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Friday, May 7, 2010
भुजबल और बाहुबली का बांहें चढ़ाना..
हि न्दी में बांह चढ़ाना मुहावरा खूब चलता है जिसका अर्थ है ताव में आना, आमना-सामना करने की तैयारी, किसी को चुनौती देना या किसी की चुनौती स्वीकार करना। हिन्दी में जो बांह शब्द है वह मूलतः इंडो-ईरानी भाषा परिवार से आ रहा है। बांह का एक रूप बाज़ू चढ़ाना भी होता है। बांह और बाज़ू एक ही मूल से उपजे हैं। संस्कृत का बाहु अवेस्ता में जाकर बाज़ू हो जाता है। बाहु बना है संस्कृत की धातु बंह् से जिसमें उगना, बढ़ना जैसे भाव हैं। धड़ से निकली दो शाखाएं जो युवावस्था तक बढ़ती रहती है, शरीर के महत्वपूर्ण अंग के रूप में अगर बाहु के रूप में अपनी पहचान बनाती हैं तो यह तार्किक भी है। यूं संस्कृत की वह् धातु से भी बाहु का विकास माना जाता है। वह् में बहना, आगे जाना, निकलना, ढोना जैसे भाव हैं। हाथ शरीर से आगे निकले हुए अंग ही होते हैं। इनके जरिये ही किन्हीं मुद्राओं, वस्तुओं को आगे सम्प्रेषित किया जाता है, सो वह् से बाहु की व्युत्पत्ति भी तर्कपूर्ण लगती है। यहां बंह् में निहित उगना बढ़ना जैसे भावों पर गौर करें तो निश्चित ही शरीर के हर अंग को बाहु कहा जा सकता है क्योंकि आयु के साथ सभी अंगों में वृद्धि होती है। वह् में बढ़ने, आगे निकलने और ढोने के भाव सचमुच बाजू के कार्यों से मेल खाते हैं।
यूरोपीय भाषाओं की रिश्तेदारी भी बाहु या बाज़ू से निकलती है क्योंकि मूलतः इन दोनों ही शब्दों का रिश्ता व्यापकता में भारोपीय भाषा परिवार से ही जुड़ता है। पुरानी अंग्रेजी में बाउ, बो bog, boh का अर्थ था कंधा। इसी तरह अंग्रेजी के बाउ bough का अर्थ शाखा, टहनी होता है। बांह भी शरीर से निकली हुई शाखा ही है। संस्कृत का बाहु अवेस्ता में बाज़ू bazu बनता है और फिर मध्यकालीन फारसी में इसका रूप बाज़ुक होता है जिसमें बांह या हाथों का भाव है। हिन्दी में बाहु शब्द से बाहुबल भी बना है जिसका अर्थ शारीरिक शक्ति से है। बाहुबली का अर्थ पहलवान, शक्तिशाली या गुंडे से लगाया जाता है। बाजूबंद एक गहना होता है जिसे नृत्यांगनाएं धारण करती हैं। किसी विशिष्ट कुलगोत्र की पहचान के लिए भी स्त्री-पुरुषों में बाजुबंद पहना जाता है। लोकजीवन में बाजूबंद के स्थान पर टोटैम या गोदना से काम चलाते हैं। बाजू करना भी एक मुहावरा है जिसका अर्थ किसी की उपेक्षा करना है अर्थात जब किसी व्यक्ति, विचार या पदार्थ को आप महत्व देते हैं तब उन्हें अपनी आंखों के सामने रखते हैं और जब उनपर विचार करना प्राथमिकता नहीं रह जाती तब वे बाजू कर दिए जाते हैं अर्थात आंखों के सामने से उन्हें हटा कर दाएं या बाएं रख दिया जाता है। बाज़ मौकों पर यूं बाजू रख दिए जाने पर ही लोग बाहें चढ़ाने पर आमादा हो जाते हैं। वैसे भोजन करने के लिए भी बाहें चढ़ाई जाती हैं।
