Friday, August 8, 2008

जालसाज़ी के उपहार का योगदान !


दुनियादारी निभा लेना बहुत कठिन है। इससे घबराकर कई लोगों ने गृहस्थी की राह छोड़ वैराग्य की राह पकड़ी और हो गए बैरागी। मगर क्या बैराग भी इतना आसान है ?

तन को जोगी सब करे , मन को बिरला कोय।
सहजै सब बिधि पाईये, जो मन जोगी होय।।


बीरदास जी ने इस दोहे में योगी को परिभाषित करते हुए बताया है कि योगियों का बाना और धज बना लेने से कोई योगी नहीं हो जाता। सच्चा योगी वही है जिसका मन ईश्वर में रमा रहे। जोग-बैराग का रंग मन पर कम और तन पर ज्यादा चढ़ाया तो इस लोक से भी गए और परलोक से भी।


प्राचीनकाल में योगदान का मतलब होता था जालसाज़ी से प्राप्त उपहार। पुराने अर्थ में आज योगदान करना या मांगना आफ़त में पड़ना होगा।

चित्र साभार-http://forum.isratrance.com/


योगी शब्द बना है युज् धातु से । योग शब्द भी इससे ही बना है जिसमें जोड़ना, मिलाना, फल परिणाम, चिन्तन-मनन आदि। युज् से ही बने हैं युक्त-युक्ति जैसे शब्द जिसका अर्थ भी जोड़ना मिलाना अथवा तरकीब, उपाय होता है। इस तरह उपचार, चिकित्सा आदि अर्थ भी इसमें शामिल हो गए क्योंकि रोग के निदान के लिए औषधि तैयार करने में किन्ही पदार्थों को आपस में मिलाने (योग) की क्रिया शामिल है। औषधि को यौगिक भी इसी वजह से कहते हैं। बाद में मिलते-जुलते कुछ अन्य अर्थ भी इसमें समाहित हैं जैसे इंद्रजाल, जादू-टोना, छल-कपट आदि। गौर करें कि जादूगर मुख्य रूप से अपने हाथ और मुख की चेष्टाओं से किन्ही वस्तुओं को जोड़ता-मिलाता है (योग) और उससे चमत्कार दिखाता है।

हिन्दी का योगी दरअसल संस्कृत के योगिन से बना है । युज् से बने योगिन् में योग से जुड़े तमाम अर्थों का ही कर्ता अर्थात करनेवाले के रूप में ही विस्तार है। योगिन् यानी चिन्तन-मनन करनेवाला, सन्यासी, महापुरुष, जादूगर, बाजीगर आदि। नाथ योगियों की तांत्रिक क्रियाओं की वजह से योगियों के साथ जादू-टोना आदि क्रियाएं जुड़ गईं। हठयोगियों ने भी इस अर्थ को बढ़ावा दिया। योगिनी शब्द का अर्थ ही तंत्रविद्या है। इनकी संख्या चौंसठ मानी जाती है। जबलपुर में चौंसठ योगिनियों का प्रसिद्ध मंदिर भी है। गांव देहात में सिद्धयोगी बन गया जोगी। इसी वजह से कहावत चल पड़ी घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध। ये जोगी तंत्र-मंत्र के नाम पर चमत्कार दिखाते हुए ज़माने भर में बदनाम भी हुए।



योग में उपसर्गों और प्रत्ययों के लगने से वियोग और संयोग जैसे शब्द भी बने जिनके देशज रूप बिजोग और संजोग भी प्रचलित हैं। योग्य, योग्यता जैसे शब्द भी इसी कड़ी में आते हैं। सहयोग भी इससे ही बना है। योगदान का अर्थ भी सहयोग होता है इसके अलावा मदद करना, सहायता करना, अंशदान करना आदि भाव भी इसमें समाहित हैं। गौरतलब है किसी ज़माने में योगदान शब्द के मायने ये नहीं थे । योग के छल-कपट, जादू-टोना वाले भाव इसमें प्रबल थे और इस तरह प्राचीनकाल में योगदान का मतलब होता था जालसाज़ी से प्राप्त उपहार। पुराने अर्थ में आज योगदान करना या मांगना आफ़त में पड़ना होगा।

8 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

बहुत आभार ज्ञानवर्धन का. ऐसे ही ज्ञानवर्धन करते रहें, साधुवाद.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

"योग" शब्द
अत्यँत प्राचीन होते हुए भी
आधुनिक युग मेँ
समस्त सँसार मेँ फैला हुआ है
ये भी जानकारियाँ,
आपने विस्तार से बतलाईँ हैँ
- शुक्रिया -
- लावण्या

Dr. Chandra Kumar Jain said...

क्या कहें...योगदान का पुराना
अर्थ बताकर आपने संकट में
डाल दिया अजित जी ! अब
योगदान के पहले सतर्क रहना
पड़ेगा !!.....
खैर.... आज भी आपने
योग से योगदान तक अनूठी
जानकारी दी है.
आजकल पुरस्कार/सम्मान
के नाम पर आपके बताये पुराने मायने का
योगदान कुछ ज्यादा ही चल पड़ा है....है न ?
====================================
आभार
चन्द्रकुमार

रंजू भाटिया said...

योग ..योगदान ..बहुत से अर्थ स्पष्ट हुए हैं इस पोस्ट से ..सुंदर जानकारी

मीनाक्षी said...

नई और रोचक जानकारी मे 'योगदान' हुआ... आभार

बालकिशन said...

काफ़ी रोचक और ज्ञान वर्धक जानकरियां दी आपने.
आभार.

दिनेशराय द्विवेदी said...

योगी तो आप भी हैं। यह योगदान कम नहीं।

Abhishek Ojha said...

योगी, जोगी... , योग, जोग. जुगाड़ भी यहीं से आया लगता है और रसायन शास्त्र में औषधि की तरह कम्पाउंड को भी यौगिक ही तो कहते हैं.

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