यह अतीत की किसी सदी में हुए राजनीतिक संघर्ष का अनछुआ व अज्ञात कालखंड है, जिसे अठारह अध्यायों में पिरोकर यहां उठा लिया गया है। वर्तमान से इसकी समानता केवल इस कारण दिखाई दे सकती है क्योंकि सदा से सत्ता शिखरों के निकट यही होता आया है।
Sunday, October 5, 2008
एक साध्वी की सत्ता कथा [पुस्तक चर्चा]
चाह कर भी पुस्तक चर्चा नियमित रूप से नहीं हो पा रही है। इस बीच कई पुस्तकें पढ़ी गईं और कई खरीदी गईं मगर शब्द चर्चा के आगे पुस्तक चर्चा के लिए वक्त नहीं निकल पा रहा है । बहरहाल, इस बार बात करते हैं विजय मनोहर तिवारी के चर्चित उपन्यास एक साध्वी की सत्ता कथा की। विजय पेशे से पत्रकार हैं । बीते करीब पंद्रह वर्ष से मीडिया की दुनिया में हैं। प्रिंट, टीवी दोनों को देख समझ चुके हैं। मध्यप्रदेश की इंदिरासागर बांध परियोजना की डूब में आए कस्बे हरसूद से लोगों के विस्थापन की त्रासदी पूरे ढाई महिने तक लाइव कवरेज के जरिये देश-दुनिया के सामने लाए। इस विषय पर उनकी पुस्तक हरसूद- 30 जून भी चर्चित रही और सराही गई। एक साध्वी की सत्ता कथा के बारे में इन दिनों मीडिया में लगातार कहा जा रहा है कि यह मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व भाजपा नेत्री साध्वी उमा भारती के राजनीतिक जीवन पर लिखा गया है।
मध्यप्रदेश में अगले महिने विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। पिछले चुनावों में भाजपा को विजय मिली थी और साध्वी ने प्रदेश में सत्ता की बागडोर संभाली थी, मगर राजनीतिक कुचक्रों के चलते उन्हें बहुत जल्दी सत्ता गंवानी भी पड़ी। अब चुनाव फिर आ गए हैं और इसी वक्त आया है यह उपन्यास। स्पष्ट है प्रदेश के मीडिया और राजनीतिक हलकों में इसे लेकर चर्चा चल पड़ी है। । विजय मनोहर तिवारी इस बारे में लिखते है-
उपन्यास की विषयवस्तु राजनीति है । सदियों पूर्व के कालखंड में तत्कालीन मध्यभारत की कथा कही गई है। कथानक दिलचस्प है और प्राचीन जनतांत्रिक व्यवस्था पर केंद्रित है। लेखक ने यह स्थापित किया है कि राजनीति का चरित्र सदा से एक जैसा रहा है। सदियों पहले के जिस जनतांत्रिक व्यवस्थावाले समाज की बात यहां हो रही है , उपन्यास में उस काल के चरित्रों में वर्तमान के पात्र भी साफ पहचाने जा सकते हैं - सत्ता-ज्योति की चमक, उसके प्रभा-मंडल में मंडराते कीट-पतंगों जैसे राजनीतिक चेहरे...ज्योति से आभासित कुछ लोग... कुछ सत्ता की चमक से चौंधियाए हुए...लगभग दृष्टिहीन ...मगर तब भी उनकी आंखों में सत्ता की भूख पहचानी जा सकती है....सत्ता की लपट से झुलसे हुए कुछ लोग भी यहां दिखाई पड़ते हैं। कथा है उदयपुरम् की जहां राष्ट्रवादी मंडल और प्रजामंडल जैसी
...साध्वी की चाहे बात न करें उपन्यास में वर्तमान राजनीति का विद्रूपसाफ नज़र आता है...
राजनीतिक संस्थाएं है। दोनों सत्ता की राजनीति करती हैं। साध्वी प्रज्ञा हैं जिन्हें जनता में अपार लोकप्रियता मिली है। जिस काल की बात है , देश में तब भी राजनीति को उत्सव और क्रीड़ा प्रसंगों जितना ही महत्व मिला हुआ था। तत्कालीन घटनाक्रम साध्वी प्रज्ञा को सत्तासीन बनाता है। फिर शुरू होता है षड्यंत्रों , कुचक्रों और छल-प्रपंचों का सिलसिला । उपन्यासकार चाहे सदियों पहले के कथानक की बात कहता है मगर इस कथा में झांकता वर्तमान साफ नज़र आता है । सच भी यही है । दरअसल प्राचीन कालखंड और साध्वी की अनदेखी करें तो यह उपन्यास आज की राजनीति के विद्रूप को ही उजागर करता है। राजनीति पर लिखते हुए पत्रकार होना किसी भी लेखक के लिए लाभदायक सिद्ध होता है। विजय मनोहर तिवारी हमारे मित्र और साथी हैं। यह उनकी पुस्तक की समीक्षा नहीं है बल्कि एक मित्र की कृति का परिचय मात्र है। फिलहाल मैं भी इसके कुछ ही अध्याय पढ़ पाया हूं। समय की कमी के चलते इसे आराम से पढ़ रहा हूं और आपसे भी आग्रह है कि इसे ज़रूर पढ़े। पुस्तक को राजकमल प्रकाशन ने छापा है । मूल्य 150 रूपए है।
हरसूद- 30 पर विजय मनोहर तिवारी से साक्षात्कार पढ़ें यहां
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:22 AM
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8 कमेंट्स:
आभार इस पुस्तक चर्चा के लिए...अब लिंक पर जाते है साक्षात्कार पढ़ने.
पुस्तक की सूचना के लिये आभार। विषय दिलचस्प लग रहा है।
लेखक का जनता से जुड़ाव हो तो वह किसी भी तरह से लिखे कहीं तो समाज की सचाइयाँ सामने आती ही हैं। पुस्तकचर्चा के लिए आभार।
उमा भारती एक अजीब फिनामिना हैं। इस लिये यह पुस्तक मिले तो पढ़ूंगा जरूर।
पुस्तक की प्रभावी चर्चा
और जानकारी के लिए
धन्यवाद.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत सुंदर । राजनीति सदैव से सत्ता की चेरी रही है। यह हमारे जीवन कोहर पहलू को प्रभावित कराती है। इसलिए इसे केन्द्र बना कर लिखे गए किसी भी उपन्यास में वर्तमान झाकता नजर आता है। पुस्तक का इतने अच्छे तरीके से परिचय देने के लिए शुक्रिया।
पुस्तक परिचय का धन्यवाद
-पत्रकार असल क्या है वह बखूबी जानते हैँ
कई बार सच को जानते हुए भी
छिपाया जाता है ..
उपन्यास मेँ लेखक होने के नाते
ज्यादा छूट मिल जाती है ..
- लावण्या
aacha laga kitab padhke... aabhi to shuruwaat hi hui hai.... as a journalist utni frrdom nahi mil paati apko likhne ki jitne ki ek writer hone par mili hai... asli comments aur compliments book khatm hone par...
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