| | राजस्व वसूली के लिए मुस्लिम दौर में एक से नामों वाली आबादियों के साथ खुर्द लगाने का चलन शुरू हुआ ... |
सं स्कृत के क्षुद्र शब्द की उपस्थिति न सिर्फ पदार्थों के संदर्भ में नज़र आती है बल्कि बसाहटों, आबादियों में भी यह दिखती है। क्षुद्र से बने फ़ारसी के खुर्द शब्द में छोटा , अंश , टुकड़ा, खंड आदि भाव समाए हैं। खुर्द से खुदरा, खुर्दबीन, खराद जैसे शब्द ही नहीं बने है बल्कि सबसे ज्यादा अगर बने हैं तो भारत के क़रीब पांच लाख गांवों में से हजारों गांवों के नाम । जी हां, भारत सरकार के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय की सूची में गिनना शुरू कर दीजिए खुर्द शब्द की उपस्थिति वाले गांव मसलन जमालपुर खुर्द, रामपुर खुर्द, बाटला खुर्द या करोंद खुर्द । महीनों लग जाएंगे गिनते-गिनते मगर नाम खत्म नहीं होंगे।
दरअसल भारत में मुस्लिम शासन के दौरान बसाहटों को अलग अलग किस्म के नाम भी मिले । उसी परंपरा में छोटी-छोटी मगर एक से नामों वाली ग्रामीण आबादियों के नाम के साथ खुर्द शब्द का चलन शुरु हुआ। यह परंपरा ईरान से पंजाब होकर भारत भर में फैल गई। खुर्द नाम वाले गांव धुर अफगानिस्तान , पाकिस्तान, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश , राजस्थान और महाराष्ट्र से लेकर बर्मा तक में मिल जाएंगे। कोई ताज्जुब नहीं कि तलाशने पर मलेशिया, इंडोनेशिया में भी ये नाम निकल आएं। मूलतः फ़ारसी के खुर्द शब्द का विशेषण की तरह प्रयोग करते हुए छोटी बसाहटों के लिए खुर्द नाम शुरु किया गया।
एक सरीखे नाम वाली दो बसाहटों के बीच फर्क़ करने के लिए खुर्द शब्द का ईज़ाद हुआ। यह परंपरा मुगलकाल में परवान चढ़ी और फिर सदियों तक खुर्दबीनी होती रही एक से नामों वाली आबादियों की ताकि उनमें से किसी एक के साथ खुर्द लगाया जा सके। जो आबादी कम या छोटी थी उसके बाद खुर्द लगा दिया गया मसलन वीरपुर गांव के अलावा अगर किसी राजस्व क्षेत्र या किसी ज़मीनदार की अमलदारी में इसी नाम का दूसरा वीरपुर हुआ तो उसे वीरपुर खुर्द कहा जाता । हालत यह है कि देश की राजधानी देहली है तो एटा जिले में देहली खुर्द गांव भी है।
... अफ़गानिस्तान से लेकर धुर बांग्लादेश तक समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में खुर्द नाम वाली एक लाख से भी ज्यादा बस्तियां होंगी ...
इस व्यवस्था के पीछे मुख्यतः तो राजस्व वसूली में आने वाली गड़बड़ियों से बचना था जिसके न होने से भ्रष्टाचार की गुंजाईश बनी हुई थी। ज़मींदार की ओर से जब सालाना लगान वसूली होती थी तब एक जैसे नाम वाले गांवों के राजस्व रिकार्ड को रखने में परेशानी का सामना करना पड़ता था। कई स्थानों पर छोटा या बड़ा जैसे विशेषणों से भी फ़र्क करने की कोशिश की गई । मगर इसमें दोनों ही आबादियों के मूलनाम से छेड़छाड़ हो जाती थी। जैसे राजस्थान में दो सादड़ी हैं। छोटी सादड़ी और बड़ी सादड़ी । इसी तरह
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में बड़ी लुहारी, छोटी लुहारी
है। पहले यह राजपूतों का गाँव था मगर जब मुस्लिमों ने उन्हें पराजित कर
दिया तो लुहारी दरबार हसनखाँ के कब्ज़े में आ गई। इस तरह नया नाम हसनपुर
लुहारी हो गया। इसके पास एक और लुहारी आबादी थी सो आम लोगों ने हसनपुर
लुहारी को बड़ी लुहारी कहना शुरू कर दिया। पड़ोस का लुहारी छोटी लुहारी हो
गया। राजस्व रिकार्ड में अलबत्ता हसनपुर लुहारी और लुहारी खुर्द जैसे नाम
ही दर्ज़ हैं।
इसी तरह मालवा, राजस्थान में बड़े या मूल गाँव
के साथ बुज़ुर्ग लगाया जाता है जैसे अरनिया बुज़ुर्ग या अरनिया खुर्द।
महाराष्ट्र में बुज़ुर्ग का रूपान्तर बुद्रुक हो जाता है जैसे पुणे के पास
वडनेर और वडनेरबुद्रुक दो गाँव हैं। ज़ाहिर है पहला वडनेर खुर्द के रुतबे
