Monday, June 8, 2009

नन्हेंमियां, नन्हींबेगम और नंदिनी की ननन्द

शि शु अथवा शावक के लिए हिन्दी में नन्हा शब्द भी इस्तेमाल होता है। यह बच्चों के लिए प्यार से दिया जानेवाला संबोधन भी है। इसीलिए बचपन में दिये गए ये संबोधन कई बार बुढ़ापे तक साथ निभाते हैं। नन्हेंलाल, नन्हेंमल, नन्हें मिया,  नन्हीं बेगम, नन्हीं बाई आदि अनेक नाम इस क्रम में आते हैं। नन्हा शब्द अपने आप में लघुता और छोटे आकार का परिचायक भी है इसीलिए इसका इस्तेमाल विशेषण की तरह भी होता है जैसे नन्ही जान, नन्हा परिंदा, नन्ही उम्मीद आदि।
मालवी में शैशवावस्था से गुज़र रहे बच्चों को नाना, नानी कह कर संबोधित किया जाता है जो नन्हा-नन्ही का ही रूप हैं। इनसे बडी आसानी से नानाराम, नानीबाई जैसे नाम बन जाते हैं। संस्कृत के नन्द् शब्द में कः प्रत्यय बनने से बनता है नन्दक जिसका मतलब होता है
... न्दिनी शब्द का एक मतलब होता है पुत्री। पुराणों में उल्लेख है कामधेनु गाय को नन्दिनी नाम मिला क्योंकि यह देवताओं का कल्याण करने के पैदा समुद्र से पैदा हुई थी ... brassmod kamdhenu2 lostwax
हर्षित करनेवाला, आनंदित करनेवाला, छोटा बच्चा, शिशु, लघु, छोटा, अल्प या थोड़ा आदि। मूलतः नन्द् का अर्थ होता है खुशी, प्रसन्नता, सुख, समृद्धि, संतोष आदि। शिशु का जन्म माता-पिता और समूचे परिवेश के लिए प्रसन्नता की बात होती है। शिशु का अस्तित्व सुखकारी है इसलिए शिशु ही नन्द है, नंदन है। इस तरह नन्द के नन्दू, नन्हा, नाना जैसे रूप और तदनुसार स्त्रीवाची रूप भी सामने आए। नन्ना, नन्नू, नन्हकू, नन्हकुआ जैसे शब्द भी पूर्वी बोली में हैं। बच्चे का जन्म सुखकारी होने के भाव से विस्तारित होकर यह धारणा बनी कि बच्चे खुशियों के वाहक हैं। बच्चों का रोना, ठुनकना, जिद, अबोधता, मासूमियत, उधम ये सब आह्लादकारी हैं। ये सब गुण अगर  वयस्क में हो तो नकारात्मक होते हैं, क्षोभ और गुस्से की वजह बनते हैं। बच्चे में ये गुण नैसर्गिक है। जो कुछ भी अपने सहज-प्राकृतिक रूप में है, वह सब सुखकारी है यही बात इसके मूल में है।
न्द् में संतुष्टि, प्रसन्न और हर्षित करने का भाव है। किसी को सम्मान देना निश्चित ही आह्लादकारी बात होती है। सम्मानित होने वाले के साथ-साथ मान प्रदान करनेवाले के लिए भी। इसीलिए सम्मान के लिए हिन्दी में अभिनंदन शब्द बना। मूलतः इसमें स्वागत करने, हर्ष प्रकट करने और बधाई देने का भाव है जो बाद में सम्मान करने जैसे अनुष्ठान के अर्थ में रूढ़ हो गया। नन्द से आह्लाद का बोध करानेवाले अनेक शब्द बने हैं जैसे नंदन-वन, नंदन-कानन। वन यानी अरण्य या जंगल और कानन यानी उद्यान या बगीचा के साथ नंदन शब्द में इन स्थानों के आनंददायक होने से जुड़ता है। अरण्य भयकारी भी हो सकता है और उद्यान अव्यवस्थित भी। इनके साथ नन्दन विशेषण इन्हें महत्व प्रदान करता है। पुराणों में नन्दन नाम इन्द्र के उद्यान के लिए आता है।
