Saturday, October 4, 2008
वैजयन्तीमाला , झंडाबरदार और जयसियाराम !
पताका या ध्वज आदि के लिए आमतौर पर हिन्दी का प्रचलित शब्द है झंडा (झण्डा)। किसी भी देश, संस्था या संगठन की आन-बान-शान और समूची पहचान का प्रतीक होता है झंडा। झंडा गाड़ा जाता है , झंडा फहराया जाता है , झंडे तले आया जाता है और झंडे पर न्योछावर हुआ जाता है और ध्वज का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि ये सभी वाक्य मुहावरे के तौर पर इस्तेमाल होते हैं।
झंडा किसी भी देश की प्रभुसत्ता का प्रतीक है , आज़ादी का प्रतीक है । यूं झंडे का अर्थ होता है किसी बांस या डंडे के सिरे पर तिकोने या चौकोर कपड़े का टुकड़ा जिसे विशेष अवसर पर हवा में फहराया जाए। आज जिस ध्वज में किसी देश या संस्था की पहचान छुपी है मूल रूप से प्राचीनकाल में जीत का प्रतीक ही था। झंडा हाथ में आते ही होठों पर अपने आप जय जयकार भी आने लगती है। झंडे के जन्म के साथ यही जयकार जुड़ी है। जयकार शब्द अब तो किन्हीं दो लोगों में अभिवादन के तौर पर जयश्रीराम, जयजय राम, जय सियाराम बनकर इस्तेमाल होता है। भाव यहां भी विजय , कल्याण और मंगल का ही होता है । जय जय का सबसे नन्हा अभिवादन रूप "जै जै" सर्वाधिक प्रचलित है।
हिन्दी में जीत के लिए जय, विजय जैसे शब्द प्रचलित हैं जो मूल रूप से संस्कृत के हैं जिनका अर्थ जीत , विजयोत्सव अथवा कामयाबी है। यह बना है संस्कृत की जि धातु से जिसमें जीतना, हराना, दमन करना , नियंत्रण करना , काबू करना जैसे भाव हैं। जि धातु में उपसर्गों और प्रत्ययों के लगने से की शब्द बने हैं जिनसे हिन्दी समृद्ध हुई है। हिन्दी के कई पुरुषवाची और स्त्रीवाची नामों का मूल भी यह धातु रही है। जैसे अजय या अजित ( जिसे कोई न जीत सके ) जीत, अविजित, विजय, जयश्री, अपराजिता, जय आदि। इसी तरह का एक नाम है जयन्त जिसमें विजयी भाव है। जयन्त इन्द्र के पुत्र का नाम है और शिव का भी। चन्द्रमा को भी जयन्त कहते हैं क्योंकि यह अंधेर पर विजय का प्रतीक है। जयन्त+कः से ही बना है । क्रम कुछ यूं रहा होगा- जयन्तक > झअन्डक > झंडअ > झंडा । इसी तरह झण्डी शब्द बना है जयन्ती+का से । विजय पर जो पुष्पहार गले में डाला जाता है उसे जयमाला या वैजयन्तीमाला कहते हैं। वैजयन्ती का ही
...अजय-विजय जैसे नामों के बीच झंडासिंह जैसे नाम भी देहात में सुनाई पड़ते है...
एक देशी रूप बैजन्ती भी देहात में प्रचलित है। भारत के प्रमुख धर्मों में एक जैन धर्म के नाम में भी यही विजयसूचक धातु जि है। इस धातु से बना है जिन् जिसका मतलब होता है विजयी, विजेता, प्रमुख । जैन मत में जिन् वह है जिसने जिसने अपनी इन्द्रियों , विषय-विकारों पर विजय प्राप्त कर ली है। इस अर्थ में संत, मुनि, महात्मा, अर्हत या तीर्थंकर जिन् कहलाए। जैन वह है जो जिन् का अनुयायी है । इस तरह जैन मत शुरू हुआ। झंडे के लिए परिनिष्ठित हिन्दी में ध्वज शब्द का इस्तेमाल किया जाता है । ध्वज का एक अर्थ कुटुंब या परिवार का सर्वाधिक सम्मानित , वयोवृद्ध व्यक्ति या मुखिया भी होता है। इसी तरह पताका शब्द भी है। संस्कृत में उड़ने के भाव को दर्शाने वाली एक मूल क्रिया है पत् । इसी से बना है इसी से बना है पत्र जिसका अर्थ है पौधे या वृक्ष की पत्ती या पक्षी के पंख ।उड़ने की क्रिया से जुड़े कुछ और भी शब्द है जैसे फहराना, लहराना। ये क्रियाएं आमतौर पर झंडे या ध्वजदंड के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। झंडे के लिए पताका भी एक आम शब्द है और यह भी पत् शब्द से ही बना है। पताका यानी ध्वजदंड, कपड़े का टुकड़ा जो हवा में फहराये अथवा संकते , प्रतीक चिह्न आदि। है। संस्कृत मूल से निकले जय का झंडा उर्दू में भी गड़ा हुआ है जहां फारसी के बरदार से जुड़कर यह हो गया है झंडाबरदार। देहात में झंडासिंह जैसे नाम भी कही कहीं सुनने को मिलते हैं। ध्वजारोहण की तर्ज पर झंडारोहण शब्द भी चल पड़ा है।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:16 AM
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4 कमेंट्स:
एक झंडासिंह को मैं भी जानता हूँ...बेहतरीन आलेख. फिर ज्ञान बढ़ा!!
वैजयन्तीमाला हमारी प्रिय सिने तारिका रही हैं :)
और झंडा तो हमेशा देशा के गौरव का प्रतीक रहा है
ध्वज, पताका, झण्डा सब हैं जीत के 'निशान'। हम लगाते किताबों में याद्दाश्त की पर्ची उस को भी कहते झण्डा।
ये भी खूब है भाई !
जयंत से झंडे का आगमन.
सच कल्पनातीत !
जय हो !!
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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