शुक्रवार शाम भोपाल के हिन्दी भवन में चल रही राजकमल प्रकाशन की पुस्तक प्रदर्शनी में ही शब्दों का सफ़र का विमोचन हिन्दी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार मंज़ूर एहतेशाम ने किया। इस मौके पर ख्यात नाटककार अलखनंदन, कवि-कहानीकार गीत चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार-लेखक विजय मनोहर तिवारी, ख्यात ब्लॉगर-लेखिका मनीषा पाण्डे, ख्यात शिल्पी देवीलाल पाटीदार, कवयित्री डॉ सविता भार्गव और हरिद्वार से पधारे विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार-प्राध्यापक डॉ कमलकांत बुधकर भी मौजूद थे। डॉ सविता ने कार्यक्रम का संचालन किया। अध्यक्षता की अलखनंदन ने। करीब डेढ़ घंटे चले इस कार्यक्रम में सबसे पहले मंजूर एहतेशाम के हाथों पुस्तक की प्रतियों का विमोचन हुआ। इसके बाद लेखक से आमंत्रितों को मिलाने और पुस्तक का संक्षिप्त परिचय देने की जिम्मेदारी डॉ सविता ने निभाई। ख़ाकसार ने शब्दों का सफ़र से जुड़ी याद आने लायक और क़ाबिले ज़िक्र बातें श्रोताओं से साझा की। फिर संत शृंखला पर लिखे एक आलेख का पाठ किया गया। पाठ-सत्र के बाद श्रोताओं और लेखक के बीच सीधा संवाद हुआ। श्रोताओं में ज्यादातर शब्दों का सफ़र के किसी न किसी रूप में पाठक ही थी। चाहे वे दैनिक भास्कर के नियमित स्तम्भ के पाठक थे या चर्चित ब्लॉग शब्दों का सफ़र के। पेश है दिवाकर पाण्डेय की रिपोर्ट
यायावर हैं शब्द, माँ जाई बहने हैं भाषाएं
हिन्दी भवन में पुस्तक मेले केदौरान लेखक से मिलिए कार्यक्रम आयोजित
भाषाओें का रिश्ता बहनों जैसा है और शब्द यायावर होते हैं। भाषा में शब्दकोष तो हैं पर उनकी व्युत्पति का कई कोश मुझे नहीं दिखाई दिया। इसी ने मुझे एक ऐसा कोश तैयार करने के लिए प्रेरित किया। यह बात लेखक-पत्रकार अजित वडनेरकर ने अपनी किताब शब्दों के सफर के लोकार्पण के दौरान कही। शुक्रवार को हिन्दी भवन में राजकमल प्रकाशन की ओर से आयोजित पुस्तक मेले में लेखक से मिलिए कार्यक्रम के दौरान लोकार्पण किया गया। पुस्तक में शब्दों की रिश्तेदारी, उनका जन्म और वर्तमान स्वरूप के लंबे इतिहास की तर्कसंगत तरीके से पड़ताल की गई है। श्री वडनेरकर ने पुस्तक से संत शृंखला में लिखे आलेख कलंदर का पाठ भी किया। उन्होंने बताया कि इस पहले खण्ड में 10 पर्व और करीब 1500 शब्द शामिल हैं। उनकी योजना बोलचाल की भाषा क दस हजार शब्दों की व्युत्पत्ति और विवेचना कोश बनाना है। इस पुस्तक का दूसरा और तीसरा खण्ड भी लगभग तैयार हैं। लोकापर्ण करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार मंजूर एहतेशाम ने कहा कि इस पुस्तक में जिस तरह सभी भाषाओं को एक दूसरे के करीब बताया गया है, यह बहुत दिलचस्प है। हिन्दी-उर्दू को मिलाने का भी यह एक सकारात्मक प्रयास है। अध्यक्षीय भाषण में वरिष्ठ रंगकर्मी-नाटककार