Sunday, June 6, 2010

प्रकांड, गैंडा और सरकंडा

पिछली कड़ियां-anim3 1.काना राजा और काक दृष्टि 2.जरूर कोई ‘कांड’ हुआ है…

संस्कृत की कण् धातु में निहित हिस्सा, शाखा, भाग, लघुतम अंश जैसे अर्थों से ही इसमें अध्याय या प्रसंग का भाव विकसित हुआ। घास प्रजाति के पौधे के लिए भी कांड शब्द प्रचलित हुआ जिसमें बांस से लेकर गन्ना भी शामिल है। किसी वृक्ष की शाखा, डाली अथवा तने को भी कांड कहा जाता है। जाहिर है ये सभी वृक्ष के हिस्से या अंश हैं। कांड में आधार का भाव भी निहित है क्योंकि तने को भी कांड कहा गया है। इसी कड़ी से जुड़ा है प्रकांड शब्द। संस्कृत का प्र उपसर्ग जब संज्ञा या विशेषण से पहले लगता है तो उस शब्द में सम्पूर्णता का भाव भी समाहित हो जाता है। इस तरह से कांड में प्र उपसर्ग लगने से एक नया विशेषण बनता है जिसमें अत्यधिक, आधिक्य या अत्यंत का भाव समाहित है। यूं प्रकांड का अर्थ है वृक्ष का सबसे मोटा और मजबूत भाग अर्थात तना, इसमें जड़ से लेकर प्रशाखाओं तक वृक्ष का विस्तार भी है। प्रकांड का दूसरा अर्थ है कोई भी प्रमुख पदार्थ या वस्तु। इसीलिए आमतौर पर किसी विशिष्ट क्षेत्र में प्रवीणता रखनेवाले व्यक्ति को प्रकांड विद्वान कहा जाता है।
न्ना भी बांस की ही एक प्रजाति है। इसमें भी जोड़ या उभार साफ नजर आते हैं। इसीलिए गन्ना, बांस आदि को भी कांड कहा जाता है क्योंकि यह कांडों में विभक्त होता है। बांसुरी भी बांस से ही बनती है इसीलिए इसका एक नाम कांड  वीणा भी है। गन्ने से बने गुड़ को खांड कहा जाता है। खण्ड का अर्थ होता है भाग, हिस्सा, अंश अथवा ईख का पौधा। गौर 2 sizes lucky bamboo करें ईख के तने पर जिसमें कई खण्ड होते हैं। ये खण्ड अपने जोड़ पर उभार या गंठान का रूप लिए होते हैं। इसी जोड़ या गठान का भाव तब और साफ होता है जब खंड का अर्थ पिंड के रूप मे सामने आता है। यही खांड है। संस्कृत का कंदः शब्द भी इसी शब्द श्रंखला का हिस्सा है जिसका मतलब होता है गांठदार जड़। इसी कंद से अंग्रेजी का कैंडी बना है जो एक तरह से शकर की डली ही है। घास की एक और प्रसिद्ध किस्म है सरकंडा। इसमें भी चीर देने वाला शरः अर्थात एक किस्म की तीखी घास सरपत ( शरःपत्र> सरपत )झांक रही है। यह बना है शरःकाण्ड से। काण्ड का मतलब होता है हिस्सा, भाग, खण्ड आदि। सरकंडे की पहचान ही दरअसल उसकी गांठों से होती है। सरपत को तो मवेशी नहीं खाते हैं मगर गरीब किसान सरकंडा ज़रूर मवेशी को खिलाते हैं या इसकी चुरी बना कर, भिगो कर पशुआहार बनाया जाता है। वैसे सरकंडे से बाड़, छप्पर, टाटी आदि बनाई जाती है। सरकंडे के गूदे और इसकी छाल से ग्रामीण बच्चे खेल खेल में कई खिलौने बनाते हैं।
ण्ड की तरह ही संस्कृत के गुडः शब्द के मायने भी पिण्ड, ईख का पौधा, शीरा अथवा ईख के रस से तैयार पिण्ड होता है। गन्ने के छोटे छोटे टुकड़ों को गडेरी कहते हैं। यह भी गड् से ही बना है। गौर करें खण्ड और गुड की समानता पर । और दोनों एक ही वर्णक्रम के अक्षर हैं और इनमें एकदूसरे में बदलने के वृत्ति होती है। हिन्दी का गुड़, संस्कृत के गुडः से जन्मा है जिसका मतलब है रस, राब, शीरा, ईख के रस से तैयार पिंड या भेली। गुड़ः के मूल में जो धातु है उससे इसका अर्थ और साफ होता है वह है गड्। गड् यानी रस निकालना, खींचना । दुनियाभर में शकर और गुड़ सिर्फ गन्ने से ही नहीं बनते बल्कि ताड़ के रस अथवा चुकंदर से भी बनाए जाते है। गड् का का एक और अर्थ होता है कूबड़। गौर करें कूबड़ एक किस्म की गांठ ही होती है। गण्ड का मतलब भी गांठ, फोड़ा अथवा फुंसी ही होता है। ईख के लिए हिन्दी में प्रचलित गन्ना शब्द इसी गण्ड से बना है इसका आधार है गन्ने के तने का गांठदार होना। गण्डिः का मतलब होता है वृक्ष के तने का वहां तक का हिस्सा जहां से पत्ते या शाखाएं शुरू होती है। वाशि आप्टे कोश के अनुसार गैंडा शब्द की व्युत्पत्ति भी गंड से ही हुई है। गैंडे के चेहरे पर जो उभरा हुआ सींग है वह दरअसल एक रेशेदार गांठ ही है। इसके अतिरिक्त गैंडे की शरीर पर कवचनुमा खाल के उभार भी इस अर्थ की पुष्टि करते हैं। गले के एक रोग को गलगंड कहते हैं जिसमें गले में एक गांठ सी उभर आती है। [समाप्त]

