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...आक़ा शब्द में वरिष्ठता के जिस भाव की झलक है उसकी व्याप्ति सुदूर जापान से लेकर धुर अफ्रिका तक की भाषाओं में ध्वनि और भाव साम्यता के साथ देखी जा सकती है...
...आक़ा शब्द में वरिष्ठता के जिस भाव की झलक है उसकी व्याप्ति सुदूर जापान से लेकर धुर अफ्रिका तक की भाषाओं में ध्वनि और भाव साम्यता के साथ देखी जा सकती है...
प्रस्तुतकर्ता
अजित वडनेरकर
पर
1:32 AM
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
14 कमेंट्स:
अजित जी, इतनी सारी पोस्टें पढ़ लीं आपकी, comment करने का होश अब आया है. आपके भाषा-ज्ञान का मुरीद हो चला हूँ मैं. बस एक छोटा सा suggestion - हमारे 15 इंची मॉनिटर में आपका इतना बड़ा पेज बहुत कसमसाता रहता है, लेआउट में थोड़ा सा चेंज अपेक्षित है. बस.
द्रविड भाषा का विस्तार दँग कर गया और अक्का भी मराठी मेँ काफी सुना है जो काकी
बन जाता है दूसरी भाषाओँ मेँ
आपकी मेहनत काबिले तारीफ है अजित भाई
-लावण्या
अजित जी बहुत बहुत शुक्रिया. आप के पोस्ट्स पढ़ पढ़ के मैं भी कुछ ज्ञानवर्धन कर रहा हूँ. कमाल है ... हालांकि टिपण्णी तो मैं ने भी शायद ही कभी की हो, लेकिन आप के पोस्ट्स पढ़ना अब तक ज़रूरी-सा हो गया है.
शब्द गिरगिट हैं; रंग बदलते हैं; पर रहते गिरगिट ही हैं। और यह बताने का कि वे गिरगिट हैं, शब्दों का सफर नामक जन्तर काम आता है। :-)
आप के इन आलेखों से लगता है कि सदियों सदियों मनुष्य ने पूरी धरती को नापा है और सर्वत्र अपने चिन्ह छोड़ दिए हैं।
आप शब्दों के सफर में
शब्द दर शब्द आगे
बढ़ते जा रहे हैं और
हम सब पीछे पीछे
जानने समझने चले
आ रहे हैं।
जै जै बंधु।
एक अक्का को मैं भी जानता हूं
हम सभी उन्हें अक्का कहते हैं
वैसे नाम है उनका श्रीमती विजया मुले
उनकी सुपुत्री श्रीमती सुहासिनी मुले को
तो सिने प्रेमी परदे पर मिलते ही रहते हैं।
ये भी खूब है भाई !
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
वाह मेरे आका.. वाह..
क्या लिखे हैं.. निशांत जी को कहूँगा की उन्हें अपने सेटिंग में बदलाव लेन की जरूरत है.. मेरे डेकस्टाप में १४ इंच का मानीटर है और उसमे भी सब सही दीखता है..
लावण्या जी से कहना चाहूँगा की यहाँ लगभग सभी दक्षिण भारतीय भाषा में अक्का का मतलब दीदी होता है..
