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रि हाइश संबंधी शब्दावली की शृंखला का एक और महत्वपूर्ण शब्द है कटरा। हिन्दी क्षेत्र में कटरा नाम की कई आबादियां मिल जाएंगी। इनमें मोहल्ले भी हैं, उपनगर भी हैं और कस्बे भी हैं। कटरा मोहल्ला, कटरा रामगली जैसी आबादियां किसी शहर के एक रिहाइशी इलाकों का नाम है। इसी तरह वैष्णों देवी जाने के लिए जम्मू से आगे कटरा प्रमुख आधार शिविर जैसी बस्ती है। राही मासूम रज़ा का प्रसिद्ध उपन्यास कटरा बी आर्जू भी एक रिहाइशी आबादी के नाम पर ही रखा गया। कटरा शब्द बना है संस्कृत के कर्वटः से जिसका अर्थ होता है खरीदारी की जगह, व्यावसायिक मण्डी अथवा छोटा रिहाइशी स्थान।
संस्कृत में कुट् जैसी धातुओं से आश्रय संबंधी कई शब्द बने हैं जैसे कुटीर, कुटिया, कोट, कोटरम्, कोटर आदि। कुट् धातु में वक्रता या टेढ़ेपन का भाव है। ढलान में भी वक्रता ही होती है। एक कुटि ( कुटी ) के निर्माण में टहनियों को ढलुआ आकार में मोड़ कर, झुका कर छप्पर बनाया जाता है। इस तरह कुट् से बने कुटः शब्द में छप्पर, पहाड़ (कंदरा), जैसे अर्थ समाहित हो गए । भाव रहा आश्रय का। इसके अन्य कई रूप भी हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे कुटीर, कुटिया, कुटिरम्। छोटी कंदरा या गुफा आदि। विशाल वृक्षों के तने में बने खोखले कक्ष के लिए कोटरम् शब्द भी इससे ही बना है जो हिन्दी में कोटर के रूप में प्रचलित है। गौर करें कि किला अथवा दुर्ग के लिए एक शब्द संस्कृत में है कोटः जिसका हिन्दी रूप है कोट और मतलब हुआ किला या दुर्ग। यह भी बना है कुट् धातु से। कटरा शब्द में चाहे सामान्य रिहाइश का भाव हो मगर किसी जमाने में पर्वतीय बस्ती के लिए ही कर्वटः शब्द रहा होगा। गौरतलब है कि पर्वतीय दर्रों से ही दो राज्यों की सीमा तय होती थी। इन दर्रों पर चुंगी चौकियां होती थीं। व्यापारिक कारवां यहां व्यावसायिक कारणों से मुकाम करते थे। विश्राम के लिए यहां सराय और छोटा-मोटा बाजार भी विकसित हो जाता था और इस तरह एक रिहाइशी बस्ती की शक्ल भी उभरने लगती थी। दर्रों के नाम से ही पश्चिमोत्तर हिमालयी क्षेत्र में कई बस्तियां भी हैं जैसे खैबर। राजस्थान में भी दरा नाम का एक कस्बा है। कर्वटक का अर्थ भी पहाड़ी ढलान होता है। कटरा का एक रूप कटहरा भी होता है। कटरा के साथ अक्सर बाजार शब्द भी जुड़ता है।
इसी तरह बस्ती शब्द भी छोटी आबादी, मोहल्ला या रिहाइश के लिए प्रयोग होता है। उत्तरप्रदेश में बस्ती नाम का शहर भी है। संस्कृत की वस् धातु में रहने का भाव है। वासः यानी मकान के अर्थ में निवास, आवास जैसे शब्द भी इसी मूल से आ रहे हैं। परिधान के अर्थ में कपड़ों के लिए वस्त्र शब्द भी इसी मूल से निकला है। वस् अर्थात जिसमें वास किया जाए। यह दिलचस्प है कि काया जिस आवरण में निवास करती है, उसे वस्त्र कहा जाए। वस् धातु का अर्थ होता है ढकना, रहना , डटे रहना आदि। यही नहीं, गांव देहात में आज भी घरों के संकुल या मौहल्ले के लिए बास या बासा (गिरधर जी का बासा) शब्द काफी प्रचलित है। वस् से ही बना है वसति जिससे निवास या रहने का भाव है। हिन्दी का बस्ती शब्द इससे ही बना है।
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3 कमेंट्स:
मुझे तो लगता था कि बस्ती फारसी उद्गम का शब्द है ।
बहुत सुंदर जानकारी मिली, शुभकामनाएं.
रामराम.
हमारे इधर पंजाब में ज्यादा कटड़े चलते हैं. अमृतसर में बाज़ार या मोहल्ले के अर्थों में कई कटड़े हैं जैसे कटड़ा जैमल सिंह, कटड़ा कनहिया,कटड़ा परजापत, कटड़ा शेर सिंह. कई कटड़े सिख राजाओं ने बनवाये. वैष्णों देवी वाले नगर को भी पंजाब और जम्मू में कटड़ा बोला जाता है. दूर के हिंदी के अख़बार इसको कटरा ही लिखते हैं. इसके आस पास कई पहाड़ियों को 'त्रिकुट हिल्स' बोला जाता है. कई लोग कटरा को 'क्रिताल्या' से बना बताते हैं.
ढाका में मुगलों ने दो 'बोडो कटरा' और छोटो 'कटरा' बनवाये. यह कारवाँसराय हैं.पंजाब में कोट्ले भी होते हैं, कई शहरों, गावों और मुहल्लों के नाम हैं कोटला डूम, कोटला सूरज मॉल आदि गावों के नाम है. मलेरकोटला प्रसिद्ध पठान मुसलमानों का शहर है, दिल्ली में फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान है. कोटली भी पीछे नहीं. कई गावों के नाम है: कोटली, कोटली गाजरां, कोटली मन्केरा आदि
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