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Tuesday, January 19, 2010
मरहम से पहले हुए मरहूम…
शरीर में चोट लग जाने पर जख्म पर दवा के रूप में जिस गाढ़े, चिकने अवलेह का लेपन किया जाता है उसे मरहम कहते हैं। अरबी मूल का यह शब्द बरास्ता फारसी होते हुए हिन्दी में दाखिल हुआ है और यहां मरहम, मल्हम और मल्लम जैसे रूपों में खूब इस्तेमाल होता है। मरहम बना है म+रहम से। रहम भी हिन्दी में खूब इस्तेमाल होने वाला शब्द है। रहम मूलतः अरबी ज़बान का शब्द है और सेमेटिक धातु रह्म से बना है जिसमें दया का भाव है। रहम शब्द उर्दू , अरबी, फारसी, हिन्दी में खूब प्रचलित है। सेमेटिक मूल का शब्द होने के नाते इसके रूपांतर हिब्रू भाषा में भी नज़र आते हैं। हिब्रू का रश्म या रशम racham शब्द भी इसी कड़ी में आता है जिसका मतलब भी करुणा, दया, प्रेम, ममता आदि है। मरहम की व्याप्ति दुनिया की कई भाषाओं में अलग अलग रूपों में है जैसे अल्बानी और तुर्की में यह मल्हम है तो फारसी, हिन्दी, उर्दू में मरहम, सीरियाई में इसका रूप मलेम होता है और बुल्गारी में मह्लम।
मरहम लगाने के बाद उस स्थान पर हवा-पानी से होने वाले प्रदूषण से बचाने के लिए पट्टी बांध दी जाती है। इस तरह हिन्दी में इलाज के अर्थ में मरहम-पट्टी जैसा एक नया शब्द युग्म सामने आया जिसमें मुहावरे की अर्थवत्ता समा गई। नाराज व्यक्ति को मनाने, अनजाने में हुए नुकसान की भरपाई करने के प्रयासों को भी मरहम लगाना या मरहमपट्टी करना कहा जाता है। अरबी के रहम का सर्वोत्तम रूप है रहमान। इसका हिन्दी अनुवाद दयावान अथवा करुणानिधान हो सकता है। आस्था के संसार में ये दोनो ही शब्द ईश्वर का बोध कराते हैं। ठीक यही बात रहम से बने रहमान के साथ है जिसमें ईश्वर को रहमान बताया गया है। जो संसार में सर्वाधिक कृपानिधान, दयावान हैं। रहमान की तरह ही रहीम शब्द भी दया, करुणा की अर्थवत्ता रखता है और जिसके मायने भी दयालु या कृपालु ही होते हैं। ईश्वर के कई नामों में रहमान की तरह ही रहीम का भी शुमार है। ईश्वरीय के लिए उर्दू में रहमानी शब्द है। ईश्वरीय शक्ति या गैबी ताकतों के संदर्भ में आसमानी, सुल्तानी रहमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग होता है। जिसके मन में ज़रा भी दया-ममता न हो वह बेरहम कहलाता है। क्रूर कर्म के लिए बेरहमी शब्द का इस्तेमाल भी विशेषण की तरह हिन्दी में खूब होता है।
रहमत शब्त भी इसी मूल से निकला है जिसका अर्थ भी दया, करुणा, कृपा आदि है। इसमें म उपसर्ग लगने से बनता है मरहमत जिसमें दया, अनुकम्पा, संवेदना, तरस या सहानुभूति का भाव है। पुरानी हिन्दी या हिन्दुस्तानी में इससे बना मिरहामति शब्द प्रचलित था जिसके मायने कृपापूर्वक दी हुई कोई वस्तु, दया या कृपा आदि है। दिवंगत के लिए बोलचाल के लिए मरहूम शब्द का इस्तेमाल भी होता है। भाषा में उर्दू का तड़का लगाने के लिए अनजाने में अक्सर लोग मरहूम और महरूम (वंचित) का इस्तेमाल करते हुए गफ़लत में पड़ जाते हैं। स्वर्गीय के अर्थ में मरहूम शब्द भी रह्म धातु से ही बना हुआ है जिसमें ईश्वर का प्यारा होने का भाव है अर्थात जिसे ईश्वर ने सब कष्टों से मुक्ति देकर अपने पास बुला लिया है।
मृत्यु के अर्थ में तकलीफों से निजात पाने की दार्शनिक व्याख्या प्रायः सभी धर्मों में है। जीवन को संघर्ष और दुखों का कारण माना जाता है। यह दिलचस्प है कि जीवन को प्रभु का दिया वरदान भी माना जाता है और मनुष्य उसे जंजाल और कष्टकारक समझता है। नितांत मानवीय गुणों के साथ, इन्सानियत के साथ अगर जीवन जिया जाए तो वह कष्टकारक नहीं रहता। पर मनुष्य अपने तरीके से जिंदगी जीता है जिसका नतीजा तकलीफ ही है। बुढ़ापा अपने आप में तकलीफ है सो इस आयु में मृत्यु को खुदा का रहम ही है। इसलिए मरहूम को वैकुंठवासी, स्वर्गीय कहा जाता है। सबका जन्मदाता, परमपिता अगर रहम खाकर मनुष्य को अपने पास बुलाते हैं तो इसे उनकी परमकृपा ही समझना चाहिए। उर्दू-फारसी में स्वर्गीय को जन्नतनशीं कहते हैं। बिना ईश्वर का बुलावा आए भी अक्सर लोग दुखों से त्राण पाने के लिए मृत्यु का वरण करते हैं। अब इस रहम में भी खुदा का करम ही समझना चाहिए कि जीते जी जिसे मरहम न मिला, मौत के साथ मरहूम यानी अल्ला के प्यारे होने का रुतबा भी मिल गया!!!