इसी तरह हिन्दी में बाह के लिए भुजा शूब्द भी खूब प्रचलित है। बाहूबल की तर्ज पर भुजाबल शब्द भई प्रचलित है। हिन्दी में चाहे बाहूबली आज सकारात्मक अर्थवत्ता से हाथ धो बैठा है। मराठी में तो भुजबल एक उपनाम होताहै। इसका अर्थ शक्तिशाली से ही है। ये अलग बात है कि राजनीति में आज जो भुजबल उपनाम लगाते हैं, उनके अलाव भी ज्यादातर राजनेता बाहुबली ही हैं। भुजा शब्द बना है संस्कृत धातु भुज् से जिसका संबंध उसी भज् धातु से है जिससे भग, भगवान और भाग्य जैसे शब्द बने हैं। भुज् से ही बना है भुजा या बाह शब्द। गौर करें भुजा नामक अंग का सर्वाधिक महत्व इसीलिए है क्योंकि यह विभिन्न दिशाओं में मुड़ सकती है। यहां भुज् में निहित मुड़ने, झुकाने का भाव स्पष्ट है। भोजन का अर्थ व्यापक रूप में आहार न होकर भोग्य सामग्री से से है। भज् का अर्थ होता है भक्त करना अर्थात बांटना, अलग-अलग करना। भुज् का अर्थ होता है खाना, निगलना, झुकाना, मोड़ना, अधिकार करना, आनंद लेना, मज़ा लेना आदि। गौर करें कि किसी भी भोज्य पदार्थ को ग्रहण करने से पहले उसके अंश किए जाते हैं। पकाने से पहले सब्जी काटी जाती है। मुंह में रखने से पहले उसके निवाले बनाए जाते हैं। खाद्य पदार्थ के अंश करने के लिए उसे मोड़ना-तोड़ना पड़ता है। मुंह में रखने के बाद दांतों से भोजन के और भी महीन अंश बनते हैं। आहार के अर्थ में भोजन शब्द बना है भोजनम् से जो इसी धातु से जन्मा है। जाहिर है यहां अंश, विभक्त, टुकड़े करना, मोड़ना, निगलना जैसे भाव प्रमुखता से स्पष्ट हो रहे है।
बाजू या बाह के लिए अग्रेजी का शब्द है आर्म arm जिसमें शरीर के हिस्से या अंग का भाव है। मूलतः यह भारोपीय धातु अर् से बना है जिसमें जुड़ने का भाव है। दिलचस्प यह कि अंग्रेजी के आर्मी अर्थात फौज या सेना शब्द के मूल में भी यही धातु है। संस्कृत में इसी मूल का शब्द है ईर्म जिसका मतलब होता है बांह या भुजा (मोनियर विलियम्स)। जाहिर है सेना के रूप में इसने समूहवाची भाव ग्रहण किया क्योंकि सभी अंग शरीर से संगठित होते हैं। अर् से लैटिन में बना आरमेअर armare जिसका मतलब था जुड़ना, इससे बने आर्माता जिसने सशस्त्र बल का भाव ग्रहण किया और फिर अंग्रेजी में इसका आर्मी रूप सामने आया। अधिकांश यूरोपीय भाषाओं में सेना के लिए इसी मूल से बने शब्द हैं और आर्मी, आर्माता या आरमाडा जैसे शब्द हैं।
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6 कमेंट्स:
बाहु और भुज दोनों का उद्गम जानकार बहुत अच्छा लगा भैया..
इस शब्द के सफ़र के रास्ते में इसके कारवें से जुड़े शब्दों के बारे में जानकारी के साथ रोचक रही ये शब्द यात्रा भी..
क्या अगली बार अवशिष्ट, अपशिष्ट और अवशेष में अंतर स्पष्ट करेंगे?
अजित जी,
कृपया बताने का कष्ट करें, ये ब्लॉगरों की हर वक्त बांहें क्यों चढ़ी रहती हैं...
जय हिंद...
बल से भुजा के देखए बलवान बन गए है,
उतरी कमीज़ देखए 'सलमान' बन गए है ,
बाजू में हट गए कई* भक्ति की राह से,
'आनंद', भोग से कई भगवान्' बन गए है.
*atheist
-mansoor ali hashmi
http://aatm-manthan.com
बढ़िया जानकारी दी आपने!!
बाहुबली का वर्णन कर आपने बिहार की याद पुनः दिला दी ।
बाहु और बहू में कुछ शाब्दिक गुन्ताड़ा फिट होता है क्या?!
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