पिछली पोस्ट-पूनम का परांठा और पूरनपोली
| ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
पिछली पोस्ट-पूनम का परांठा और पूरनपोली
| ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
प्रस्तुतकर्ता
अजित वडनेरकर
पर
4:05 AM
बहुत शोधपरक, उपयोगी और महत्वपूर्ण जानकारियां। हिंदी में इतनी संलग्नता के साथ ऐसा परिश्रम करने वाले विरले ही होंगे।
'शब्दों का सफर' मुझे व्यक्तिगत रूप से हिन्दी का सबसे समृद्ध और श्रमसाध्य ब्लॉग लगता रहा है।
आप के समर्पण और लगन के लिए मेरे पास ढेर सारी प्रशंसा है और काफ़ी सारी ईर्ष्या भी।
सच कहूँ ,ब्लॉग-जगत का सूर और ससी ही है शब्दों का सफ़र . बधाई.... अंतर्मन से
लिखते रहें. यह मेरे इष्ट चिट्ठों मे से एक है क्योंकि आप काफी उपयोगी जानकारी दे रहे हैं.
थोड़े में कितना कुछ कह जाते हैं आप. आपके ब्लाँग का नियमित पारायण कर रहा हूं और शब्दों की दुनिया से नया राब्ता बन रहा है.
आपकी मेहनत कमाल की है। आपका ये ब्लॉग प्रकाशित होने वाली सामग्री से अटा पड़ा है - आप इसे छपाइये !
बेहतरीन उपलब्धि है आपका ब्लाग! मैं आपकी इस बात की तारीफ़ करता हूं और जबरदस्त जलन भी रखता हूं कि आप अपनी पोस्ट इतने अच्छे से मय समुचित फोटो ,कैसे लिख लेते हैं.
सोमाद्रि
इस सफर में आकर सब कुछ सरल और सहज लगने लगता है। बस, ऐसे ही बनाये रखिये. आपको शायद अंदाजा न हो कि आप कितने कितने साधुवाद के पात्र हैं.
शब्दों का सफर मेरी सर्वोच्च बुकमार्क पसंद है -मैं इसे नियमित पढ़ता हूँ और आनंद विभोर होता हूँ !आपकी ये पहल हिन्दी चिट्ठाजगत मे सदैव याद रखी जायेगी.
भाषिक विकास के साथ-साथ आप शब्दों के सामाजिक योगदान और समाज में उनके स्थान का वर्णन भी बडी सुन्दरता से कर रहे हैं।आपको पढना सुखद लगता है।
आपकी मेहनत को कैसे सराहूं। बस, लोगों के बीच आपके ब्लाग की चर्चा करता रहता हूं। आपका ढिंढोरची बन गया हूं। व्यक्तिगत रूप से तो मैं रोजाना ऋणी होता ही हूं.
आपकी पोस्ट पढ़ने में थोड़ा धैर्य दिखाना पड़ता है. पर पढ़ने पर जो ज्ञानवर्धन होताहै,वह बहुत आनन्ददायक होता है.
किसी हिन्दी चिट्ठे को मैं ब्लागजगत में अगर हमेशा जिन्दा देखना चाहूंगा, तो वो यही होगा-शब्दों का सफर.
निश्चित ही हिन्दी ब्लागिंग में आपका ब्लाग महत्वपूर्ण है. जहां भाषा विज्ञान पर मह्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध रह्ती है. 
good,innovative explanation of well known words look easy but it is an experts job.My heartly best wishes.
