Thursday, June 3, 2010

काना राजा और काक दृष्टि

crow

क आंख वाले व्यक्ति को परिनिष्ठित हिन्दी में एकाक्ष या एकाक्षी कहते हैं। जिस तरह से दृष्टिहीन को सौजन्यतावश सूरदास की संज्ञा दी जाती है वैसे ही एक आंखवालों को समदर्शी भी कहा जाता है। समदर्शी अर्थात जिसकी निगाह में सब समान हैं । इस रूप में समदर्शी तो सिर्फ ईश्वर ही है क्योंकि उसकी रची सृष्टि में न कोई छोटा, न बड़ा है। मगर काणे के संदर्भ में समदर्शी शब्द में इस समभाव का रिश्ता उसकी एक आंख से है। वह सबको ‘एक’ समान नजरों से देखता है, इसलिए समदर्शी है। शिष्टता और सौजन्यता की आड़ में शब्दविलास करनेवालों का यह क्रूर व्यंग्य है। सामान्यतौर पर एक आंखवाले को हिन्दी में काणा या काना कहा जाता है। बुंदेली में कहावत है-काने से कनवा कहो, तुरतईं जावै रूठ अर्थात सर्वज्ञात अक्षमता के बावजूद किसी को अपने लिए बुरा, अभद्र संबोधन नहीं सुहाता है। अयोग्य लोगों में कुछ कम गुणी व्यक्ति के लिए अंधों में काना राजा कहावत भी बोलचाल में खूब प्रचलित है।
काणा या काना शब्द बना है संस्कृत की कण् धातु से जिसमें क्षीण, सूक्ष्म और छोटे होते जाने के साथ ही पलकों के बंद होने का भाव है। कण् से ही बना है संस्कृत का कणः और हिन्दी का कण शब्द जिसका अर्थ है अनाज का दाना, अणु, जर्रा, बूंद या सूक्ष्मतम परिमाण आदि। काणे व्यक्ति के नेत्रकोटर में नेत्रगोलक नहीं होता जिसकी वजह से उसकी एक पूरी या आंशिक बंद रहती है। एक अन्य स्थिति में उसकी एक आंख में दृष्टिहीनता रहती है जिसकी वजह से उस आंख की पलक लगभग बंद सी रहती है या झपकती रहती है। ध्यान दें कण् में निहित लगातार छोटे होते जाने के भाव पर। जिस व्यक्ति में काणापन है उसकी आंख भी छोटी होती है, पलक भी मिची रहती है। यूं भी दो आंखों के होते हुए एक में दृष्टिहीनता होना भी तो कमी ही है!! कण अर्थात सूक्ष्मतम अंश या परिमाण की निर्मिति के पीछे उसका लघुतम होते जाना ही है। कण् में पीसना, चूरना, चूर्ण जैसा भाव भी है। चूर्ण करने या पीसने की क्रिया किसी वस्तु या पदार्थ को लगातार तोड़ना या विभाजित करना ही है। इसके लिए सबसे पहले उस वस्तु पर आघात करना पड़ता है, अथवा उसमें छेद करना पड़ता है। इस तरह उस वस्तु का आकार लगातार सूक्ष्मतम होता जाता है। यही है कण् में निहित छोटा होते जाने के भाव की व्याख्या। एक आंखवाले
Britain_ समाज में काना व्यक्ति हमेशा अशुभ ही माना जाता है। दुर्जन व्यक्ति को भी हमेशा काणा ही दर्शाया जाता है।
व्यक्ति को संस्कृत में काण कहा जाता है। काण का अर्थ छिद्रवाला, फटा हुआ भी होता है और एकआंखवाला भी। काने व्यक्ति के नेत्रकोटर में सिर्फ गढ़ा नजर आता है। गौर करें किसी जमाने में मुद्रा के तौर पर कौड़ी का खूब प्रचलन था। टूटी फूटी कौड़ी का कोई मोल नहीं होता था। इसीलिए भग्न,जर्जर या फूटी कौड़ी को कानी कौड़ी भी कहते हैं। निर्धनता प्रकट करने के लिए कानी कौड़ी पास न होना का मुहावरा चल पड़ा। कागजी मु्द्रा के दौर में आज भी कटे फटे नोट बाजार में स्वीकार नहीं किए जाते हैं अर्थात उनका कोई मूल्य नहीं होता।
भारतीय संस्कारों में किसी वस्तु या निर्माण का भग्न होना, खंडित होना अशुभ माना जाता है। यही भाव मनुष्य की शारीरिक अपंगता के साथ भी जुड़ गया और अपंगों, अपाहिजों को अशुभ, अमंगली समझा जाने लगा। समाज में काना व्यक्ति हमेशा अशुभ ही माना जाता है। दुर्जन व्यक्ति को भी हमेशा काणा ही दर्शाया जाता है। कौए को भी लोकसंस्कृति में हमेशा अशुभ ही माना गया है। उसे काणाकव्वा भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि कौए के सिर में नेत्रकोटर तो दो होते हैं मगर पुतली एक ही होती है। उसे जिस दिशा में देखना होता है, पुतली उसी कोटर में चली जाती है। कौए के इस गुण को एकाग्रता और पक्की नजर का गुण माना जाता है। इसीलिए काकदृष्टि जैसा मुहावरा भी प्रचलित हुआ। संस्कृत में एक श्लोक है जिसमें काकदृष्टि की प्रशंसा की गई है- काकदृष्टि बकोध्यानम् श्वान निद्रा अल्पाहारम् जीर्ण वस्त्रम् एतद विद्यार्थी लक्षणम् अर्थात कौए की तरह किसी लक्ष्य पर नजर गड़ा देना, बगुले की तरह ध्यानमग्न रहना, कुत्ते की तरह कम सोना, कम भोजन करना और बनाव सिंगार के प्रति उदासीन रहना ही अच्छे विद्यार्थी का गुण होता है। बकोध्यानम् से तात्पर्य बगुले की एक पैर पर लगातार खडे़ होने की चातुरी से है। मछली को झांसा देने के लिए बगुला सरोवर में एक टांग ऊपर उठा लेता है। मछलियां धोखा खाकर उसके इर्दगिर्द चली आती हैं और तभी चतुर बगुला उन्हें चोंच में दबा लेता है। बकोध्यानम् से ही हिन्दी में ढोंगी और धोखेबाज के लिए बगुलाभगत जैसा मुहावरा प्रचलित हुआ।

