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Monday, June 14, 2010
गजनी, गजनवी और गजराज
भारत मे गजनी शब्द को सुनते ही एक आक्रान्ता की छवि उभरती है। महमूद गजनी एक दुर्दान्त आक्रमणकारी था जिसने 997 से 1028 के बीच सतरह बार भारत पर हमला किया। सोमनाथ मंदिर के विध्वंस भी इसने ही किया था। आज अफ़गानिस्तान के जिस सूबे को कंदहार कहते हैं, पौराणिक काल में भारत के पश्चिमोत्तर में स्थित यही क्षेत्र गांधार कहलाता था। गजनी का रिश्ता गांधार से ही है। आज कंदहार अलग प्रांत है और गजनी एक अलग प्रांत। गजनी के लोग ही गजनवी कहलाते हैं इसीलिए महमूद गजनी को महमूद गजनवी भी कहते हैं। यूं तो अफगानिस्तान पठान कौम की वजह से जाना जाता है मगर यहां कई अन्य कबाइली जातियां भी सैकड़ों सालों से निवास करती रही हैं जिनमें तुर्क, मंगोल, तातार आदि भी हैं। अफगानिस्तान के कंधार प्रान्त तक ईसापूर्व से ही तुर्क बसने लगे थे। कंधार के तुर्कों को गज़ तुर्क की पहचान मिली। अरबी हमलावरों ने अफगानिस्तान में भी इस्लाम का परचम फहराया। इससे पहले गजतुर्क बौद्ध थे, शॉमन थे या ताओवादी भी थे। अधिकांश तुर्कों की अपनी कबीलाई धार्मिक आस्थाएं थीं। सातवीं सदी में जब अफगानिस्तान में इस्लाम ने कदम रखा तब वहां भी इस्लाम अपनाया गया और गज़ तुर्क भी मुसलमान हुए अन्यथा वहां बौद्धधर्म का बोलबाला था और गजनी पश्चिमी भारत का प्रमुख बौद्धकेन्द्र था। पश्चिमी दुनिया को पूर्वी दुनिया से जोड़नेवाले प्राचीन रेशम मार्ग यानी सिल्क रूट का भी एक प्रमुख मुकाम था गजनी। यहां वस्त्र उद्योग काफी बढ़ा चढ़ा था। रेशमी और सूती धागों के ताने-बाने से सेमीसिल्क कपड़ा बनाने की कला में यहां के कारीगर माहिर थे। इस कपड़े को भी गजनी नाम ही मिला था। महाराष्ट्र और गुजरात में कुछ दशक पहले तक यह शब्द जाना-पहचाना था। कृपा कुलकर्णी के मराठी व्युत्पत्ति कोश में इसका उल्लेख है।
गजनी शब्द की रिश्तेदारी गज से है जो ईसा से पंद्रह सदी पहले यदुवंश का महाप्रतापी राजा था और पश्चिमोत्तर भारत पर राज करता था। कुछ संदर्भों के मुताबिक गज़ का इतिहास इतना पुराना नहीं बल्कि ईसा के आसपास ठहरता है। इसी तरह कुछ संदर्भों में कृष्ण की जो वंशावली दी गई है उसके मुताबिक गज को कृष्ण की छठी पीढ़ी का बताया गया है। तब उसका काल ईसापूर्व पंद्रहवी सदी से भी पूर्व का होता है। जो भी हो, यह तय है कि गजनी नगर अत्यंत प्राचीन है और इसकी स्थापना यदुवंशी राजा गज ने की थी। गज का राज सुदूर दक्षिण में द्वारिका से लेकर उत्तर में जम्मू तक था। संस्कृत का गज शब्द भारत के क्षत्रियों में वीरता और शौर्य के प्रतीक के रूप में खूब लोकप्रिय रहा है। गजभान, गजराज, गजसिंह, गजेन्द्र, गजोधर जैसे नाम आमतौर पर हिन्दुओं की नामावली में देखे जा सकते हैं। गजानन गणेश का लोकप्रिय विशेषण है और अपनी संतान के लिए यह नाम भी शुभता के प्रतीक के तौर पर हिन्दुओं में रखा जाता है। गज शब्द में गर्जना का भाव निहित है। संस्कृत में गज् और गर्ज् दो समान ध्वन्यार्थ और भावार्थ वाली धातुएं हैं जिनमें गड़गड़ाहट, गर्जना, दहाड़ना, प्रचंड ध्वनि करना जैसे भाव हैं। गज् में जहां चिंघाड़ना, मदोन्मत्त ध्वनि करना, कोपध्वनि अर्थात गुस्से में चिल्लाने जैसे भाव हैं वहीं गर्ज् में प्रतिस्पर्धात्मक ध्वनि का भी भाव है। स्पष्ट है कि गज् की अगली कड़ी में गर्ज् का विकास हुआ होगा।