चयन करते हैं, जिनके अर्थ को लेकर लोकमानस में जिज्ञासा हो सकती हो। फिर वे उस शब्द की धातु, उस धातु के अर्थ और अर्थ की विविध भंगिमाओं तक पहुँचते हैं। फिर वे समानार्थी शब्दों की तलाश करते हुए विविध कोनों से उनका परीक्षण करते हैं. फिर उनकी तलाश शब्द के तद्भव रूपों तक पहुंचती है और उन तद्बवों की अर्थ-छायाओं में परिभ्रमण करती है। फिर अजित अपने भाषा-परिवार से बाहर निकलकर इतर भाषाओँ और भाषा-परिवारों में जा पहुँचते हैं। वहां उन देशों की सांस्कृतिक पृष्टभूमि में सम्बंधित शब्द का परीक्षणकर, पुनः समष्टिमूलक वैश्विक परिदृश्य का निर्माण कर देते हैं। यह सब रचनाकार की प्रतिभा और उसके अध्यवसाय के मणिकांचन योग से ही संभव हो सका है। व्युत्पत्तिविज्ञान की एक नयी और अनूठी समग्र शैली सामने आई है।
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
शब्दों के प्रति लापरवाही से भरे इस दौर में हर शब्द को अर्थविहीन बनाने का चलन आम हो गया है। इस्तेमाल किए जाने भर के लिए ही शब्दों का वाक्यों के बाच में आना जाना हो रहा है, खासकर पत्रारिता ने सरल शब्दों के चुनाव क क्रम में कई सारे शब्दों को हमेशा के लिए स्मृति से बाहर कर दिया। जो बोला जाता है वही तो लिखा जाएगा। तभी तो सर्वजन से संवाद होगा। लेकिन क्या जो बोला जा रहा है, वही अर्थसहित समझ लिया जा रहा है ? उर्दू का एक शब्द है खुलासा । इसका असली अर्थ और इस्तेमाल के संदर्भ की दूरी को कोई नहीं पाट सका। इसीलिए बीस साल से पत्रकारिता में लगा एक शख्स शब्दों का साथी बन गया है। वो शब्दों के साथ सफर पर निकला है। अजित वडनेरकर। ब्लॉग का पता है http://shabdavali.blogspot.com दो साल से चल रहे इस ब्लॉग पर जाते ही तमाम तरह के शब्द अपने पूरे खानदान और अड़ोसी-पड़ोसी के साथ मौजूद होते हैं। मसलन संस्कृत से आया ऊन अकेला नहीं है। वह ऊर्ण से तो बना है, लेकिन उसके खानदान में उरा (भेड़), उरन (भेड़) ऊर्णायु (भेड़), ऊर्णु (छिपाना)आदि भी हैं । इन तमाम शब्दों का अर्थ है ढांकना या छिपाना। एक भेड़ जिस तरह से अपने बालों से छिपी रहती है, उसी तरह अपने शरीर को छुपाना या ढांकना। और जिन बालों को आप दिन भर संवारते हैं वह तो संस्कृत-हिंदी का नहीं बल्कि हिब्रू से आया है। जिनके बाल नहीं होते, उन्हें समझना चाहिए कि बाल मेसोपोटामिया की सभ्यता के धूलकणों में लौट गया है। गंजे लोगों को गर्व करना चाहिए। इससे पहले कि आप इस जानकारी पर हैरान हों अजित वडनेरकर बताते हैं कि जिस नी धातु से नैन शब्द शब्द का उद्गम हुआ है, उसी से न्याय का भी हुआ है। संस्कृत में अरबी जबां और वहां से हिंदी-उर्दू में आए रकम शब्द का मतलब सिर्फ नगद नहीं बल्कि लोहा भी है। रुक्कम से बना रकम जसका मतलब होता है सोना या लोहा । कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का नाम भी इस रुक्म से बना है जिससे आप रकम का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे तमाम शब्दों का यह संग्रहालय कमाल का लगता है। इस ब्लॉग के पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी अजब -गजब हैं। रवि रतलामी लिखते हैं कि किसी हिंदी चिट्ठे को हमेशा के लिए जिंदा देखना चाहेंगे तो वह है शब्दों का सफर । अजित वडनेरकर अपने बारे में बताते हुए लिखते हैं कि शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नज़रिया अलग अलग होता है। मैं भाषाविज्ञानी नहीं हूं, लेकिन जज्बा उत्पति की तलाश