अलखनन्दन ने कहा कि जुदा करने वाली किताबें बहुत हैं और जोड़ने वाली कम। जो लोग साहित्य में शब्द की स्वतन्त्र सत्ता में विश्वास करते हैं वे इससे जान सकेंगे कि शब्दों के इतिहास के कितने आयाम हैं। उन्होंने पुस्तक में शब्दों के जन्मसूत्र और उनकी विवेचना शैली से प्रभावित होते हुए कहा कि इसके जरिए शब्दों के अलग अलग क़िरदार सामने आ रहे हैं, वे इसमें नाट्यतत्व की तलाश कर रहे हैं। संचालन कर रहीं कवयित्री सविता भार्गव ने पुस्तक के विभिन्न अंशों का उल्लेख करते हुए उनके रोचक इतिहास पर प्रकाश डाला। इस दौरान गीत चतुर्वेदी, विजय मनोहर तिवारी, मनीषा पाण्डेय, रवि रतलामी सहित कई साहित्य रसिक लोग उपस्थित थे। प्रकाशन के जनसम्पर्क अधिकारी रमण भारती ने बताया पुस्तक मेले में शनिवार क शाम 4 बजे मनोज सिंह के उपन्यास हॉस्टल के पन्नों सें पर गोष्ठी आयोजित की जा रही है।
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52 कमेंट्स:
ये आपके लिए एक सुदीर्घ तपस्या के फलीभूत होने जैसा है. आपको बहुत-बहुत बधाई !
बहुत बधाई बन्धुवर। देर सबेर पुस्तक ले ही लेंगे!
हार्दिक बधाई!
अजित जी इस कार्यक्रम में कल मैं भी उपस्थित था। बहुत अच्छा लगा आपको देखकर और सुनकर। आपकी किताब भी देखी। आपकी भूमिका भी पढ़ी। भारी भरकम ग्रंथ है पर है ज्ञान का भंडार। पढ़ने की काफी इच्छा थी पर कीमत आड़े आ गई। 600 रु मुझ जैसे मध्यमवर्गीय पाठकों के लिए बहुत ज्यादा हैं। यदि कम कीमत वाला पेपरबैक संस्करण भी निकल जाए तो यह किताब अधिक हाथों तक पहुँचेगी।
बधाई.
अच्छा लगा जानकार अजित जी,
बहुत बहुत बधाई आपको |
परिश्रम रंग लाया
बधाई अजित जी
अजित भाई , हार्दिक शुभ कामना. सप्रेम,
बधाई और शुभकामनाएं.
अजित भाई,
पुस्तक के विमोचन की रिपोर्ट पढ़ी और सारी तस्वीरें देखीं . मैंने अपने आपको भोपाल में बैठे महसूस किया. आपको बहुत बहुत वधाई.यह आप की ढेर सारी मेहनत का फल है.अपने ब्लाग के जरिये आप पहले ही पाठकों में जगह बना चुके हैं. देश के कितने लोगों ने देखा और जाना कि शब्दों में हमारा इतिहास, संस्कृति और कितना कुछ छुपा हुआ है. सब से बड़ी बात, शब्द हमें सही मानों में मानवजाति की एकता सिखाते हैं. कहना होगा कि दिन बदिन बड़ते जा रहे पाठकों ने भी आपके पर्यास को पूरा हुन्गारा दिया. आपकी छपी पुस्तक पढ़ने के लिए तो है ही, पाठ करने के लिए भी है. कोई संदेह नहीं कि आपकी पुस्तक हाथों हाथ बिक जायेगी. अगले खंड की तयारी शुरू कर दो.
शुभ कामनाएं
बलजीत बासी
जय हो। बधाई बहुत बहुत बधाई। मजा आ गया भैये। शुभकामनायें।
बहुत बधाई .. जरूर पढूंगी !!
वाह! बधाई हो अजित जी.. इसे कहते हैं धीरे धीरे मंजिल तक पहुँचना.. ऎसे ही किताबें आती रहें। किताबों के नये नये संस्करण आते रहें और हम खरीदते रहें, पढते रहें.. :)
Many Congratulations!
लख-लख बधाइयाँ.......