ति की बहन के लिए ननन्द शब्द के मूल में भी यही नन्द है जिसकी व्युत्पत्ति मोनियर विलियम्स ननांद्रि (ननान्दृ)  से बताते हैं । डॉ भोलानाथ तिवारी अपनी पुस्तक शब्दों का जीवन में इसकी बड़ी मजेदार व्याख्या देते हैं। उनका कहना है कि नन्द से ननन्द सम्बोधन बनाने वाले समाज ने ननन्द भौजाई के रिश्ते की सूक्ष्मता को देखा। ननन्द वही है जो भौजाई को आनंद से न रहने दे, उसे सताए। उनका कहना है कि इस दृष्टि से देवर भी भौजाई को सताते हैं सो वे भी ननन्द ही हुए। ननन्द के पति के लिए नन्दोई शब्द का मूल यही है। आप्टे शब्दकोश के अनसार ननन्द शब्द नन्दा से बना है। भोलानाथ तिवारी की व्याख्या व्युत्पत्ति को दिलचस्प तो बनती है, पर तार्किक नहीं । क्योंकि अगर आनंद से न रहने देने का भाव ही इसमें प्रमुख होता तो सवा सौ साल पहले मोनियर विलियम्स ने इसका अर्थ पति की बहन न बताया होता । उक्त व्याख्या पुरुषवादी समाज के मद्देनज़र की गई है । इसके पीछे छुपे व्यंग्य को पहचाना जाना चाहिए । आप्टे शब्दकोश के अनसार ननन्द शब्द नन्दा से बना है । 
न्दिनी शब्द का एक मतलब होता है पुत्री। पुराणों में उल्लेख है कामधेनु गाय को नन्दिनी नाम मिला क्योंकि यह देवताओं का कल्याण करने के लिए समुद्र से पैदा हुई थी। कामधेनु अर्थात इच्छाओं की पूर्ति करनेवाली गाय। किन्हीं संदर्भों में नंदिनी को कामधेनु की पुत्री कहा गया है। कामधेनु को ही गौवंश के सभी जीवों की मां होने का गौरव प्राप्त है। गोपालकों में अपनी प्रिय गाय का नाम नन्दिनी रखने की परम्परा है। इसका मतलब पृथ्वी भी होता है। दोनो ही शब्द मातृरूप हैं अर्थात नन्दिनी भी आनंद प्रदान करनेवाली है। नन्दिन् या नन्दि विष्णु का नाम भी है। यह शिव के लिए भी प्रयुक्त होता है और उसके अनुचर के लिए भी। इस अनुचर के तौर पर शिव के वाहन बैल का नाम भी जोड़ा जाता है। धात्री के रूप में धरती हमारी खुशहाली का मूल है और शिशु के लिए उसकी माता ही खुशियों का ख़जाना है। नंदिता, नंदिनी, आनंदिता, नंदना जैसे नामों का अर्थ है सुखकारिणी, प्रसन्न करनेवाली।
न्द नाम का ऐतिहासिक-पौराणिक महत्व भी है। मौर्यकाल से पहले 362 ईसापूर्व उत्तर भारत में नन्द वंश का ही शासन था जिसके राज्य की सीमाएं पाटलीपुत्र से लेकर तक्षशिला तक फैली थीं। कहा जाता है कि नन्द साम्राज्य की ताकत से घबराकर ही सिकंदर के सैनिकों नें व्यास नही को पार करने से मना कर दिया था। नंदवंश के शासक घननंद के अकुशल प्रबंध और राज्य में व्याप्त अराजकता के चलते चाणक्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त ने क्रांति की और महापद्मनंद द्वारा स्थापित इस वंश का खात्मा कर राज्यारोहण किया। इस तरह महान मौर्य साम्राज्य की नींव रखी गई। द्वापरकाल में  श्रीकृष्ण के पालक-पिता के रूप में नन्द सामने आते हैं जो मथुरा क्षेत्र के तहत आनेवाले गोकुल-नंदगाव के आभीर गोपों के मुखिया थे। इनकी पत्नी यशोदा को श्रीकृष्ण की माता का दर्जा प्राप्त है। श्रीकृष्ण नन्द की संतान कहलाते थे इसीलिए उन्हें नन्द नन्दन कहा जाता है। यह दिलचस्प है कि नन्द शब्द में जहां शिशु का भाव है वहीं माता-पिता का भाव भी है।
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21 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