में निकलें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नजर आता है। अजित की विनम्रता जायज़ भी है और ज़रूरी भी है क्योंकि शब्दों को बटोरने का काम आप दंभ के साथ तो नहीं कर सकते। इसीलिए वे इनके साथ घूमते-फिरते हैं। घूमना-फिरना भी तो यही है कि जो आपका नहीं है, आप उसे देखने- जानने की कोशिश करते हैं। वरना कम लोगों को याद होगा कि मुहावरा अरबी शब्द हौर से आया है, जिसका अर्थ होता है परस्पर वार्तालाप, संवाद । शब्दों को लेकर जब बहस होती है तो यह ब्लॉग और दिलचस्प होने लगता है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के नोएडा का एक लोकप्रिय लैंडमार्क है- अट्टा बाजार। इसके बारे में एक ब्लॉगर साथी अजित वडनेरकर को बताता है कि इसका नाम अट्टापीर के कारण अट्टा बाजार है, लेकिन अजित बताते हैं कि अट्ट से ही बना अड्डा । अट्ट में ऊंचाई, जमना, अटना जैसे भाव हैं, लेकिन अट्टा का मतलब तो बाजार होता है। अट्टा बाजार । तो पहले से बाजार है उसके पीछे एक और बाजार । बाजार के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द हाट भी अट्टा से ही आया है। इसलिए हो सकता है कि अट्टापीर का नामकरण भी अट्ट या अड्डे से हुआ हो। बात कहां से कहा पहुंच जाती है। बल्कि शब्दों के पीछे-पीछे अजित पहुंचने लगते हैं। वो शब्दों को भारी-भरकम बताकर उन्हें ओबेसिटी के मरीज की तरह खारिज नहीं करते। उनका वज़न कम कर दिमाग में घुसने लायक बना देते हैं। हिंदी ब्लॉगिंग की विविधता से नेटयुग में कमाल की बौद्धिक संपदा बनती जा रही है। टीवी पत्रकारिता में इन दिनों अनुप्रास और युग्म शब्दों की भरमार है। जो सुनने में ठीक लगे और दिखने में आक्रामक। रही बात अर्थ की तो इस दौर में सभी अर्थ ही तो ढूंढ़ रहे हैं। इस पत्रकारिता का अर्थ क्या है? अजित ने अपनी गाड़ी सबसे पहले स्टार्ट कर दी और अर्थ ढूंढ़ने निकल पड़े हैं। --रवीशकुमार [लेखक का ब्लाग है http://naisadak.blogspot.com/ ]
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
20 कमेंट्स:
मूंगफली की अच्छी चर्चा। बचपन में मैं ने देखा है कि मूंगफली को खाने के लिए तो काम में लिया जाता था लेकिन तेल के बतौर उसे घटिया समझा जाता था और तिल्ली के तेल को उस पर तरजीह दी जाती थी।
शानदार है मूंफाली का सफ़र
मूंगफली पर टाईम पास तो सुना था मगर इतनी चर्चा और विस्तार-पहली बार देखा. आपके बस का ही है.
मूँगफली का सफर बढ़िया रहा। जानकारी के साथ-साथ टाइम पास भी हो गया।
मूँगफली खाते हुए कभी महसूस नहीं हुआ कि इतना कुछ कहने के लिये भी उसका उपयोग है । काफी विस्तार से और सर्वांगीण जानकारी दी आपने । आभार ।
आज भी अनपढ़ अधपढ़ समुदाय में मूंगफली को मूमफली कहा जाता है जिसे शिक्षित वर्ग अपभ्रंश जानकर खारिज करता रहा है | उसके बीज से बने विविध व्यंजन व्रत -उपवास के दिनों में शौक से खाए जाते हैं | ये तत्काल ऊर्जा प्रदान करते है और सीमित मात्रा में गुड के साथ खाए जाने पर पेट को साफ़ भी रखते हैं | मूंगफली रेल के सफ़र से शब्दों में सफ़र में उतरी है तो एक छवि उभरती है कि पैंट शर्त पहने संभ्रांत से दिखने वाले मुसाफिर अपनी सीटों के नीचे छिलके फैला रहे हैं और राजनीति की बातें कर रहे हैं | उनके शब्द और सीट गन्दगी से भर जाते हैं मैं मूर्ख सा मौन रख खिड़की के बाहर पशुओं की कतारें देखता रहता हूँ जो अधिक भला लगता है |
रात को डिनर में dessert के तौर पर गुडपट्टी लेना तय रहा !
