कौन कौन पधारे
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
प्रस्तुतकर्ता
अजित वडनेरकर
पर
3:23 AM
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
24 कमेंट्स:
हाँ यह नवीन प्रवृत्ति उभर तो रही है ! शुभ संकेत !
हिन्दी ब्लागिंग ने सोशल नेटवर्किंग का वह चमत्कार दिखाना शुरु किया है -बिल्कुल सत्य वचन...हमने भी इस मार्फत ढ़ेरों मुलाकाते और मित्र बनाये.
bloging pariwar jindabad
ये बहुत अच्छी बात है.और आपको इसके ज्यादा मौके मिलते रहेंगे क्योंकि आप मध्य मे हैं. वहां से होकर आना जाना लोगो का लगा रहता है. आज कल तो ये भी एक सशक्त पारिवारिक समूह जैसा बनता जा रहा है.
रामराम.
अच्छी जानकारी दी आपने
इन सभी ब्लागर मित्रों का काम
बहुत महत्वपूर्ण है
हमारा भी नमस्कार उन्हें.
==========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
अजित भाई!
मैं तो धन्य हो गया। नया समाज बन रहा है। यही नए मार्ग भी सुझाएगा। उम्मीद की किरणें दिन दूनी रात चौगुनी हों। यही महत्वाकांक्षा है।
यह सचमुच में 'वर्ग विहीन' और 'जाति विहीन' समाज बन रहा है जिसका ण्क मात्र आधार और कारण केवल 'ब्लाग' है। छोटे मुंह बडी बात करने का मूर्खतापूर्ण दुस्साहस कर रहा हूं किन्तु कहने से खुद को रोक भी नहीं पा रहा हूं कि मुमकिन है कि जो काम गांधी और लोहिया छोड गए हैं वह यह 'ब्लाग' पूरा करता दिखाई दे।
इससे बढ़िया सोशल नेट्वर्किंग मुझे कहीं और नही दिखती है.. ना तो ऑरकुट में और ना ही फेसबुक में..
इसमें क्या शक है? आज जितने लोगों से फोन पर बात होती है उनमें से ज्यादातर ब्लोगर्स ही हैं. सोशल नेट्वर्किंग का काम यह इतनी खूबी से कर रहा है कि चिरकुट हो चुकी ओर्कुटिंग से अपना वास्ता लगभग ख़त्म हो चुका है.
पहले आए सभी विद्वानो से सहमत हूं,और ने समाज के उतरोत्तर फ़लने-फ़ूलने की कामना करता हूं।
सच कहून तो मेरे जसे छोटे से शहर मे रहने वलों के लिये तो ये पूरी दुनिया क सफर कुछ पल मे है ये इस मयने एक वर्दान हुआ सब को शुभकामनायें
जय हो ब्लॉग कुटुंब की ।
ye duniya aabhaasi magar aatmiy bhii hai
सहमत हूं
सही है किंतु शय ये "मुमकिन है कि जो काम गांधी और लोहिया छोड गए हैं वह यह 'ब्लाग' पूरा करता दिखाई दे।"नही विष्णु भैया .
अजित भाई हिन्दी ब्लागिंग आने वाले दो-तीन बरस में ५० हज़ार का आंकडा पर सार्थक ब्लागिंग की दरकार तब भी रहेगी
अच्छा विमर्श आभारी हूँ
सत्य वचन महाराज ! वरना हम आपको कैसे जान पाते, और कितने ही महानुभावों को आज जानते हैं. एक से बढ़कर एक उत्तम लोग. हमारा तो सुसंस्कृत वर्चुअल परिवार बढ़ता जा रहा है.
ब्लाग कुटुम्ब बने यह तो अच्छी बात है पर ब्लाग जगत खेमों में बटें तो यह एक अशुभ संकेत होगा।
इस नए गांव में
एक हमारी भी
झुग्गी है।
अच्छा संकेत है तो ..कहीं से तो आपस में जुड़ रहे हैं सब
एकदम सही कहा.
सचमुच यह बड़ा ही सुभ संकेत है.....
बिल्कुल सही बात है अजित भाई. हमारी मुलाकात ढेर सारे लोगों से हुई. जिनसे नहीं हो सकी है, आशा है एकदिन ज़रूर होगी. पहले मैं कहता था कि इतनी बड़ी दुनिया में जितने लोगों को जानते हैं, अगर उंगली पर गिनना शुरू करें तो नाम कम पड़ जायेंगे.
अब ऐसा नहीं कहते.
सच ही तो लिखा है आपने ... सहमत
... वर्च्युअल वर्ल्ड की शख्सियत की भौतिक उपस्थिति को देखने की इच्छा ... असली व्यक्तित्व से वर्च्युअल की आजमाइश का क्षण भी ...
... लगातार सामाजिक तौर पर सबसे कटता जा रहा ...
आपने एक सच को शब्दों में ढ़ाला
और PD का कहना भी सच्चाई है कि इससे बढ़िया सोशल नेट्वर्किंग मुझे कहीं और नही दिखती है.. ना तो ऑरकुट में और ना ही फेसबुक में
ब्लागिंग की यह अनोखी कौटुम्बिक पहचान, ऊँचाईयों को छुये -मेरी शुभकामनायें
Post a Comment