नन्द शब्द में जहां शिशु का भाव है वहीं माता-पिता का भाव भी है।

--बहुत उम्दा जानकारी. आभार.

दिनेशराय द्विवेदी said...

नंदिनी तो ठीक, लेकिन नन्दी के बारे में क्या सोचना है? नन्दी शिव को तो सुख देता है लेकिन बाकी सब का सुख भी हर लेता है।

Unknown said...

WAAH WAAH
BAHUT KHOOB !
ATYANT SAARTHAK VA UPYOGI............BADHAI !!!!!

अजित वडनेरकर said...

@दिनेशराय द्विवेदी
सही कह रहे हैं वकीलसाब!!! अदालतों में भी कई नंदी भटकते दिखते हैं ....उन्हें न सत्य की तलाश रहती है, न शिव की, न सुंदरम की...
पर वो होते नंदी जैसे ही हैं। करना तो नहीं चाहता एक सांस्कृतिक शब्द की तर्जुमानी...दरअसल वे रसूखदार मुवक्किल के गुर्गे होते हैं...अनुचर...नंदी...

डॉ. मनोज मिश्र said...

सही व्याख्या किया है .धन्यवाद जानकारी के लिए .

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

ननद शब्द की व्याख्या तो बड़ी गूढ़ निकली।
बंगला का आश्रय ले कर कहें तो आप बड़े ही 'भयंकर' खोजी हैं।

Smart Indian said...

नन्द-नंदन की जय, आज की नन्दन-वार्ता में आनन्द आ गया!

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ said...

उत्तरप्रदेश ही नहीं संस्कृत परिवार की सभी भाषाओं में नन्द शब्द ‘नन्दयति इति नन्दयतीति’ अर्थात जो आनंद या सुखप्रदायक हो के अर्थ में लिया जाता है। आनंद या सुख भी ऎसा-वैसा नहीं, सच्चिदानंद के सत्‌-चित-आनंद वाला आनंद। अप्रतिहत, क्षीण न होंनेवाला, स्थायी सुख से उत्पन्न आनंद। नंद, में नोदन क्रिया से हृदय में जो आनंद की स्फुरणा या गुदगुदी उत्पन्न होती है वह अनिर्वचनीय होती है, यह निर्देशित होता है। ऎसे आनंद की अनुभुति की जासकती है आस्वादन किया जासकता है उसे शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता।

शब्द अपनीं यात्रा में इतिहास छिपाए रहते हैं। थोड़ा विभाजन के पहले के भारत की स्थितियों का ध्यान कीजिए। नित नये-नये आक्रमणों एवं बाद में विभाजन से त्रस्त पंजाब के लोग जब भारत आते हैं तो नंद शब्द ननद बन चुका होता है। वहाँ की नारियों के साथ आक्रान्ताओं द्वारा की गई बेइज्जती से जो मानसिकता उत्पन्न हुई, कन्या द्वेष उसी का परिणाम है। पिता के लिए पुत्री, भाई के लिए बहन, भाभी के लिए नंद मानों मुसीबतों का घर बन गई। नंद से ननद की यात्रा उसीका परिणाम है। तिवारी जी नें ऎतिहासिक कारणो को ध्यान में नहीं रखा है।

पिता के जीवित रहते या मृत्यु के बाद पितृकुल में भाइयों के मध्य सम्पत्ति विभाजन के समय सबसे अधिक कष्ट बहन को ही होता था। एक ओर पिता के यश वैभव प्रतिष्ठा की स्मृतियाँ तो दूसरी ओर सभी भाइयों से स्नेह बहन के लिए जितना मर्मांतक होता था स्वार्थ में अन्धे हो रहे लोभी भाइयों को उतना नहीं होता था। पिता की सम्पत्ति में पुत्री को बरबरी के अधिकार के कानून नें इस सम्बन्ध के सुख को ही लील लिया है। यद्यपि अधिकांश बहनें अपनें इस अधिकार का प्रयोग अभी भी नहीं करती है।

