...आक़ा शब्द में वरिष्ठता के जिस भाव की झलक है उसकी व्याप्ति सुदूर जापान से लेकर धुर अफ्रिका तक की भाषाओं में ध्वनि और भाव साम्यता के साथ देखी जा सकती है...
Tuesday, October 14, 2008
जो हुक्म मेरे आक़ा, मेरे कक्का, मेरी अक्का !!!
अरेबियन नाइट्स यानी किस्सा हजार रात की कहानियों में अलादीन के किस्से सबसे ज्यादा मशहूर हैं। खासतौर पर उसके जादुई चिराग़ की तो पूरी दुनिया कायल है और बतौर मन की मुरादें पूरी करने के साधन के रूप में अलादीन का चिराग एक मुहावरा भी बन गया। अलादीन का चिराग जिसे रगड़ते ही एक जिन्न प्रकट होता था और कहता क्या हुक्म मेरे आक़ा ?
उर्दू-फ़ारसी के अनुदित साहित्य के ज़रिये आक़ा शब्द भी हिन्दी में प्रचलित है। आक़ा शब्द का प्रयोग वरिष्ठ, स्वामी, मालिक ,आदरणीय आदि अर्थो में प्रयोग होता है। फारसी, उर्दू और हिन्दी में आक़ा शब्द तुर्की भाषा से आया है। गौरतलब है कि मुस्लिम हमलावरों के जरिये और पश्चिमी एशिया के मुल्कों से व्यापारिक संबंधों के चलते ही भारतीय भाषाओं में नए शब्दों की आमद होती रही है। आक़ा शब्द मूलतः मंगोल भाषा का है जिसका मतलब होता है बड़ा भाई। इसका एक अन्य अर्थ है परिवार का मुखिया । जाहिर है कि समाज में पहली संतान को ही परिवार का मुखिया बनने के अधिकार मिलते थे इसीलिए यह अर्थ प्रचलित हुआ। आक़ा का तुर्की भाषा का ही एक अन्य रूप है आग़ा जिसका अर्थ भी स्वामी, मालिक, बड़ा भाई आदि होता है। फारसी, मंगोल, तुर्की के कुलीन घरानों का भी एक उपनाम आग़ा है। इस्माइली मुसलमानों के धर्मगुरू भी आग़ाखान के नाम से दुनिया भर में मशहूर है। ये दोनो शब्द मूलतः यूराल्टिक भाषा परिवार से संबंध रखते हैं। उर्दू में आका और आक़ा ये दोनों शब्द प्रचलित हैं। नुक़ते वाला आक़ा यानी स्वामी, मालिक, सरदार आदि। बिना नुक़ते का आका यानी बड़ा भाई । तुर्की में एक मुहावरा है आक़ा वा इनी । आक़ा यानी अग्रज और इनि या यानी अनुज । इस तरह मतलब निकला समूचा कुनबा अर्थात छोटे से बड़े तक। एक खास बात पर गौर करें। तुर्क-मंगोल समाज कितना पुरुष प्रधान है यह भी इस मुहावरे से जाहिर है जहां बड़े पुत्र और छोटे पुत्र में ही समूचे परिवार की कल्पना कर ली गई है।
आक़ा शब्द में मूलतः जिस वरिष्ठता के भाव की व्याप्ति है वह व्यापक स्तर पर हमें विश्व मानचित्र में साइबेरिया के धुर पूर्वी छोर पर उत्तर ध्रुवीय सागर के कामचट्का क्षेत्र की भाषा से लेकर धुर दक्षिण अफ्रीका की बांटू भाषा तक मिलते हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि इन दोनों सिरो के बीच मौजूद तुर्की, अरबी, ईरानी, संस्कृत, और द्रविड़ भाषाओं में भी इस शब्द या इससे मिलती जुलती ध्वनियों और भावों वाले शब्दों जैसे आक़ा, आग़ा, अक्का, अका, एक्का, एका, कक्क, कक्का, कुक्कु, काकू, काका, काकी आदि है जिनका अभिप्राय मालिक, सरदार, मुखिया, दीदी, दादा, या वरिष्ठ संबंधी से है। हिन्दी भाषी भी यह तथ्य जानते हैं कि मराठी समेत ज्यादातर दक्षिण भारतीय भाषाओं में बड़ी बहन के लिए अक्का शब्द प्रचलित है। हालांकि तमिल, तेलुगू , कन्नड़ और मलयालम की तरह मराठी द्रविड़ नहीं बल्कि आर्यभाषा परिवार से निकली है। मगर इसका क्षेत्र दक्षिण होने से द्रविड़ भाषाओं का भी इस पर काफी असर है। बड़ा, वरिष्ठ या आदरणीय के अर्थ में उपरोक्त सभी शब्दो का जन्म आल्टिक भाषा परिवार की अक या अग धातु से हुआ