गौर करें कि बिजली जब कड़कती है तो उसे भी गाज कहते हैं। इस गाज का विकास गज् से नहीं बल्कि गर्ज् से हुआ है। गर्ज्-> गर्ज> गज्ज> गाज के क्रम में यह विकसित हुआ है। यहां गाज का अर्थ है बिजली जो गर्जना के साथ अपनी उपस्थिति दर्शाती है। बारिश के दिनों में आमतौर पर बिजली गिरती है। आकाशीय विद्युत या तड़ित के धरती में प्रवाहित होने का यह एक बहुत सामान्य सा सिलसिला है मगर मनुष्य के लिए यह पुरातनकाल से बड़ी और भयकारी घटना बना हुआ है। गर्ज से ही बना गर्जना यानी तेज आवाज। यही गर्जना जब अपनी चमक-दमक के साथ आकाश से होती है तब वह गाज कहलाती है। जब वही गाज कहर बन कर मनुष्य, उसके सृजन अथवा उसके रोजगार पर टूटती है तो उसे गाज गिरना कहा जाता है। आकाशीय विद्युत में विपुल ऊर्जा होती है और यह जिस भी रचना पर गिरती है वह जल कर नष्ट हो जाती है। गर्ज् या गज् में निहित तेज आवाज, चिंघाडने, दहाड़ने के लक्षण से ही हाथी को गज नाम मिला। गर्ज में निहित नष्ट करने के लक्षण में मनुष्य ने पार न पाने के भाव को तलाश लिया था। यहीं से तेज बोलने, चिल्लाने या दहाड़ने के गुण का शौर्य से रिश्ता जुड़ा और गर्जना, चिंघाड़ना जैसे लक्षण बहादुरी, युद्ध, मुकाबला या प्रतिस्पर्धा का पर्याय बन गए। इस तरह गज नाम को मनुष्य से जोड़ने की शुरुआत उसे शौर्य से सम्बद्ध करने की वजह से ही हुई।
श्रीकृष्ण वेंकटेश पुणताम्बेकर लिखित एशिया की विकासोन्मुख एकता से पता चलता है कि अफगानिस्तान के गजतुर्कों ने आठवीं सदी तक भी पूरी तरह इस्लाम कबूल नहीं किया था। इतिहास में सेलजुक तुर्कों का बड़ा नाम है। दरअसल आठवीं के आसपास गजतुर्कों का नेता सेलजुक था। गजतुर्क तब तक किर्जगिजिस्तान में फैल चुके थे। सेलजुकियों ने बुखारा पर कब्जा किया और कालांतर में इस्लाम धर्म भी ग्रहण किया। इस्लाम ग्रहण करने के बाद तुर्कों को तुर्कमान कहा जाने लगा। इन्ही का वंशज या रिश्तेदार था मुहम्मद गोरी जो खुद भी सेलजुक तुर्क था यानी वह महान हिन्दू राजा गज के नाम पर चले तुर्कों के एक वंश का प्रतिनिधि था जो नए धर्म की खातिर उस शांतिप्रिय धर्म, संस्कृति और सभ्यता को नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए बार बार पसीना बहाता रहा जिसने तुर्क नाम को गजतुर्क की एक नई पहचान दी थी। इसके बावजूद उसके काबिल वंशज चंद सैंकड़ा इमारतों की तामीर के अलावा ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। अलबत्ता इस्लाम का दूसरा रूप लेकर पहुंचे सूफियों नें नए धर्म को भारतीयता की मिट्टी में बोया, प्रेम से सींचा तब जाकर सूफी दर्शन के रूप में इस्लाम को हिन्दुस्तानियत ने कुबूल किया।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:40 AM लेबल: animals birds, पद उपाधि, सम्बोधन, संस्कृति
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16 कमेंट्स:
चन्द्र वंश की एक परवर्ती शाखा भाटियों के नाम से प्रसिद्ध हुई है। इस शाखा के प्रतापी पुरुष राजा भाटी से शाखा का नाम पड़ा। उन्हीं के वंशज राजा रिज की राजधानी पुष्यपुर वर्तमान पेशावर है। राजा रिज के पुत्र गजसिंह नें गजनी का किला बनाया और शहर बसाया था। यह घटना ६०० ई० सन से पहले की है। इन्हीं भाटियों नें सन ६२३ ई० में भट्टिक संवत चलाया था। कहते हैं महमूद मरते वक्त तक मुसलमान नहीं हुआ था। संवत को लेके भी कूछ किंवदंतिया हैं।
कमाल की जानकारी!
