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Monday, February 7, 2011
निर्धन की ढाणी, अब राजधानी [आश्रय-32]
इस शृंखला की कड़ियाँ-कंगाल की ठठरी, ग़रीब का पिंजर[आश्रय-31]गुहा, गुफा और कोहिनूर [आश्रय-30]बस्ती बस्ती, कटरा कटरा[आश्रय-29]कुरमीटोला और चमारटोली [आश्रय-28] थमते रहे ग्राम, बसते रहे नगर [आश्रय-27]कसूर किसका, कसूरवार कौन? [आश्रय-26].सब ठाठ धरा रह जाएगा…[आश्रय-25] पिट्सबर्ग से रामू का पुरवा तक…[आश्रय-24] शहर का सपना और शहर में खेत रहना [आश्रय-23] क़स्बे का कसाई और क़स्साब [आश्रय-22] मोहल्ले में हल्ला [आश्रय-21] कारवां में वैन और सराय की तलाश[आश्रय-20] सराए-फ़ानी का मुकाम [आश्रय-19] जड़ता है मन्दिर में [आश्रय-18] मंडी, महिमामंडन और महामंडलेश्वर [आश्रय-17] गंज-नामा और गंजहे [आश्रय-16]
आ बादी या बसाहट की अत्यंत प्राचीन व्यवस्था के तौर पर हम शब्दों का सफ़र में ग्राम, नगर, कटला, शहर, गाँव, क़स्बा, कलाँ और खुर्द जैसे शब्दों से होकर गुज़र चुके हैं। इन विभिन्न नामोंवाली बसाहटें समूचे भारत ही नहीं बल्कि भारत के बाहर हैं जैसे शहर नाम वाली आबादियाँ सिर्फ भारत में नहीं बल्कि पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान समेत एशिया के दर्जनभर देशों में हैं इसी तरह नगर भारत के अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका समेत अनेक पूर्वीएशियाई देशों में हैं। यही हाल गाँव, कटला, खुर्द और कलाँ का भी है। सफ़र में आज चर्चा करते हैं ढानी शब्द की। इसके विभिन्न रूपान्तर समूचे देश में प्रचलित हैं और यह शब्द आज भी मानवीय बसाहटों की सबसे छोटी इकाई के तौर पर जानी जाती है। महाराष्ट्र में ढानी के लिए ढाणी, ढाणा या ढाणे शब्द प्रचलित है और दस बीस घरों की आबादी वाली बसाहटें इसके दायरे में आती हैं। इससे अधिक घरों की आबादी को मोठा ढाणा अर्थात बड़ा ढाना कहते हैं। इसके बाद गांव आता है। किसी ज़माने की ढाणी कालांतर में बड़ी बसाहट में तब्दील भी हुई। महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले का नाम यही उजागर करता है।
राजस्थान, पंजाब में ढानी शब्द का उच्चारण अक्सर ढाणी ही होता है जैसे ढाणीथार, ढाणीमौजी, लाला की ढाणी, रेबारियों की ढाणी, ढाणी लालाखान, दरियापुरढाणी आदि। मगर राजस्थान में ढानी का उच्चारण भी प्रचलित है। मध्यप्रदेश में ढाणी या ढाणा का प्रचलन न होकर ढानी शब्द का ढाना रूपान्तर प्रचलित है। बुंदेलखण्ड और महाकौशल क्षेत्र में दर्जनों गांव हैं जिनके आगे या पीछे ढाना शब्द लगा मिलता है जैसे ढाना (सागर), चिचौलीढाना, खमदौड़ाढाना, गुरैयाढाना या ढाढे की ढाना आदि। हरियाणा में ढाणानरसान, ढाणाकलाँ, हाँसीढाणा या ढाणारड्डा जैसी आबादियाँ खूब हैं। इन तमाम शब्दों के मूल में वही प्रसिद्ध शब्द धानी है जिसके जुड़ा सर्वाधिक प्रचलित शब्द है राजधानी। धानी मूलतः आवासीय व्यवस्था की सबसे छोटी इकाई है। प्रवासी मानवसमूहों के सर्वाधिक छोटे जत्थे को आश्रय प्रदान करनेवाले स्थान को धानी की संज्ञा मिली। सभ्यता के विकासक्रम में भी यह धानी शब्द मनुष्य ने याद रखा और जन संकुलों की राजनीतिक व्यवस्था जब स्थिर हुई तो विभिन्न धानियों की प्रमुख धानी को राजधानी कहा गया। आज इस नाम की बड़ी महिमा है। बड़े बड़े प्रासाद, अट्टालिकाएं, रेलें, होटल-मोटल, मॉल और कारोबारी संस्थाओं तक के नाम के आगे राजधानी शब्द जुड़ा हुआ है। यूँ राजधानी में भी निर्धन बसते हैं, पर धानी के आगे लगे राज की चकाचौंध में निर्धन की धानी हमेशा अदृष्य रहती है। जयपुर की प्रसिद्ध आरामगाह चोखीढ़ाणी का नाम आज दुनियाभर में मशहर है और यह एक सफल व्यावसायिक केन्द्र भी है।