@निशांत मिश्र ,
खत के लिए शुक्रिया बंधुवर....शब्दो के सफर में हमसफर बने रहें यही काफी है...बाकी टिप्पणियों की परवाह न करें। मन हो करें , चाहे न करें।
मुझे लगता है आपने अपने पीसी की स्क्रीन सैटिंग सही नहीं की है। मुझे इस किस्म की शिकायत किसी ने नहीं की है। बल्कि मैं ही बीच बीच में पूछता रहता हूं कि सही दिख रहा है या नहीं।
आप डेस्कटाप पर जाएं । माऊस पर राइट क्लिक के जरिये प्रापर्टीज पर जाएं और फिर सैटिंग में जाकर 1024x768 पिक्सेल पर स्क्रीन सैंटिंग करें। एक दम स्क्रीनफिट नजर आएगा ब्लाग।
कर के देखें, या किसी से करवाएं।
@अविनाश वाचस्पति-
वाह भाई...अक्का के बहाने सुहासिनी जी को याद कर लेने का मौका मिला। उन्हें तो हम मराठी-हिन्दी सिनेमा में देखते रहे हैं। उनकी शुरूआती फिल्म थी रामनगरी। रंगमंच पर भी सक्रिय रही हैं वे और जनआंदोलनों में भी। शुक्रिया...बने रहे सफर में।
@ज्ञानदत्त पांडेय
शब्दों के ऐतिहासिक सफर पर आपकी टिप्पणिया एकदम मौलिक दृष्टिकोण लिए होती हैं इसलिए बहुत समय तक याद भी रहती है। शुक्रिया बहुत बहुत
@लावण्या शाह/डॉ चंद्रकुमार जैन
शब्दों के सफर में आपकी सार्थक उपस्थिति के हम सब कायल हैं लावण्या अक्का और डाक्टसाब। आपकी बिलानागा टिप्पणियां कई ब्लागरों के लिए प्राणवायु हैं :)
@दिनेशराय द्विवेदी-
शुरुआत में सिर्फ प्राकृतिक शक्तियों की सत्ता थी। वाणी/वाक् भी ऐसी ही शक्ति है मगर मनुश्य की निजता से जुड़ी है। वाद, पंथ और धर्मों के आविष्कार के बाद वाणी/वाक्/भाषा/ की सत्ता गौण होती चली गई। विचार प्रमुख हो गया । इतना की उसके आगे कौन सा उपसर्ग लगाना हैं-सु या कु यह तक सोचने का मनुश्य को होश नहीं रहा। विचार पर युद्ध, विचार पर लड़ाइयां। सत्ता के लिए भाषा पर भी युद्ध हुए हैं और शब्दों पर भी । मगर उसका उद्देश्य सत्य की खोज न होकर सत्ता की प्राप्ति रहा । मसला चाहे मुंबई और बंबई का हो या जापान अथवा निप्पोन का। भाषा की सत्ता सार्वभौमिक है। भाषा तरल होती है। भाषा एक नदी है। कालातीत नदी। शब्द उसमें तैरते हुए सदियों का फासला तय करते रहे हैं। जैसे जल प्रवाह के साथ बहते पत्थरों ने अपनी शक्लें बदली हैं और शिल्प में ढल गए हैं , वही सब कुछ काल प्रवाह में शब्दों के साथ हुआ है।
समाजशास्त्रीय इतिहास को समझने में धर्म नहीं , भाषाविज्ञान ज्यादा मदद कर सकता है - करता रहा है। इस विषय पर अलग से कभी लेख लिखूंगा। वक्त की कमी है। आपका आभार...
@PD
शुक्रिया प्रशांत...बने रहें सफर में। आपकी सलाह निशांत जी के लिए मददगार होगी। आप सच्चे हमसफर हैं।
@मीत
भाई मीत जी, हम तो अर्से से जानते हैं कि आप सफर में साथ है। और बीच में आपकी एक-दो टिप्पणियां भी मिलीं। यूं ही एहसास कराते रहें सफर में होने का...शुक्रिया
AAPKE SHABDON KA SAFAR ADBHUT ANUBHAV DETA HAI.AB PATA CHALA SHABDON KE GHODON PE SAVAR MAHARATHIYON KE GHODE KIS GHAT PE APNEE PAHCHAN SROT AUR SAJRA DHOONDHNE AUR TRIPT HONE AATE HAIN.DR.DHEERENDRA VARMA KEE PARAMPARA ME AAP MEEL KE PATTHAR HAIN.AAP KE GYAN AUR SHRAM,SAMARPAN PAR NAJ HAI.SAADHUVAD.
वाह दादा,बहुत बढिया पोस्ट है.
काका अक्का ..बहुत रोचक जानकारी है यह
क्या पोस्ट है मेरे आका !
बड़ा व्यापक है ये आका भी. और १७ पोस्ट पढ़नी है आज आपकी आगे बढ़ता हूँ अभी.
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