गज, गजनी, गौरी, और गजनवी
सभी के बारे में जानकारी मिल गई!
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बढिया रही यह कड़ी भी!
@ अजित जी और अनोनिमस जी
ईसा पूर्व काल की गणना और यदुवंश / चन्द्रवंश के मुद्दे को छोड़ भी दें तो आप दोनों ( महाप्रतापी ) राजा 'गज' पर सहमत है ! ये भाटी लोग स्वयं को यदुवंशी मानते हैं या चन्द्रवंशी ये जानकर आगे भी सहमति बढाइये !
गांधार राजकुल की बात करे तो शकुनि से लेकर महमूद तक का व्यवहार शत्रुता पूर्ण दिखता है !
अनोनिमस जी भाटी और भाटियों से एक कन्फ्यूजन हो रहा है क्या ये केवल भाटी है या फिर भाटिया ?
बहुत सी कड़ियों को खोलता है यह आलेख. गज सम्बन्धी विन्यास से खूब ज्ञानवर्धन हुआ.
गजों के बारे में सुन्दर जानकारियाँ ।
शब्द आज चले है, बिल्कुल धीर गंभीर गजचाल!!
@अली जी, अनोनिमस जी,
चन्द्रवंश से ही यदुवंश प्रकट हुआ एवं उसकी एक शाखा भाटी है.
भाटी को ही बहुवचन में भाटियों पुकारा है,भाटिया एक अलग गौत्र है.
मॉडर्न मेडिसिन के संस्थापक अबू सीना बुखारा के रहने वाले थे। वे अपनी वल्दियत अबू सीना बिन उजलग बिन तरखन लिखते हैं। यानी उनके पिता का नाम उजलग और दादा का तरखन था। अबू सीना अरबी असर वाला इस्लामी नाम है, जबकि उनके पिता और दादा पूर्व-इस्लामी ठेठ तुर्क लोग हुए। बीजगणित की शुरुआत करने वाले अल ख्वारिज्मी की ख्याति उनके बगदाद प्रवास के बाद हुई लेकिन उनका मूलस्थान भी बुखारा ही समझा जाता है। आधुनिक विज्ञान के इतिहास में यह आम धारणा है कि बादशाह हारून और मैमून के जमाने में इसमें जो असाधारण गति आई, वह बुखारा के बौद्धकाल में हासिल की गई उपलब्धियों का ही अगला चरण थी।
इतिहास मेरा पसंदीदा विषय है ,परन्तु दुर्भाग्य वश ब्लॉगजगत में इस विषय पर बहुत ही कम सामग्री मिलती है .आज आपकी पोस्ट से कुछ दिलचस्प व् अलग जानकरी मिली अच्छा लगा ..शुक्रिया.
बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद्
कमाल का ज्ञान साझा करते है
गज, गजनी के बारे में गजनट जानकारी। जय हो!
bhati the great jai ho
bhati rajya pure afganistan pakistan aur panjab rajsthan me tha
बडनेरकर जी, आपका यह आलेख भारत के कालकवलित इतिहास को नई दृष्टि से देखने की प्रेरणा देता है । भाषाई यात्रा के माध्यम से अतीत मे उतरना बडा महत्वपूर्ण है । आभास होता है जैसे कतिपय इतिहासकारों ने समग्र अध्ययन के बिना ही अतीत गाथाएँ रच ली हों । इस्लाम का सच्चा स्वरूप तो निस्सन्देह उस सूफी सोच मे ही है जो कट्टरता से दूर और प्रकृति के निकट है ।
बिलकू सही फ़रमाया हे राजा गज ने ही गजनी शहर २०० इसवी के लगभग बसाया था जो चंद्रवंशी राजा थे मथुरा से यादव दक्षिण की और चले गए थे उसी गज का वंशज यह गजनी था और चन्द्रवंश और यदुवंश एक ही हे भाटिया महाजन भी भाटियों से प्रथक हुए हे अधिक जानकारी के लिए मेरा ब्लॉग देखे surendarbhatihistory.blogspot.com
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