Monday, August 31, 2009

रसिक, रसोई और रसना [खानपान-14]

tongue_452675पिछली कड़ियां- 1.टाईमपास मूंगफली 2.पूनम का परांठा और पूरणपोली 3.पकौडियां, पठान और कुकर 

स्वा द के लिए रस शब्द का प्रयोग भी होता है। यह संस्कृत के रसः से बना है। रस में व्यापक अर्थवत्ता समाई है। खानपान से लेकर साहित्य और दर्शन की शब्दावली में भी रस तलाशा जाता है और उसकी विवेचना होती है। भरतमुनि ने साहित्यशास्त्र के सिद्धांतों में रस सिद्धांत को प्रमुख माना है। आहारशास्त्र में रस से अभिप्राय तरल-पेय पदार्थों से है। मूलतः रस शब्द का अभिप्राय खानपान से ही जुड़ा है। फल-सब्जियों और अन्य वनस्पतियों से निसृत होने वाले द्रव को रस कहा गया। इसमें उस पदार्थ के सार तत्व का आशय भी छुपा है। मनुष्य ने जब जाना कि रस पदार्थ में अंतर्निहित होता है जो आनंद की सृष्टि करता है। इस तरह जीवन के अन्य आयामों में भी आनंदानुभूति के लिए रस शब्द का प्रयोग होने लगा। आयुर्वेद और ओषधिशास्त्र में पारा का प्रयोग बहुतायत होता है। प्राचीन ऋषियों ने इसके गुणों के आधार पर पारे को रसराज भी कहा है। रस में जीवनी शक्ति होती है। रस कैमिस्ट्री के लिए हिन्दी का रसायन शब्द इसी रस से बना है जो विज्ञान की भारतीय परम्परा में आयुर्वेद से आ रहा है। रस में तरलता का भाव है। पानी, दूध, मदिरा आदि सभी रस हैं। रस को जीवनाधार मानते हुए परमौषधि भी कहा गया है अर्थात शुद्ध जल का सेवन कई व्याधियों से दूर रखता है। रस में जीवन है अर्थात आनंद है। आनंदयुक्त, स्वादिष्ट पदार्थों को रसिक भी कहते हैं और आनंदलेनेवाले व्यक्ति को भी रसिक कहते हैं। जिव्हा को रसना इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वह रस लेना जानती है। 

खाना बनाने के स्थान के लिए भोजशाला, पाकशाला जैसे शब्द भी हैं मगर सर्वाधिक जिस शब्द का प्रयोग होता है वह है रसोई या किचिन। मूल रूप से पाकशाला के लिए रसोईघर शब्द है। रसोई शब्द से भी रस शब्द ही झांक रहा है। यह बना है रसवती शब्द से अर्थात रसवतीगृह से। यह बना है रसवती रसऊती रसौती रसोई के क्रम में। राजस्थीनी में दावत के खाने को रसोड़ा भी कहते हैं। रसोई शब्द का अर्थ पाक शाला भी होता है और भोजन भी होता है। इसीलिए सनातनी हिन्दुओ में दोkitchen तरह की रसोई बनती है- कच्ची रसोई और पक्की रसोई। रोजमर्रा के आहार के लिए जो सामग्री पकाई जाती है वह कच्ची रसोई कहलाती है। इसमें सिर्फ जल और अग्नि का योग होता है जैसे सब्जी-रोटी, दाल-भात आदि। जिस रसोई में तेल-घी की प्रधानता हो उसे पक्की रसोई कहते हैं। कच्ची रसोई को रसोईघर में बैठकर भी खाया जाता है जबकि पक्की रसोई कहीं भी खाई जा सकती है। जातिवादी समाज में रसोई भी वर्णभेद की शिकार है। हिन्दू रसोई और मुस्लिम रसोई किसी ज़माने में आम बात थी। अब ये शब्द सुनने को नहीं मिलते। 

पाकशाला शब्द बना है पाक+शाला से। पाक शब्द के मूल में संस्कृत की पच् धातु है। संस्कृत का पक्व शब्द इससे ही बना है जिसमें पकाना, भूनना, भोजन बनाना आदि भाव हैं। भाषा विज्ञानियो ने इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार में एक धातु खोजी है pekw पेक्व जिसका अर्थ है पकना या पकाना। लैटिन में इसका रूप हुआ कोक्कुस जो कोकस होते हुए पुरानी इंग्लिश के कोक coc में ढल गया और फिर इसने कुक का रूप धारण कर लिया। कुक यानी खाना बनाना । जाहिर है कुकर उस उपकरण का नाम हुआ जिसमें खाना जल्दी पकता है। पेक्व की सादृश्यता संस्कृत शब्द पक्व से गौरतलब है जिसका अर्थ पकाया हुआ होता है। खास यह कि पक्व में भोजन का बनना भी शामिल है और उसका पचना भी। रसोई घर के लिए पाकशाला के अतिरिक्त रसशाला, पाकस्थानम्, पाकागार जैसे शब्द भी हिन्दी में हैं। किसी चीज़ की मज़बूती के संदर्भ में हिन्दी में पक्का और उर्दू-फारसी में पुख्ता शब्द प्रचलित हैं जो इसी शब्दमूल अर्थात पच् से निकला हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि रसोई घर के लिए किचन शब्द भी भारोपीय भाषा परिवार का ही शब्द है और इसका मूल भी यही धातु है। लैटिन coquina से अंग्रेजी के किचन शब्द का जन्म हुआ है जो लैटिन के ही coquus से बना है जिसमें पकाने का भाव है। अंग्रेजी के cook से इसकी समानता देखी जा सकती है।

