati, samaj aur bhaogolik khando tak pahunch jati hai. Yitihas gawahi hai main koi nayi baat nahin kah raha hun. Nayi baate to gaal bajane walo ke liye chhod diya hai
Sent at 4:49 PM on Saturday

Dr. Chandra Kumar Jain said...

निराले व्यक्तित्वों के अंतरंग जीवन को
अतीत के सन्दर्भ और अपने समय की
धड़कनों के साथ जानना एक अनोखा अनुभव है.
================================
गंगा कहकर खुलने वाले लब ने जब हे राम कहा ,
नदिया-नार का भेद मिटाया दोनों को अभिराम कहा !
अपने सीने में छवि जिसने सीता राम निहारी हो ,
अफ़लातून जगत ने, माँ ने कृष्ण-कन्हैया-श्याम कहा !!
======================================
विरुद्धों का ऐसा सामंजस्य बहुत दुर्लभ है.
स्वागत इस आत्मकथ्य का .
शुभस्ति .... संस्तुति .....अजित जी.
शब्दों के सफ़र को जीवन की डगर से
एकाकार करने की यह अद्वितीय पहल
कहानी बन के जियेगी... !
आपका
डा.चंद्रकुमार जैन
=============

Anita kumar said...

अजीत जी एक बार फ़िर आप को धन्यवाद देना होगा कि आप ने हमारी जान पहचान एक और नामचीन ब्लोगर से करवा दी, जिनका हम बस नाम भर ही जानते थे पर आज उनके बारे में पढ़ कर लगा कि अरे हम ने इतना वक्त गवा दिया इन से मुलाकात करने में। बहुत अच्छा लगा अफ़्लातून जी के बारे में पढ़ना।

Unknown said...

अफ़लातूनजी के बचपन और परवरिश के बारे में जानना बहुत अच्छा लगा। आगे के सफर के बारे में जिज्ञासा है। बेहद दिलचस्प।

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

अफलातून जी का सफर पढ़ कर मजा आ रहा है , अगली कड़ी का इंतजार रहेगा।

अजीतजी नई फोटो बढ़िया है।

Ghost Buster said...

अच्छा लगा अफलातून जी के बारे में जानना. मगर ये समीर जी क्या कह रहे हैं हम समझ नहीं पाये. अगर बचपन में बदल जाते तो क्या जेंडर ही बदल जाता जो आज चोखेर बाली पर दिखते?

Rajesh Roshan said...

मुझे जिनको पढने में मजा आता है उनमे से एक हैं अफलातून जी और जब उन्ही के बारे में जानने की बारी हो तो ये तो और अच्छा है. पढ़कर बड़ा अच्छा लगा

Batangad said...

अब समझ में आया अफलातूनजी के आंदेलित स्वभाव की वजह। आगे की कड़ी का इंतजार बढ़ गया

VIMAL VERMA said...

भाई अजितजी,इस आभासी दुनिया के तमाम चरित्र को आप हम सबके सामने ला रहे हैं ये इस आभासी दुनिया के लिये एक उपलब्धि है....भाई अफ़लातून जी खूब जीया है जीवन आपने भी..अच्छा लग रहा है.....सीना चीर कर देखने वाला प्रसंग मस्त है भाई...आप लिखिये हम पढ़ रहे हैं

Nachiketa Desai said...

भाई वाह, मजा आ गया, बचपन की याद अपने छोटे भाई की कलम से ताजी कर के. लगे रहो अफ़लू. नेता जी तुम आगे बढो, हम तुम्हारे साथ हैं. वैसे मुझे अभी भी इस बात की शंका है कि तुम अस्पताल में बदल दिये गए थे. :D

rakhshanda said...

अफलातून जी का सफर पढ़ा,,बहुत अच्छा लगा..ख़ास कर कोलकाता से जुड़ी यादें...ये मेरा शहर रहा है सो उसकी यादें अपनी जैसी लगीं..आगे का इंतज़ार रहेगा...cangratulation

Anonymous said...

ब्लाग दुनिया में अफ़लातून जी का परिचय कराने के लिए धन्यवाद

Anonymous said...

ब्लाग दुनिया में अफ़लातून जी का परिचय कराने के लिए धन्यवाद

Priyankar said...

एक तरफ़ कृष्ण और दूसरी तरफ़ हनुमान -- बीच में अफ़लातून भाई !

गंगा-प्रकरण जोरदार रहा . हम बरसों से उसी 'अबनमहल' के पड़ोस में रह रहे हैं जहां आप बचपन में कार्यक्रम देखने आते थे .अब भी वहां कभी-कभी गतिविधिया होती हैं पर कुल मिला कर मामला ठंडा-सा है . जादवपुर जो कभी आपकी दुनिया में शामिल था, पिछले पन्द्रह साल से हमारी दुनिया है .

आप पूरे हिंदी वाले नहीं पूरे हिंद वाले हैं . यह कॉलम 'बकलमखुद'बहुत आत्मीय और रोचक हो उठा है .

Yunus Khan said...

गजब है भाई । हम आज एक एक करके सारी कडियां पढ़ रहे हैं ।

कंचन सिंह चौहान said...

priyankar ji se sahmat ho kar soch rahi hu.n ki kya behatarin combination hai krishna aur hanuman ka.:)

सम्पजन्य said...

आपसे बहुत कुछ सिखा ... धन्यवाद !!!

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