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Wednesday, June 10, 2009
बेटू, बिट्टन, बच्चन का लाड़लापन
बा लक-बालिका के लिए लड़का या लड़की शब्द हिन्दी के सर्वाधिक प्रयुक्त बोलचाल के शब्दों में शुमार हैं। लड़का-लड़की शब्द में आयु की दृष्टि से ग़ज़ब का विस्तार है। शैशव से युवावस्था तक इसमें शामिल है। यूं कहे कि बच्चे की जन्म के बाद से विवाहपूर्व की अवस्था को समेटनेवाला शब्द युग्म है लड़का–लड़की।
संस्कृत धातु लट् से बना है यह शब्द्। लट् धातु में बालकोचित, बच्चों समान जैसा भाव है। इससे बने लटः शब्द में मूर्ख या भोंदू का भाव भी है। समझा जा सकता है कि बालकोचित व्यवहार को भी मूर्खता का प्रमाण मान लिया जाता है क्योंकि बालक में सोचने-समझने की क्षमता ज्यादा नहीं होती। लटः का देशी रूप लंठ है जो हिन्दी की कई बोलियों में मूर्ख, बेवकूफ की अर्थवत्ता रखता है। लट् धातु का अगला रूप लड् होता है जिसमें खेल, क्रीड़ा, हाव-भाव दिखलाना, बहलाना जैसे भाव हैं। जाहिर है ये सब प्यार की अभिव्यक्तियां हैं जिसे लाड़ कहा जाता है और जो इसी मूल से उपजा शब्द है। संतान हमेशा प्यारी ही होती है, इसीलिए उससे लाड़-प्यार जताया जाता है। लाड़ली,लाड़ला जैसे शब्द इसी मूल के हैं। इसी कड़ी में आते हैं लौंडा या लौंडिया जैसे शब्द जिनका लड़का लड़की के संदर्भ में सामान्य प्रयोग पश्चिमोत्तर भारत में ज्यादा होता है। खासतौर पर पंजाब में। शेष हिन्दी क्षेत्रों में इन शब्दों का प्रयोग असभ्य या अश्लील माना जाता है। कारण यह भी हो सकता है कि रजवाड़ों के दौर में दासी पुत्र या दासीपुत्री के लिए लौंडा या लौंडी शब्द का प्रयोग होता रहा है।
हिन्दी में पुत्र या पुत्री के लिए बेटा या बेटी शब्द का चलन है। यही नहीं बड़ों की ओर से छोटों को स्नेहपूर्वक दिया जाने वाला भी यह एक बेहद लोकप्रिय संबोधन है। इस बेटा और बेटी पर जब लाड़-प्यार-वात्सल्य की चाशनी ज्यादा चढ़ा दी जाती है तब बिट्टू, बिटवा, बिटिया, बिट्टी,बिट्टन जैसे कई गाढ़े और प्यारे रूप देखने को मिलते हैं। ये सभी शब्दरूप संस्कृत के वटु: से बने हैं । संस्कृत मे इसी शब्द के तीन अन्य रूप- वटुक:, बटु: और बटुक भी हैं। इन तमाम शब्दरूपों के दो ही अर्थ हैं पहला - ब्रह्मचारी, दूसरा- छोकरा, लड़का या किशोर। वटु: या बटुक से अपभ्रंश रूप में बेटा शब्द बना जिसका चलन पुत्र के अर्थ में होने लगा। बाद में पुत्री की तर्ज पर इससे बेटी शब्द भी बना लिया गया मगर मूलत: यह पुरुषवाची शब्द ही था।
प्राचीनकाल में गुरुकुल के विद्यार्थी के लिए ही आमतौर पर वटु: या बटुक शब्द प्रयोग किया जाता था। राजा-महाराजाओं और श्रीमन्तों के यहां भी ऋषि-मुनियों के साथ ये वटु: जो उनके गुरुकुल में अध्ययन करते थे, जाते और दान पाते। बजरबट्टू भी बटुक से ही बना। बजरबट्टू आमतौर पर मूर्ख या बुद्धू को कहा जाता है। जिस शब्द में स्नेह-वात्सल्य जैसे अर्थ समाए हों उससे ही बने एक अन्य शब्द से तिरस्कार प्रकट करने वाले भाव कैसे जुड़ गए? आश्रमों में रहते हुए जो विद्यार्थी विद्याध्ययन के साथ-साथ ब्रह्मचर्यव्रत के सभी नियमों का कठोरता से पालन करता उसे वज्रबटुक कहा जाने लगा। जाहिर है वज्र यानी कठोर और बटुक मतलब ब्रह्मचारी/विद्यार्थी। ये ब्रह्मचारी अपने गुरू के निर्देशन में वज्रसाधना करते इसलिए वज्रबटुक कहलाए। डॉ भोलानाथ तिवारी के अनुसार सदियां बीतने पर जब गुरुकुल और आश्रम परम्परा का ह्रास होने लगा तब इन बेचारे बटुकों की कठोर वज्रसाधना को भी समाज ने उपहास और तिरस्कार के नजरिये से देखना शुरू किया और अच्छा खासा वज्रबटुक हो गया बजरबट्टू यानी मूर्ख।
उर्दू-हिन्दी में प्रचलित बच्चा संस्कृत के वत्स से ही बना है जिसके मायने हैं शिशु। वत्स के बच्चा या बछड़ा बनने का क्रम कुछ यूं रहा है-वत्स>वच्च>बच्च>बच्चा या फिर वत्स>वच्छ>बच्छ>बछड़ा। वैदिक युग में वत्स उस शिशु को कहते थे जो वर्षभर का हो चुका हो। जाहिर है कि बाद के दौर में (प्राकृत-अपभ्रंश काल) में नादान, अनुभवहीन, कमउम्र अथवा वर्षभर से ज्यादा आयु के किसी भी बालक के लिए वत्स या बच्चा शब्द चलन में आ गया। यही नहीं मनुश्य के अलावा गाय–भैंस के बच्चों के लिए भी बच्छ, बछड़ा, बाछा, बछरू, बछेड़ा जैसे शब्द प्रचलित हो गए। ये तमाम शब्द हिन्दी समेत ब्रज, अवधी, भोजपुरी, मालवी आदि भाषाओं में खूब चलते है। फारसी में भी बच्च: या बच: लफ्ज के मायने नाबालिग, शिशु, या अबोध ही होता है। ये सभी शब्द वत्स की श्रृंखला से जुड़े हैं। बचऊ और बच्चन भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं। इन सभी शब्दों में जो स्नेह-दुलार-लाड़ का भाव छुपा है, दरअसल वही वात्सल्य है।
संबंधित कड़िया-1.मुनिया और छुट्टन के छोरा-छोरी 2. लालू लल्लन के गुड्डे-गुड़िया 3.औलाद बिन वालदैन इब्न वल्दियत 4.नन्हेंमियां, नन्हींबेगम और नंदिनी की ननन्द
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:34 AM
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15 कमेंट्स:
आपकी पोस्ट ने मेरी बचपन की यादें ताजा कर दीं।
उस समय हम लोग बजरबट्टू शब्द का प्रयोग
काफी किया करते थे।
धन्यवाद।
अब "बच्चन " नाम ऐश्वर्याके साथ भी जुड गया है :-)
बचपन के ये सारे ही नाम दुलार लिये हैँ
- लावण्या
badhaai ho bhai
bhasha aur saahitya ke kshetra me atyant mahatvapoorna karya kar rahe hain aap...
is aalekh se bahut jaankaari mili
aabhaar !
अच्छी जानकारी ,धन्यवाद .
कमाल की जानकारी ! मेरा फोन ----- (९९९९२७८६५७).सादर
---मुनीश
क्या बात है! बहुत बढिया जानकारी।आभार।
वाह! लंठ का मूल पता चलने पर सुकून मिला!
@ अजित वडनेरकर "...लंठ है जो हिन्दी की कई बोलियों में मूर्ख, बेवकूफ की अर्थवत्ता रखता है।"
ग़जब का संयोग है, पाण्डेय जी के 'लंठ' पर मैंने ऑबजेक्सन बिना यह पोस्ट देखे किया था और उसमें स्पष्ट मत दिया था कि आप से इस शब्द की समीक्षा नहीं हो सकेगी । अब आप के पोस्ट पर देख रहा हूँ कि आप यह दुस्साहस कर चुके हैं। यह क्या टेलीपैथी है?
