हिन्दी की हर भाषा में दरजन शब्द खूब प्रचलित है जिसमें बारह अंकों है। दरजन हिन्दी-उर्दू के उन बेहद प्रचलित और खूबसूरत शब्दों में हैं जो विदेशी मूल के होने के बावजूद हिन्दुस्तानी संस्कारों में ढल गए जैसे लैन्टर्न से लालटेन या हास्पिटल से हस्पताल और फिर अस्पताल। इसी तरह अंग्रेजी के डज़न dozen से हिन्दुस्तानी में दरजन बन गया। भाषायी रूपान्तर की यह बेहद खूबसूरत मिसाल है। हिन्दी में दर्जन भर आम से लेकर दर्जन भर ख़ास लोग तक शामिल होते हैं। वस्तु से लेकर इन्सान तक दरजन भर के दायरे में आ जाते हैं। आमतौर पर लोगों को यह ग़लतफ़हमी है कि दरजन शब्द का इस्तेमाल सिर्फ जिन्सों अर्थात वस्तुओं के सदर्भ में होता है इसीलिए मनुष्यों के सदर्भ में दरजन शब्द का इस्तेमाल ठीक नहीं जैसे-वहाँ दो दर्जन लोग भी नहीं जुटे थे। दरअसल दरजन शब्द में बारह के समूह का ही भाव है। बारह वस्तुएँ, बारह लोग, बारह गाँव, बारह महिने, बारह राशियाँ ये सब दरजन में आते हैं। अंग्रेजी का डज़न मराठी में डझन हो जाता है जिसका अर्थ है बारह का समूह।
दरजन की व्युत्पत्ति हुई है अंग्रेजी के डज़न से। अंग्रेजी में डज़न का विकास हुआ है लैटिन के duodecim से। एटिमऑनलाईन के अनुसार अंग्रेजी में क़रीब बारहवीं सदी में डज़न का रूप था डोज़ जिसका ही विकास duodecim से हुआ। यह शब्द भी दरअसल भारोपीय मूल का ही है और दो शब्दों से मिलकर बनी शब्दसन्धि का उदाहरण है जिसका अंग्रेजी रूपान्तर डज़न हुआ। इसके हिज्जे हैं- duo+ decem अर्थात दो +दस। ध्यान रहे लैटिन का ड्युओ और संस्कृत का द्वि एक ही है। ड्युओ से ही अंग्रेजी के टू का विकास हुआ है। हिन्दी का दो भी इसी मूल का है। इसी तरह संस्कृत दशन्/दशम् और लैटिन डेसिम भी स्वजातीय हैं। ग्रीक में यह डेका है तो आईरिश में डेख, रूसी में देस्यात है, लिथुआनी में इसका रूप देश्मित और लात्वियाई में देस्मित है। अंग्रेजी महिने डिसेम्बर/दिसम्बर के मूल में भी लैटिन का डेसिम ही है जिसका अभिप्राय दस है। गौरतलब है कि प्राचीन रोमनकाल में दस महिनों का ही प्रचलन था जिसके आधार पर दसवाँ महिना दिसम्बर कहलाया। बाद में जब ग्रेगोरियन कैलेण्डर के आधार पर वर्ष विभाजन बारह माह का हुआ और वर्षारम्भ जनवरी से हुआ तब दिसम्बर अपने दसवें स्थान से खिसक कर अपने आप बारहवाँ महिना बना। इससे पहले तक प्राचीन रोमन कैलेण्डर की शुरुआत मार्च से होती थी।
हिन्दी के बारह अंक का विकास भी कुछ इसी तरह हुआ है। द्वि + दशन् = द्वादशन् > द्वादश > वारस > बारस > बारह। ध्यान रहे संस्कृत हिन्दी की व ध्वनि ब में तब्दील होती है। इसी तरह श का रूपान्तर स ... पुराने ज़माने में बड़ी हवेलियों को बारहदरी कहा जाता था क्योंकि इनमें बारह दरवाज़े होते थे। इसका एक रूप बारादरी भी है। वर्णमाला के लिए सबसे प्रचलित शब्द है बारहखड़ी जो बना है द्वादश-अक्षरी से।...