भाऊ! इस पुस्तक के आने की प्रतीक्षा मुझे आप से भी अधिक थी। बधाई। बहुते बधाई!
मुझे अजीब सा लग रहा है। सोच रहा हूँ, मैं वहाँ क्यों न हुआ? किताब जरा जल्दी क्यों न आई? खैर, आज ही मोहन न्यूज एजेंसी को बोल कर आता हूँ कुछ प्रतियाँ मंगाने के लिए। सोमेश की बात सही है। यह हार्ड बाउंड पुस्तकालयों के ठीक है। लेकिन सामान्य पाठकों के लिए तो इस का पेपरबैक निकाला जाना जरूरी है। राजकमल वाले यह करते भी हैं।
बहुत बहुत बधाइयाँ!
एक बात और, अन्य ब्लागर साथी भी आप से प्रेरणा लेंगे और भविष्य में और किताबें सामने आएंगी।
आप बहुत बेरहम भी हैं, यह आज पता लगा है। भाभी ने खुशी से अपना माथा छुआ, खुशी चेहरे पर मौजूँ है और आप कह रहे हैं कि '..और श्रीमती जी ने सिर पकड़ लिया...कहाँ फँस गए...'
बहुत बहुत बधाई व शुभकामनायें। जरूर खरीदेंगे जब भी दिल्ली आये ।
भाई अजित वडनेरकर जी बहुत-बहुत बधाई ! कुछ साथियों का सुझाव क़ाबिले-गौर है कि पुस्तक पेपर बैक और कम दाम में हो , जिससे जन साधारण और विद्यार्थियों का भी भला होगा । राजकमल वाले पहले पेपर बैक निकालते ही रहे हैं । कमाई के लिए इनके पास बहुत-सी पुस्तकें हैं । हिन्दी की भलाई चाहते हैं तो राजकमल के लिए यह कठिन नहीं है ।
बधाई हो. मौका मिलते ही पढ़ेंगे.
हार्दिक बधाई!
तक़रीबन एक साल पहले किसी पुस्तक मेले से बात शुरू हुई थी...
बहुत ख़ुशी हुई आज ये रिपोर्ट पढ़ कर.
और हाँ..मुख्य पृष्ठ पर वापिस पुरानी तस्वीर(रेगिस्तानवाला) देख प्रसन्नता हुई. मीलों मील चलते रहने वाला सफ़र है ये.
बहुत बहुत बधाई !!
ख़रीद कर पढ़ें !
वाह! इसके लिए तो आपको बहुत बहुत बधाई.. राजकमल प्रकाशन तो अपने आप में उत्तम नाम है ही.. शब्दों का सफ़र का उससे जुड़ना अतिउत्तम है..
बहुत ख़ुशी हुई.. वाकई
बहुत बहुत बधाई.'सफर' के पाठकों के लिए भी अभिभूत करने वाला क्षण.
भास्कर के आलावा आज भोपाल के किसी भी प्रमुख अखबार में इस विमोचन की खबर नहीं आई। बड़ा अजीब लगा ये देखकर।
कारण स्पष्ट है आप भास्कर से जुड़े हैं और भास्कर में ही आपका ये स्तंभ छपता है। पर ये आयोजन तो भास्कर का नहीं था बल्कि राजकमल का था, किताब भी राजकमल ने छापी है। फिर अखबारों द्वारा ये छुआछूत बरतना कहाँ तक उचित है?