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17 कमेंट्स:

हेमन्त कुमार said...

आश्चर्यजनक,मैं सोच भी नहीं सकता कि किचन शब्द भारोपीय परिवार से जुड़ा है। आभार।

Udan Tashtari said...

गजब जानकारी पाई.

दिनेशराय द्विवेदी said...

बड़ी रसीली है यह पोस्ट। लेकिन रस से रस्सी और रसी भी बनते हैं वह उस का दूसरा आयाम है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पोस्ट पढ़कर रसना से रस टपकने लगा है,
चटकारे लेकर पढ़ी है ये प्रविष्टी।

Arvind Mishra said...

बहुत अर्थपूर्ण !

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

मैं तो जीभ और टॉयलेट पेपर रोल वाले कार्टून पर ही अटक गया हूँ।
यह कौन सा 'रस' है?

Anil Pusadkar said...

पानी,दूध तक़ तो रस कहना ठीक है भाऊ,मगर उसके बाद वाले को रस कह्ते है पता चलेगा तो रसिक कहलाने वालो की भीड को सम्भालना मुश्किल हो जायेगा।अच्छी पोस्ट्।

Barthwal said...

आपके इस रसोईघर मे बहुत से एक्त्र व्यजनो का स्वाद लिया. एक जिज्ञासा है कि उर्दू मे कहे जाने वाले शब्द "पाक"यानि पवित्र को किसी प्रकार जुडा हुआ मानते है आप इस लेख मे.
धन्यवाद्

ताऊ रामपुरिया said...

हमेशा की तरह एक लाजवाब जानकारी.

रामराम.

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! रसोई और किचन भारतीय मूल के हैं, तो हमारे जैसे शब्द-फ्यूजन धर्मी नया शब्द गढ़ना चाहेंगे - किचोई!

Anonymous said...

Aapke blog kijitnee tareef ki jaaye kam hai.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आपकी पोस्ट पढ़ कर पाण्डेय जी द्वारा सुझाया शब्द किचोई सार्थक लगता है . जब पानी ,दूध ,शराब रस है तो भेदभाव क्योँ

शरद कोकास said...

ज़बान और ज़ुबान दोनो जीभ के अलावा भाषा के लिये भी प्रयोग किये जाते है जैसे ज़बानदराज़ी याने मुँहज़ोरी तथा ज़बानदान याने भाषाज्ञाता ( पृ 351 थिसारस-अरविन्द कुमार ) बाकि कच्ची व पक्की रसोई का भेद अभी भी ऊ.प्र. मे चलता है । हाँ हिन्दू रसोई मुस्लिम रसोई की तरह हिन्दू पानी और मुस्लिम पानी भी चलता था एक समय में । अब यह प्रयोग पूरी तरह बन्द है यह अच्छी बात है।

अजित वडनेरकर said...

@दिनेशराय द्विवेदी
दिनेशजी, रस्सी यानी रोप तो रश्मि से बना हैं। इस पर पोस्ट लिख चुका हूं- देखें यहां आपने भी इस पर टिप्पणी दर्ज की थी 'हम भी नित्य शब्दों के रश्मि रथी की रास से बंधे यहाँ खिंचे चले आते हैं।'

अजित वडनेरकर said...

@ज्ञानदत्त पांडेय
किचोई का जवाब नहीं ज्ञानदा। अब से हम यही शब्द इस्तेमाल करेंगे रसोई के लिए। वैसे रसोई शब्द के मूल से किचन का रिश्ता नहीं बल्कि पाकशाला से किचन का रिश्ता है। पेक्व से निकला पाक और इससे ही निकला कुक। किचन शब्द इसी कड़ी में आता है:)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Very Rasili post Ajit bhai ;-)

किरण राजपुरोहित नितिला said...

पोस्ट के साथ वाला फोटो सचमुच बहुत बढिया है।रसोई शब्द बहुत ही स्वादिष्ट हो गया है आपकी पोस्ट में पककर।

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

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