में होता है और स कई बोलियों में ह के रूप में उच्चारित होता है। इस तरह अंग्रेजी के डज़न और हिन्दी के बारह का विकास एक जैसा ही रहा है। बारह के समूह का महत्व प्राचीन भारतीय संस्कृति में भी रहा है। कालगणना में यह स्पष्ट है। भारतीय ज्योतिष में बारह राशियाँ हैं। बारह माह हैं। बारह संक्रान्तियाँ हैं। हिन्दुओं में बारह ज्योतिर्लिंगों का महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जिन स्थानों पर शिव प्रकट हुए थे वहाँ ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई जैसे- सोमनाथ, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, घृष्णेश्वर, केदारनाथ, रामेश्वर, नागेश्वर, वैद्यनाथ, त्र्यंबकेश्वर, काशी विश्वनाथ और भीमाशंकर। इन ज्योतिर्लिंगों का संबंध बारह राशियों से भी जोड़ा जाता है। इसी तरह ज्योतिष में बारह भाव हैं जैसे- तनु, धन, सहज, सुहृद, पुत्र, रिपु, स्त्री, आयु, धर्म, कर्म, आय, व्यय आदि। जैन धर्म में भी बारह भावनाओं का महत्व है-अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आश्रव, संवर, निर्जरा, लोक और धर्म भावना। बारह वर्षों में एक बार कुम्भ पर्व आता है। पाण्डवों की वनवास अवधि भी बारह वर्ष की थी। गणेश के बारह नाम भी प्रसिद्ध हैं- सुमुख, एकदंत,कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन। रात दिन को बारह बारह घण्टों में ही विभाजित किया गया है। धर्म-संस्कृति और लोकाचार में तलाशने पर बारह के ऐसे कई अन्य समूह भी मिलेंगे। हिन्दी में एकादशी को ग्यारस और द्वादशी को बारस कहा जाता है। सभी मौसम में एक समान भाव रखनेवाले को बारहमासी भी कहा जाता है जैसे बारहमासी फूल। बारहमासी सब्जी। मध्यकालीन कविता में बारहमासा या बारहमासी की परम्परा थी। ज्यादातर शृगाररस के कवियों नें बारहमासे रचे हैं जिनमें नायिका अपने वियोग वर्णन में वर्ष की सभी ऋतुओं की खासियत बखान करते हुए अपनी पीड़ा को उजागर करती है। कालिदास का मेघदूत एक किस्म का बारहमासा ही है। पुराने ज़माने में बड़ी हवेलियों को बारहदरी कहा जाता था क्योंकि इनमें बारह दरवाज़े होते थे। इसका एक रूप बारादरी भी है। वर्णमाला के लिए सबसे प्रचलित शब्द है बारहखड़ी जो बना है द्वादश-अक्षरी से। मूलतः इसमें वर्णमाला के 12 स्वरों के साथ व्यंजनों को संयुक्त कर लिखने के अभ्यास का भाव है। संस्कृत वर्ण द में मूलतः विभाजन का भाव है। एकत्व का द्वित्व होना ही विभाजन है। इसीलिए द्वि का अर्थ दो हुआ अर्थात एक का न्यूनतम विभाजन। इसके आगे की संख्याएं लगातार विभाजन ही हैं। दिशाओं की संख्या लगातार बढ़ीं, महिनों की संख्या लगातार बढ़ी। अगर एकत्व सुविधा है तो विभाजन भी सुविधा ही है। मगर विभाजन दुविधा भी है। दुविधा यानी अनिर्णय, असमंजस। हिन्दी में बारहबाट होना जैसे मुहावरा प्रचलित है जिसका अर्थ है एक के अनेक होना, तितर-बितर होना, अलग अलग होना आदि। बारहबाट में बारह टुकड़ों या हिस्सों की बात है। बाट को राह से भी जोड़ सकते हैं। एक साथ कई विकल्प खुलना दरअसल सुविधा नहीं दुविधा का आरम्भ है।
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5 कमेंट्स:
पंजाब की संस्कृति में बारह की बहुत महत्ता है. एक तरह की पंजाबी बोलियाँ 'बारीं बरसीं खटण गया सी' के बोल से शुरू होती हैं. हीर बारह वर्ष की थी जब उसने रांझे के साथ यारी लगाई. लूणा भी बारह वर्ष की थी जब उसकी सलवान के साथ शादी हुई. पूरण भक्त को बारह वर्ष के लिए भोरे में रहने की सजा हुई थी. फिर पूरण बारह वर्ष अंधे कुएं में पड़ा रहा यहाँ से गोरख नाथ ने उसे निकाला . मुहावरा है 'बारह बरस बाद तो रूडी की भी सूनी जाती है.' जुए से विकसित हुआ मुहावरा है, 'पौं बारां' बारह साल का बनवास होता है. एक लोक गीत के बोल हैं:
बारां बंबे लग्गे आ पटिआले वाली रेल नूं
और फिर सिखों के बाराह .......
लगता है बारां संपूर्णता का प्रतीक है.
विभिन्न भाषायें जितनी पास पास हैं, काश राष्ट्रीयतायें भी होतीं।
डेसिम से ही तो डेसिमल यानि दाशमिक बनता होगा.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. आपके लेख मैं बहुत चाव से पढता हूँ और आप कभी निराश नहीं करते.
बहुत बहुत धन्यवाद इस ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए...
काफी नयी चीजें सीखने को मिलीं....
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