बहुत शुक्रिया साथियों।
किताब की कीमत उसकी पृष्ठ संख्या के लिहाज़ से ज्यादा नहीं है। बमुश्किल सवा रुपया प्रति पृष्ठ। हम सिनेप्लेक्स, मल्टीप्लेक्स में सालभर में हजार रुपए आराम से खर्च कर देते हैं। गुटका-पान-सिगरेट पर औसतन पांच सौ रुपए महिना फूँक देना हमें नहीं अखरता। जूते -चप्पल जैसी चीज़ों पर हर साल दो साल में पाँच सौ से आठ सौ रुपए खर्च करते हैं पर ताजिंदगी साथ निभानेवाली पुस्तक की बात आते ही उसे महँगा समझ कर कतरा जाते हैं।
यूं ही चलता रहे ये सफर। शुभकामनाएं।
अजित जी,
और लोगो का तो नहीं कह सकता पर मैं हर साल डेढ़ दो हजार रुपए किताबों पर ही खर्च करता हूँ। गुटका-पान-सिगरेट का सेवन मैं करता नहीं। कोई अगर साल भर में हजार रुपए सिनेप्लेक्स, मल्टीप्लेक्स में खर्च करता भी है तो एक ही फिल्म तो नहीं देखता? यदि किसी फिल्म का टिकट हजार रुपए हो तो हर कोई देखने से पहले कई बार सोचेगा। इसी तरह मंहगी किताब लेने से पहले भी कोई कई बार सोचेगा ही। इसमे पुस्तकों से कतराने वाली कोई बात नहीं है। किताब अगर अच्छी हो तो ताजिंदगी साथ निभाएगी ही फिर चाहे वह पचास रुपए की हो या पांच हजार की। माफी चाहता हूँ पर आपका यह तर्क मेरे गले नहीं उतरा।
मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि जब कम कीमत में ढेर सारी श्रेष्ठ पुस्तकें उपलब्ध हैं तो आप की पुस्तक का पेपरबैक संस्करण क्यों नही आ सकता? कृपया इस दिशा में प्रयास करें क्योंकि आप की यह किताब अत्यंत पठनीय है और केवल कीमत की वजह से कुछ लोग पढ़ने से वंचित रह जाएं यह उचित नहीं है।
शुभकामनाएं
बधाईयाँ अजित जी...मेरी तो सारी सैलेरी (जो आवश्यक जरूरतों के बाद शेष बचती है )..किताबों में ही खर्च होती है ...
बधाई... ये सफर यूं ही चिरंतन चलता रहे....................
अजित भाई ,
आपको बहुत बहुत मुबारक बाद ! एक लंबी साधना का फल अंतत : हासिल हुआ ! कोशिश करते हैं कि पुस्तक यहाँ जगदलपुर तक भी पहुँच जाए ! समारोह के फोटोग्राफ्स के साथ आपकी छेड़छाड़ भी खूब रही :)
अली !
बहुत बहुत बधाई |इंदौर में कहाँ मिलेगी यह पुस्तक ?
अजीत भाई,
हार्दिक बधाई। शब्दों के सफर से अब वे लोग भी जुड़ सकेंगे जो नेट से नहीं जुड़े थे। बहुत अच्छा लगा लोकार्पण की खबर पाकर। मेरे कई साथियों और अनुजों ने इस बाबत मांग की थी। उम्मीद है आपको भी सफर आगे बढ़ाने के लिए ऊर्जा मिली होगी। एक बार पुन: बधाई।
सादर,
डॉ.प्रमोद कुमार तिवारी, एनसीईआरटी
बहुत बधाई..
बहुत बहुत बधाई. यह एक अत्यंत उपयोगी प्रकाशन सिद्ध होगा. आभार.
बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..बधाई..!!!
यह तो बहुत ज़ोरदार विमोचन हुआ है . ऐसा तो अच्छे अच्छे लेखकों की पुस्तक का भी नहीं होता ... अजित वडनेरकर ज़िन्दाबाद । ब्लॉगर समाज ज़िन्दाबाद ।
प्रिय अजित जी
सादर नमस्ते.
मैं हूँ आपका एक छिपा हुआ 'फैन'. नाम राजेंद्र गुप्ता. आयु ५५+. लगभग पांच वर्षों से भास्कर में और फिर ब्लॉग पर आपका स्तम्भ पढ़ रहा हूँ. "शब्दों का सफ़र" के पुस्तक रूप में प्रकाशन पर हार्दिक बधाई. मुझे विश्वास है कि आपकी यह पुस्तक भाषाओँ के संबंधों को समझने में मील का पत्थर साबित होगी.