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16 कमेंट्स:

आचार्य उदय said...

आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !

आचार्य जी

दिनेशराय द्विवेदी said...

एक आँख वाला व्यक्ति दुनिया को त्रिआयामी न देख केवल द्विआयामी देख पाता है जो लक्ष्यबेध के लिए आवश्यक अवस्था है।
तराजू को खाली उठाने पर एक पलड़ा झुका रहे तो कहा जाता है डंडी में काण है।

Baljit Basi said...

कीड़ा लगी सब्जी जैसे बैंगन गन्ना आदि को काणा बोला जाता है. सिंह बोलों में काने को पंज-अखा बोलते हैं. धुप में वर्षा हो तो उसे पंजाबी में कानी कीड़ी(चींटी) का विवाह होना बोलते हैं. काण का अर्थ टेडापन या नुक्स भी होता है.
मुहावरे:
कानी दे विआह विच सौ मन खतरा: ख़राब काम में खराबी होती है
काणे नूं काणा कहना : सच सच बोलना
कानी उंगली : छोटी उंगली

Udan Tashtari said...

किसी काम पर निकलो और काणा दिखा मतलब विघ्न है..हमारे यहाँ ऐसा माना जाता है....

आलेख जानकारी पूर्ण है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जी हाँ!
सही है! अन्धों में काना ही राजा होता है!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

बगुले के 'ध्यान' की संगति उसकी निश्चल एकाग्रता से अधिक बैठती है। श्लोक के एक अन्य पाठ में विद्यार्थी के लिए 'गृहत्यागी' प्रयुक्त होता है जो मेरी समझ से अधिक उपयुक्त है।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

हाँ उसमें काकदृष्टि नहीं काकचेष्टा का प्रयोग है।

Anonymous said...

@ दिनेश राय द्विवेदी, काणा तीन आयामों के बजाए दो आयाम ही देखता है, यह कौन सा विज्ञान है? सब भाई अपनीं एक आँख बंद करें-क्या अब लम्बाई चौड़ाई और ऊँचाई नहीं दिख रही? जहाँ तक लक्ष्य भेद की बात है तो अधिकांश तीरंदाज या शूटर एक आँख बंद कर ही लक्ष्य भेदते हैं। हाँ मार्क्स वादियों की बात अलग हो सकती है!

Baljit Basi said...

भारोपी मूलों की लिस्ट में से अगर अगवाई लें तो 'काना' शब्द kaiko- मूल से जुड़ता है जिस का संस्कृत/ हिंदी सुजाति 'केकर' (ऐंचा, भेंगा) है. यह लातीनी caecus और अंग्रेजी caecum(अँधा,अन्ध्रान्त) से जुड़ता है.

प्रवीण पाण्डेय said...

काकचेष्टा संभवतः दृष्टि का नहीं, लगन का परिचायक है ।
दूसरी पंक्ति जो मैने पढ़ी वह इस प्रकार थी,
अल्पाहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंचलक्षणम् ।

मीनाक्षी said...

लगभग सभी छात्रों के स्कूल छोड़ने पर यही श्लोक यादगार के रूप में उनकी डायरी मे लिखा करते थे....दूसरी पंक्ति 'अल्पाहारी,गृहत्यागी, विद्यार्थी पंचलक्षम् ! जानते थे अब एक नया रूप और दिखा जैसे काकदृष्टि के साथ साथ काकचेष्टा के बारे मे कहा जाता है...
(हाज़िरी लगाएँ या न लगाएँ, पढाई का पूरा ध्यान रखते हैं.)

Ra said...

अन्धो में काना राजा ' सही है

Mansoor ali Hashmi said...

प्यार को चाहिए क्या ?.........

.....?
......??


एक नज़र, एक नज़र !

उम्मतें said...

@ मंसूर अली साहब
:)

@ गिरिजेश जी
काक चेष्टा सही है ! बचपन में स्कूलों की पुस्तिकाओं में कंकड़ चुनकर घड़े को भरने और फिर पानी पीने की कौवे की कवायद / चेष्टा का , ज़िक्र देखा है !

Rajendra said...

जोरदार तात्विक समीक्षा की .....
मज़ा आ गया ......

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

एक द्रष्टि दया द्रष्टि

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