वाला है। इसी तरह किस आबादी की पुरातनता या बड़ा रुतबा दिखाने के लिए उसके
साथ ‘जागीर’ लगाने का चलन भी रहा है जैसे जमालपुर और जमालपुर जागीर । खुर्द
लगाने से फायदा यह था कि एक गाँव की मूल पहचान तो सुरक्षित रहती थी। गाँव
के साथ खुर्द शब्द लगाने से अपने आप स्पष्ट हो जाता था कि उसका रुतबा छोटा
है। आमतौर पर कम आबादी का राजस्व से रिश्ता रहा है मगर यह ज़रूरी नहीं था
कि कम आबादी वाले गाँवों से राजस्व वसूली भी कम ही हो। इसी तरह नदियों के
प्रवाह, बेहतर खेती, गाँवों से पलायन जैसी परिस्थितियों के चलते बीती
सदियों से आजतक खुर्द नामधारी कई गाँवों की तकदीर भी बदली है और वे अपनी
हमनाम आबादियों से कहीं बड़े हो गए हैं मगर कहलाते अभी भी ‘खुर्द’ ही हैं।
इन्हें भी ज़रूर देखें-
...इस श्रंखला से जुड़े कुछ और शब्दों की चर्चा अगले पड़ाव पर... |
बेईमानी-साजिश की बू है खुर्दबुर्द में [क्षुद्र-3]
छुटकू की खुर्दबीन और खुदाई [क्षुद्र-2]
खुदरा बेचो, खुदरा खरीदो [क्षुद्र-1]
12 कमेंट्स:
खुर्द गाँव के साथ जुडने पर उसका रुतबा साफ हो जाता है सही कहा -
हमें तो खुर्द सुन कर खुर्दबीन
ध्यान में आता है
और
बीन सुनकर तो मन में
बज ही जाती है
क्या यह खोजबीन भी होती है
वैसे शब्दों का सफर
खुर्दबीन ही तो है
शब्दों की।
खोज खोज के बीनना
या बीन बीन का खोजना।
आनन्द आ गया इस जानकरी से..आपक कैसे आभार कहूँ!! :)
खुर्द आख्यान शानदार है!
आप की खुर्द बीन भाषा और जीवन के भीतर बहुत दूर तक देखती है.बधाई.
वाह इस शब्द के अर्थ की खोज मई काफी दिनों से कर रहा था -आज मुराद पूरी हुयी ! आभार !!
आप सही ही कह रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और वहां मेरे जिले में तो इस शब्द का प्रचलन काफी है। मसलन मेरा गांव है हसनपुर लुहारी। कभी यह लुहारी था, बाद में यहां राजपूत पराजित हुए और दरबार हसन खां के कब्जे में आ गया। इस तरह इसका नाम हसनपुर लुहारी हो गया। अब करीब 15-20 किलोमीटर पर एक गांव लुहारी नाम से और भी है, सो आम लोगों के लिए हमारा गांव बड़ी लुहारी और दूसरा छोटी लुहारी है। अलबत्ता लिखत-पढ़त में हम हसनपुर लुहारी में हैं और छोटी लुहारी के लोग लुहारी खुर्द में। हमारे ही ब्लाक थानाभवन में गढ़ी नाम के भी दो गांव हैं। इनमें से छोटा गांव कागजों में भले ही गढ़ी खुर्द होगा लेकिन आम ज़बान में उसे कच्ची गढ़ी बोला जाता है और दूसरे हमनाम गांव को पक्की गढ़ी। दिलचस्प यह भी है कि पक्की गढ़ी को लिखा-पढ़ी में गढ़ी पुख़्ता कह जाता है।
हरियाणा में करनाल में रहते हुए मैंने देखा कि किसी एक गांव के ही रकबे में गांव से जरा हटकर बस गई छोटी आबादियां मूल गांव की गामड़ी कहकर पुकारी जाती हैं। भिवानी आदि इलाकों में इन्हें ढाणी कहा जाता है। फिलहाल नमस्ते, मुझे अपने गांव बड़ी लुहारी नकलना है।
इधर भी आस पास खुर्द नाम के अनेक गांव हैं।
खुर्द को बहुत खुर्दबीन से देखा है आपने! बहुत अच्छा।
खुर्द है की चला ही जा रहा है ! बड़ा लंबा सफर किया इसने.
'खुर्द' पर उपयोगी सामग्री प्रदान की आपने ।
मालवा और राजस्थान में एक ही नाम वाले दो गांवों में अन्तर दिखाने के लिए पुराने/बडे/मूल गांव के नाम के साथ 'बुजुर्ग' भी लगाया जाता है । जैसे - अरनिया बुजुर्ग और अरनिया खुर्द । कई गांवों के नाम के साथ 'जागीर' लगा कर भी उसका बढापन/पुरानापन जताया जाता है ।
बहुत बढ़िया. उपयोगी और दुर्लभ जानकारी.. खुर्द के साथ ही बुजुर्ग शब्द का भी इस्तेमाल होता है. झाँसी के कुछ इलाकों में ऐसे गाँव हैं. शायद बुजुर्ग शब्द गाँव की प्राचीनता बयान करने को इस्तेमाल होता होगा. संभव हो तो इस बारे में भी कुछ बताएं..
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