आपको जान कर ख़ुशी होगी कि जनवरी 2004 से मेरा भी एक शब्दों का सफ़र शुरू हुआ, जो सात वर्षों में 15,000 से अधिक शब्दों के सफ़र के साथ जारी है. मेरे सफ़र में, आपके स्तम्भ और श्री अरविन्द कुमार के समान्तर कोष से काफी सहायता मिलती है. इस सफर को गति देने के लिए और इसे सभी के साथ बांटने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की अपनी नौकरी से मैं 3 जनवरी को स्वेच्छा से रिटायर हो रहा हूँ. मेरा शिक्षण वनस्पति विज्ञानं में तथा जीव-रसायन में हुआ है. मेरा भाषा विज्ञानं में कभी कोई शिक्षण नहीं हुआ है. अतः शब्दों को देखने की मेरी नज़र एकदम अलग है. मैं तो बस कल्पना कर रहा हूँ कि मैं आदि मानव हूँ और मुझे नए- नए अनुभवों को व्यक्त करने के लिए शब्द चाहियें. जीव वैज्ञानिक होने के नाते मैं सभी मनुष्यो के एक ही पूर्वज और इसलिए एक ही आदि-भाषा में विश्वास करता हूँ. मुझे ख़ुशी है क़ी विश्व क़ी सभी भाषाओँ को मैं एक ही भाषा के रूप में देख पा रहा हूँ. जनवरी के अंत से "शब्दों का डीएनऐ" नाम से ब्लॉग लिखने का इरादा है. आपसे बहुत कुछ सीखने की इच्छा है. मैं आपसे मिलने भोपाल आना चाहूंगा. क्या आपका निकट भविष्य में दिल्ली आने का कोई कार्यक्रम है ? कहाँ और कैसे मिला जा सकता है ?
सादर शुभकामनाओं के साथ
आपका
राजेन
बधाई आज आपकी मेहनत ग्रन्थ में पिरो दी गई . देखते है हमारे यहाँ बुक स्टाल पर कब आती है यह पुस्तक . तभी प्राप्त की जायेगी
बहुत बहुत बधाई .... आपको भी और राजकमल प्रकाशन को भी ...
बहुत बहुत बधाई, जल्द ही बम्बई में इसे ढूंढा जायेगा और पढ़ा जायेगा।
अजित भाई,
न तो यह पोस्ट पढी और न ही कोई टिप्पणी। बस चित्र ही देखें। पुस्तक विमोचन का समाचार ही मेरे लिए आपकी सबसे बडी पोस्अ था।
फिर से बधाइयॉं। आपके पश्रिम को अपेक्षित यश मिले।
shabdo ka safar
Dear Ajitji
Many congratulation for your new publication 'shabdo ka safar' through the reputed publisher RAJKAMAL .I am a continious reader of your articles in dainik bhaskar .please keep it up.Waiting for new arrival.
HEMANT BAHADUR SINGH PARIHAR CAMERAMAN
पुस्तक आने की बधाई, कीमत आपने लिखी नहीं या फिर हमें ही नहीं दिखी.
किताब जरूर लेंगे, हमारे बहुत काम की है (सबके सामने हिन्दी का ज्ञान बघारने के लिए)
कृपया कीमत और बता दें जिससे की राजकमल को मूल्य भेजा जा सके. सदस्य होने के बाद भी पिछले साल से उनकी पुस्तक सूची नहीं आ रही है.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
बहुत बहुत बधाई हो, अगले अंक भी शीघ्र आयें।
बहुत कम लोग ऐसे होते है जो कुछ लीक से हटकर करते है. अजीत सर ऐसे ही विरले और सरल व्यक्तित्व की शख्शियत है.. इतना शोधपरक काम- उन्हें भाषा का वैज्ञानिक कहना ही न्यायसंगत होगा. यह पुस्तक भाषा का अमूल्य रत्न है.. सहेजने योग्य.. सर आपको बधाई भी, आभार भी (अमूल्य योगदान के लिए) और विनम्र धन्यवाद भी (इसकी व्याख्या करना ज़रूरी नहीं)..... कोटिशः नमन.. - दिवाकर पाण्डेय
Agle "Safar" ka besabri se intezaar....
