Friday, October 17, 2008

रिश्वत-दहेज-सम्मान का टीका [तिल-2]

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तिलकः का ही अगला रूप टीका है जिसे मस्तक पर भी लगाया जाता है
रिमाण और आकार में लघुता का प्रतीक बना तिल कई मुहावरों में स्थान पा गया मसलन तिल तिल कर मरना, तिल का ताड़ बनाना, इन तिलों में तेल नहीं आदि। यही नहीं उसका अर्थविस्तार भी खूब रहा। एक वनस्पति यानी फसल तो उसके नाम से ही मशहूर हो गई यानी तिल और तिलहन। जिस वनस्पति से तेल निकाला जा सकता था वह तिलहन कहलाई। बिनौला भी तिलहन है और सरसों भी तिलहन है।
किसी गोल चिह्न या आकृति अथवा अल्प परिमाण का भाव भी तिल शब्द में निहित है। संस्कृत का तिलकः शब्द इससे ही बना है जो हिन्दी में तिलक के रूप में खूब व्यवहार में आता है और आमतौर पर चंदन, रोली आदि से बने टीके के रूप में इस्तेमाल करते हैं। यूं सुंदर फूलों के एक वृक्ष का नाम भी तिलकः है जो वसंत में पुष्पित होता है । शरीर पर बने चिह्न यानी मस्से की ही तरह तिलकः का भी एक अर्थ शरीर पर पड़े चकत्ते या ऐसा ही चिह्न है। जाहिर है यह भी तिल का विस्तार है ।
तिलक एक शोभाकार चिह्न है जो प्रायः मस्तक पर बनाया जाता है । प्राचीनकाल से ही हिन्दू समाज में धार्मिक-सांस्कृतिक अवसरों पर मंगलकारक चिह्न की तरह इसे मस्तक, बाहु और वक्ष पर धारण करने की परिपाटी रही है। धार्मिक संहिताओं में चंदन की लकड़ी को घिस कर बने लेप से मस्तक पर मंगलकारी चिह्न बनाने का प्रावधान है मगर अक्षत् , रोली , हल्दी व अन्य रंगों के लेप भी मस्तक पर लगाने की परम्परा रही है और इसे ही तिलक कहा गया है । तिलक को स्त्री-पुरूष या अन्य कोई भी अपने ललाट पर धारण कर सकता है। इसीलिए माथे के लिए संस्कृत में तिलकाश्रयः जैसा शब्द भी है अर्थात जहां तिलक को आश्रय मिले अर्थात मस्तक ।
तिलक शब्द में धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या भी शामिल है। इसे टीका भी कहते हैं। तिलकः का ही अगला रूप टीका है जिसे मस्तक पर भी लगाया जाता है। इससे ही अत्यंत छोटी बिंदी या चिप्पी जिसे मस्तक पर लगाया जाए टिकुली/टिकली कहलाती है। धर्मग्रंथों की व्याख्या को टीका कहने का कारण भी दिलचस्प है। पुराने ज़माने में जब हस्तलिखित ग्रंथों का चलन था, पृष्ठ बीचोंबीच मूल पाठ होता था । उसकी व्याख्या पृष्ठ के ललाट यानी ऊपरी हिस्से में लिखी जाती थी। चूंकि मूल पाठ का सम्मान उसकी व्याख्या ही बढ़ाती थी इसलिए उसे टीका या तिलक भी कहा जाने लगा। आज तिलक लगवाना एक मुहावरा बन चुका है जिसमें कई भाव समाहित हैं मसलन अनुज्ञा हासिल करना, सीख लेना, दस्तखत कराना और दीक्षित होना आदि।

...दफ्तरों में फाइल  आगे बढ़ाने के लिए भी रिश्वत के वैकल्पिक शब्द के तौर पर तिलक-टीका शब्द चल पड़ा है। ...