हिन्दी की तत्सम शब्दावली का धानी शब्द मूलतः संस्कृत में धानम् या धानी है जिसमें आश्रय का भाव है। आप्टेकोश के अनुसार धानी या धानम् अर्थ है आधार, गद्दी, स्थान आदि। गौर करें बरतन या पात्र भी इसके दायरे में आते हैं क्योंकि ये किसी वस्तु के लिए आश्रय या आधार प्रदान करते हैं। फ़ारसी का प्रसिद्ध शब्द दान या दानी को याद करें जिसका प्रयोग किन्हीं शब्दों के आखिर में होता है, जैसे इत्रधान, फूलदान या इत्रदानी, फूलदानी, सियाहीदानी आदि। अचार के मर्तबान को अचारदानी कहा जाता है। इन तमाम शब्दों का अर्थ यही है धारण करनेवाला पात्र या आश्रय। हिन्दी संस्कृत में सियाहीदानी के लिए मसिधानी शब्द मिलेगा। धानम् या धानी शब्द बना है संस्कृत की धा धातु से जो अत्यंत व्यापक अर्थवत्ता वाली विशिष्ट धातु है जिसने दर्जनों शब्दों से भारतीय भाषाओं को समृद्ध किया है। धा धातु में यूँ तो रखना, जमाना, पकड़ना, वहन करना जैसे भाव हैं और जिनसे धारण करने का अर्थ ही प्रकट होता है। कोई भी स्थान अपने भीतर एक परिवेश को धारण करता है चाहे वह जनसमूह हो, वनस्पतियाँ हों अथवा स्थावर रचनाएं जैसे झोपड़ी, मकान आदि। इस तरह देखें तो ख़ासतौर पर धानी वह है जहाँ या जिसमें कोई वस्तु रखी जाए। इसकी अतिरिक्त व्याख्या स्थान, पात्र आदि में हो सकती है। विस्तार से कहें तो रहने का स्थान भी धानी है जैसे राजधानी। किसी वस्तु के संग्रहण का स्थान भी धानी है जैसे इत्रदान या मसिधानि, किसी वस्तु का आधार भी धानी है जैसे पुष्पधानी या फूलदान। धानी में धारण करने का गुण ही सर्वोपरि है। इस धानी के अलग अलग क्षेत्रिय बोलियों में अलग अलग रंग और ढंग दिखते हैं। ज्यादातर लोक बोलियों में मूर्धन्य प्रभाव प्रमुख होने से ध का ढ हो गया है। धानी या तो ढानी हुई या ढाना मगर राजस्थान, पंजाबी और हरियाणवी में तो धानी के ध और न दोनों ही ध्वनियों की स्थितियाँ बदल कर मूर्धन्य हो गईं और ध बदला ढ में तो न बदला ण में और धानी, ढाणी बन गई।
अक्सर धानी का रिश्ता हरे-पीले रंग से भी जोड़ा जाता है। यह धानी रंग है जो लोकाचारों में मांगलिक माना जाता है। दरअसल धानी की मूल धातु धा है और इसके पीछे छुपा देवनागरी का ध वर्ण बड़ा चमत्कारी है जिसमें रखने वाला, धारण करने वाला जैसे भाव समाहित हैं। ब्रह्मा, कुबेर, भलाई, नेकी, संस्कार, धन-दौलत जैसे भाव भी इस वर्ण से जुड़े हुए हैं। धन ही समूची सभ्यता-संस्कृति को धारण करता है। धन है तो जन है, धन है तो जीवन है। जिसके पास धन नहीं वह निर्धन है। ताज्जुब तो यह कि हिन्दी का निधन शब्द इसी निर्धन से आ रहा है जिसमें धन को सर्वाधिक महत्व प्रधान कर दिया है। निर्धन जीवन मृत्यु समान है इसलिए निर्धन से उपजा निधन शब्द। समाज में हमेशा निर्धनों की तादाद ज्यादा रही है और धनिकों की निगाह में निर्धन की औक़ात कीड़े मकौड़े समान ही है। जाहिर है निर्धन होते ही व्यक्ति मनुष्य कहलानेयोग्य तो नहीं रह जाता। यह मृत्यु ही है। बहरहाल ध की महिमा धान्य में है जिसका अर्थ है अनाज। प्राचीनकाल में वस्तुविनिमय प्रणाली के तहत अनाज ही धन था और इसीलिए कृषिउपज को धान्य कहा गया। बाद में चावल के लिए धान शब्द रूढ़ हो गया। मोटे तौर पर पृथ्वी से जो कुछ अंकुरित रूप में सामने आया है, वह धान्य है। पृथ्वी के धरा, धरणी नाम में इसी ध की महिमा है क्योंकि प्राणि और प्रकृति को इसने धारण किया हुआ है। पृथ्वी की कोख से हमेशा सोना ही उपजता है इसलिए धानी रंग में स्वर्णिण, पीताभ के साथ हरितिमा का भाव है। पति स्त्री का धन भी है और स्त्री को आश्रय भी देता है सो राजस्थानी में पति को धणी कहने का रिवाज़ है। ग़रीब के लिए साहूकार धनी या धणी है क्योंकि कर्ज़ देकर वही उसे उबारता है।
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2 कमेंट्स:
कल यहाँ चर्चा थी कि स्थानीय बोलियों का व्यवहार कम होता जा रहा है, हिन्दी उस का स्थान ले रही है। इस से बहुत से शब्द, मुहावरे, कहावतें गायब होती जा रही हैं। ढाणी और ढाणा शब्द का उल्लेख भी हुआ। यहाँ ढाणी झोपड़ियों के समूह को कहते हैं। वहीं कुएँ पर चड़स चलाने के लिए लकड़ी के ऊपर नीचे दो गरारियों वाले जिस यंत्र को कुएँ पर जहाँ स्थापित किया जाता है, उस स्थान को ढाणा कहते हैं। चर्चा थी कि लोग ढाणा और उस के अर्थ को भूलने लगे हैं।
ध से धर्म भी आया है, पर राजधानी में धर्म कहाँ?
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