- RDS
भूमिफली....मूंगफली.
=================
बात साफ़ है.....
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
मूंगफली के सफर में आपने जो हरा हरा मूंगफली का छोटा सा पौधा दिखाया है उसे निमाड़ में गोड़ कहते है इसे देखकर और आपका आलेख पढ़कर उस गोड़ की मिटटी युक्त खुशबु का अहसास हो आया .बचपन में खेत से तोड़कर गोड़ खाने की याद ताजा हो गई .
आभार
bahut khoob
sada ki bhanti.................
पी, वी और ममफली ।
बताई आप ने बौत भली ।।
आलू और टमाटर पर भी कृपा करें। सुना है एक को पुर्तगाली लाए तो दूसरे को ब्रिटिश। क्या यह सच है?
शानदार सफर मूंगफली ka
यह सफ़र भी सुहाना रहा!
-----
चाँद, बादल और शाम
@दिनेशराय द्विवेदी
सही कह रहे हैं दिनेशभाई। मूंगफली की खेती वाले क्षेत्रों में ही इस तेल का प्रयोग अधिक होता है। मालवा, हाड़ौती में तो तिल का या सरसों का तेल ही ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है। मूंगफली के तेल में एक किस्म की गंध होती है। वैसे रिफाइंड में यह गायब हो जाती है। मैने जोधपुर में मूंगफली के तेल से बने अचार बिकते देखे हैं। स्वादिष्ट भी लगे। अचार में ज्यादातर सरसों का तेल ही प्रयुक्त होता रहा है।
kकई दिन से इस सफर मे शामिल नहीं हो सकी कितने ही शब्द खो गये मगर धीरे धीरे पढूँगी जरूर इस पोस्ट के लिये धन्यवाद अब मुंगफली का मौसम आयेगा तो आपकी ये पोस्ट जरूर याद आयेगी आभार्
चीन में मूंग फल्ली का उत्पादन सबसे अधिक होता है इसलिये इसे चाईना बादाम भी कहते है हमारे घर के पास से रोज़ शाम अंगीठी पर रखे तवे पर भूंजने वाला झारा टन से मारते हुए एक मूंगफल्ली वाला गुजरता है कहते हुए ..”लेsssss चीना बदाम लेssss “ स्टेशन पर , पुरानी टाकीजों में गूंजते हुई .. “ले.. मोम्फल्ली ले.. “ की आवाज़ें याद है . यह आपने अच्छा विषय सुझाया दुनिया में अब तक किसीने मूंग फल्ली पर कविता नहीं लिखी है . मैं प्रयास करता हूँ.
@RDS
बहुत बढ़िया टिप्पणी दी है रमेश भाई आपने। मूंगफली संस्कृति के एक महत्वपूर्ण आयाम की और ध्यान आकर्षित किया है आपने।
wah humein to ab bhi yaad hai nainital ki sadkon main(mall road) wo mungfali khana..
kale namak se to maza doogna ho jata tha...
अजी, हम तो अभी भी खाते हैं, मूंगफली बड़े शौक से...
बैठे-बैठे भूख लगी,
खा ले बेटा मूंगफली.
[सो खा ली हमने मूंगफली !]
अच्छा आलेख, सुबह के नाश्ते जैसा...
वी और पी में सम्बन्ध तो अवशय है, ये मैं [I] कह रहा हूँ.
नोट:- इत्तेफाक से आज [२५.७.०९] भोपाल ही में बैठ कर ये कमेन्ट दे रहा हूँ, फ़ोन नंबर होते तो संपर्क करता, रविजी के नंबर भी याद नहीं रहे है.
अजीत साहब,
आपके ब्लॉग पर इतनी अच्छी पोस्ट आती है कि सहेज कर रखने को जी चाहता है.शब्दों के उद्भव और व्युत्पत्ति को वेहद रोचक और सरल तरीके से समझाया है आपने.भूमिफली, मूमफली से मूंगफली बन गई...पी और बीज का सम्बन्ध ..!
बहुत अच्छी पोस्ट के लिए आभार.
प्रकाश पाखी
Post a Comment