कुरान की प्रसिद्ध पंक्ति बिस्मिल्लाह अर रहमान, अर रहीम [बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम- शुरू करता हूँ उस अल्लाह के नाम से जो अत्यंत दयावान और करूणामय है ] में प्रभु के इसी गुण को उजागर करते हुए उनकी स्तुति की गई है। इसी तरह हिब्रू में भी कहा गया है बशेम इलोहीम, हा रश्मन वा रशम [ bshem elohim, ha-rachaman, va rachum ] ये पंक्तियां भी क़रीब क़रीब कुरान की तरह ही हैं। रहम से रहमत भी बना है जिसमें मेहरबानी , कृपालुता आती है।
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17 कमेंट्स:
'रहमो करम' या 'रहम करम' शब्द युगम' आम इस्तेमाल होते है. यहाँ 'करम' भी अरबी 'करूमा' से बना जिसका मतलब भव्य होना, बख्शिश करना, दया करना है.
इसी तरह 'रहीम करीम' या 'करीम रहीम' शब्द युगम भी आम है.
करीमां रहीमां अलाह तू गनीं- भक्त नामदेव:
बेहतरीन आलेख । आभार ।
महरुम जनाब इज़्ज़त माफ़ जनाबे आला जलसे के सदर कहने के बजाय एक जलसे मे नेताजी कह गये मरहूम जनाब...... इतने जूते चले पूछिये मत . शब्दो मे मात्रओ की जरा सी हेर फ़ेर अर्थ क अनर्थ कर देती है
सुंदर! बहुत से सजातीय शब्दों से मिले।
सुंदर आलेख .
बहुत सुंदर आलेख है.
एक शे'र अर्ज करता हूँ...
ताउम्र कोई हमकदम न मिला
दर्द मिला खूब मरहम न मिला
- सुलभ
शानदार पोस्ट..अजित भैया
raham or rahmaan dono he rup bhale hai!!!!!!!!!
मरहम और मरहूम इन दोनों शब्दों का विवरण बेहद अच्छे तरीकेसे किया गया है..
बढ़िया रिश्ता निकाला है!
मरहम और मरहूम का!
आपकी पिछली पोस्ट ही पढ़-समझ रहा था या उसका लुत्फ़ ले रहा था कि ये नई पोस्ट. शब्दों की ऐसी जानकारी जो शायद आम पाठक के लिए बोझिल भी हो सकती थी, लेकिन आपकी चुटीली और दिलचस्प बातचीत से वो बेहद आसानी से ग्राह्य हो जाती है. ऐसे में निश्चय ही आपको कई गुना मिहनत करनी पड़ती होगी. ये ऐसा ब्लॉग है जो हिन्दी ब्लोगिंग की दुनिया पर गर्व पैदा करता है.
बहुत सुन्दर भाई साहब
बहुत अच्छी जानकारी...
शब्दों का सफ़र अच्छा रहा...
कभी किसी से सुना था --मरहम की खतिर मर हम गए।
अच्छी जानकारी ।
सब एक जैसे ही लगे. कईयों के उच्चारण में भी कई जगह भेद दिखता है थोडा बहुत.
देखिये झूठ ने सच को नंगा कर दिया। विचित्र विडम्बना है यह। इसीलिये सच बेचारा आजकल मुहँ छुपाये घूम रहा है और चोरी के कपड़ों में झूठ की तो शान ही निराली है।
अच्छी जानकारी।
आभार!
मुझे ध्यान ही नहीं था कि इतनी पोस्ट्स पडःाने से महरूम थी मैं । सच मे बहुत दिन से गैर हाज़िर रही शुभकामनायें
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