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ब आते हैं
झंडुबाम पर। मूर्ख, नाकारा, भोंदू के लिए झंडुबाम शब्द के मूल में दरअसल उपरोक्त चर्चित झंडू या झण्डू शब्द ही है। एक चर्चित उत्पाद किस तरह से अभिव्यक्ति का जरिया बनते हुए जनभाषा में स्थापित होता है,
डालडा की तरह ही मगर कुछ भिन्न विकासक्रम वाला उदाहरण झंडुबाम का भी है।
झंडु के कुछ रूपों पर चर्चा हो चुकी है इसलिए झंडुबाम वाले झंडु पर चर्चा हो इससे पहले बाम पर बात कर लेते हैं। अंग्रेजी में मलहम के लिए एक शब्द है
बाम balm. वाल्टर स्कीट की डिक्शनरी के मुताबिक हिब्रू में इसका रूप है
बासम basam है। वही अरबी में इसका रूप है
बाशम basham बरास्ता हिब्रू ग्रीक में दाखिल हुआ जिसका अर्थ है सुगंधित लेप। ग्रीक में इसका रूप हुआ
बॉलशमोन, लैटिन में यह हुआ
बॉलशमुन। फ्रैंच में इसके हिज्जों में बदलाव आया और इसका रूप हुआ बॉम और फिर अंग्रेजी में यह बाम balm के रूप में सामने आया। मूल रूप से इसमें ऐसे रेज़िन या चिपचिपे पदार्थ का भाव है जिसका प्रयोग जैव पदार्थों को अधिक समय तक सुरक्षित रखने और शरीर को आरोग्य प्रदान करने में होता हो। शवों सुरक्षित रखने की क्रिया
ऐम्बॉमिंग कहलाती है जिसके मूल में यही बाम शब्द है। गुलमेंहदी को अंग्रेजी में
बॉलशम balsam कहते हैं। दवा के रूप में बाम में मरहम, लेप या मलहम का भाव है। याद रहे प्राचीनकाल से ही सिर में लगाने की विविध ओषधियां और लेपन बनते रहे हैं। भारतीय चंदन इसमें प्रमुख रहा है। इसके अलावा कई तरह के सुगंधित तेल और वनौषधियों के अवलेह का प्रयोग भी लेपन के लिए होता था।
ब्राह्मी बूटी या
ब्राह्मी वटी भी ऐसी ही ओषधि थी। आयुर्वेद में
ब्राह्मी बहुउद्धेश्यीय ओषधि है। यह मस्तिष्क के लिए शीतलकारक होती है। ब्राह्मी का अपभ्रंश रूप भी
बाम ही बनेगा।
बहरहाल, जहां तक झंडुबाम का सवाल है इसका रिश्ता गुजरात के जामनगर में रहनेवाले वैद्य झंडु भट्टजी सेहै। आज से क़रीब दो शताब्दी पहले अर्थात अठारहवीं सदी के पहले दशक में इनका जन्म हुआ था। वैद्यों के घराने में पैदा होकर इन्होंने भी वैद्यकी के जरिए समाजसेवा का काम शुरु किया। इनकी चिकित्सा को इतनी ख्याति मिली कि इन्हें जामनगर रियासत का राजवैद्य बनाया गया। झंडु भट्टजी के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है। झंडुबाम की आधिकारिक साइट पर इनका पूरा नाम नहीं मिलता। इनका पूरा नाम था करुणाशंकर वैद्य। उपनाम भट्ट था। समाज में इनकी ख्याति वैद्य झंडु भट्टजी के रूप में थी। ओषधि अनुसंधान में इनकी खास रुचि थी। पीलिया रोग के उपचार में इन्होंने खास शोध किया। आयुर्वेद में उल्लेखित आरोग्यवर्धिनी ओषधि का प्रयोग इन्होंने पीलिया, मधुमेह से ग्रस्त कई रोगियो पर किया और इसे ख्याति दिलाई। 1864 में जामनगर महाराज की प्रेरणा और आर्थिक सहायता से जामनगर में भट्टजी ने रसशाला नाम से एक अनुसंधान व ओषधि निर्माणशाला खोली। झंडु भट्टजी के पोते जुगतराम वैद्य ने अपने पितामह की विरासत को व्यवस्थित व्यापारिक संस्थान में बदलने का बीड़ा उठाया। 1910 में उन्होनें झंडू फार्मेसी की स्थापना की। 1919 में कम्पनी बाकायदा मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में रजिस्टर्ड हुई और इसने शेयर भी जारी किए। झंडु नाम आयुर्वैदिक और देशी दवा कंपनी के रूप में बहुत शोहरत कमा चुका है। मगर जितनी शोहरत इसकी दवाओं की नहीं है उससे ज्यादा शोहरत इसके नाम से प्रचलित झंडुबाम मुहावरे को मिली है।
