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Wednesday, December 8, 2010
तेल की बोतल से गंगाजली तक
आ मतौर पर हिन्दी का कुप्पी शब्द सबने सुना होगा। इसका दो तरह से प्रयोग होता है। फनल या कीप को भी कुप्पी कहते हैं जिसका एक सिरा चौड़ा होता है तथा दूसरा सिरा पतला होता है। शंक्वाकार आकृति का यह उपकरण आमतौर पर संकरे मुंह वाले बर्तनों या शीशियों में द्रव पदार्थ भरने के काम आता है। इसी तरह कुप्पी का दूसरा अर्थ है तरह पदार्थ (आमतौर पर तेल) का भंडारण करनेवाला पात्र। मिट्टी के तेल की कुप्पी समेत गंगाजल की कुप्पी भी होती है। कुप्पी शब्द की निरुक्ति कूप से जोड़ा जाता है। हिन्दी का कुँआ इसी कूप से बना है। संस्कृत का कूप शब्द बना है कु धातु से। यह वही धातु है जो संस्कृत-हिन्दी का प्रसिद्ध उपसर्ग भी है। आप्टे कोश के मुताबिक खराबी, ह्रास, अवमूल्यन, पाप या ओछापन जैसे भावों को अभिव्यक्त करने के लिए इस उपसर्ग का प्रयोग होता है जैसे कुरीति, कुलटा, कुमार्ग, कुचाल, कुतर्क, कुरूप, कुदृष्टि आदि। कूप में इसी कु की छाया इसमें निहित कमी वाले भाव से उपजी है। कूप में गहराई होती है जिसमें नीचाई, ह्रास, गिरावट, अवतल होने का भाव है।
कूप शब्द का अर्थ है गहरा चौड़ा छिद्र, एक चौड़ा गड्ढा, गह्वर, नाभिछिद्र आदि। कूप से हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में कई शब्द बने हैं जैसे कुइयां, कुई, कुआं आदि। हमारे यहां कहावत है- बहता पानी निर्मला यानी पानी में अगर धार है, गति है तो वह शुद्ध रहता है, उसकी जीवनदायिनी शक्ति सुरक्षित रहती है। रुके हुए जल को अशुद्ध समझा जाता है। इस तरह देखें तो कुएं का पानी तो बहता नहीं, फिर भी कुओं का पानी पिया जाता है। दरअसल कुओं से लगातार पानी उलीचने से उसके भीतर भूगर्भीय जलस्त्रोत से ताजा पानी लगातार आता रहता है। कूप में निहित चौड़ेपन का भाव कुप्पा शब्द में उजागर हो रहा है। पुराने ज़माने में चमड़े से बना चौड़े आधार वाला एक पात्र होता था जिसमें तेल रखा जाता था। फूल कर कुप्पा होना हिन्दी का एक आम मुहावरा है जिसमें अत्यंत खुशी से मुदित होने और आत्मप्रशंसा के वचन कहने का भाव है। इसी तरह कुप्पा होना में मोटा होना, या शरीर पर चर्बी बढ़ने का भी भाव है। कुआं से जुड़े कुछ और मुहावरे हैं जैसे कुआं खोदना यानी किसी को हानि पहुंचाने की योजना बनाना या नुकसान करना। इधर कुआं, उधर खाई का मतलब होता है चारों तरफ से आफत आना या समस्याओं से घिर जाना। सीमित किन्तु मनोनुकूल विकल्प न होने के अर्थ में भी इसका इस्तेमाल होता है। कुएं में गिरना या कुए में धकेलना यानी मुसीबन में पड़ना या मुसीबत में डालना।
यूँ कुप्पी का कूप से रिश्ता चाहे आसान लगता हो मगर इसकी एक अन्य व्युत्पत्ति भी सम्भव है। क़रीब दो हज़ार साल पूर्व विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक अमरसिंह कृत अमरकोश में कुतुपः नाम के एक पात्र का उल्लेख मिलता है जिसका प्रयोग तेल रखने के लिए किया जाता था। गौरतलब है कि कुप्पी शब्द का प्रयोग आज के दौर में भी तेल रखने के पात्र के रूप में ही होता है। तेल की कुप्पी जैसा पद इसे सिद्ध करता है। अमरकोश के वैश्यवर्गीय शब्दों में कुतूः का उल्लेख है जिसका अर्थ स्नेहपात्रम् बताया गया है। संस्कृत में स्नेह या स्नेहक का अर्थ चिकनाई भी होता है और तेल भी। दोनों के गुण एक ही हैं। यह पात्र चमड़े से बना होता था। अमरकोश में इसे बड़ा तैलपात्र बताया है। कुतूः से ही बना कुतुपः जिसका अर्थ भी चमड़े का तैलपात्र या कुप्पा है मगर इसका आकार छोटा होता है। इस कुतुपः में त का लोप होने से भी कुप्पी का विकास सम्भव है। कुप्पी का प्रयोग निश्चित ही प्राचीनकाल में खाद्य तेल के बर्तन की तरह ही होता रहा होगा। आधुनिक काल में जब मिट्टी के तेल का पता चला तो केरोसिन की कुप्पी या मिट्टी के तेल की कुप्पी जैसे प्रयोग भी होने लगे। बाद में तीर्थयात्रियों को धातु के बड़े पात्रों में गंगाजल लाना महँगा और श्रमसाध्य होने लगा तो प्लास्टिक की गंगाजलियाँ भी बनने लगीं जिन्हें गंगाजल की कुप्पी भी कहा जाता है। गाँवों में इन्हें सिर्फ़ पानी की कुप्पी ही कहते हैं।
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7 कमेंट्स:
कुप्पी से गंगा जाली तक का सफर काफी रोचक और ज्ञान वर्धक रहा ..आभार.
हम तो कुप्पी का प्रयोग, लालटेन जलाने के लिये करते रहे हैं।
पंजाब के गाओं में बड़े बड़े 'कुप्प' होते हैं जिनमें गेहूं का भूसा (पंजाबी में तूड़ी) भरा जाता है. यह बिलकुल कुप्पी जैसे शंक्वाकार होते हैं. पंजाब के बहुत से गाओं के नामों के आगे पीछे कुप्प शब्द होता है जैसे कुप्प कलां. 'कुप्प रहीडा' नाम का एक इतिहासिक गाँव है यहाँ १७६२ में अहमद शाह दुर्रानी ने पंजाब में छटी बार हमला करके सिखों को हराया था और उन पर बेहद जुलम ढाये थे.इस 'साके' को 'घल्लूघारा' नाम से जाना जाता है.
कुप्प के दर्शन यहाँ करें:
http://www.panoramio.com/photo/39799718
कुप्पी अब हमारे गाव मे एक बोतल मे तेल भर कर उस्के ढक्कन मे छेद्कर कपडा मोड कर डाल दिया जाता है और उसे जला कर रोशनी करते है को कहते है .
शब्द ही वाक्य की जान है. आपने जान को दिल से जान लिया है.
http://nature7speaks.blogspot.com/
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