तिल का ताड़ यानी अर्थविस्तार और देखिये। हिन्दुओं में विवाह आदि में है। विवाह संस्कार से संबंधित एक प्रमुख रस्म भी तिलक या टीका कहलाती है क्योंकि इसमें विवाह से पूर्व वर को वधुपक्ष की ओर से माथे पर तिलक लगा कर आदर-मान दिया जाता है और कुछ भेंट भी दी जाती है। भेंट की इसी परिपाटी ने कालांतर में दहेज का रूप ले लिया। आज  मध्यमवर्गीय   परिवारों में वरपक्ष के घर टीका या तिलक भेजना माता-पिता के लिए बहुत सुखद अनुभूतियों वाला क्षण नहीं रहता। उसी क्षण से वे कर्ज का बोझ अनुभव करने लगते हैं। पहले टीका भेजा जाता था। अब तो वरपक्ष टीका मांगने लगे हैं। दफ्तरों में फाइल को आगे बढ़ाने के लिए भी रिश्वत के वैकल्पिक शब्द के तौर पर तिलक-टीका शब्द चल पड़ा है।
तिलक शब्द का प्रयोग पूज्य, प्रमुख या श्रेष्ठ के अर्थ में सम्मान देने के लिए भी होता है जैसे रघुकुलतिलक । आमतौर पर ऱघुकुलतिलक की उपमा भगवान राम के लिए कही जाती है। रामचरित मानस में कई जगह राम के लिए यह शब्द आया है । रघुकुलतिलक सुजन सुखदाता । आयउ कुसल देव मुनि त्राता ।। तिलक शब्द के सम्मान वाले भाव के चलते ही मराठीभाषियो में एक उपनाम तिलक भी है। बालगंगाधर तिलक के नाम में भी यह शामिल है। राजतिलक जैसे शब्द में भी इसकी मौजूदगी में भी सम्मान प्रतिष्ठा का यही भाव तिलक आज भारत की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है और सम्मान देने के लिए माथे पर टीका लगाने की परम्परा रोजमर्रा में निबाही जाती ही है, देशी-विदेशी अतिथियों और अन्य महानुभावों को सम्मानित करने के लिए सरकारी आयोजनों तक में इसे देखा जा सकता है । हमारी संस्कारशीलता की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि पालतू पशुओं खासकर गोवंश के माथे पर भी सम्मानसूचक तिलक लगाया जाता है। ये अलग बात है कि रस्म अदायगी के बाद ये तिलकधारी पशु भी खूब खदेड़े जाते हैं।

8 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

ये अलग बात है कि रस्म अदायगी के बाद ये तिलकधारी पशु भी खूब खदेड़े जाते हैं। :)


-बहुत उम्दा जानकारी..आभार आपका.

अविनाश वाचस्पति said...

''ब्‍लॉग पर तिलक करना''
इस मुहावरे का भविष्‍य
उज्‍ज्‍वल नजर आता है
जिसे ब्‍लॉग पर नई पोस्‍ट
लगाने के निहितार्थ में लिया जाये।

दिनेशराय द्विवेदी said...

रोली का टीका, उस पर दो अक्षत समृद्धि की शुभकामना है।

Anonymous said...

अजितजी, सही में आपने भी तिल का ताड़ (तिल पर दो पोस्ट) बना दिया, हमेशा की तरह जानकारी से भरा लेकिन एक चीज छूट गयी - तिल तिल कर मरना।

RADHIKA said...

दादा तिल शब्द की बहुत ही अच्छी व्याख्या की,धार्मिक ग्रंथो की टिका सुनी भी हैं और पढ़ी भी हैं ,पर तिलक से टिका कैसे बना यह समझ नही आया ,क्योकि धार्मिक ग्रंथो की टिका यानि एक तरह से समीक्षा ही होती हैं ,जबकि तिलक का अर्थ सम्मानास्पद होता हैं ,आप टिका शब्द की व्याख्या भी विस्तार से करे तो इस शब्द को समझने में और धार्मिक ग्रंथो की टिका को भी समझने में आसानी होगी .सधन्यवाद .

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

और राधिका जी आईँ हैँ तो हमेँ तो
राग " तिलक कामोद " याद आ रहा है :)
उसी के बारे मेँ राधिका जी आप भी बतलायेँ
- लावण्या

अजित वडनेरकर said...

@राधिका
शुक्रिया राधिका मेरे विचार से तिलक शब्द से टीका वर्ण विपर्यय से हुआ है। तिलक से ही टिकुली या टिकली वर्ण विपर्यय से बने हैं। टीका मे ल वर्ण का भी लोप हो गया है। जहां तक व्याख्या की बात है तो उसके बारे में तो मैने लिखा है मगर संभव है ज्यादा स्पष्ट नहीं हुआ हो।
पुराने ज़माने में हस्तलिखित ग्रंथों में मूल पाठ पृष्ठ के बीचों बीच
होता था और पृष्ठ के सबसे ऊपरी हिस्से यानी क्षैतिज हाशिये पर उसकी व्याख्या लिखी जाती थी। चूंकि यह हिस्सा पृष्ठ का मस्तक था और व्याख्या या भावार्थ एक तरह से मूल भाष्य का सम्मान-तिलक ही हुआ । अतः इस व्याख्या को पृष्ठ के सबसे ऊपर लिखे जाने की वजह से तिलक कहा जाने लगा जो तिलकः से वर्णविपर्यय के जरिये तिकल-टिकल होते हुए टीका बना होगा।

Abhishek Ojha said...

अरे तिल ने तो सच में बड़े गुल खिलाये हैं !

और ये हिन्दी में टाइप करने वाला बक्सा काम नहीं कर रहा, जरा देख लीजियेगा.

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

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