बहरहाल बात वैद्य और वेदना की चल रही थी। ये दोनों ही शब्द एक ही मूल से उपजे हैं। हकीम और चारागर की तरह ही यह वैद्य शब्द भी ज्ञान परम्परा से आ रहा है। इस शब्द का मूल विद् भारोपीय भाषाओं की उन चुनींदा धातुओं में है जिससे दर्जनों भाषाओं में सैकड़ों शब्द बने हैं और आज भी बन रहे हैं। वैद्य की अर्थवत्ता प्राचीनकाल में चिकित्सक के सीमित दायरे में नहीं थी बल्कि वेद-शास्त्रों का ज्ञाता, पण्डित, आध्यात्मिक और विद्वान पुरुष वैद्य कहलाता था। बाद में इसके साथ आयुर्वेद संबंधी जानकार अर्थ भी जुड़ा और फिर यह हकीम के अर्थ में सीमित हो गया। वैद्य शब्द बना है संस्कृत के वेद ... केवल अंग्रेजी में ही करीब दो दर्जन से ज्यादा शब्दों की इसी विद् से रिश्तेदारी हैं। अन्य योरपीय भाषाओं में भी इसका योगदान है । इसी से बना है वेद जो भारतीय जीवनदर्शन, धर्म-परंपरा के ज्ञान का भंडार है। यही वेद अवेस्ता(फारसी का प्राचीनतम् रूप) मे वैद , प्राचीन स्लाव में वेडे, लैटिन में वीडियो या वीडेयर, अंग्रेजी में वाइड या वाइस, विज़न,(टेलीविज़न में यही विज़न समाया है ), जर्मन में वेस्सेन के रूप में भी अपनी खास पहचान बनाए हुए हैं। ये तमाम शब्द अपनी इन भाषाओं में भी देखना, जानना, ज्ञान या परखना जैसे अर्थ बतलाते है। विद् ने ही ग्रीक में आईडेन का रूप लिया जिसका मतलब था देखना। वहां से यह अंग्रेजी के आईडिया, आईडियल जैसे अनेक शब्दों में ढल गया।...
से जिसका मतलब है ज्ञान, आध्यात्मिक चिंतन। देखना, समझना, सोचना जैसे भाव इसमें निहित हैं। वैद्य से बना वैद्यक जिसमें आयुर्विज्ञान, चिकित्साकर्म, आरोग्य शास्त्र का भाव निहित है। हिन्दी में इससे वैद्यकी शब्द बना है। बैजनाथ शब्द वैद्यनाथ का ही अपभ्रंश है। वैद्य को देशी रूप में बैज्जी भी उच्चारित किया जाता है और बैद भी। वेद बना है विद् धातु से जिसमें जानना, सीखना, समझना, अनुभव करना, मानना, व्याख्या-विवेचना करना जैसी बातें आती हैं। भारतीय मनीषा, प्रज्ञा का भण्डार हैं वेद जिनका नामकरण इसी मूल से हुआ है। गौर करें कि जानना, सीखना, समझना, अनुभव करना, ये तमाम भाव कुछ पाने से सम्बंधित हैं। विद् का पूर्ववैदिक रूप रहा होगा वित्त। द वर्ण दरअसल अपने वर्ग में त के बाद आता है। वित्त का मतलब आज के अर्थ में तो धन, सम्पत्ति, अर्थ, ज़ायदाद, दौलत और द्रव्य होता है किन्तु प्राचीनकाल में इसमें भी सिर्फ प्राप्ति का ही भाव था जाहिर है इन प्राप्तियों में ज्ञान से लेकर द्रव्य (भौतिक पदार्थ) तक सब समाविष्ट था। धन-सम्पत्ति कुल मिलाकर प्राप्तियां ही हैं। कालांतर में वित्त का अर्थ धन सम्पत्ति तक सीमित हुआ और विद् का दायरा ज्ञान, समझ, चिन्तन तक। वित्त का क्षेत्र अब फाइनांस कहलाता है। जो कुछ भी प्राप्त हो, लब्ध (उपलब्ध) हो, जिस पर कब्जा हो सके, अवाप्त किया जा सके, जिसके बदले में द्रव्य अथवा मूल्य प्राप्त हो सके, जिससे किसी को उपकृत किया जा सके, पुरस्कृत किया जा सके और दान किया जा सके वह सब वित्त के दायरे में आता है। वित्त से ही बना है वेतन जो जिससे आज की दुनिया चलती है। ‘वेतन’ के बिना ‘तन’ किसी काम का नहीं।
विद् से ही बना है विद्वान। धनवान, शौर्यवान की तरह विद्वान अर्थात जो सबकुछ जानता है। गौर करें विद् शब्द के उपसर्ग के रूप में प्रयोग पर। विद् का यहां अर्थ होता है जानकार, समझदार। विद्वान शब्द की उत्पत्ति इसी विद् से हुई है। किसी शब्द के साथ विद् इसे लगा दिए जाने पर मतलब निकलता है जाननेवाला, मसलन भाषाविद् यानि भाषा का जानकार। इसी तरह जाननेवाले के अर्थ में उर्दू-फारसी में दाँ लगाया जाता है जैसे कानूनदां, अंग्रेजीदां, फारसीदां, साइंसदां वगैरह। यह दां भी इसी विद् का रूप है। विद् से ही बना है विद्या जिसका मतलब है ज्ञान, शिक्षा, आगम आदि। चिकित्सा या रोगोपचार दरअसल विद्याए हैं यानी ये विशिष्ट ज्ञान हैं। इसी कड़ी में विद्यार्थी, विद्यालय, विद्यापति जैसे शब्द आते हैं। ज्ञान के अर्थ में ही विद् धातु से वेदनम् या वेदना शब्द बना था। मूलतः इसका अर्थ था अनुभूति, प्रत्यक्ष ज्ञान, भावना आदि। अनुभूति के विभिन्न आयाम भी इसमें समाहित हुए। सुखानुभूति और दुखानुभूति दोनों ही। विद् की व्यापक अर्थवत्ता ने ज्ञान के अर्थ में इतने शब्द सृजित किए कि ज्ञान-अनुभूति की अर्थवत्ता वाला वेदना शब्द पीड़ा के अर्थ में सिमट गया। पीड़ा भी अनुभूति है और अनुभूति ज्ञानबोध को ही कहते हैं।