पौराणिक आख्यानों में नंदी शिव का वाहन कहा गया है। शिव मंदिर में गर्भगृह जहाँ शिव की मूर्ति स्थित होती है उससे हटकर या गर्भगृह से बाहर प्रांगण मे शिव की ओर अभिमुख नंदी की मूर्ति स्थापित होती है। रुद्राभिषेक के अवसर पर शिव पंचायतन--शिव, उमा या पार्वती, गणेश,कार्तिकेय एवं नंदी--का आयोजन होता है। नंदी धर्म का प्रतीक है। धर्म अर्थात जो सम्पूर्ण स्रष्ट हुए जगत को धारण करता है। नंदी को वृषभ या ऋषभ भी कहते हैं। ऋषभ शब्द मे रासभ-रिस्यते-रिसनें-आप्लावित करनें का जो भावार्थ है उसका अर्थ है कि सम्पूर्ण स्रष्टि में वह प्राणों का संचार करता है। वृषभ शब्द का अर्थ है अपनें विशिष्ट आकर्षण बल से वह समस्त स्रष्टि को नियंत्रित करता है। इस विज्ञान सम्मत अर्थ को द्योतित करते धर्म के इस गुण को नंदी के प्रतीक के माधयम से व्यक्त किया जाता है। स्रष्टि के विज्ञान को प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त करनें के कारण ब्राह्मण ग्रन्थों में इस विधा को प्रतीकविद्या कहा जाता है।

नंद,नंदन,नंदनवन,व्रज,वृंदावन,गोप,गोपियाँ आदि पारिभाषिक शब्द हैं जिनके विशिष्ट अर्थ हैं। चाहें तो मनमाने प्रयोग कर सकते हैं किन्तु भारतियों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह हो सके तो इनके तत्त्विक और वास्तविक अर्थ भी जानें। यही प्रयास अजित जी कर रहे है। द्विवेदी जी को मै प्रणाम ही कर सकता हूँ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

नन्हेंलाल, नन्हेंमल, नन्हें मिया, नन्हीं बेगम, नन्हीं बाई आदि का यह सफर नन्हा नही, विशाल है।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

"थोड़ा विभाजन के पहले के भारत की स्थितियों का ध्यान कीजिए। नित नये-नये आक्रमणों एवं बाद में विभाजन से त्रस्त पंजाब के लोग जब भारत आते हैं तो नंद शब्द ननद बन चुका होता है। वहाँ की नारियों के साथ आक्रान्ताओं द्वारा की गई बेइज्जती से जो मानसिकता उत्पन्न हुई, कन्या द्वेष उसी का परिणाम है। पिता के लिए पुत्री, भाई के लिए बहन, भाभी के लिए नंद मानों मुसीबतों का घर बन गई। नंद से ननद की यात्रा उसीका परिणाम है।"

ननद शब्द विभाजन से पहले भी उसी अर्थ में प्रयुक्त होता था - पंजाब के अलावा भी। बात कुछ हज़म नहीं हुई।

sandhyagupta said...

Shabdon ke ek aur rochak safar par le jane ke liye dhanywaad.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बहुत रोचक और सार्थक
हमेशा की तरह.
===============
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Abhishek Ojha said...

मिश्रजी की टिपण्णी भी बड़ी ज्ञानवर्धन रही. ऐसी टिपण्णीयाँ हो तो पोस्ट पढने के बाद मजा ही आ जाता है.

Mansoor ali Hashmi said...

bahut khoob

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

अभिनंदन , अभिनंदन आपका अभिनंदन . नन्हा शब्द कहाँ से कहाँ तक ले गया .

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

नँद नन्दन दीठ पडिया माई साँवरो
मीरा जी ने भी गाया था न !
नन्ही नाम भी बहुत प्रियकर है !
- लावण्या

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ said...

गिरिजेश जी, तत्कालीन पश्चिमी भारत विभाजन से पहले शक हूण कुषाण यवन तुर्क मुगल और अंग्रेज आदि की आततायी गतिविधियॊ का केन्द्र रहा है। महान संस्कृतज्ञ एवं व्याकरणाचार्य पाणिनी की कार्यस्थली और गौरवशाली शिक्षा केन्द्र तक्षशिला वहीं था। ईसा से ६०० वर्ष पूर्व, पाणिनी जैसे विद्वान के रहते स्फोट विज्ञान पर आधारित धातुज शब्द का स्खलन अनायास हो जाये, समझ नहीं आता।