मालूम होता है। वरिष्ठता में पूर्व या पहले का भाव प्रमुख है। बड़ा भाई यानी अग्रज । इस अग्र की अग या अक से साम्यता पर विचार करें ! अग्र से ही बना है आगे जो अव्वल या पहला के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। इसे भूत और भविष्य दोनों ही कालों में प्रयोग किया जाता है। किसी भी काम के शुभारंभ के लिए आग़ाज़ शब्द का प्रयोग अब हिन्दी में भी होता है। वैसे यह उर्दू-फारसी का शब्द है। यह भी अक/अग की कड़ी का हिस्सा है। आग़ाज़ की तुलना अग्र, आग़ा,आक़ा में निहित पूर्व का, पहले का , पहले से, वरिष्ठ या बड़ा जैसे भावों से कर के देखें तो भी यह साबित होता है। आक़ा वा इनी वाले इनी का अर्थ होता है छोटा भाई अर्थात अनुज। जो पीछे जन्मा। यह संयोग नहीं है कि तुर्की के इनी और संस्कृत के अनु में लघुता या पीछे होने का भाव है।
यूराल्टिक भाषा परिवार की ज्यादातर भाषाओं जैसे रूसी, मंगोल, कोरियन, तुर्किक और जापानी जैसी भाषाओं में अक या अग से बने शब्द हैं। रूसी में एक शब्द है एका यानी जो पहले से उत्पन्न है। सुदूर पूर्व की कामचट्का क्षेत्र की भाषा में एके या अके जैसे शब्द हैं जिनका मतलब होता है बड़ी बहन या बड़ा भाई। समझा जा सकता है कि यह शब्द श्रंखला ही द्रविड़ भाषाओं में बड़ी बहन के लिए प्रयुक्त अक्का, अक्कन, अक्कम, अक्काताई जैसे शब्दों तक पहुंचती है। इस नतीजे तक पहुंचने में यह तथ्य काफी मदद करता है कि द्रविड़ समूदाय किसी ज़माने में दक्षिण भारत तक सीमित नहीं था बल्कि सुदूर उत्तर पश्चिम के बलूचिस्तान तक फैला हुआ था । इस क्षेत्र की ब्राहुई भाषा पर द्रविड़ भाषा का जबर्दस्त असर है। अफ्रीका के दक्षिणी क्षेत्र के डेढ़ दर्जन देशों में बोली जाने वाली बांटू भाषा का कुक्कू शब्द भी इसी कड़ी का हिस्सा है जिसका अभिप्राय पुरखों से है। हिन्दी में पिता के भाई अथवा ताया/ताऊ के लिए काका संबोधन है। काका की पत्नी काकी कहलाती है। मराठी में भी चाची या आंट के लिए काकू संबोधन है।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:32 AM
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14 कमेंट्स:
अजित जी, इतनी सारी पोस्टें पढ़ लीं आपकी, comment करने का होश अब आया है. आपके भाषा-ज्ञान का मुरीद हो चला हूँ मैं. बस एक छोटा सा suggestion - हमारे 15 इंची मॉनिटर में आपका इतना बड़ा पेज बहुत कसमसाता रहता है, लेआउट में थोड़ा सा चेंज अपेक्षित है. बस.
द्रविड भाषा का विस्तार दँग कर गया और अक्का भी मराठी मेँ काफी सुना है जो काकी
बन जाता है दूसरी भाषाओँ मेँ
आपकी मेहनत काबिले तारीफ है अजित भाई
-लावण्या
अजित जी बहुत बहुत शुक्रिया. आप के पोस्ट्स पढ़ पढ़ के मैं भी कुछ ज्ञानवर्धन कर रहा हूँ. कमाल है ... हालांकि टिपण्णी तो मैं ने भी शायद ही कभी की हो, लेकिन आप के पोस्ट्स पढ़ना अब तक ज़रूरी-सा हो गया है.
शब्द गिरगिट हैं; रंग बदलते हैं; पर रहते गिरगिट ही हैं। और यह बताने का कि वे गिरगिट हैं, शब्दों का सफर नामक जन्तर काम आता है। :-)
आप के इन आलेखों से लगता है कि सदियों सदियों मनुष्य ने पूरी धरती को नापा है और सर्वत्र अपने चिन्ह छोड़ दिए हैं।
आप शब्दों के सफर में
शब्द दर शब्द आगे
बढ़ते जा रहे हैं और
हम सब पीछे पीछे
जानने समझने चले
आ रहे हैं।
जै जै बंधु।
एक अक्का को मैं भी जानता हूं
हम सभी उन्हें अक्का कहते हैं
वैसे नाम है उनका श्रीमती विजया मुले
उनकी सुपुत्री श्रीमती सुहासिनी मुले को
तो सिने प्रेमी परदे पर मिलते ही रहते हैं।
ये भी खूब है भाई !
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
वाह मेरे आका.. वाह..
क्या लिखे हैं.. निशांत जी को कहूँगा की उन्हें अपने सेटिंग में बदलाव लेन की जरूरत है.. मेरे डेकस्टाप में १४ इंच का मानीटर है और उसमे भी सब सही दीखता है..
