... वृद्धावस्था होने पर तपस्वी अक्सर इच्छा मृत्यु चुनते थे जिसके तहत वे आहार त्याग कर निरंतर भाव-चिन्तन में लीन रहते। इन्ही क्षणों में वे देहत्याग करते जिसे समाधि कहा जाने लगा ...
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... वृद्धावस्था होने पर तपस्वी अक्सर इच्छा मृत्यु चुनते थे जिसके तहत वे आहार त्याग कर निरंतर भाव-चिन्तन में लीन रहते। इन्ही क्षणों में वे देहत्याग करते जिसे समाधि कहा जाने लगा ...
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 5:23 AM लेबल: god and saints
16.चंद्रभूषण-
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15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
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11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
16 कमेंट्स:
एक अच्छी पोस्ट,जिसमे विभिन्न सम्प्रदायो की अंतिम यात्रा और उससे सम्बन्धित जानकारी अच्छी लगी..........जानकारी देने के लिये बहुत बहुत धन्यावाद
रोचक जानकारी।
अब ऐसा लगता है कि आपके पास इतना संकलन हो गया है कि एक पुस्तक प्रकाशित हो सकती है. इस बारे में आपको सोचना चाहिए.
बहुत अच्छा लगा ये पढ़...
वैसे समधी और समाधी में भी कोई रिश्ता है क्या?
गम्भीर ज्ञानवर्धक प्रविष्टि । धन्यवाद ।
वाकई आज की पोस्ट अद्भुत है .....
वडनेकर जी।
जानकारियों से भरी पोस्ट के लिए धन्यवाद।
महत्वपूर्ण तथ्य कि 'आर्यों ने शवदाह की प्रथा उन्होंने अनार्यों से सीखी' जानकारी में आया।
पता नहीं महर्षि पातंजलि अष्टांगयोग के अन्तिम सोपान में किस समाधि की बात करते हैं। मेरा ख्याल है कि एक योगी जाग्रत भी होता है और समाधिस्थ भी।
dhnya ho ajit ji,
aaj bahut jaldi me hoon iske baavjood aapke aalekh ko padhne ka moh tyag nahin paaya...
yon hi anand karaate raho
badhaai !
जो शीर्ण होता है उसे शरीर कहते हैं, जो तनुता है विकसित होता है उसे तन कहते हैं, जो दहति अर्थात ताप से युक्त होता है उसे देह कहते हैं और जो स्थान घेरता है उसे काया कहते हैं। पहले पैरे में यह कहा गया है कि हिन्दू धर्म और उससे निकले कुछ पंथों में दाह संस्कार प्रचलित था पुनः अंतिम से पहले पैरे में भाषा विज्ञान के हवाले से कहा गया है कि पहले श्मशान मे जलाया नहीं दफनाया जाता था। चिता पर भी लिटाया ही जाता है। ऋगवेद में जलानें का विस्तृत विवरण मिलता है। हाँ परिस्थितिवशात् गाड़्ने का भी विधान मिलता है।
@सुमंत मिश्र कात्यायन
टिप्पणी के लिए शुक्रिया कात्यायन जी। देह, तन, काया की जो आपने व्याख्या की है उसके बारे में शब्दों का सफर के अंतर्गत लिख चुका हूं और भास्कर में यह प्रकाशित हो चुकी है। संभवतः ब्लाग पर तन, तनु वाली कड़ी में उल्लेख होगा अन्यथा इन्हें नए रूप में अभी ब्लाग पर डालना बाकी है। इस पोस्ट में तो चलते-चलते संदर्भ आ गया। शरीर का शीर्णता से रिश्ता तार्किक है। सरपत वाली पोस्ट मूलतः घास के प्रकारों पर केंद्रित होने से इस पर ज्यादा नहीं लिखा जा सका था। आपने सूत्र दिया है तो इसे भी संशोधित कर लूंगा।
साभार
The Subject is quite morbid ..
but is this true ?
" किसी ज़माने में प्राचीन भारत के आर्यों में भी शवों को दफ़नाने की परम्परा रही होगी। "
अच्छी और रोचक जानकारी.
अंतिम संस्कार के बारे विभिन्न विधियों का प्रावधान है धर्मो के अनुसार . परन्तु पारसी धर्म में तो बहुत विचित्र तरीका है उसकी भी कभी जिक्र करे प्रतीक्षा रहेगी
रक्षाबन्धन: सात्विक व्रत का संकल्प दिवस
रक्षाबन्धन कर्तव्य नहीं,
सात्विक-व्रत का संकल्प दिवस है।
रक्षाबन्धन है पवित्रता का पर्व,
एक सात्विक साहस है।
सत-व्रत की देवी को, अपना सर्वस्व समर्पण है।
व्रत की याद दिलाने आया यह रक्षाबन्धन है।।१।।
जब कर्मवती ने निज रक्षाहित,
वीर हुमायूँ को इसकी सौगन्ध दिलायी।
धर्म से, व्रत से हुआ आबद्ध जब वह,
बहन रक्षा के लिए, निज प्राण की बाजी लगायी।
त्योहारों में श्रेष्ठ सुमति का यह नन्दन है।
व्रत की याद दिलाता यह रक्षाबन्धन है।।२।।
सात्विक व्रत के इस महापर्व में,
होता बन्धु-भगिनि का सात्विक अभिसार।
राखी बाँध पवित्र बनाती,
अब होवे रक्षाव्रत साकार।
सभी अपशकुन नष्ट हो रहे, देखो! उनका ही क्रन्दन है।
व्रत की याद दिलाता यह रक्षाबन्धन है।।३।।
देखो! पूरब के अम्बर में,
वह धूमकेतु दिखता कराल।
सात्विकता पर संकट आया,
वह निकट आ रहा भीषण काल।
युग की पुकार सुन बोलो अब, 'आवश्यक रक्षाबन्धन है'।
व्रत की याद दिलाता यह रक्षाबन्धन है।।४।।
जागो! निज व्रत को याद करो!
तुम डरो नहीं, हाँ निर्भय हो।
उठ जाओ! अरि पर टूट पड़ो,
तम पर सात्विकता की जय हो।
काली बदली के भेदक, सत रवि का बन्दन है।
व्रत की याद दिलाता यह रक्षाबन्धन है।।५।।
कर महायुद्ध उस दुर्विनीत से,
सात्विकता की दिग्विजय करो!
उठ जाओ शीघ्र! आवश्यक हो,
तो कलम त्याग असि शीघ्र वरो!
है जग की सब सम्पदा शून्य, तेरा व्रत ही सच्चा धन है।
व्रत की याद दिलाता यह रक्षाबन्धन है।।६।।
अशोक सिंह सत्यवीर{प्रकाशन: वर्ष 2005, पत्र-'श्रमिक-मित्र', सहारनपुर से साभार}
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