RAMKRISHNA GAUTAM
देर से पहुंचा इसके लिए मुआफी लेकिन आपकी इस साधना को किताब के रूप में फलीभूत होता देखना एक सुखद एहसास है.
बधाई और बधाईयाँ. किताब रायपुर में उपलब्ध है या नहीं पता करता हूँ.
हिन्दी ब्लॉगरों और ब्लॉगिंग की सार्थकता को प्रमाणित करती पुस्तक 'शब्दों का सफर' और 'अजित वडनेरकर'। बधाई,शुभकामनायें और मुबारकबाद।
अजित वडनेरकर ने शब्दों को खूब सफ़र कराया। आखिरकार वे भी यात्री थे। थक गए। उन्हें आराम के लिए एक ठिकाना चाहिए था। राजकमल ने उन्हें शब्दों का सफ़र के रूप में एक आरामगाह उपलब्ध कराया, जहाँ उन शब्दों ने विराम लिया। लेकिन ठहरिए, शब्दकोश शब्दों का आरामगाह ही नहीं हैं, चित्रशाला भी है, जहाँ एक-से-एक अधिक खूबसूरत शब्द अपनी सारी अर्थ-छायाओं और भंगिमाओं के साथ जल्वानशीं हैं। शब्दों का सफ़र एक ऐसे बैंक के समान है एक जहाँ प्रवेशकर्त्ता को खुली छूट है। वह एक ऐसा खज़ाना है जहाँ आमफ़हम आदमी के साथ-साथ जौहरी भी रत्नों की चमक से चकाचौंध हो जाते हैं।
अजित ने भाषाशास्त्रियों को सांसत में डाल दिया है कि आखिरकार वे उनके अनुशीलन को किस खाते में डालें। वे उन्हें शब्दविज्ञानी कहें, कोशविज्ञानी कहें अर्थविज्ञानी कहें या पदविज्ञानी कहें। कारण कि उनके विवेचन में भाषाशास्त्र की प्राय: सभी शाखाओं का अवलम्बन लेते हुए शब्दों के अनुशीलन को उनकी अन्तिम परिणति तक पहुँचाया गया है। उसकी व्याप्ति बहुआयामी है। उनका विवेचन न केवल हिन्दी, अपितु अरबी-फ़ारसीएक अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, पुर्तगाली, रूसी आदि भाषाओं जैसी विश्व की अन्य भाषाओं व्याप्त है। तदनुसार वह न केवल एकक सभ्यता या संस्कृति तक सीमित है, बल्कि विश्व की अनेक सभ्यताओं और संस्कृतियों को अपनी रसाई में समेट लेता है।
आज जब कि राष्ट्रवादी प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर आदमी अपने ही देश की सरहदों में महदूद है और देशों के आपसी सम्बन्धों से अन्तराष्ट्री वातावरण विषाक्त हो गया है, ऐसे में अजित का शब्दों का सफ़र उस वातावरण को खुशगवार बनाने के लिएक प्रात:कालीन हवा की ताज़गी लेकर आया है। आदमी और आदमीयत के साथ विभिन्न सभ्यताओं के रीतिरिवाज़ों और उनकी मान्यताओं तथा विभिन्न संस्कृतियों के विधायी अन्तर्तत्त्वों को विश्व इतिहास की अन्तर्धारा के समानान्तर अपने अध्ययन के दायरे में समेटने के कारण अजित का यह महत् कार्य सदैव प्रासंगिक रहेगा। यह ग्रन्थ ने केवल भाषाशास्त्र के अध्येताओं के लिएक उपयोगी होगा, बल्कि समाजविज्ञान, नृतत्त्वविज्ञान, वनस्पति विज्ञान, प्राणिविज्ञान, इतिहास, कला आदि क्षेत्रों में काम करनेवालो के लिए उपादेय होगा और एक तरह से सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में मार्ग दर्शन करेगा।
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