अब यूं देखा जाए तो किसी ज़माने में पेनजॉन भी सिरदर्द की एक प्रसिद्ध दवा थी। हमारे कॉलेज में जो लड़का सिरखाऊ किस्म का माना जाता था, उसे पेनजॉन कहा जाता था। कहने की ज़रूरत नहीं कि मूर्ख या बेवक़ूफ़ किस्म के लोगों को ही सिरखाऊ समझा जाता है। झंडुबाम मूलतः सिरदर्द की दवा है। जाहिर है अगर झंडुबाम का चलन इन विशेषणों के संदर्भ में शुरू हुआ है, तो यह व्युत्पत्ति भी तार्किक है मगर सवाल उठता है कि वैद्य झंडु भट्टजी को झंडु उपनाम क्यों मिला होगा जबकि इसकी अर्थवत्ता तो नकारात्मक है !!! हिन्दी के झंड करना में अन्य भावों समेत बेइज्ज़त करने का भाव भी समाहित है। यह भी बाल उतारने की क्रिया से ही जुड़ा है। पुराने ज़माने में आमतौर पर सार्वजनिक रूप से किसी व्यक्ति का बहिष्कार किया जाता था तो उसका सिर मूंड दिया जाता था। यह क्रिया भी झंड करना ही हुई। बालों से वंचित व्यक्ति भी झंडू है, ठगा जा चुका भी झंडू है और मूर्ख बन चुका भी झंडू है। इसके अलावा स्वभावतः भोंदू, आलसी, निठल्ला, सुस्त, मूर्ख व्यक्ति भी इस विशेषण का हक़दार है। झंडू ही झंडूबाम है। अलबत्ता झंडु भट्टजी के नाम के साथ झंडु शब्द मुझे लगता है गेंदे के लिए प्रचलित झंडु से ही आया है। झंडु भट्टजी ने पीलिया और मधुमेह जैसे रोगों पर महत्वपूर्ण अनुसंधान किया था। रक्तशुद्धि के लिए झंडु के सफल ओषधीय प्रयोगों के चलते संभव है उनके नाम के साथ यह शब्द सम्मान स्वरूप जुड़ा हो। समाप्त
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8 कमेंट्स:
इसके बारे में जानने की बड़ी इच्छा थी , मुन्नी ने बहुत मशहूर कर दिया इसे ! मगर आपने मुन्नी की चर्चा नहीं की ..यह मुन्नी बदनाम ही थी जिसने अजीत वडनेरकर को झंडू बाम की चर्चा के लिए मजबूर कर दिया ! सरासर नाइंसाफी है अजीत भाई !
सामान्य ज्ञान की जानकारी से आज साराबोर हो गये।
झण्डुबाम पर आपका शोध प्रशंसनीय है!
'बदनाम में नाम होता है', यह इस तरह से आप जैसे ही कुछ दिखा पाते हैं.
बाम झंडू लगा गई 'मुन्नी',
दर्द अपना बढ़ा गई 'मुन्नी',
'शोध' से आपकी* ये जाना है, *[डाँ.वडनेरकरजी की]
हमको 'झंडू' बना गई मुन्नी !
जाने क्या-क्या दिखा गई मुन्नी,
जाने क्या-क्या सिखा गई मुन्नी,
कर दी घुसपैठ है ब्लागों पर,
'शब्द' कितने लिखा गई मुन्नी.
नाच कैसा नचा गई मुन्नी,
सोये अरमां जगा गई मुन्नी,
कैसा ठुमका लगा दिया उसने,
"वैद जी" से मिला गई मुन्नी.
-मंसूर अली हाशमी
http://aatm-manthan.com
लगता है आपका भी झंडूबाम से कुछ टाईअप हो गया है।
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वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
बहुत बडिया इस पोस्ट ने झंडूबाम जैसा ही काम किया है। धन्यवाद।
बढिया पोस्ट !
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