Thursday, January 21, 2010

मज़ाक़ और मज़ेदारियां

पिछली कड़ी- ज़ाइका, ऊंट और मज़ाक़- का बाकी हिस्सा

हा स-परिहास, दिल्लगी के अर्थ में हिन्दी में सर्वाधिक जिस शब्द का इस्तेमाल होता है वह है मज़ाक़। मूलत laughter_smiley_रूप में यह शब्द सेमिटिक भाषा परिवार का है। परिहास-प्रिय व्यक्ति को मज़ाक़िया कहा जाता है और इसका सही रूप है मज़ाक़ियः, जिसका हिन्दी रूप बना मजाकिया। पिछली कड़ी में ज़ाइक़ा शब्द पर चर्चा के दौरान ज़ौक़ का  भी उल्लेख किया था जिसमें आनंद, उल्लास और लुत्फ का भाव है। मज़ाक़ भी इसी कड़ी में आता है। मज़ाक़ शब्द की पैदाइश भी सेमिटिक धातु ज़ौ से हुई है जिससे ज़ौक़ शब्द बना है। ज़ौ से ही जुड़ता है अरबी का मज़ः जिसका अर्थ है ठट्ठा, हास्य आदि। इसका एक अन्य रूप है मज़ाहा। हिन्दी की खूबी है कि हर विदेशज शब्द के साथ उसने ठेठ देसी शब्दयुग्म या समास बनाए हैं जैसे अरबी मज़ाक़ के साथ जुड़कर हंसी-ठट्ठा की तर्ज़ पर हंसी-मजाक बन गया। मजः या मज़ाहा से ही बना है हिन्दी का एक और सर्वाधिक इस्तेमाल होनेवाला शब्द मज़ा है जो आनंद, मनोविनोद, लुत्फ़, ज़ायक़ा, स्वाद, तमाशा जैसे भावों का व्यापक समावेश है। आनंद के साथ ही इसमें दण्ड का भाव भी निहित है जिसकी विवेचना पिछली कड़ी में की जा चुकी है।
हिन्दी में जितने भी अरबी शब्द आए हैं वे सीधे अरबी के दरवाज़े से दाखिल न होकर बरास्ता फारसी आए हैं। गौरतलब है कि मैकाले द्वारा अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा की पहल करने से पूर्व भारत में शिक्षा का माध्यम फारसी ही थी क्योंकि इसे ही बीते सैकड़ों सालों से राजभाषा का दर्जा मिला हुआ था। अलबत्ता फारसी पढ़नेवाले लोगों को अरबी का घोटा भी लगाना पड़ता ही था। यह ठीक वैसा ही था जैसे कुछ बरस पहले तक मिडिल स्कूल में हिन्दी के साथ संस्कृत अनिवार्य विषय था। ब्रिटेन में भी अंग्रेजी के साथ लैटिन पढ़ना अनिवार्य था। इस तरह देखें तो अरबी शब्दों के साथ फारसी के प्रत्ययों से जुड़कर जो नए शब्द बनें, वे हिन्दी में खूब लोकप्रिय हुए जैसे हिन्दी में अरबी मजः का विशेषण रूप फारसी प्रत्यय दार लगाकर मज़ेदार बनता है। इसमें भी हिन्दी के प्रत्ययों ने कमाल दिखाया। “आरी” प्रत्यय लगने से फिर मजेदारी जैसी क्रिया बन जाती है। इसका एक और रूपांतर “इयां” प्रत्यय के नत्थी होने से सामने आता है और मज़ेदारी का बहुवचन मज़ेदारियां भी बन जाता है। ज़ाहिर है क्रिया का बहुवचन तो होता नहीं, संज्ञा का ही होता है। मगर यह रूपांतर बोली में हुआ होगा, भाषा में नहीं। भाषा का व्यापकरण होता है, बोली का नहीं, सो लोकमानस ने मज़ा से मज़ेदारी और फिर मज़ेदारियां जैसा शब्द भी बना लिया। हास्यप्रिय, परिहासप्रिय व्यक्ति को आमतौर पर मज़ाकिया के साथ मज़ाक़-पसंद भी कहा जाता है। मस्ती के अर्थ में मौज-मज़ा शब्द युग्म का इस्तेमाल भी होता है पर व्युत्पत्ति के नजरिये से मौज  का रिश्ता मज़ा से नहीं है। यह अलग धातुमूल से उपजा शब्द है जिससे तरंग, लहर या उठाव का बोध होता है। मज़ाहिया शायरी और मज़ाहिया मिज़ाज भी मजः से ही बने शब्द हैं।

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21 कमेंट्स:

Baljit Basi said...

फारसी की कम हो रही महत्वता के बारे में एक घटना सुनाता हूँ क्योंकि आज अजित जी ने ज्यादा बोझ नहीं डाला. मेरे चाचा जी यह बात सुनाया करते थे.स्कुल में उनका एक दोस्त था अब्दुल गफूर. उसने हाई स्कुल में जाकर पहले फारसी रखी मगर कुछ ही दिनों में छोड़ कर साइंस रख ली. इस पर फ़ारसी के अध्यापक को बहुत गुस्सा आया. वह उससे बोला:

अब्दुल गफूरा, सूर दिया सूरा, तुम ने शरीफ फारसी छोड़ कर
कुत्ती साइंस रख ली, तेरे बाप ने क्या इंजन बनवाने थे?