लावण्या जी से कहना चाहूँगा की यहाँ लगभग सभी दक्षिण भारतीय भाषा में अक्का का मतलब दीदी होता है..
@निशांत मिश्र ,
खत के लिए शुक्रिया बंधुवर....शब्दो के सफर में हमसफर बने रहें यही काफी है...बाकी टिप्पणियों की परवाह न करें। मन हो करें , चाहे न करें।
मुझे लगता है आपने अपने पीसी की स्क्रीन सैटिंग सही नहीं की है। मुझे इस किस्म की शिकायत किसी ने नहीं की है। बल्कि मैं ही बीच बीच में पूछता रहता हूं कि सही दिख रहा है या नहीं।
आप डेस्कटाप पर जाएं । माऊस पर राइट क्लिक के जरिये प्रापर्टीज पर जाएं और फिर सैटिंग में जाकर 1024x768 पिक्सेल पर स्क्रीन सैंटिंग करें। एक दम स्क्रीनफिट नजर आएगा ब्लाग।
कर के देखें, या किसी से करवाएं।
@अविनाश वाचस्पति-
वाह भाई...अक्का के बहाने सुहासिनी जी को याद कर लेने का मौका मिला। उन्हें तो हम मराठी-हिन्दी सिनेमा में देखते रहे हैं। उनकी शुरूआती फिल्म थी रामनगरी। रंगमंच पर भी सक्रिय रही हैं वे और जनआंदोलनों में भी। शुक्रिया...बने रहे सफर में।
@ज्ञानदत्त पांडेय
शब्दों के ऐतिहासिक सफर पर आपकी टिप्पणिया एकदम मौलिक दृष्टिकोण लिए होती हैं इसलिए बहुत समय तक याद भी रहती है। शुक्रिया बहुत बहुत
@लावण्या शाह/डॉ चंद्रकुमार जैन
शब्दों के सफर में आपकी सार्थक उपस्थिति के हम सब कायल हैं लावण्या अक्का और डाक्टसाब। आपकी बिलानागा टिप्पणियां कई ब्लागरों के लिए प्राणवायु हैं :)
@दिनेशराय द्विवेदी-
शुरुआत में सिर्फ प्राकृतिक शक्तियों की सत्ता थी। वाणी/वाक् भी ऐसी ही शक्ति है मगर मनुश्य की निजता से जुड़ी है। वाद, पंथ और धर्मों के आविष्कार के बाद वाणी/वाक्/भाषा/ की सत्ता गौण होती चली गई। विचार प्रमुख हो गया । इतना की उसके आगे कौन सा उपसर्ग लगाना हैं-सु या कु यह तक सोचने का मनुश्य को होश नहीं रहा। विचार पर युद्ध, विचार पर लड़ाइयां। सत्ता के लिए भाषा पर भी युद्ध हुए हैं और शब्दों पर भी । मगर उसका उद्देश्य सत्य की खोज न होकर सत्ता की प्राप्ति रहा । मसला चाहे मुंबई और बंबई का हो या जापान अथवा निप्पोन का। भाषा की सत्ता सार्वभौमिक है। भाषा तरल होती है। भाषा एक नदी है। कालातीत नदी। शब्द उसमें तैरते हुए सदियों का फासला तय करते रहे हैं। जैसे जल प्रवाह के साथ बहते पत्थरों ने अपनी शक्लें बदली हैं और शिल्प में ढल गए हैं , वही सब कुछ काल प्रवाह में शब्दों के साथ हुआ है।
समाजशास्त्रीय इतिहास को समझने में धर्म नहीं , भाषाविज्ञान ज्यादा मदद कर सकता है - करता रहा है। इस विषय पर अलग से कभी लेख लिखूंगा। वक्त की कमी है। आपका आभार...
@PD
शुक्रिया प्रशांत...बने रहें सफर में। आपकी सलाह निशांत जी के लिए मददगार होगी। आप सच्चे हमसफर हैं।
@मीत
भाई मीत जी, हम तो अर्से से जानते हैं कि आप सफर में साथ है। और बीच में आपकी एक-दो टिप्पणियां भी मिलीं। यूं ही एहसास कराते रहें सफर में होने का...शुक्रिया
AAPKE SHABDON KA SAFAR ADBHUT ANUBHAV DETA HAI.AB PATA CHALA SHABDON KE GHODON PE SAVAR MAHARATHIYON KE GHODE KIS GHAT PE APNEE PAHCHAN SROT AUR SAJRA DHOONDHNE AUR TRIPT HONE AATE HAIN.DR.DHEERENDRA VARMA KEE PARAMPARA ME AAP MEEL KE PATTHAR HAIN.AAP KE GYAN AUR SHRAM,SAMARPAN PAR NAJ HAI.SAADHUVAD.
वाह दादा,बहुत बढिया पोस्ट है.
काका अक्का ..बहुत रोचक जानकारी है यह
क्या पोस्ट है मेरे आका !
बड़ा व्यापक है ये आका भी. और १७ पोस्ट पढ़नी है आज आपकी आगे बढ़ता हूँ अभी.
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