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Tuesday, February 15, 2011
शनिवार पेठ में वड़ापाव और मोफ़त सल्ला
बी ते पाँच दिनों से पुणे में हूँ। पुणे पहली बार आना हुआ है। मराठीभाषी होते हुए भी मेरा महाराष्ट्र से जीवंत सम्पर्क नहीं रहा। ये अलग बात है कि परिवार में मराठी संस्कृति रची-बसी है और तमाम संबंधी पुणे में भी हैं। मेरा वहाँ अब तक न जाना संयोग ही है। किसी भी शहर का पुराना इलाका मुझे आकर्षित करता है, सो मैं भीयहाँ के खास इलाके यानी शनिवारवाड़ा से लगे शनिवार पेठ में एक होटल में जम गया हूँ। घना बसा इलाका मगर अव्यवस्था का कहीं नामोंनिशां तक नहीं। पुणेवासियों में अपने शहर के लिए आत्मीय लगाव है। पुराने इलाके में शनिवार पेठ, सोमवार पेठ, बुधवार पेठ, रविवार पेठ जैसे बाज़ार हैं जो पेशवाकालीन साप्ताहिक बाजार थे।
पुणे के बाज़ार में पान या चाय की दुकानें कम और पावभाजी, वड़ापाव, मिसळपाव, दाबेली, कच्छी दाबेली, एक किस्म की कढ़ी, उबली मक्का की उसळ से लेकर दक्षिण भारतीय व्यंजनों की दुकानें बहुतायत में नज़र आती हैं। हर सातवीं आठवीं दुकान पर यही सब बिकता नज़र आता है। सामान्य समोसे तो यहाँ मिलते ही हैं, यहाँ की खासियत नारियल समोसा भी है। मुझे खूब पसंद आया। खान पान के प्रति इतना प्रेम मैने अबतक सिर्फ़ जोधपुरवासियों में ही देखा था। मैं जिस होटल में ठहरा हूँ, उसके मालिक आगरावासी अग्रवालजी हैं जो यहाँ दशकों से बसे हैं। होटल का समूचा स्टॉफ ग्वालियर, भिण्ड या आगरा का ही है। मैं दो दिनों से रात को रोज़ दाल-चावल की खिचड़ी बनवा कर खा रहा हूँ क्योंकि होटल के महाराज बनाते ही इतनी लज़ीज़ खिचड़ी हैं कि क्या कहा जाए। आप भी इसके दर्शन कर सकते हैं। खिचड़ी को खूब सारे अचार के साथ खाया जाए तो आनंद बढ़ जाता है। यूँ भी हमारी माँ ने बचपन में बताया था कि खिचड़ी के हैं चार यार , दही पापड़, घी अचार!! अपने साथी अमित देशमुख से इसकी तारीफ़ की तो उसने भी खिचड़ी-डिनर का आनंद लिया। दिन में हम लंच नहीं लेते बल्कि विभिन्न ठिकानों की पड़ताल करते हैं और फिर जो मन होता है, एक या दो पीस चख लेते हैं मसलन आज सुबह हमने साबूदाणे का वड़ा खाया, मगर वह कुछ मीठा सा लगा। हम तो साबूदाणे का वड़ा भरपूर तीखी हरी चटनी के साथ खाने के आदी रहे हैं। हमारे घर का वड़ा अपने आप में भी लाल और हरी मिर्च से भरपूर होता है। बहरहाल, हमने बुधवारपेठ तक मटरगश्ती की और एक होटल में पूरी-सब्जी का आनंद लिया।
जिस इलाके में मैं रुका हूँ वहां जवाहिरात की खूब दुकाने हैं। इन दुकानों पर ज्योतिषियों की तस्वीर वाले बड़े बड़े होर्डिंग लगे हैं मोफत सल्ला। रत्न-जवाहिरात खरीदनेवाले लोगों को दुकानदार खुद ही ज्योतिषियों के ज़रिये मुफ्त सलाह दिलवाते हैं। इस तरह उनकी बिक्री बढ़ती है। ज्योतिषीय सलाह की यह होड़ अब समूचे महाराष्ट्र में फैल रही है। लोग भी इसे पसंद करते हैं क्योंकि इस तरह अपने ज्योतिषी महाराज का शुल्क उन्हें अदा नहीं करना पड़ रहा है। होर्डिंगों में ज्योतिषी बड़े ठसके के साथ बैठे नज़र आते हैं, उतना ही ठसका उनका दुकान के भीतर भी नज़र आता है। मराठी महिलाएं गहने, जिसे मरराठी में दागिणे कहा जाता है, खूब बनवाती हैं। गहनों का यह शौक इतना ज्यादा है कि फूलों के गहने भी खूब पहने जाते हैं। फूलों के गहने, यानी पुष्पसज्जा। जगह जगह पर गजरों की दुकाने हैं। अपना कैमरा हम भोपाल में ही भूल आए हैं, जिसका अफ़सोस है। फ़िलहाल सेलफ़ोन से ली एक दो तस्वीरें ही दिखा रहे हैं।
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10 कमेंट्स:
अरे वाह! मै पुणे में रहती हूँ! समय निकालके मिलने आ सकें तो बहुत अच्छा लगेगा! ये रहा मेरा #: 9860336983.
ओह ! पुणे ! मुंबई आने पर आपकी घंटी बजाता हूँ. अगर तब तक आप उधर रहे तो एक दिन पुणे का प्लान भी बना लेंगे.
सुनते हैं कृशर या कृशरान्न इसका कच्चा माल है.
वाह, सजीव और "लज़ीज़" वर्णन…।
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पुणे की तरह ही सूरत और चण्डीगढ़ के निवासी भी अपने शहर से "सच्चा प्यार" करते हैं… जबकि सभी शहरों के लोगों को करना चाहिये…
मराठी साहित्य सम्मेलन च्या वेळेस पुण्याला गेलो होतो । पुण्याचे वैषिट्य म्हणजे जुनी आणि नवीन दोन्ही संस्कृति चे मिश्रण ।
वहाँ पुस्तकों का भी एक बाज़ार है , उसे देखियेगा और फुलेवाड़ा ( ज्योतिबा फुले का निवास ) भी देखियेगा । एक और जगह भांडारकर इंस्टिट्यूट जहाँ प्राचीन पांडुलिपियाँ है , तथा आंबेडकर का स्मारक सिम्बॉयसिस मे ।
बिना इन चारों के खिचड़ी खाता ही नहीं हूँ।
वाह! बहुत शानदार वर्णन.
उधर कभी जाना नहीं हुआ है...सो बहुत सारी नयी जानकारी मिली ...
सुखद लगा...
आभार..
हमारे इधर भी बिना इन चारों यार के खिचडी खायी नहीं जाती..
पुणे की बड़ी तारीफें सुनी हैं. आज आपके माध्यम से इसका सफ़र भी हो गया .खासतौर स यहाँ के भोजन का . अच्छा लगा .
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