Arvind Mishra said...

मौज पर कुछ नहीं बोले आप ? यह मासूम भूल हुयी या जानबूझ कर ??

अविनाश वाचस्पति said...

हमने तो मौज ले ली
पर कुछ तो मौजे पहन रखे हैं
मजा तो जरूर आयेगा
मजाक भी अवश्‍य करेंगे
हंसी मजाक ? ...

कोहरे के कहर से लड़ने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने एक गोली ईजाद कर ली है जिसके सेवन के 15 मिनिट के बाद से दो घंटे के लिए कोहरे के बहरेपन से आंखों को मुक्ति प्राप्‍त होती है।
यह मजाक है या मजेदारियां ... इस पर अजित वडनेरकर की विशेष प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

श्यामल सुमन said...

शब्द सफर को जब पढ़ा सचमुच हुआ अबाक।
बातें तो गम्भीर हैं लेकिन बिषय मजाक।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Udan Tashtari said...

हास्यप्रिय, परिहासप्रिय व्यक्ति को आमतौर पर मज़ाकिया के साथ मज़ाक़पसंद भी कहा जाता है- जी, यह जानना सुखद रहा. :)

Himanshu Pandey said...

"हिन्दी में जितने भी अरबी शब्द आए हैं वे सीधे अरबी के दरवाज़े से दाखिल न होकर बरास्ता फारसी आए हैं।"
यह जानना ठीक रहा ।

आलेख का आभार ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

हिन्दी का अपना भी कुछ है या संस्क्र्त ,अरबी,फ़ारसी के शब्द उधार से काम चल रहा है .कहीं की ईट कहीं का रोडा हिन्दी ने अपना कुन्बा जोडा.यह मज़ाक भी लग सकती है पर है नही

उम्मतें said...

किसी भी भाषा की अच्छी सेहत का राज भी यही है कि वो कितनी सहजता से अन्य भाषाओँ को गले लगाती है ! मुझे व्यक्तिगत रूप से भाषाई परिशुद्धता की बातें , भाषा का गला घोंटने जैसी लगती हैं !
आपने हंसी ठट्ठे में बड़ी बात कह दी !

डॉ. मनोज मिश्र said...

बढियां.

अजित वडनेरकर said...

@अरविंद मिश्र
अरबी के मौज में मूलतः तरंग, लहर का भाव है। तरंग का उठाव ही इसे आनंद यानी मज़ा से भी ज़ोड़ता है मगर मौज इस मूल का नहीं है। गौर करें अरबी में भी मौज में नुक़ता नहीं लगता जबकि मज़ः में लगता है। उससे जुड़े शब्दों पर किसी अन्य कड़ी में। दरअसल यहां तो सिर्फ ज़ायका वाली कड़ी में छूटी कुछ बातों को ही रखा है। हां, मौज-मजा़ शब्दयुग्म का प्रयोग अवश्य हिन्दी में होता है। शुक्रिया कि आपकी मौज ने मुझे इस पद की याद दिला दी।

अजित वडनेरकर said...

@बलजीत बासी
आपके क़िस्से ने तो मज़ा ला दिया। कुत्ती साईंस, शरीफ फारसी। उस्ताद भी खूब था-उब्दुल गफूरा, सूर दिया सूरा!!!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

आज तो आप ने अनूप शुक्ल जी की प्रिय पोस्ट लिख दी।

अजित वडनेरकर said...

@धीरूसिंह/अली
शुक्रिया आप दोनों का। भाषा में शुद्धतावाद दरअसल एक किस्म की कट्टर सोच है। देह की खूबसूरती जिस तरह से किसी भी धातु या पदार्थ से बने अलंकारों से बढ़ जाती है उसी तरह दीगर ज़बान से आए शब्दों से कोई भाषा मालामाल ही होती है, गरीब नहीं। भाषाएं तो बहती नदी है जो विभिन्न स्रोतों से मिलकर लगातार विकसित होती हैं। यहां गंगा का उद्गम चाहे गोमुख हो, पर उसकी विशाल जलराशि में गोमुख से निकले पानी का कितना छोटा अंश है, इसे समझा जा सकता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत अच्छी जानकारी दी है.....पढना अच्छा लगा

Dhiresh said...

मज़ाहा से ही जुडी है शायद मज़ाहिया शायरी

अजित वडनेरकर said...

@धीरेश सैनी
जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं धीरेशजी। मज़ाहिया मिजाज़ भी इसी कड़ी में आता है। इन दोनों का संदर्भ देना था पर भूल गया।
याद दिलाने का आभार।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

मज़ेदारी का बहुवचन मज़ेदारियां ... बहुत खूब.

रंजना said...

महत्वपूर्ण जानकारीपरक सुन्दर शब्द विवेचना...हम लाभान्वित हुए....आभार...

डॉ टी एस दराल said...

वाह जी , मज़ा आ गया। मज़ाक और मजाकिया के बारे में पढ़कर।

RAJ SINH said...

मेरी टिप्पणी मजाक में लें :) .

निर्मला कपिला said...

मजाक मजाक मे इतना ग्यान बहुत अच्छे बधाई

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