शक्कर के देशी रूप को आमतौर पर खांड़ के रूप में जाना जाता है। बेहद प्रचलित यह शब्द संस्कृत के खण्डः से बना है जिसका एक अर्थ है टुकड़ा, पिण्ड, ईख-गन्ना अथवा कच्ची चीनी ।
खंड या खांड़ आज करीब करीब सभी भारतीय भाषाओं मे इसी या इससे मिलते जुलते रूप में मौजूद है जैसे तमिल में कांटू । हालांकि तमिल ज़बान द्रविड़ भाषा परिवार से ताल्लुक रखती है। संस्कृत खंड से ही फारसी कंद बना। मावे से बनी मशहूर मिठाई कलाकंद में यही कंद नज़र आता है और गुलकंद में भी। गुलकंद और कलाकंद दोनो ही मिठाइयां भारत को अरब की देन है। गुलकंद मूलतः मिठास यानी शकर से सराबोर गुलाब की पत्तियां होती हैं जो ज़बान का ज़ायका बदलने के काम आती है। कलाकंद महीन दानेदार मावे से बनी बेहद नफ़ीस मिठाई है। असली कलाकंद की पहचान आचार्य चतुरसेन ने गोली उपन्यास में कुछ यूं बताई है कि कलाकंद की डली को अगर दीवार पर मारो तो वह हजारों दानों में बिखर जाए। भारत में अलवर का कलाकंद मशहूर है। वैसे ज्यादतर ब्रजवासी कलाकंद बनाने और खाने के शौकीन होते हैं।
बहरहाल बात कंद की हो रही थी। फारसी से अरबी में जाकर भी यह कंद ही रहा। अरबी से ये तमाम यूरोपीय ज़बानों में गया और कैंडी कहलाया अलबत्ता हिज्जे अलग अलग रहे मसलन फ्रेंच में candi तो अंग्रेजी में candy और इटालियन में cande. अंग्रेजी में केंडी बरास्ता फ्रेंच दाखिल हुई जिसका मतलब था खास तरीके से बनाई गई शक्कर की गोलियां। यूरोप केंडी शब्द कब आया कहना मुश्किल है मगर अंग्रेजी में करीब चौदहवीं सदी में यह लफ्ज दाखिल हुआ। खास बात यह कि उन्नीसवी सदी के आसपास संस्कृत का खण्ड , कैंडी बनकर भारत लौटा और हिन्दी में दाखिल हो गया। यह अलग बात है कि इस्लाम के आगमन के साथ ही कंद के रूप में इसकी अपने वतन में सदियों पहले ही आमद हो चुकी थी। खण्ड का अर्थ विस्तार इतना हुआ कि आइस्क्रीम के एक प्रकार को आइस कैंडी ही कहने लगे हैं। याद करें बचपन के दिनों को जब गली-मोहल्ले में बर्फ का रंगीन गोला बिकता था। यही तो है आइस कैंडी । किस्सा यह कि पूरे पश्चिमी एशिया और समूचे यूरोप का चक्कर लगाने और कई रूप बदलने के बावजूद इसकी मिठास बरकरार रही।
Saturday, May 10, 2008
मिठास के कई रूप, खंड-कंद-कैंडी
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:45 AM
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11 कमेंट्स:
ऐसी मुँह में पानी लाने वाली पोस्ट न लिखा करें अजीत भाई.मुझ जैसा निशाचर आपकी पोस्ट पढ़े या किचन में जाकर चुपके से मिठाई खाने जाए (चुपके से इसलिये कि आपकी भाभी बहुत कैलोरी कांश्यस है सो कोटा पूरा होने पर अतिरिक्त मीठा ...असंभव)आमपाक भी एक तरह से कलाकंद का भाईबंद है और यहाँ इन्दौर में मिठाई की पेढ़ी बाबूसेठ पेड़ेवाले के यहाँ पारम्परिक तरह से पीतल की कलाई की हुई भगोनों में इलायची की लज़्ज़त से बना आमपाक खाना एक अनुभव है. आप कहेंगे कैसा ज़ालिम दोस्त है शब्द की बात थी ये तो स्वाद में ही घुसा चला जा रहा है...क्या करूं ...बड़ा मीठा विषय है न ये.