महाभारत के प्रसिद्ध पात्र, पांडु के छोटे भाई और दासीपुत्र विदुर को मनीषी और बुद्धिमान मनुष्य के तौर पर दर्शाया गया है। विदुर का अर्थ ही है मनीषी, विद्वान या बुद्धिमान पुरुष। उनकी कार्यशैली पांडवों के लिए फायदेमंद रहती थी। विदुरनीति शब्द से भी बुद्धिमानीपूर्ण बात ही स्पष्ट होती है। यह शब्द विद् धातु से बना है। गौर करें कि अत्यधिक ज्ञान भी घातक होता है। इसलिए संस्कृत में धूर्त और षड्यंत्रकारी को भी विदुर कहा गया है।
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14 कमेंट्स:
संस्कृत में धूर्त और षड्यंत्रकारी को भी विदुर कहा गया है
-आभार नित नई जानकारी के लिए.
budha shabd bhi ^vid* dhatu se nikla pratit hota hai. par isse milta julta shabda buddhhu kahan se ban gaya. buddhha se to nahin. kyonki buddhha ke virodhi bahut huye hain.
विदुर का नया अर्थ नहीं मालूम था , शुभ कामनाएं अजीत भाई !
मेरे बाबा एक प्रसिद्ध वैद्य थे . आयुर्वेद के ज्ञाता . लेकिन वैद्य का अर्थ इतना विस्तृत होगा यह शायद उनको भी न पता होगा .
"विद् से ही बना है विद्या जिसका मतलब है ज्ञान, शिक्षा, आगम आदि। चिकित्सा या रोगोपचार दरअसल विद्याए हैं यानी ये विशिष्ट ज्ञान हैं।"
बहुत सुन्दर विश्लेषण।
बधाई!
िआपके इस सफर मे अपने पिता जी को याद करती रही जो एक मशहूर वैद्य थे बडिया रहा ये सफर भी धन्यवाद्
विदुर नाम का दूसरा रुख आज देखने को मिला। विदुर की बुिद्धमत्ता के पीछे धूर्तता भी छिपी हुई यह अब पता चला।
शब्दों की अनथक यात्रा सचमुच अद्भुत है।
"यह दाँ भी इसी विद्का रूप है। ".. मजेदार रहा जानना ।
विदुर का विपरीत अर्थ भीकम रोचक नहीं । आभार ।
आपके शब्द अध्ययन की गहराई लाजवाब है।
@राकेश नारायण द्विवेदी
बुद्ध शब्द विद् से नही बना है। बुध् धातु से बने बोध, बुद्धिमान, बुद्ध, संबोधन, संबोधि, सम्बुद्ध और समझ जैसे शब्दों के बारे मे सफर के पिछले एकाधिक पड़ावों पर चर्चा हो चुकी है। इन तमाम शब्दों में जानकारी व ज्ञान का भाव है मगर मूर्ख के अर्थ में बुद्धू भी इस धातु से निकला है। वजह वही है मूर्खता में जड़ता, स्थिरता जैसे भाव का समा जाना। बुद्ध की बोधिमुद्रा ने उन्हे बुद्ध बनाया। कालांतर में जड़ व्यक्तियों के लिए कहा जाने लगा -क्या बुद्ध की तरह बैठे हो। बाद में यह उक्ति मूर्ख व्यक्ति के लिए रूढ़ हो गया।
फारसी का बुत शब्द भी इसी मूल का है। समूचे पश्चिमी एशिया में बुद्ध की इतनी मूर्तियां बनी कि बोधिमुद्रा में जड़ता का भाव नजर आने की वजह से बुद शब्द मूर्ति के अर्थ में ढल गया।
हां, आज के बेदी (वेदी), द्विवेदी (दुबे) त्रिवेदी और चतुर्वेदी (चौबे) जैसे ब्राह्मणों के विभिन्न उपनामों के पीछे भी यही विद् धातु झांक रही है।
आप ने सफर को विद से वेदी और द्विवेदी चतुर्वेदी तक पहुँचाया आभार?
विदुर विधवा का पुर्लिंग कैसे हो गया?
@दिनेश राय द्विवेदी
विधवा का पुरुषवाची विधुर होता है साहेब, विदुर नहीं....
शब्दों की ऐसी विवेचना शब्दों को जीवित रखेगी, अन्यथा कितने ही शब्द धीरे धीरे काल कलवित होते जा रहे हैं. आदर.
विद्वता छुपाये नहीं छुपती, आप तो मानेंगे नहीं इसलिए नहीं कह रहा किसकी :) और विदुर के दुसरे अर्थ की तो भनक ही नहीं थी !
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