वैसे अब तक की अपनी जिन्दगी में पहली बार आप से असहमत हो रहा हूँ। लंठ शब्द की आप की ब्याख्या सही नहीं है। इसके अर्थ विराट हैं - हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह। आप 'राग दरबारी' का सेवन करें।
@ज्ञानदत्त पाण्डेय :"वाह! लंठ का मूल पता चलने पर सुकून मिला!"
http://halchal.gyandutt.com/2009/06/labour-and-entrepreneurship-are-not.html"आतंकी के साथ शठता और आम जनता के साथ न्याय – यह होना चाहिये। आप अगर दोनों के साथ मुलायम हैं तो आप या तो लंठ हैं ।"
नहीं सर, अभी मूल क्या पत्ते फुनगी भी नहीं ब्याख्यित हुए। सिद्धार्थ http://satyarthmitra.blogspot.com) कहाँ हो? देखो भोजपुरी के 'शब्दरत्न' की कैसी दुर्दशा ये नागर कर रहे हैं !
@गिरिजेश राव
:) भाई,
अभी तो आपके संदर्भ ही समझ लूं, साहस, दुस्साहस तो अलग बात है।
यहां प्राथमिक-चर्चा में लंठ शब्द की अर्थवत्ता को व्याख्यायित करना अभीष्ठ नहीं था। वह तो संदर्भान्तर्गत आया है। मूल उद्धेश्य तो शैशव से जुड़ी शब्दावली को बीनने-चीह्नने का प्रयास है। उसके तहत लड़का-लड़की पर चर्चा प्रमुख रही है। लंठ पर उस नजरिये से तो फिलहाल नहीं सोचा है।
वैसे लंठ में एक अलग किस्म की जड़ता भी समायी हुई है जिसकी भावाभिव्यक्तियां इसे धारण करनेवाले के व्यक्तित्व के आधार पर अलग अलग होती है। राग दरबारी का संदर्भ सिर्फ किसी एक चरित्र के मद्देनजर सामने आ रहा है। लंठता भी बहुआयामी है, पर मूलतः वह शठता, मूर्खता, हठ, जड़ता जैसे रंगों से मंडित है।
शेष फिर...
"..वैसे लंठ में एक अलग किस्म की जड़ता भी समायी हुई है जिसकी भावाभिव्यक्तियां इसे धारण करनेवाले के व्यक्तित्व के आधार पर अलग अलग होती है। राग दरबारी का संदर्भ सिर्फ किसी एक चरित्र के मद्देनजर सामने आ रहा है। लंठता भी बहुआयामी है|"
यहाँ तक सवा सोलह सौ प्रतिशत सहमत हूँ। आगे असहमत। लगता है कि इस पर एक पोस्ट लिखनी पड़ेगी लेकिन अभी तो कमबख्त गढ्ढे ही परेशान किए हुए हैं। मुझे न जाने कितने दिखते हैं और जनता को दिखते ही नहीं। अपनी आँखों का चेक-अप और दिमाग का स्कैन कराने की सोच रहा हूँ।
कहीं यह संसार की ऐसी पहली प्रतियोगिता न हो जिसमें कोई प्रतिभागी ही नहीं आया । विद्वत परिषद(निर्णायक मंडल) इस पर विचा र करे।
क्षमा प्रार्थना: मेरी टिप्पणी का उद्देशय इस ब्लॉग की मर्यादा को क्षति पहुँचाना हरगिज नहीं है। सबकी आँखों का तारा है यह। मन बहकता है तो छूट ले लेते हैं लेकिन अग्रज लोग छोटों की गलतियाँ तो मुआफ कर ही देते हैं। अगर ज़रूरी समझें तो इस टिप्पणी को पढ़्ने के बाद हटा दें।
@गिरिजेश राव
कैसी बातें कर रहे हैं भाई ?
सफर में संवाद बहुत ज़रूरी है और विमर्श भी।
आपकी पोस्ट का इंतजार रहेगा।
लौंडा लौंडिया भी आ गए :) अपरम्पार महिमा है जी आपके ब्लॉग की ! और हाँ कल फिर से टिपण्णी का बक्सा बंद था :(
लंठ और बजरबट्टू के काफी करीब पाता हूँ अपने को . लोग कहते है लोंडा बर्वाद हुआ इंटरनेट तेरे लिए .
बहूत ही रोचक और ज्ञानवर्द्धक जानकारी .के लिए धन्यवाद .
भाषा सम्बन्धी आपकी जानकारी हर पीढ़ी के लिए उपयोगी है। काश आज के युवा भी इसमें रुचि लें जो न हिन्दी अच्छी तरह जानते हैं, न ही अंग्रेज़ी, और दो चार अंग्रेज़ी वाक्यों से रौब ग़ालिब करने के मुग़ालते में रहते हैं, अभिव्यक्ति के लिए जिनके पास हमेशा उचित शब्दों की कमी रहती है।
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