परिवार की प्रतिष्ठा ज्ञान शौर्य एवं शील से होती है न कि धन से यह भारतीय संस्कृति रही है। परिवार की किसी स्त्री के साथ घटी दुर्घटना वश आज भी घर-गाँव छोड़्ते लोगों को देखा जाता है। युद्ध ही नहीं भूमाफिया, प्रतिद्वन्दी नेता, नवढ़्नाड्यों, संस्कार हीन परिवारों की टुच्ची संतानों का सबसे साफ्ट टार्गेट स्त्रियाँ ही होती हैं। इसी के चलते कतिपय क्षत्रियों से प्रारंभ हुई लड़्कियों को जन्मते ही मार देनें की परंपरा आज उद्योग बन गई है। लम्बे समय तक चलनें वाला दुर्भाग्य मनुष्य को आत्मबल हीन ही नहीं विचारों से भी दरिद्र बना देता है। गौरवहीन समाज में स्त्रियों को लेकर जो मानसिकता दूषित हुई उसकी प्रक्रिया विगत २०००वर्षों से चल रही है। जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवताओं का वाश होता है या जिस घर में स्त्री का रुदन सुनायी दे वह घर नष्ट हो जाता है जैसी देशनाओं वाले देश में स्त्री अचानक इतना भार क्यॊ हो गयी?

प्रकृति प्रत्यय उपसर्ग आदि के प्रयोग से अव्यय या प्रातिपदिक की व्युतपत्ति सिद्ध की जाती है और नये शब्द भी गढ़े जाते हैं। शब्दार्णव कहता है ननन्दा तु स्वसा किन्तु यही ननान्दा पति के लिए नन्दनी हो जाती है। अमरकोश कहता है न तुष्यति कृतायाम सेवायाम इति, सेवा से भी सन्तुष्ट नहीं होती, देशज भाषा और आगे गढ़ती है- न काम की न काज की नौ मन अनाज की। मैं नहीं कहता कि शब्द नें यात्रा नहीं की है। भीषण यात्रा की है। मैं सिर्फ कारण की ओर इंगित कर रहा था। मानने न मानने की स्वतंत्रता सभी को है।

ghughutibasuti said...

नन्द शब्द ही ठीक है। ननद न होकर नन्द ही बनी रहना बेहतर है। सुमन्त जी के पुत्री जन्म पर शोक व उसे मार देने के कारणों से सहमत हूँ किंतु अब कारण हट चुके । ये कारण वैसे भारतीयों की अपनी धरती व पुत्री की रक्षा न कर पाने का ही द्योतक हैं न कि गर्व की बात।
छोटे के लिए नाना, नानी बहुत सी भारतीय भाषाओं में है। कुमाँउनी में बच्चों को नानतिन कहते हैं।
घुघूती बासूती

शरद कोकास said...

छत्तीसगढी मे भी नान का अर्थ छोटा होता है जैसे नान नान या नान चुन याने छोटा छोटा

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

सुमन्त मिश्र जी एवं घुघूती बासूती जी से सहमत.

एक अन्य भारतीय भाषा नेपाली में भी बच्चों शिशुओं को 'नानी' कहते हैं.

- सुलभ

shyam gupta said...

---दक्षिण की एक भाषा (कन्नड) में --नाना --- पिता को कहते हैं....और हिन्दी बेल्ट में ..माता के पिता को ....
----सही कहा सुमन्त जी....---नन्दी...सचमुच वैदिक साहित्य के रिषभ व ब्रषभ हैं ...वे ही काम-शास्त्र के प्रथम रचयिता भी हैं....वे शिव-महादेव ..अर्थात प्रेम-आनन्द- भाव के सवार हैं इसीलिये नन्दी हैं....
--- रिग्वेद का मन्त्र है..."सम्राग्यी श्वसुरो भव सम्राग्यी श्रुश्रुवां भवं । ननन्दारि सम्राग्यी भव, सम्राग्यी अधि देब्रषु ॥“
---अर्थात ननन्दारि की भी सम्राग्यी हो भाभी --- वास्तव में तो ...ननद ही भाभी को सबसे अधिक प्रेम करती है ..न नन्द अरि ..अर्थात जो भाभी के आनन्द का दुश्मन हो उसकी दुश्मन = ननद... ननन्द तो हिन्दी में शायद ही कहीं प्रयोग होता हो..अन्यथा मूलतः तो ननद( नन्द का अपभ्रन्श)..या नन्द( ननन्दारि का हिन्दी रूप ) = आनन्दकारी ..ही प्रयोग होता है....
----हां बाद के कालों में भले ही नन्द को बुरा कहा जाने लगा...दहेज़ आदि कुप्रथाओं के आने पर...

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