...काश में आ उपसर्ग लगने से बना आकाश और प्र उपसर्ग लगने से बना प्रकाश...
Wednesday, October 15, 2008
काश, ऐसा होता ! काश, वैसा होता !!
आस्थावान व्यक्ति भाग्य से जुड़ी बातें ज्यादा करता है। ऐसी बातें अक्सर काश, ऐसा होता या काश, वैसा होता के अंदाज़ में होती हैं। आखिर ये काश है क्या ? ईश्वर से या नियति से मनमाफिक घटना के लिए काश! जैसे शब्द का इस्तेमाल हिन्दी में बहुतायत होता है।
इंडो ईरानी भाषा परिवार का यह शब्द हिन्दी में फ़ारसी से आया है मगर इन्हीं ध्वनियों के साथ मिलते जुलते भावों के साथ संस्कृत में भी मौजूद है और इससे बने कई दूसरे शब्द भी हिन्दी में प्रयुक्त हो रहे हैं। संस्कृत की एक धातु है काश् जिसका अर्थ हैं चमक, उज्जवल अथवा दृश्यमान होना। किसी वस्तु या तथ्य का प्रकट होना, किसी चीज़ का उद्घाटन होना, नज़र आना आदि भाव इसमें शामिल हैं। फारसी-उर्दू वाले काश के मायने हैं ईश्वर करे, खुदा करे अथवा शीशा या कांच। संस्कृत काश् के चमकदार वाले अर्थ में फारसी काश के कांच या शीशा वाले अर्थो पर गौर करें।
काश की व्याख्या आसान है। काश , ऐसा होता या खुदा करे का अर्थ ही यह है कि ईश्वर उसकी मनोकामना पूरी कर दे। अर्थात ईश्वर वैसा नज़ारा दिखा दे , जैसा वो चाहता है। मूलतः संस्कृत के काश् में उद्घाटन होना, प्रकट होना , चमकना आदि भाव उन बातों के उद्घाटन या प्रकट होने से ही जुड़े हैं जो नज़र आती हैं या दिखाई दे रही हैं। काश् में कुछ उपसर्गों और प्रत्ययों के प्रयोग से कई ऐसे शब्द बने हैं जो हिन्दी में आए दिन हम इस्तेमाल करते हैं। प्र हिन्दी का एक महत्वपूर्ण उपसर्ग है। काश् से पहले प्र लगने से बनता है प्रकाश जिसका अर्थ उजाला या रोशनी होता है। काश् में शामिल प्रकटन, उद्घाटन या चमक जैसे भावों को प्रकाश में हम स्पष्ट होते देखते हैं। वैसे प्रकाश का अर्थ है चमकीला, खुला, साफ, प्रदर्शन, कीर्ति, ख्याति आदि। प्रकाश से ही पब्लिश करने के अर्थ में या पुस्तक आदि छपवाने के संदर्भ में प्रकाशन या प्रकाशक जैसा शब्द प्रचलित हुआ है। पुस्तक या कृति को प्रकट करना या सबके सामने लाना ही प्रकाशन है। ऐसा करने वाला प्रकाशक कहलाता है। इस अर्थ में रचनाकार या लेखक ही प्रकाशक भी कहला सकता है।
संस्कृत का आ उपसर्ग भी महत्वपूर्ण है जिसमें सब ओर का भाव भी शामिल है। जब यह काश् के साथ सम्प्रक्त होता है तो एक और नया शब्द बनता है आकाश अर्थात नभ, आसमान, क्षितिज आदि। आकाश यानी जो सब और प्रकट है, दृष्टिगत है। पृथ्वी के ऊपर जो कुछ नज़र आता है वह है आसमान। इसीलिए उसे आकाश कहा गया है। इसी तरह काश् में नि उपसर्ग लगने से संस्कृत में बना निकाश जिसका अर्थ होता है दर्शन, दृष्टि, नजर, निकटता , समानता आदि। हालांकि निकाश का प्रयोग बोलचाल की हिन्दी में नहीं होता हैं मगर इसका ही एक अन्य रूप फारसी निगाह में नज़र आता है जिसका अर्थ भी दृष्टि ही होता है और इसकी उपस्थिति हिन्दी में खूब दिखाई देती है। निगाह से बने कई और भी शब्द हैं जैसे निगाहबीनी, निगरानी, निगाहबान आदि जिनमें मूलतः देखना , निरीक्षण करना या ताकना जैसे अर्थ शामिल हैं।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:29 AM
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14 कमेंट्स:
नि उपसर्ग वाला एक और शब्द सुनने में आजकल आता है, कई लोग आम बोलचाल में निश्चिंत शब्द के बदले निष्फिकर का उपयोग करने लगे हैं, अभी एक ब्लॉग पर 'निष्क्रिय' शब्द के स्थान पर पढ़ा:
डाक्टर रमा कान्त का कहना है की गुर्दों के निष्काम होने का सबसे आम कारण है मधुमेह, जिसके चलते लगभग ४४% नए रोगियों के............
वाह काश आकाश पर प्रकाश ही प्रकाश हो ! :) और काश! हमेँ भी शब्दोँ का जादू आ जाये !
- लावण्या
काश!! ऐसा होता!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
काश/प्रकाश---> झकास!
काश आकाश मिले !
काश प्रकाश मिले !!
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सब यही सोचते हैं. है न ?
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
होता रहे विकास !
काश -> प्रकाश -> आकाश कहीं अवकाश भी तो इधर से ही नहीं निकला.
काश फ़ारसी शब्द है ये तो कभी सोचा ही नहीं था, व्याख्या काफ़ी मानसिक पट खोल रही है। अभिषेक जी का प्रश्न के उत्तर का हमें भी इंतजार रहेगा
एक और सर्वथा नयी और अच्छी जानकारी...धन्यवाद!
शब्दकोश के साथ ज्ञानकोश को बढ़ाने वाली जानकारी. शुक्रिया..!!
काश, इश्वर सबकी मनोकामना पुरी करे |
काश, आकाश में प्रकाश |
बढि़या है!
@अनिताकुमार
@अभिषेक ओझा
देर से उत्तर के लिए क्षमा। आपका अनुमान सही है। अवकाश के मूल में भी यही काश् है...
निकाश कहीं पढ़ने में नहीं आया...
जबकि इसका शानदार इस्तेमाल किया जा सकता है...
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