मिठास कुछ ज्यादा ही हो गई है अजीत जी.. अब थोड़ा ठंडा(मतलब कोकाकोला) भी साथ में तो मज़ा आ जाये..:-)
कामोद जी ने कहा है कि मिठास ज्यादा हो गई है....लेकिन दुनिया में फैली इतनी ज़्यादा कडुवाहट को काउंटर करने के लिये क्या बस इतनी मिठास पर्याप्त है....नहीं ना, तो फिर आगे भी ऐसे ही मीठी पोस्टों रूपी मिशरी का प्रसाद बांटते रहियेगा। आज संसार को मिठास की ही सब से ज़्यादा ज़रूरत है।
खंड,खांड और कंद के बहाने बहुत मिठास बखेरी है। पर खंड और कंद के अन्य अर्थों से अन्य अनेक शाखाएं निकलती हैं। उन के सफर की भी अपेक्षा है।
कूल-कूल पोस्ट
और स्वीट पेशकश !
बातें हैं खंड की
अखंड है इनमें रस !!
गुल है,गुलकंद है और
कंद की कला भी है !
कैंडी ने बस कहें क्या
कर दिया है बेबस !!
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सफ़र की गर्मी और गर्मी के सफ़र का
शीतल-सुखद पड़ाव !
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धन्यवाद अजित जी
आज तो कैंडी का मज़ा लेना ही पड़ेगा >>>>!!!
आपका
डा.चंद्रकुमार जैन
हमेशा की तरह जानकारी से भरपूर ।एक और प्राकृतिक केन्डी है शकरकंद । और वह जो कंद मूल वाला कंद उसके बारे में भी बतायेंगे न कभी ?
पिछले दिनों मीठी तुलसी खाने को मिली(वैज्ञानिक नाम भूल गया)। कहते हैं चीनी से तीन सौ गुना मीठी होती है पर फिर भी डायबिटीज़ वालों के लिए नुक्सानदायक नहीं।
@संजय पटेल
सही कहा आपने , आमपाक भी कलाकंद का ही रूप है। यानी भुने हुए मावे के साथ विशुद्ध मालवी अंदाज में आम्ररस की ब्लेंडिंग !!
मेरी परवरिश भी पश्चिमी मालवा के राजगढ़(ब्यावरा) कस्बे में हुई है सो आमपाक के उल्लेख ने सोकर उठते ही मुंह में पानी ला दिया ।
२ बरस का मेरा नाती "नोआ " भी कैन्डी की मिठास को बखूबी पहचानने लगा है -
"गूँगे का गुड "
कहावत किसे याद नहीँ ? :)
-- लावण्या
बहुत मीठी पोस्ट है भाई...मीठी मीठी..मिष्टी मिष्टी....वाह!!!!
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
अजित जी,
अब क्या क्या लिखें, मारे मिठाई की याद के दिमाग घूम रहा है |
मथुरा की मिठाई की याद आ गयी और ससुरा ह्यूस्टन का बेस्वाद सा खाना खा के संतोष करना पड़ेगा :-)
मेरी क्लास में दो इरानी विद्यार्थी हैं, अब आपका ब्लाग पढ़ पढ़ के उनसे बात करके हिन्दी और फारसी के कामन शब्द खोजे जाते हैं |
अभी कल ही बादाम, चाकू और सेब पर बात हुयी थी, वहां भी इन्हे बादाम, चाकू और सेब कहते हैं |
एक सवाल: कलाकंद की डली को दीवार पर मारा और पक्का हजारों दानो में बिखरने के बाद, असली कलाकंद बरबाद करने के जुर्म में फेंकने वाले की सजा के बारे में आचार्य चतुरसेन ने क्या कहा है ? :-)
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