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7 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

गन्ने के गांठ से गांठ तक के हिस्से को गण्डेरी भी बोलते हैं।

Asha Joglekar said...

वाह, गण्ड, खण्ड, कण्ड और काण्ड, गलगण्ड को मराठी में कहते हैं गण्डमाळा । रोचक जानकारी . ठठेरे के खिलौने तो हमने भी बनाये हैं बचपन में।

Mansoor ali Hashmi said...

'क'न्द, कांड से ले प्रकांड तलक शब्दों क सफ़र चलता ही गया,
'खं'डो में विभाजित ईख हुआ, स्वभाव मगर मीठा ही रहा,
'गु'ड़, गंड बना शीरा भी शकर, गलगंद हुआ गेंदा भी बना,
'क' , 'ख', 'ग' सीखे ही थे कि, 'घ'न्टी बजदी मैं चलते बना.

प्रवीण पाण्डेय said...

ज्ञान बढ़ गया ।

उम्मतें said...

शुक्रिया !
देर से आ पाया :)

सहज समाधि आश्रम said...

मैंने आपसे पहले भी आग्रह किया था कि जब आप इतनी बारीकी से
शोध करते हैं तो एक बार संयुक्त और बुने हुये शब्दों को अलग करके
भी देखे । वैसे अबकी बार आपने जो शब्द चुना था वो मेरा पसन्दीदा
शब्द है..प्र..अब मैं आपको अपना द्रष्टिकोण बताता हूँ । मैं इसके रहस्यों
को जानने के लिये इसे प्र से पर कर देता हूँ । उदाहरण..प्रकृति..प्रदर्शन
..परकरती..परदरसन..अब ये पर एक सेतु का कार्य कर रहा है..या
एक किसी भी वाहक का कार्य कर रहा हैं । कि जो प्रतिबिम्बित हो
रहा है । उसका मूल कहाँ है ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com

अनामिका की सदायें ...... said...

बहुत सुंदर प्रयास है...सुक्रिया इसे हमारे बीच प्रस्तुत करने के लिए.

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